Page 37 - Cafe-Social-June-2021
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तन और मन क ता के साथ-साथ प रवेश क ता का यास से सफल नह हो सकता। खासकर, ता जैसे अ भयान
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भी जीवन म मह पूण ान है। व ुत: आज जब िकसी ता के लए ापक जनभागीदार बहत ज र है। ब े, बूढ़े और जवान
मु हम क बात क जाती है तो उसका इशारा मु त: प रवेश क सभी को अपने खान-पान, रहन-सहन और काय - ापार के हरेक
ता क ओर होता है, िक वत मान म प रवेश क ता े म ता लानी होगी। उ हर बाहर ल को अपने घर के
ही सबसे बड़ी चुनौती है। ग व से शहर तक जगह-जगह बदबूदार समान समझना चा हए और इधर-उधर थूँकने, कू ड़ा फ कने अथवा
ू
कचरे के ढ़ेर, पॉलीथीन के थैल से पटी बजबजाती ना लय , न दय पय वरण को दिषत करने वाली चीज के योग से बचना चा हए।
का वषैला जल, दिषत वायु और साव ज नक ल पर फै ली आ खर य द कह पर गंदगी है, तो फै लाने वाला भी कोई इंसान ही
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गंदगी का मंजर यह सहज ही बय कर देता है िक हमने ता के है।
पुनीत सं ार को िकतनी तत ज ल दी है।
हम रेलगािडय और साव ज नक बस म अ र देखते ह िक लोग
आज गंदगी और दषण के कारण न के वल मनु जा त भयंकर मूँगफली खाकर उनके छलके वह फ क देते ह , अथवा खाना खाने
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बीमा रय का सामना कर रही है, अिपतु अ जा तय भी इसका के बाद अव श साम ी सीट पर ही छोड़कर चले जाते ह और
दंश झेल रही ह । गंदगी और दषण के कारण पा र तक शौचालय को इस तरह से गंदा कर डालते ह , मानो वे ही उसके
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संतुलन बगड़ रहा है और जैव व वधता को खतरा पैदा हो गया है। अं तम यो ा ह । उ लगता है िक गंदगी फै लाना उनका अ धकार
भारत जैसे देश, जह एक बहत बड़ी आबादी गर बी रेखा के नीचे है, और सफाई करना सफाई वाले का कत है। ऐसे लोग को यह
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जीवन यापन करती है, के लए प रवेश क ता का मह और समझना चा हए िक जस गंदगी को वे छू ना तक नह चाहते, उसे
भी बढ़ जाता है। हर साल न जाने िकतने प रवार गंदगी से जुड़ी उनका जैसा कोई अ साफ करता है। उ यह भी समझना
बीमा रय से तबाह जाते ह । इलाज़ म जमीन-जायदाद तक बक चा हए िक ता के अनुशासन का पालन करना न के वल एक
जाती है, अ े घर-मकान क ा हश और ब क अ श ा मानवीय कदम है, ब रा धम भी है । सव ता अपनाकर
के सपने धरे के धरे रह जाते ह । गर ब और भी गर ब हो जाता है। हम देश क छ व को द नया क नजर म ऊपर उठा सकते ह ।
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इसी लए ग धी जी ने सफाई को रा नम ण का काय माना था। िक जो देश साफ-सुथरा होता है, वह जाने के लए पय टक भी
उनका मानना था िक “हमार गर बी का एक मुख कारण ता लाला यत रहते ह । जब देश म पय टक आएंगे तो हम वदेशी मु ा
क अ नवाय जानकार उपल न होना है। य द ग व क साफ- ा होगी, इससे देश समृ क ओर अ सर होगा।
सफाई म सुधार लाया जाए, तो लाख पए आसानी से बचाए जा
सक गे और लोग क दशा म कु छ हद तक सुधार लाया जा सके गा। हमारे यह अ र यह देखा जाता है िक बीमा रय का कोप होने
बीमार िकसान, िकसान जतनी मेहनत नह कर सकता।” पर ही सरकार और लोग का ान सफाई क तरफ जाता है। हम
ग धी जी का राज सफ अं ेजी दासता से मु नह था, ब हमेशा हादस के बाद ही सुधरने क आदत से बाज आना होगा।
गंदगी स हत सम कार क दासताओ से मु का अ भयान था। मसाल के तौर पर वष 2008 से हर साल 15 अ ू बर को ‘ व
ं
ह ालन दवस’ मनाया जाता है, िकं तु हाथ रखने के
प रवेश क गंदगी और उससे उ बीमा रय से मु के वृहद बारे म लोग म ापक जाग कता तब आई, जब कोरोना ने
उ े को ान म रखकर धानमं ी ी नर मोदी ारा महा ा जानलेवा हमला िकया। आग लगने पर कु आँ खोदने का य करना
ग धी क 145व जयंती के मौके पर 2 अ ू बर, 2014 को कोई बु मानी का काम नह है। हम पहले से ही साफ-सफाई का
भारत अ भयान क शु आत क गई थी और इस अ भयान का ऐसा र रखना चा हए िक बीमा रय द क ही न देने पाएं।
नामकरण भी बापू के नाम पर ‘महा ा ग धी भारत अ भयान’
रखा गया था। इसी अ भयान के अंग के तौर पर ‘खुले म शौच इस कार है िक हमारे जीवन के लए ता अ ंत
मु (ODF)’ जैसा व का सबसे बड़ा अ भयान चलाया गया और मह पूण है। नय मत ता के ारा न के वल अ ा मान सक
नए शौचालय बनाने के लए शहर े म 75% तक रा श सरकार और शार रक ा पाया जा सकता है, अिपतु बीमा रय पर होने
ारा दान िकए जाने और ामीण े म नए शौचालय बनवाने के वाले खच से बचा जा सकता है और देश को समृ के पथ पर
लए 12 हज़ार पए उपल कराए जाने क व ा क गई थी। अ सर िकया जा सकता है। हम यह नह भूलना चा हए िक
गौरतलब है िक भारत म खा और पेय ज बीमा रय ( जैसे- हैजा, ता एक रचना क काय है जो भ से भी बढ़कर है।
टायफायड, पे चस, पी लया आ द) के सार का सबसे बड़ा करण ता कोई एक दन क मु हम नह है, ब शा त ि या है।
खुले म शौच है। खुले म शौचमु से न के वल ता का र इसे हम रोजमर क जीवनशैली का अ भ ह ा बनाना होगा। यह
सुधर रहा है, अिपतु तदज बीमा रय म कमी भी आ रही है। पर एक के यास से हा सल होने वाली चीज भी नह है, इसके
हम यह ान रखना चा हए िक कोई अ भयान अके ले सरकार के लए सभी को ‘एक कदम ता क ओर’ अव बढ़ाना होगा।
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