हिंदी प्रतियोगिता

विश्व मानचित्र पर भारत का बढ़ता प्रभाव

“यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से 
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा 
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी 
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा” 

उर्दू शायर इक़बाल की ये पंक्तियां सदैव प्रासांगिक है। ये सच है कि कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। 

हम सभी जानते हैं कि अफ्रीका को मानव का जन्मस्थली माना जाता है, लेकिन भारत को मानव और मानवता का पालना कहा जाता है क्योंकि भारत में सबसे पहले मनुष्य सभ्य बने। मेसोपोटामिया की सभ्यता भले ही विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है लेकिन कुछ समय बाद वह समाप्त हो गयी। हालांकि भारत की हड़प्पा कालीन सभ्यता विश्व की पहली विकसित और शहरी सभ्यता थी। 

भारत को ‘सोने की चिड़ियां’ कहा जाता था। अंग्रेज सहित बहुत सारे बाह्य आक्रमणकारियों ने भारत को लूटा। इससे भारत गरीब हो गया और गुलामी की जंजीरों में पड़ गया, लेकिन ‘कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’ भारत ने इन गुलामी की जंजीरों को तोड़ते हुए एक बार फिर से विश्व मानचित्र पर पहले से ज्यादा गहरी छाप छोड़ने आ चुका है। यही कारण है कि भारत पर अमेरिका ने ‘भारत के परमाणु परीक्षण’ करने के कारण जो आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था, उसे अमेरिका ने हटाया और भारत को परमाणु संपन्न मानते हुए उभरी हुई अर्थव्यवस्था के रुप में मान्यता दिया। तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2009 में कहा था कि भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है। इतना ही नहीं, ओबामा ने 2010 में भारत दौरे के समय यह भी कहा कि भारत अब उभरती हुई नहीं बल्कि बल्कि उभर चुकी शक्ति बन गया है। और इस तरह वर्ष 2010 में भारत-अमेरिका के बीच सम्पन्न ‘परमाणु समझौता’ ने भारत को वैश्विक महाशक्ति के रुप में उभार दिया। 2010 में ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँचों स्थायी सदस्यों यथा अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस राष्ट्राध्यक्षों ने भारत का दौरा किया, जो यह बताता है कि भारत दुनिया के लिए कितना महत्व रखता है। अब भारत खुद भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए प्रयास कर रहा है। चीन को छोड़कर अन्य चारों देश भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन करता है। 

भारत वर्तमान में दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जीडीपी 3 ट्रिलियन डॉलर हो चुकी है। 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की होड़ में लगा हुआ है। यह सपना जल्द ही सच भी होगा क्योंकि भारत विश्व में सबसे तेजी से विकास कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सर्वाधिक तेजी से आगे बढ़ेगी और ग्रोथ रेट 10.5% रहेगा। 643 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा के साथ भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है, जिसके पास सर्वाधिक मात्रा में विदेशी मुद्रा है। जो आज से 20-25 साल पहले एक ऐसा वक्त था, जब भारत की सरकार ने कह दिया था कि भारत के पास मात्र 15 दिनों के खर्चें के लिए विदेशी मुद्रा बची हुई है। आज भारत फिर से अपनी मजबूत स्थिति में खड़ा हो चुका है। 

किसी भी देश का विकास तभी हो सकेगा जब वहां ऊर्जा की खपत अधिक हो और ऊर्जा की उपलब्धता भी अधिक हो। भारत अब इसी पर कार्य कर रहा है। भारत सहित दुनिया के तमाम देश ग्लासगो में हुए 26 वें COP की बैठक में यह निर्णय लिया है कि पर्यावरण और जलवायु को कम नुकसान करने के कारण सभी पेट्रोल-डीजल और अन्य कार्बन उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा से अक्षय और क्लीन ऊर्जा की ओर बढ़ेंगे। भारत इसी दिशा में बहुत पहले से कार्य कर रहा है। उदाहरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सौर संगठन का संस्थापक भारत रहा है, जिसका हेडक्वाटर भी गुरूग्राम हरियाणा में है। भारत 2070 तक ‘नेट जीरो’ करने का भी लक्ष्य निर्धारित किया है। वर्तमान में भी अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में दुनिया में चौथा, सौर ऊर्जा मामले में 5वां और स्थापित पवन ऊर्जा में चौथा स्थान रखता है। भारत गुजरात के कच्छ के रण में भारत का सबसे बड़ा 4750 मेगावाट अक्षय ऊर्जा पार्क स्थापित करेगा। भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा खपत करने वाला राष्ट्र है, जो विकास का घोतक है

