Page 36 - Cafe-Social-June-2021
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ता
                                                                                     इनबुक
                                                                                  रा  भाषा  हदं ी
    Inbook’s Wall   का जीवन म  मह                                                 तयो गता 2020
                                                                                   का स ान


                                                                                   वशेष पुर ार
                                                                                    वजेता लेख
                                              - संजय कु मार





            ता को ई र का दसरा  प माना जाता है। यह कहा जाता है   रहती है, शर र म  ऊज  और  ू  त    हलोर  लेती है,  जसका
                          ू
          िक जह    ता होती है, वह  देवता वास करते ह । मनु  के    सकारा क असर काय  मता पर पड़ता है। आज के  आ थक   युग म
          जीवन म    ता का मह  सनातन काल से रहा है। हमारे वै दक   काय  मता     के  अ    का पैमाना है।   िक जब     क
           ंथ  और धम शा   म  भी   ता के  माहा  का वण न िकया   काय  मता बढ़ेगी तो उसका आउटपुट बेहतर होगा। आउटपुट बढ़ने
          गया है। मनु ृ त म  धम  के  दस ल ण  म  शु चता (अथ त भीतर   से उसक  आमदनी बढ़ेगी और आमदनी बढ़ने से उसका जीवन
          और बाहर क  प व ता) को भी एक  मुख ल ण माना गया है-   नव ह सुगम होगा। जीवन  नव ह सुगम होने पर     क   स ता
                                                            म  अ भवृ   होगी, जो उसे और भी    रखने म  सहायक होगी।
               धृ त:  मा दमोऽ े यं शौच म   य न ह:।
               धी व   ा स वम ोधो दशकं  धम ल णम् ।।          तन क    ता के  साथ-साथ मन क    ता का भी सामा जक
                                                            जीवन म  अ ंत मह  है। मन क    ता से हमारा आशय
          या व   ृ त म  धम  के  नौ ल ण  का उ ेख  मलता है। इनम    वैचा रक शु चता से है। जब मन काम,  ोध, लोभ, मोह, म र जैसे
          शु चता को भी धम  का एक ल ण कहा गया है-            अवगुण  से दर होगा तो मनु  के  भीतर क  ‘अयं  नज: परो इ त....’
                                                                     ू
                                                            वाली भावना  तरो हत हो जाएगी और वह ‘वसुधैव कु टु कम्’ क
               अ हसं ा स नम ेणयं शौच म   य न ह:।            राह पर चल पड़ेगा। वह ‘हम बढ़ , सब बढ ’ के   स  त का अनुयायी

               दानं दमो दया शा  म: सव ष  धम साधनम् ।।       हो जाएगा।  जस समाज म  लोग  के  भीतर इस तरह क  उदा
                                                            भावना  वक सत हो जाएगी, वह समाज  ग  से भी सुंदर बन
           ीम ागवत के  स म    म  सनातन धम  के  तीस ल ण      जाएगा और वह  हर तरह क  खु शय  और समृ  य   नवास करने
          बतलाये गए ह ,  जसम    ता भी एक  मुख ल ण है-       लग गी।


               “स ं दया तप: शौचं  त त े ा शमो दम:।
           अ हसं ा   चय  च  ाग:  ा ाय आज वम्..........।।”


          उपयु   उ रण  से यह    हो जाता है िक  जस चीज को
          मनीिषय  ने हमारे धम  क  सं ा दी हो, वह चीज हमारे जीवन म
          िकतनी मह पूण  हो सकती है।

          जब हम   ता क  बात करते ह  तो हमारा आशय तन, मन और
          प रवेश क    ता से है। एक सामा जक  ाणी होने के  नाते
          मनु  के  जीवन म  इन तीन   कार क    ता का खास मह  है।
          तन क    ता उसे    बनाती है,  जसके  कारण वह  यं भी
          बीमा रय  से दर रह सकता है और अपने संपक   म  आने वाल  को भी
                    ू
          इनसे महफू ज़ रख सकता है। शौच के  बाद हाथ धोना, मंजन करना,
           न   ान करना, भोजन आ द के  पूव  ह    ालन और भोजन के
          प ात मुख   ालन जैसे सं ार शर र को    रखने के   लए ही
          बनाए गए ह । जब शर र साफ होता है तो मन म  सुखद अनुभू त


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