AuthorPradeep Kumar JainSatire

हम इंसान नही जानवर है – “व्यंग”

शेरू कुत्ता और भोलू बंदर आपस में जंगल में बढ़ रही असहिष्णुता पर बहस कर रहे थे कि तभी भोलू बंदर को किसी बात पर इतना क्रोध आया कि उसने शेरू कुत्ते के गाल पर कस कर चमाट (चांटा) रख दिया। शेरू भी कहां कम था उसने भी भोलू की पूंछ पकड़ कर घुमाना शुरू किया और एक ही बार में बाहुबली की तरह १०० मीटर फेंक दिया। इससे पहले दोनों की लड़ाई व्यक्तिगत से बढ़कर समुदाय की होती, जंगल के सरपंच श्री जामवंत भालू ने चिल्लाकर कर कहा- तुम लोग इंसानों की तरह व्यवहार क्यों कर रहे हो?

 क्रोध ने तुम लोगो को इंसान (मानव) बना कर रख दिया है!

श्री जामवंत भालू की बात सुन कर जंगल में पिकनिक मना रहे दो प्रबुद्ध मानव पत्रकार श्री प्रश्नचिन्ह बाजपेई और सेवानिवृत न्यायधीश श्री करकांडे आरजू के कान खड़क उठे। उनको अपनी बेइज्जती सी होती हुई प्रतीत हुई और आपस में विचार विमर्श कर उन्होंने अपनी आपत्ति दर्ज कराने का निश्चय किया। क्योंकि उनका मानना था वो समस्त जम्बूदीप के साथ साथ मानव सभ्यता का प्रतिनिधित्व करते है, और आपत्ति दर्ज कराना उनका संवैधानिक अधिकार है। हालांकि दोनों की हैसियत खुद जम्बूदीप में रत्तीभर की भी नही थी। लेकिन जो अवसर का लाभ ना उठा पाए वो बुद्धिजीवी कैसा? इन सब बातो को मद्देनजर रख न्यायमूर्ति (से.) श्री करकांडे  ने कड़क आवाज में श्री जामवंत भोलू को डांट कर कहा – ये तुम लोग कैसी तुलना कर  इंसानों को बदनाम कर रहे हो, तुम लोगों को तो ऐसा बोलना चाहिए कि क्यों जानवरों सा व्यवहार कर रहे हो। तुम लोगों को पता होना चाहिए हम मानव है, इस ब्रम्हांड की सबसे बुद्धिमान जीवित जाति।

श्री जामवंत भालू ने उपेक्षित भरी निगाहों से श्री करकांडे और श्री प्रश्नचिन्ह को देखा और पूछा ” आप इंसान है ये तो हमें दिख रहा है लेकिन इंसानों में कौन? क्योंकि इंसानों में भी तो छोटे- बड़े, ऊंचे- नीचे स्तर वाले इंसान होते हैं!

श्री करकांडे और श्री प्रश्नचिन्ह दोनो ने एक साथ उत्तर दिया  “हम ऊंची मानव सभ्यता के प्रबुद्ध वर्ग से संबंध रखते हैं और आप हमें बुद्धिजीवी भी कह सकते है”

श्री जामवंत भालू ने हंस कर कहा ” हा हा हा! बुद्धिजीवी यानि कि परजीवी। वही परजीवी ना!  जो दो लोगों या समूह को विवाद में फंसा कर मजे और इज्जत दोनो लूटते है”

श्री करकांडे ने गुस्से में जवाब दिया “तुम ऐसा कैसे बोल सकते हो- हम इंसान हैं और तुम जानवर। हमारे यहां जब दो इंसान लड़ते हैं तो हम उनको कहते हैं कि क्यों जानवरों की तरह लड़ रहे हो और तुमको भी ऐसा ही कहना चाहिए”

श्री जामवंत भालू ने कहा- में भी आपको अच्छी तरह समझता हूं क्योंकि मैंने भी जम्मू दीप में काफी समय तक प्रवास किया है और मैं समझता हूं कि वहां के निवासी गाहे- बजाहे हम जानवरों को बदनाम करते हैं।  क्या आपको पता है! अगर नहीं पता है तो मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूं जब वो इंसानों को जानवर कहते है जैसे कि….

१. बीबी पर हाथ उठाया तो आप जानवर

२. बच्चे को डांटा तो आप जानवर

३. क्रोध रस के वशीभूत हो कर किसी को कुछ उल्टा (में उल्टा- सीधा शब्द से सहमत नही हूं)  कह डाला तो जानवर

४. अवसाद से भरे पुलिसकर्मी ने केदी को मारा तो जानवर

५. किसी मानव ने नारी के साथ घृणित अपराध किया तो जानवर

६. नेताजी ने अपने कार्यकर्ता के गाल को लाल करने के लिए बल का प्रयोग किया तो नेताजी जानवर

आपके समाज में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं कि जब आदमी “मानव से तथाकथित रूप से जानवर बन जाता है या यूं कहिए कि आपके  समाज में आदमी “मानव और जानवर  चक्ररूपी दो स्टेशन के बीच रोज यात्रा करता रहता है” बिलकुल वैसे ही जैसे जंबू की लोकल में जंबूकर करते है। लेकिन मुझ अनपढ़ जानवर को आज तक ये समझ में नहीं आया कि उपरोक्त तथाकथित अप्रिय और घृणित कार्य करने पर मानव की तुलना जानवर से क्यों की जाती है? जानवर ने तो ऐसे कोई काम नही किए है। मैंने तो अपने इस जंगल में यह सब कभी नही देखा, क्या आपने देखा है कि?

