बुलंद इरादों की मिसाल – श्री वैभव गालरिया

ममता दीदी चिंता के साथ छोटे भाई से कहती है – ”हमारे अध्यापक दो दिन से अवकाश पर थे और कल ही मेरे गणित की परीक्षा है, अब ये सवाल किससे समझूँ?”
छोटे भाई ने कहा – ”कौनसे सवाल है, मुझे बताओ।”
थोड़ी ही देर में ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली अपनी बड़ी बहन को कक्षा छः में पढ़ने वाले छोटे भाई ने सभी सवालों को बड़ी आसानी से क्षणों ही हल करके समझा दिया।
भाई – बहनों के बीच और शैक्षिक माहौल में पले- बढ़े जिस प्रखर बुद्धि के बालक के बचपन की चर्चा आज हम कर रहे हैं वह और कोई नहीं बल्कि शाहपुरा के गौरव कहे जाने वाले व शाहपुरा (भीलवाड़ा) के प्रथम आई.एस.एस. श्री वैभव गालरिया हैं। प्रशासनिक सेवाओं में अपनी प्रतिभा का डंका बजा कर भारत का सिरमौर बन रहे श्री वैभव गालरिया जिस शिखर पर हैं वहाँ तक पहुँचने हेतु केवल शिक्षा ही नहीं बल्कि जोश, जुनून और चहुंमुखी ज्ञान की भी आवश्यकता होती!! वैभव गालरिया का सफर बड़ा ही रोचक सफर रहा है।
इसी रोचकता ने आज यह सिद्ध कर दिया है कि इरादे यदि बुलंद हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। जीवन में कईं लोग इसलिए दुखी होते हैं कि उन्हें कईं संघर्षों के पश्चात भी एक नौकरी तक हासिल नहीं होती हैं, वहीं हमारे इस विरले वैभव के सामने दुविधा यह थी कि आई हुई नौकरियों में से आखिर किसे चुने या किसको प्रधानता दें? मूल रूप से कादीशाहना कस्बे से और शाहपुरा में जन्में श्री वैभव गालरिया आज किसी परिचय पर निर्भर नहीं है। युवा दिलों की एक ऐसी धड़कन जिसने अपनी अप्रतिम शैक्षिक प्रतिभा से न केवल शिक्षा जगत् में बल्कि प्रशासनिक जगत् में भी देश के उत्थान से संबंधित कार्य कर सभी का दिल जीत लिया।

30 अप्रैल 1974 को जन्मे वैभव बचपन से ही अपनी उम्र से अधिक मानसिक योग्यता रखने वाले विरले वैभव कक्षा दस व बारहवीं बोर्ड की परीक्षा में न केवल जिले में प्रथम रहे बल्कि राजस्थान की वरीयता सूची में भी अव्वल रहे।
यदि इनकी योग्यताओं की माला पिरोई जाए तो भी कम है। यह बात हम सभी जानते हैं कि प्।ै परीक्षा भारत की सर्वोच्च व कठिनतम परीक्षाओं में से एक है। जिसकी तैयारी शून्य से आरम्भ होकर शून्य पर अंत होती है अर्थात् असफलता तो शून्य पर लाती ही, परंतु सफलता भी शून्य से ही आरम्भ करने की सीख देती है। यह बात एक प्रशासनिक अधिकारी ही समझ सकता है कि यह क्षेत्र जितना श्रेष्ठ है उतना ही क्लिष्ट भी है। यह भी सच है कि ”रिस्क से इश्क” करने वाले लोग ही श्री वैभव गालरिया बन पाते हैं।
बी.टेक. में रहे शानदार परिणाम की वजह से विश्व की सर्वोत्तम कंपनियों में से जर्मनी की प्रसिद्ध कंपनी सिमंस और मोटोरोला जैसी अंतराष्ट्रीय कम्पनीज में लाखो के पैकेज पर प्रथम प्रयास में ही कैंपस सलेक्शन हो गया। यह चयन होना अपने आप में बहुत बड़ी बात है। परंतु शिक्षक पिता श्री रमेशचंद्र गालरिया जी की आँखें वो देख रही थी जो भाग्य में लिखा हुआ था। एक बच्चे की योग्यता उसके पिता से बेहतर कौन समझ सकता है। श्री वैभव उस नौकरी पर जाने हेतु पूर्ण रूप से तैयार हो गए थे।