भारत अर्थव्यवस्था के साथ साथ देश की सुरक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है, इसलिए जो भारत पहले हिन्दी-चीनी भाई भाई समझकर चीन को ज्यादा कुछ नहीं बोलना चाहता था, वही अब मुखर होकर चीन को प्रत्यक्ष रुप से घेरने लगा है। तीनों सेनाओं के प्रमुख बिपिन रावत ने खुलकर यह बात की है कि भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा चीन है ना कि पाकिस्तान। 

सॉफ्ट पावर और विश्व शांति के दूत के रुप में भारत का उदय

भारत प्राचीन काल से ही सॉफ्ट पावर के रुप में जाना जाता है। भारत से विश्व शांति और सहिष्णुता की धारा निकलती है। प्राचीन काल में बौद्ध, जैन, सनातन धर्मावलंबियों नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला विश्वविद्यालयों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया तो मध्यकाल में भक्ति आंदोलन और आधुनिक काल में सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्जागरण ने भारतीयों के महत्व से विश्व का परिचय कराया। भारतीय वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता आज भी पूरे विश्व में प्रासंगिक है, जिसपर विदेशों में भी शोध-शिक्षण का कार्य होता है। इस सभी का अनुवाद कई अलग-अलग भाषाओं में हुआ।

भारत हमेशा से “वसुधैव कुटुम्बकम्” के मूल्यों पर अडिग रहा है, इसलिए तो भारत में विविधता काफी बढ़ गयी है। इन विविधता में भी एकता है। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म की उत्पत्ति भी भारत में हुई है। बौद्ध धर्म म्यांमार, कंबोडिया, चीन, सिंगापुर, वियतनाम जैसे देशों में काफी फला-फूला है। इस्कॉन मंदिर भारत सहित विश्व के 16 देशों में है, जहां भारतीयों के साथ साथ विदेशी भी भक्ति में लीन होते हैं। भारतीय धर्म और ग्रंथ में विदेशियों की काफी रुचि है। आज भी वृदावन-मथुरा में हजारों विदेशों अपना देश छोड़कर यहां वश गये हैं भक्ति में लीन होने में अपने जीवन को सार्थक समझते हैं। भारत सामासिक संस्कृति का पोषक है। यह गंगा-जमुनी तहजीब की भूमि है। यह देवों की भूमि है। यह संस्कारों की भूमि है। यह परोपकारियों की भूमि है। यह गुरू-शिष्य की भूमि है। यह मानवता की पवित्र भूमि है, जिसे विभिन्न देशों ने स्वीकारा है। भारतीयों ने इसे विश्व के सामने साबित किया है। विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया और भारतीयों तथा हिन्दू धर्म की अच्छाइयों से विश्व को परिचित कराया। योग विश्वभर में प्रचलित हो चुका है, जो भारतीय ऋषि पतंजलि की देन है। आज हरेक साल 21 जून को पूरी दुनिया विश्व योग दिवस के रुप में मनाते हैं। 

भारतीय संस्कृति अब वैश्विक संस्कृति बन रही है। अमेरिका के संसद भवन ‘व्हाइट हाउस’ सहित कई देशों में दिवाली मनाना जाने लगा है। दिवाली को अमेरिका में पब्लिक हॉली डे के रुप में मान्यता देने की पहल की जा रही है। इतना ही नहीं, भारत में विभिन्न धार्मिक त्योहार छठ, होली, दिवाली, दुर्गापूजा, कृष्णाष्टमी समेत अन्य त्योहारों की विश्व भर में प्रसद्धि हासिल करने लगा है। 