१. एक जानवर ने किसी दूसरे जानवर को धन (संसाधन) के लिए धोखा दिया हो

२. एक जानवर ने दूसरे जानवर के साथ यौन हिंसा या बहुत सारे जानवरों ने किसी मादा जानवर के साथ सामूहिक यौन हिंसा या बलात्कार किया हो

. क्या एक जानवर ने किसी दूसरे जानवर को गुलाम बना कर रखा हो? या अपने आनंद के लिए दूसरे जानवर को उनकी प्राकृतिक जरूरतों से दूर रखा हो?

. क्या एक जानवर ने अपने होंठो के गुलाबीपन को बरकरार रखने के लिए किसी गर्भवती मादा जानवर के गर्भ में पल रहे शिशु को अकाल मृत्यु से मिलवाया हो? या फिर अपने हाथ के झोले (bag) के लिए किसी दूसरे जानवर की त्वचा (चमड़ी) को खींच के निकाला हो? नही समझे अरे ” एलिगेटर (alligator) बेग (bag)

५. क्या कोई जानवर आपको जिस्मफरोशी के धंधे में लिप्त पाते पाया गया है या किसी जानवर ने दूसरे जानवर के नन्हे मादा शिशुओं का सौदा किया हो? या फिर मासूम और नन्हें जानवरों के साथ घृणित कार्य कर मार डाला हो?

६. क्या किसी जानवर ने दूसरे जानवर के साथ विश्वासघात किया हो?

अगर उपरोक्त कोई काम किसी जानवर ने नही किए है तो आप श्रेष्ठ मानव लोग ऐसे काम करने वाले मानव की तुलना जानवर या पशुओं से क्यों करते हो? क्या आप  विवेकशील मानवों को आजतक ये नही समझ आया कि आपकी तुलना का पैमाना गलत है।

श्री  जामवंत भालू की बात सुनकर श्री करकांडे और श्री प्रश्नचिन्ह के होश उड़ गए! उनके पास श्री जामवंत भालू की बातों का कोई जवाब नहीं था। यह बात वो दोनो बुद्धिजीवी भी  समझते थे कि

१. कोई भी जानवर अपनी भूख और रक्षा के सिवाय किसी दूसरे-तीसरे जानवर को हानि नहीं पहुचाता है।

२. कोई भी जानवर स्वयं या फिर अन्य जानवर के साथ मिलकर किसी भी मादा के साथ कोई गलत व्यवहार नहीं करता है।

३. कोई भी जानवर अपने किसी प्रिय के साथ विश्वासघात नहीं करता है। इसलिए तो कहा जाता है कि जानवर सबसे बड़ा वफादार होता है। जानवर कितना भी हिंसक क्यों ना हो अपनी रक्षा करने वाले वाले के साथ कभी विश्वासघात नहीं करता है- जैसे कि इंसान करता है।

४. विभिन्न तरह के जानवर बिना अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल किए साथ में खुशी- खुशी आनंद से रहते हैं।

५. हम जानवर अपनी जीवनदायिनी प्रकृति अपनी मां का अंधाधुंध दोहन नही करते हैं और ना इसको नुकसान पहुंचाते हैं।

६. आपने हमारी आंखों में कभी झांक कर देखा ? उनमें हमेशा करुणा और ममता मिलेगी। आप इंसानों की तरह हमारी आंखों का पानी सूखता नही है।

और हां, जानवरों में मानव जैसी प्रवृति सिर्फ आपकी लाइन किंग “lion King”  जैसी चलचित्र (movie) मे ही पाई जाती है इसका असल जिंदगी से कोई लेना देना नही होता है।

श्री जामवंत भालू की बात सुन कर श्री करकांडे आरजू और श्री प्रश्नचिन्ह बाजपेई निशब्द हो गए। श्री जामवंत भालू ने फिर कहा, ” होना तो ये चाहिए कि इंसान जब इंसान की सहायता करे या दूसरे इंसान से निश्चल प्रेम करे या फिर दूसरे इंसान के लिए अपनी जान दे तो बोलें कि बहुत भला इंसान था बिलकुल `जानवर` की तरह

श्री जामवंत भालू की बात सुनकर शेरू कुत्ता और भोलू बंदर ने अपना अपना सर झुका लिया और एक दूसरे से और सब जंगलवासियो से क्षमा मांगते हुए कहा ” आप लोग हमें क्षमा कर दीजिए हम लोग क्रोध में मानव जैसा व्यवहार करने लगे थे”

जंगलवासियो का आपसी प्रेम और व्यवहार देख कर न्यायमूर्ति श्री (से.) करकांड़े आरजू और श्री प्रश्नचिन्ह बाजपेई थके थके कदमों से वापस अपने ठिकाने की और चलने लगे और सोचने लगे ” काश हम भी जानवरों की तरह व्यवहार करने लगते तो कितना अच्छा होता??”

By….Pradeep Kumar Jain, Managing Partner of Singhania & Co. LLP

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