AuthorPradeep Kumar JainSatire

व्यंग्य – आज के अंगुलिमाल (भाग २)

अब तक आपने पढ़ा!

बाबू चरणदास ने ऊपरी कमाई करना शुरू कर दिया था और जब सब कुछ ठीक चल रहा था तो इंस्पेक्टर शिशुपाल ने उनको रंगे हाथो गिरफ्तार कर लिया।

अब आगे!

इंस्पेक्टर शिशुपाल ने जब उनको थाने में बंद किया तो उन्होंने इंस्पेक्टर शिशुपाल से एक दो फोन करने की इजाजत मांगी और इजाजत मिलने पर सभी पेज ३ वाली सेलिब्रिटी और अपने मित्र नेताओं से मदद मांगी पर सबने बहाने बना कर फोन काट दिए। बाबू चरणदास इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि एक तो वो उपरी-कमाई-लोक में ऐसी किसी भी तरह की तानाशाही को सोच ही नही सकते थे, दूसरे उनके सभी पेज ३ मित्र, जिनको वो सच्चा मित्र मान कर बैठे थे, उन लोगो ने उनसे कन्नी काट ली थी। उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। 


इंस्पेक्टर शिशुपाल ने उनका मेडिकल कराया और चूंकि रात का समय हो चुका था, इसलिए बाबू चरणदास को न्यायमूर्ति धर्मराज की अदालत में अगले दिन पेश करने का निर्णय लिया।

इंस्पेक्टर शिशुपाल ने बाबू चरणदास की ईमानदारी और कर्तव्य परायणता के बारे में काफी सुन रखा था इसलिए बाबू चरणदास को इस हालत में देख कर उन्हे काफी दुख और आश्चर्य दोनो हुआ। 

इंस्पेक्टर शिशुपाल उनके पास आकर बैठ गए और बोले। 
शिशुपाल: चरणदास जी, हम कल आपको जज साहब के सामने पेश करेंगे, तब तक आपको कुछ मदद चाहिए तो मुझे बताए। 

चरणदास: शिशुपाल जी, आप मेरी मदद क्यों करना चाहते है?
शिशुपाल: मैने आपकी ईमानदारी की काफी कहानी सुन रखी थी और मुझे आपको इस हालत में देख यकीनन काफी दुख हुआ है। लेकिन आपने यह सब किया किसके लिए? जहां तक मेरी सोच है आप तो हमेशा “सादा जीवन उच्च विचार” में यकीन रखते थे।

चरणदास: आपने सही कहा। इच्छाएं मेरी आज भी कुछ ज्यादा नही है, ये सब मैने अपने घर वालो के लिए किया, अपने माता, पिता, पत्नी, बच्चे इत्यादि के लिए किया?

शिशुपाल; क्या आपके घरवाले आपकी इस सजा में आपके हिस्सेदार बनेंगे?

चरणदास; वो कैसे बनेंगे, कानून की नजर में तो मैं अपराधी हूं।

शिशुपाल; सही कहा, सजा में ना सही लेकिन आपके बुरे कर्मो में तो साझीदार बन सकते है? क्या वो आपके कुछ पाप अपने सर पर लेंगे?

चरणदास: मेरे घरवाले मुझे बहुत प्रेम करते है, कुछ दिनो से तो मेरी इज्जत भी काफी करने लगे हैं। मुझे यकीन है, वो मेरे कुछ पापों को जरूर बांटेगे क्योंकि ये सब मैने उनके लिए ही किया है।
शिशुपाल (मुस्कराते हुए); आपको पूरा यकीन है?
चरणदास : शत प्रतिशत।
शिशुपाल: वैसे तो कानून मुझे इस बात की अनुमति नहीं देता है फिर भी मै आज रात के लिए आपको घर जाने का मौका दे सकता हूं परंतु सुबह ६ बजने से पहले आपको यहां वापस आना होगा। शायद आपके घर वाले आपके पापों का बोझ बांटने के लिए तैयार हो जाए?
चरणदास: अवश्य होंगे।
इंस्पेक्टर शिशुपाल ने हवलदार तोता सिंह को दरवाजा खोलने का इशारा किया। और उनको घर ले जाने का इशारा किया।