आज हिन्दी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। हिन्दी को लगातार यूएनओ की आधिकारिक भाषा का मान्यता दिलाने के लिए के  प्रयास किये जा रहे हैं। हिंदी आज विदेशों में भी बोली जाती है जैसे फीजी, नेपाल, त्रिनिदाद, इंग्लैड, श्रीलंका, सूरीनाम इत्यादि। गौरतलब है कि नेपाल में तो स्कूलों में शिक्षा के साथ साथ हिंदी प्रमुख भाषा के रूप में बोली जाती है। इसके अलावा इंग्लैंड, इटली, अमेरिका के विश्वविद्यालयों में हिंदी में उच्च स्तरीय अध्यापन की व्यवस्था है। गुगल, फेसबुक, एप्पल, व्हाट्सऐप, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, के बाद लिंकडिन भी अब हिन्दी भाषा में उपलब्ध हो गया है। हिन्दी भाषा का बॉलीवुड विश्व का दूसरा सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है और बॉलीवुड ने भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर उभारने के काफी मदद की है। आज बॉलीवुड के फिल्में और गानों को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है। 

वैश्विक नेता के रुप में भारत 

भारत अपने पड़ोसी से अच्छे संबंध बनाने के लिए एक्ट ईस्ट एवं लुक वेस्ट पॉलिसी पर भी कार्य कर रहा है। भारत राजनैतिक रुप से शुरु से ही लोकतांत्रिक रहा है। भारत आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और भारत से लोकतंत्र की उत्पत्ति लिच्छवी महाजनपद से हुई थी। भारत में लोकतंत्र अपनी परिपक्वता अवस्था में प्रवेश कर चुका है, इसलिए भारत सिर्फ अपने देश ही नहीं बल्कि पूरी विश्व में लोकतांत्रिक व्यवस्था और शांति के लिए प्रयास करता है। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में फैले रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाया था और आजादी की भावना वहां के नागरिकों में भी भरा। बंगलादेश को भी पाकिस्तान के शोषण से मुक्त कराया है। आज भी भूटान की रक्षा की जिम्मेदारी भारत की है। विश्व में शीतयुद्ध के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया। आज भी यूनाइटेड नेशन के पीस कीपिंग फोर्स में भारतीय फोर्स की अधिकता है। 

इन्हीं सभी वजहों के दुनिया के देश भारत पर भरोसा करते हैं और वैश्विक पटल पर भारत का समर्थन करते हैं और जरुरत पड़ने पर भारत से मदद मांगते भी हैं। उदाहरण के लिए फिलीस्तीन ने भारत से अपने पड़ोसी इजरायल से शांति वार्ता स्थापित करने के लिए मध्यस्थता करने की अपील की है। फिलीस्तीन ने यह जानते हुए भारत में मध्यस्थता की अपील की है कि भारत इजरायल से अपना संबंध ना तोड़ेगा और ना ही इजरायल विरोधी बातें करेगा क्योंकि भारत और इजरायल के व्यापारिक और द्विपक्षीय संबंध है। फिलीस्तीन ने सिर्फ इसलिए भारत से मदद मांगा है क्योंकि फिलीस्तीन को विश्वास है कि भारत ही एक ऐसा देश है, जिसपर भरोसा किया जा सकता है और जो किसी के साथ गलत होने नहीं देगा और ना ही गलत या एकतरफा फैसला करेगा।