शिक्षिका मां श्रीमती कुसुम जी गालरिया, जिन्होंने अपने आदर्शों के साथ – साथ घर-परिवार को स्नेह व संस्कारों की कड़ी में पिरोए रखा, अपने बेटे की सफलता पर प्रसन्न थीं! मगर उसे जीवनोपयोगी या रोजगारोन्मुखी नौकरी नहीं करनी थी बल्कि एक ऐसी नौकरी करनी थी जिसमें माता – पिता की खुशी शामिल हो, जिसमे देश सेवा और आम आदमी के काम आ पाने की सविधान प्रदत्त शक्तिया शामिल हो। अपने कदम पीछे लेते हुए वैभव को मानों ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने समय से कईं साल पीछे चले जा रहे हैं। यही वह शून्य था जिसकी चर्चा हमने ऊपर की है कि शून्य से शुरुआत करना और शून्य की पराकाष्ठा को पार करने का सफर बिल्कुल आसान नहीं होता है।
शिखर की ऊंचाइयों को छूकर पर्वत के पैरों तले आ जाना किसे बर्दाश्त होता है। परंतु श्री वैभव ने उस दौर को भी सहन किया, नौकरी का मौका हाथ से निकल गया!! जिस पिता को यह लगता था कि उनका बेटा प्रशासनिक सेवा का सर्वोच्च अधिकारी बन सकता है वह क्यों किसी सामान्य नौकरी को कर अपना समय व योग्यता व्यर्थ करे। उन्हीं की बात मानकर एम.टेक. की पढ़ाई के साथ – साथ न्च्ैम् की भी तैयारी आरम्भ कर दी। श्री वैभव ने इस पढ़ाई के लिए दिन- रात एक कर दिए और उनकी सफलता रंग लाई। प्रथम प्रयास में ही श्री वैभव ने राजस्थान में प्रथम व भारत में 176 वाँ स्थान प्राप्त किया। रेल विभाग में प्रशासनिक अधिकारी बनने के बाद भी देश में प्रथम स्थान का जुनून समाप्त नहीं हुआ। प्रथम प्रयास में भी उन्हें बहुत अच्छा ही स्थान प्राप्त हुआ था परंतु ”उन्होंने उसी लगन और मेहनत से दूसरी बार पुनः प्रयास किया और 1998 में मात्र 24 वर्ष की आयु में भारत में छठे स्थान पर रह कर कलेक्टर के पद पर आसीन हुए।
इसे कहते हैं ”सोच लिया जो सोच लिया, बस अब सोचना ये है कि उस सोच को सार्थक कैसे करना है?” इस सफलता से न केवल माता – पिता का सपना सच हुआ बल्कि संघर्ष का वो सफर भी समाप्त हुआ जो श्रेणियाँ पर निर्भर होता है। श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर और श्रेष्ठतर से श्रेष्ठतम स्थान पर रहने के कारण उन्हें अपना प्रथम नियुक्ति स्थान गृह राज्य (भ्वउम बंकमत) ही प्राप्त हुआ। अपनी धुन के पक्के, कर्मठ, कर्तव्यनिष्ठ, मिलनसार ,संस्कारित और हँसमुख स्वभाव के धनी श्री वैभव गालरिया बचपन से ही पढ़ाई के प्रति जागरूक थे। सरकारी विद्यालयों में पढ़कर उच्च से उच्च स्तर की शिक्षा हासिल की। साइकिल पर स्कूल जाने वाले, खेतों में क्रिकेट खेलने वाले, अपना कार्य स्वयं करने वाले श्री वैभव गालरिया से यदि हम आज भी मिले तो उनके सानिध्य में कभी भी यह एहसास नहीं होता कि हम अपने से बड़े किसी कद्दावर सीनियर आई.ए. एस. अधिकारी से बात कर रहें हैं। उनमें श्रेष्ठता है तो सहजता भी उतनी ही है।