बाबू चरणदास ने शिशुपाल का धन्यवाद किया और हवलदार तोता सिंह के साथ अपने घर पहुंचे और उनको बाहर गाड़ी में ही रुकने का अनुरोध किया।
फिर उन्होंने अपने घर पहुंच कर घंटी बजाई लेकिन दरवाजा खुलने में काफी समय लगा। थोड़ी देर बाद अलसाते हुए उनकी पत्नी कनक ने दरवाजा खोला और उनको देख बोली।

कनक: अरे आप यहां कैसे, कही जेल से भाग कर तो नही आए?
चरणदास: भागकर नही आया हूं, अनुमति ले कर आया हूं। बाकी सारे लोग कहां पर है? मुझे लगा की घर पर सब परेशान होंगे लेकिन यहां तो सब घोड़े बेच कर सो रहे हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।
कनक: अरे आप इतना काहे सोच रहे हो, अरे रात है तो लोग सोएंगे ही ना।

चरणदास : लगता है मुझे देखकर तुम्हे कोई खुशी नही हुई है?

कनक: अरे खुशी क्यों ना होंगी? खुशी हुई है लेकिन आप कोई सीमा पर से युद्ध कर तो वापस आए नही है कि आपकी आरती उतारी जाए। 

चरणदास: तुम्हारे चेहरे पर खुशी दिख नही रही है।

कनक; अरे अब क्या में आपको नाच कर दिखाऊं? आपको तो पता है जब से आपकी गिरफ्तारी की खबर फैली है तब से हम लोग तो घर से बाहर ही नहीं निकले है, रिश्तेदार भी फोन कर पूछ रहे है, पता नही पूछ रहे है या फिर हम लोगो पर हंस रहे है? सही बताऊं तो आपने हमको मुंह दिखाने के लायक भी नहीं छोड़ा।

कनक की बात सुन कर चरणदास हतप्रभ रह गए, कहां तो वो यहां अपने पापकर्मो का हिस्सा देने आए थे और यहां तो उसकी पत्नी उसको ही दोषी ठहरा रही है। फिर भी चरणदास ने अपने आपको नियंत्रित किया और सधी हुई आवाज में बोले,

चरणदास: कनक, तुम भी मुझे ही दोषी ठहरा रही हो, भूल गई वो दिन जब में रिश्वत नही लेता था और तुम मुझको आए दिन ताने मारती थी। और तुमको वो दिन ध्यान है, जब मेने पहली बार रिश्वत से भरी टोकरी घर पर लेकर आया था तो तुमने मेरी आरती उतारी थी? 

कनक: सुख सुविधाओं को भोगना किस की तमन्ना नही होती है, मेरी भी होती थी लेकिन तुमको तो विवेक से काम लेना चाहिए था?

चरणदास (थोड़े सख्त लहजे में): क्या तुम्हे वो दिन याद है जब में पहली बार टोकरी लाया था और तुमने मेरी आरती उतारी थी। याद है कि नही?

कनक: हां मुझे याद है और उसमे मेने कोई बुरा नही किया था, आप घर में लक्ष्मी लेकर आए थे तो आरती तो उतारनी ही थी।

चरणदास: क्या तुमको पता नही था कि वो टोकरी कहां से आई थी? और उसका उद्देश्य क्या था?

कनक; मुझे क्या पता और मुझे जानना भी नही था।

चरणदास: मैं बताता हूं, वह रिश्वत की टोकरी अनैतिक काम को करने के लिए आई थी और इस हिसाब से तुम भी उसमे हिस्सा थी और मुझे पूरा यकीन है कि तुम उसके दंड भोगने में मेरा साथ दोगी।

कनक; मैं क्यों तुम्हारे पाप में भागीदार बनूं, पाप तुमने किया ,तुम सजा भुगतो।

चरणदास (आश्चर्यचकित हो) लेकिन तुम मेरी अर्धांगिनी हो और मेने सब तुम्हारे लिए ही किया?

कनक: अर्धांगिनी हूं तो क्या तुम्हारे पाप में हिस्सेदार बनूगी? 