हाल ही में ग्लासगो में विश्व पर्यावरण के सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बॉरिश जॉनसन के कंधों पर एक साथ हाथकर जो फोटो वायरल हुआ, वह महज़ एक फोटो नहीं बल्कि विश्व पटल पर भारत के महत्ता को दर्शाता है, जो कभी उसी ब्रिटेन का गुलाम था और आज इतना आगे बढ़ चुके हैं अमेरिका-ब्रिटेन की बराबरी या उससे आगे का कार्य करते हैं और ये देश इनकी बातों को अहमियत देते हैं। आज भी जब पाकिस्तान का राष्ट्राध्यक्ष जब अमेरिका जाता है तो वहां के किसी सामान्य ऑफिसर को इनके स्वागत के लिए भेज देते हैं लेकिन कुछ समय पहले जब डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में थे तो वो भारतीय प्रधानमंत्री के आगमन पर खुद उनके स्वागत के लिए हवाई अड्डा पहुंचे थे। 

तुर्की पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया क्योंकि अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित देश रुस से इसने एस-400 मिसाइल खरीद लिया लेकिन भारत पर नहीं लगा पाया और बकायदा अमेरिका के संसद में सत्ताधारी पार्टी के सांसद ने भी यह प्रस्ताव रखा कि भारत पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है, क्योंकि विश्व की साम्यवादी चीन देश को काउंटर करने में और हिन्द महासागर क्षेत्र में, अगर अमेरिका को कोई मदद कर सकता है तो वो सिर्फ भारत है। भारत अमेरिका के बीच व्यापारिक, सैन्य, द्विपक्षीय कई संधि समझौते हैं। अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भारत ऊभरती हुई अर्थव्यवस्था है, इसे रोक पाना अब अमेरिका के लिए नुकसानदायक है। 

अभी हाल ही में श्रीलंका भी चीन के बजाय भारत में भरोसा जताने लगा है क्योंकि श्रीलंका चीन की चाल, उसके कर्ज में डूबने, उसके ठगने की मानसिकता को जानने के बाद भारत को उम्मीद भरी नजरों से देखना शुरु किया है और यह भारत के लिए अच्छी बात है। श्रीलंका ने चीन से उर्वरक खाद को लेना बंद कर दिया और भारत से लेना शुरु किया और भारत ने ससमय ये उपलब्ध भी कराया। जो यह दर्शाता है कि श्रीलंका भले एक बार चीन के झांसे में आकर हम्बनटोटा बंदरगाह चीनी को लीज पर दे दिया लेकिन आगे ऐसा नहीं करेगा। भारत से श्रीलंका रेलवे कोच भी मंगाने पर विचार कर रहा है, जबकि चीन का रेलवे कोच वह नहीं लेना चाहता है।

पूरी दुनिया अभी अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए पहल कर रहा है और इस पहल में भारत को शामिल किया जाना भी भारत की श्रेष्ठा को दर्शाता है। हालांकि भारत खुद चाहता है कि अफगानिस्तान में शांति हो क्योंकि भारत का मानना है कि पड़ोसी देशों में शांति होगी तभी अपना देश सुरक्षित रहेगा और इसलिए अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार के समय भारत में अफगानिस्तान की मदद किया था और वहां संसद भवन निर्माण, बिजली उत्पादन, सड़क निर्माण आदि में भारी निवेश भी किया था। भारत लूटने में नहीं बल्कि शांतिपूर्ण विश्व बनाने में विश्वास करता है। 

भारत अपने पड़ोसी देशों समेत विश्व के अन्य जरूरतमंद देशों की भी मदद करता है। उदाहरण के लिए नेपाल में आने वाले भूंकप में मदद करना हो या कोरोना के समय गरीब देशों को मुफ्त में वैक्सीन या दवाइयां भेजने की बात हो। भारत हमेशा अपने दूसरे जरूरत मंद देशों की मदद किया है, इसलिए तो वैश्विक दाता सूचकांक 2020 में 14वां स्थान प्राप्त किया है। 

2021 में वैश्विक मानवाधिकार काउंसिल में भारत फिर से चुना गया है। विशेष बात यह है कि भारत को यूएन जनरल एसेंबली के 193 देशों में 184 देशों का समर्थन मिला है वहीं अमेरिका को 164. इतना ही नहीं, अब तक सबसे ज्यादा देशों का समर्थन किसी देश को मिला है तो वह भारत है।