भाई – बहनों के लाडले श्री वैभव आज भी परिवार को सर्वोपरि और संस्कार को सर्वोपरि रखते हैं। समय की कमी होते हुए भी माता – पिता के प्रति पुत्र के कर्तव्य को कभी नहीं भूलते। श्री वैभव गालरिया जी की जीवन संगिनी श्रीमती डॉक्टर प्रतिभा जोशी स्वयं एक प्रशासनिक परिवार से हैं व विज्ञान की प्रतिभावान छात्रा भी रहीं हैं। श्री वैभव गालरिया की पुत्री सुश्री आशी गालरिया भी उतनी ही प्रतिभावान हैं जितने उनके माता – पिता। इतनी कम आयु में ही नन्हीं बच्ची ने पुस्तक लिखी जिसका विषय हैं The Siberian stray नामक पुस्तक सुश्री आश्मी धाकड़ के साथ मिलकर लिखी। इस पुस्तक का विमोचन बॉलीवुड के प्रसिद्ध लेखक – गीतकार श्री समीर जी ने किया। भतीजी सुश्री शैलजा गालरिया भी विज्ञानी बनने की राह पर है और बेटा प्रतिष्ठित कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रहा है! श्री वैभव गालरिया की कार्य शैली में एक ऐसा नयापन है जो देशहित में ही होता है, जो भारत को विकसित देशों की ओर उन्मुख करता है।
अपनी इन्हीं नीतियों के कारण वे शीघ्र ही भारत के श्रेष्ठतम प्रशासनिक अधिकारियों की श्रेणी में आ गए और कईं उच्च पदों पर आसीन भी हुए हैं, जैसे –

श्री वैभव गालरिया अपने माता -पिता, बड़े भाई श्री गौरव गालरिया जो कि वर्तमान में प्रतिष्ठित उद्योगपति व समाजसेवी हैं और भूतपूर्व केंद्रीय विद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक भी रह चुके है, भाभी श्रीमती ऊषा चाष्टा गालरिया ( राजकीय वरिष्ठ शिक्षिका) हैं व बड़ी बहने श्रीमती ममता जी और श्रीमती मीनाक्षी जी को आदर्श मानते हैं।
अध्ययन की यदि सही दिशा निर्धारित हो जाए तो राहें आसान हो जाती हैं। इसी लिए वे अपने जीवन में श्री अजय सिंह राणा का विशेष योगदान मानते हैं। कितना अच्छा लगता है जब बहनें यह कहती हैं कि मेरा भाई हमारे ही जिले का कलेक्टर है। अपने से बड़ी बहनों के ससुराल (जिलों) में कलेक्टर के पद पर रहे और जिस जिले में जन्में उसके उत्थान हेतु सदैव तत्पर रहे। सत्य, निष्ठा और सजगता और ईमानदारी एक प्रशासनिक अधिकारी के सर्वोच्च गुणों में से एक है। श्री वैभव गालरिया अपने इन्हीं गुणों के कारण दिन- रात प्रगति कर रहे हैं। और हर सरकार में महत्वपूर्ण और जिम्मेदार पदों पर नवाजे गए।
एक सामान्य से परिवार से संबंध रखने वाले, सभी के मददगार और सही समय व आवश्यकता के सही स्थान को समझने वाले , दिखावे से दूर रहने वाले, श्री वैभव गालरिया ने अपनी जन्मभूमि शाहपुरा के लिए राज्य सरकार से जिला अस्पताल बनवाने, बायपास निर्माण कराने, निर्धन बस्तियों में बजट पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । वर्तमान में श्री वैभव गालरिया च्तपदबपचंस ैमबण् (न्क्भ्) के पद पर कार्यरत हैं और देश को अपनी उत्कृष्ट सेवाएं प्रदान कर रहें हैं।
हम उम्मीद करते हैं कि सोशल कैफे मैगजीन के माध्यम से देश का प्रत्येक वर्ग इस लेख को पढ़कर व श्री वैभव गालरिया के जीवन से प्रभावित होकर उनके जैसे देश का आदर्श नागरिक, विद्यार्थी, पुत्र, पिता और प्रशासनिक अधिकारी बनने हेतु प्रेरित होगा।
कैफे सोशल मैगजीन आपकी जीवनी देश के कोने- कोने में पहुंचाकर युवाओं को प्रेरणा देना चाहती है।
आप जैसे कर्मठ व्यक्तित्व को हमारा सलाम
जय भारत, जय भारती।
वंदे मातरम्

ललिता शर्मा नयास्था‘
भीलवाड़ा, राजस्थान, भारत