चरणदास के कान में कनक के वाक्य कर्कश आवाज की तरह गूंज रहा था। उसने कनक को भरी हुई निगाह से देखा और दूसरे कमरे की और चल दिया जहां उसके माता पिता सो रहे थे। चरणदास को देख कर दोनो ही बहुत खुश हुए लेकिन उन दोनो के चेहरे पर चिंताएं भी थी।

पिताजी: बेटा चरण, ये तुमने क्या कर दिया, खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दी।
चरणदास ; लेकिन पिताजी, मां! मेने तो ये सब आप लोगो के लिए किया।

मां: हमारे लिए? लेकिन हमने कब कहा था? हम दोनो की तो उम्र हो गई है, हमे तेरी पाप की कमाई से क्या लेना देना?

चरणदास: मां, पिताजी! लेकिन मेने जो पैसा कमाया है उसका कुछ हिस्सा आप लोगो पर भी तो खर्च हुआ है और इस कारण आप लोग भी तो मेरे पाप में भागीदार हुए?
पिताजी: बेटा चरण, तू अपना पाप हमारे सर पर डालने की कोशिश कर रहा है, तेरी पाप की कमाई और पापकर्मों से हमारा कोई लेना देना नही। रही बात तेरी पाप की कमाई से सुख सुविधा लेके की बात? तो वो तो तूने अपनी इज्जत के लिए किया था।

मां पिताजी की बात सुनकर चरणदास का दिल बैठ गया, वो समझ गया था की उसके मां पिताजी भी उसके पाप कर्मों को साझा नही करेंगे और इस कारण वह उनसे पूछने की हिम्मत भी नहीं कर पाया। 

उदास हो लिविंग रूम में आया और अपना सर पकड़ कर बैठ गया, फिर उसने धीरे से फ्रिज खोला और पानी पीकर गहरी सांस ली। अपनी पत्नि और माता पिता की बातें सुनकर उसको सदमे के साथ साथ दुख भी पहुंचा था और उसमे अपने बच्चो से पूछने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी, फिर भी उसने अपना जैसे तैसे हिम्मत जुटाई और अपने बच्चो, नल और नील के कमरे की घंटी बजाई। 

नल और नील दोनो ही जाग रहे थे अतः कमरे के दरवाजे तुरंत खुल गए।
पिता चरणदास को देख कर दोनो बहुत खुश हुए हुए। उनकी खुशी देख कर चरणदास के मन में थोड़ी आशा जागी। उन्होंने बड़े ही भरे मन से कहा।

चरणदास: तुम दोनो को कोई कष्ट तो नही है?
नल: नही पिताजी, हां परंतु आपकी गिरफ्तारी की खबर से थोड़ा बुरा जरूर लग रहा है और दोस्त लोग भी कानाफूसी कर रहे है।
नील: परंतु पिताजी आप चिंता ना करे, मेरे मित्र के पिताजी बहुत बड़े वकील है और उनकी जज लोगो से पहिचान भी है। हम लोग जल्दी ही आपको छुड़ा लेंगे।

चरणदास: परंतु बेटा?
नील ( बीच में बोलते हुए): परंतु कुछ नही पिताजी, थोड़ा बहुत पैसा लगेगा लेकिन आखिरकार आपने जो ऊपरी कमाई की है वो किस दिन काम आयेगी। और हां जितना दिन आप जेल में रहेंगे उतना ही आपकी ऊपरी कमाई कम होगी।

चरणदास अपने बच्चो की सोच से चकित थे, उनको अपने पिता के जेल से ज्यादा उनकी कमाई की चिंता थी।

चरणदास! बेटा, सुनकर अच्छा लगा कि तुम्हे मेरी इतनी चिंता है और साथ में नुकसान की जो मेरे जेल जाने की वजह से हो रहा है।
नल; पिताजी, धन की चिंता किसे नहीं होगी।

चरणदास: अच्छा बेटा एक बात बताओ, ये मेरे ऊपरी कमाई वाले धन का तो तुम अच्छे से उपयोग कर रहे हो। इसकी वजह से जो मेरे पापों में वृद्धि हो रही है, क्या उसको तुम लोग थोड़ा थोड़ा बांट सकते हो? 