भारत की शांति और लोकतांत्रिक नीति का मतलब कमजोर होना नहीं है-

अपनी अस्तित्व की रक्षा के लिए भारत सतर्क है इसलिए तो परमाणु परीक्षण तमाम दवाबों के बावजूद भी किया और इसके गलत प्रयोग से बचने के लिए नो फस्ट यूज की नीति बनाया। आज जब चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, स्टिंग ऑफ प्लस आदि के जरिये भारत के पड़ोसी देशों को अपने पैठ बनाकर देश को घेर रहा है तो भारत भी इसके विकल्प पर काम कर रहा है। भारत इसके लिए पड़ोसी देशों की मदद करता है, चीन की तरह कर्ज में नहीं डूबाता है और ना ही दूसरे देशों ठगता है। भारत अंतर्राष्ट्रीय नाउथ साउथ कॉरिडोर पर काम कर रहा है, जिसके जरिये भारत पाकिस्तान को बायपास कर ईरान के चाबहार बंदरगाह, अर्मेनिया और जोर्जिया होते हुए यूरोप, रूस और मध्य एशिया तक पहुंच सुनिश्चित कर लेगा। स्थल मार्ग में उत्तर पूर्वी क्षेत्र में बंग्लादेश के कालादान मल्टीमॉडल प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहा है। इसके अलावा भारत को विशाल हिन्द महासागर प्रकृति से विरासत में मिला, जिसके जरिये वैश्विक पहुंच आसान है। 

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है। सैन्य खर्च में के मामले में सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, चीन के बाद तीसरे स्थान पर भारत है। भारत सैन्य मामलों में अमेरिका, रूस, चीन के बाद विश्व का चौथा सबसे शक्तिशाली देश है। भारत की सैन्य और वैश्विक ताकत ही है जिससे विकसित देशों की सेना भी भारत के साथ सैन्य अभ्यास करती है। रुस, अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों के साथ भारत का सैन्य अभ्यास होता है। 

टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत 

साइबर सुरक्षा सूचकांक 2020 में भारत 10 वें और बौद्धिक संपदा सूचकांक 2020-21 में 40 वें स्थान पर है। आज भारत कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर और बीपीओ के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुका है। विश्व के टॉप कंपनी के सीईओ भारतीय हैं जैसे माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नाडेला, ट्विटर के पराग अग्रवाल, गुगल के सुंदर पिचाई, आईबीएम के अरविंद कृष्णा इत्यादि भारतीय है, जो यह दिखाता है कि भारत शैक्षणिक रुप में आज भी काफी है। भारत इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 

भारत कम खर्च में मंगल मिशन एक ही बार में सफल बनाया जो नासा भी नहीं कर पाया। भारत की अंतरिक्ष ताकत को देखते हुए ही अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इसरो के साथ मिलकर निसार प्रोजेक्ट पर कार्य करना शुरु किया है। भारत अब विभिन्न देशों की सेटेलाइट कम कीमत पर अंतरिक्ष में भेजकर कमाई भी कर रहा है। कहा जाता है कि आगामी युद्ध धरती पर नहीं बल्कि अंतरिक्ष में होगा क्योंकि आज जो देश अंतरिक्ष में अपना सेटेलाइट को बम से उड़ा दिया है, वो कल को किसी अन्य देश का सेटेलाइट उड़ा देगा, इससे इंटरनेट और इससे जुड़ी तमाम सेवाएं ठप्प हो जायेगी, यथा हवाई जहाज या लड़ाकू विमान को कमांड नहीं मिल पायेगा, अर्थव्यवस्था धड़ाम से गिर जायेगी, कम्यूनिकेशन के सारे रास्ते बंद हो सकते हैं। बिना लोगों को मारे हजारों लोगों की जान चली जायेगी।