नील: पिताजी ये आप क्या कह रहे हो? मुझे आश्चर्य हो रहा है कि एक पिता होकर आप अपने पुत्रों से ऐसी इच्छा कैसे कर सकते है?
चरणदास: नील, ऐसा मेने क्या मांग लिया है, थोड़ा मेरे पाप बांट लोगे तो क्या हो जायेगा और आखिरकार मेने ये सब किया किसके लिए?

नल: पिताजी, ये सब किया आपने अपने लिए, पिता तो बच्चो के पाप अपने सर पर लेता है, और आप? बहुत दुख की बात है कि आप अपने पापों के भागीदार अपने पुत्रों को बना रहे हो। आपके लिए तो ऐसा सोचना भी एक पाप है, लेकिन आप से और क्या उम्मीद कर सकते है, शायद इसलिए आप जेल के अंदर है।

ये बात कह, नल कमरे से बाहर चला गया और नील भी उसका अनुसरण कर निकल गया।

चरणदास को हृदयाघात (हार्ट अटैक) आते आते बचा और उन्होंने अपने आप को सम्हाला और धीरे धीरे कदमों से बाहर जाने लगे, तभी उनकी नजर भगवान शिव की मूर्ति पर पड़ी तो उनकी आंखों से अश्रुधारा वह निकली। और मूर्ति के चरणों में माथा टेक वह रोने लगे।

चरणदास: हे प्रभु, ये मुझे किस पाप की सजा मिल रही है, जिन घर वालो के लिए मेने इतना कुछ किया उन्होंने मुझसे इस तरह किनारा कर लिया जैसे मेरा इनसे कोई संबंध नहीं है।

तभी उसके अंतर्मन से आवाज आई, उसको लगा मानो भगवान शिव स्वयं बोल रहे हो।

भगवान शिव: पुत्र चरणदास, यहां सबको अपने पापों का फल स्वयं भोगना पड़ता हे।

चरणदास: परंतु प्रभु, मेने तो ये सब अपने घर वालो के लिए किया?

भगवान शिव: किया होगा, लेकिन तेरे पापों को कोई नही बांटने वाला है। क्या ये तेरे लिए काफी नही है अपने पापकर्मो से किनारा करने के लिए।

चरणदास की आंखों पर से पर्दा हट गया था।

वह जल्दी से बाहर निकला और तोताराम की गाड़ी में बैठ गया।

जब वह थाने पहुंचा तो इंस्पेक्टर शिशुपाल, चरणदास को देख आश्चर्य से भर उठा और बोला,

शिशुपाल: चरणदास जी, इतनी जल्दी, अभी तो सुबह होने में काफी देर है?

चरणदास: शिशुपाल जी, सुबह हो चुकी है जरा ध्यान से मेरे चेहरे को देखे।

शिशुपाल: मतलब?

चरणदास: मतलब ये कि मेरी आंखो पर पड़ा पर्दा हट गया है, आपने सही कहा था, मेरे पापों में कोई हिस्सेदार नही बनेगा।
मां, बाप, पत्नी, संतान जिनके लिए में ये सब कर रहा था, वो सब तो मुझे ही दोषी मानते है। आपका कहना सही था, अपने  पाप की गठरी को स्वयं उठाना पड़ता है।
शिशुपाल: लगता है आप परिवार के साथ साथ, भगवान शिव से भी मिल कर आ गए है।
चरणदास: (मुस्कराते हुए) अब मुझे कोई चिंता नहीं है, कोई चिंता नहीं है, मेरे पापों को स्वयं मुझे ही भोगना होगा,  मुझे ही भोगना होगा।
तभी उनके चपरासी तारक ने उनको झकझोरते हुए जगाया और पूछा,
तारक: साहब, क्या भोगना पड़ेगा, आप नींद में जोर जोर से बोल रहे थे।

चरणदास ( मुस्कराते हुए) कुछ नही। और हां, ये घड़ी ठेकेदार साहब के घर भिजवा देना और साथ में उनको कह देना कि आज के बाद अगर रिश्वत देने की कोशिश की तो जेल की हवा खाना पड़ेगी।

तारक ने फीकी हंसी के साथ घड़ी ली और ठेकेदार के यहां चल दिया।

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By….Pradeep Kumar Jain, Managing Partner of Singhania & Co. LLP

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