गौरतलब है कि सबसे पहले अमेरिका ने अंतरिक्ष में सेटेलाइट को मार गिराने हेतु एंटी सेटेलाइट वेपैन्स का टेस्ट किया था, उसके बाद चीन, रुस औऱ भारत ने भी यह टेस्ट कर लिया है। भारत ऐसा करने वाला चौथा देश है। इसके अलावा भारत, ब्लॉकचैन, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की ओर भी ध्यान दे रहा है, जो कि भविष्य है। 2022 में चन्द्रयान 3, गगनयान 2022 में पहला मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम, 2022 में आदित्य एल1 सूर्य की अध्ययन हेतु अंतरिक्ष मिशन आदि के जरिये अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी भी भारत काफी आगे बढ़ चुका है, जो विश्व के अन्य देशों से ज्यादा सस्ता और सरल है। 

भारत अब सैन्य जरुरतों के लिए दूसरे देश से आयात पर ही निर्भर नहीं रहना चाहता है, इसलिए आईएनएस विक्रांत देश का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट 2022 में कमीशन किया जायेगा। सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल दुनिया में सिर्फ भारत के पास है। अब भारत इसे बेचना शुरु किया है, जिसको लेकर भारत और फिलीपींस समझौता भी हुआ है। डीआरडीओ स्वदेशी हथियार विकसित करने में जुटी हुई है।

भारत की गौरव गाथा के किस्से काफी ज्यादा है, लेकिन जहां ढ़ेर सारी अच्छाई है वहां कुछ कमियां भी होती है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत में अभी भी जात-पात, गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी,  नक्सलवाद, आतंकवाद और देश में संसाधनों की कमी जैसी तमाम समस्याएं है। हाल ही में जारी भूखमरी सूचकांक 2021 मेें विश्व के 116 देशों की रैकिंग में 101वां स्थान है। वहीं पाकिस्तान 92, चीन 5, बंगालदेश 76, श्रीलंका 65, अफगानिस्तान 103, नेपाल 77 नंबर पर है। मानव विकास सूचकांक में 191 में 131 स्थान पर है। विश्व हैप्पीनेस/खुशिहाली रिपोर्ट में 149 देशों में 131वें स्थान पर है, जो कि काफी खराब स्तिथि को दर्शाता है। इसके लिए भारत को प्रतिबद्धता के साथ कार्य करना होगा। भारत 1.2 अरब के साथ विश्व दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। भारत जनसांख्यिकी लाभांश का ज्यादा फायदा नहीं उठा पा रहा है लेकिन जिस तरीके से अब विकासात्मक और आत्मनिर्भर भारत के लिए कार्य शुरु हुआ है, वह निश्चिय ही भारत की इन समस्याओं से निपटने में मदद करेगा। इसके भारत मुद्रा योजना, पीडीएस, स्मार्ट सिटी, आवास योजना, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट अप, मेक इन इंडिया, आयुष्मान भारत जैसे सैकड़ों योजनाएं चलायी जा रही है, जो निश्चित रूप से आगामी वर्षों में इन समस्याओं के निजात के साथ साथ भारत की छवि को इन मामलों में सुधारेगा।

चीन भले भारत से अभी आगे है लेकिन वहां नागरिक को पूर्ण स्वतंत्रता और लोकतंत्र नहीं है, जबकि भारत में लोकतंत्र है, इसलिए आगे भारत में स्थायित्व रहेगा, जबकि चीन में हलचल हो सकता है, जैसे झिनझियांग में मुस्लिमों पर अत्याचार हो रहा है जो आज नहीं तो कल विद्रोह का रूप धारण करेगा। इसी तरह अमेरिका भले लोकतांत्रिक और वैश्विक शक्ति है लेकिन वह अपना मनमाना करता है, इसलिए बहुत सारे देश उसका प्रत्यक्ष तौर पर समर्थन जरूर करता है लेकिन मौका मिलने पर आलोचना से नहीं चुकता है। इन चीजों से यह समझा जा सकता है कि भारत अभी विश्व पटल पर छा चुका है और आगामी सालों में वैश्विक पटल पर अमिट छाप छोड़ेगा और पूरी दुनिया भारत को एक नई शक्ति के रूप में देखेगा।

 

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