कैप्टन अंशुमन सिंह की शौर्य गाथा
तन मेरा रंग दे ए माटी तेरे रंग से,
मन तो मेरा, कब का ही रंग चुका।
साँसों को मिला ले अपनी महक में,
मान लूंगा मैं, जीत हर जंग चुका।।
जिसकी रगों में खून नहीं बल्कि देशभक्ति बहती हो, जिसके शरीर में साँसों से ज्यादा देशभक्ति के भाव बहते हों और जिसकी पहचान उसका नाम नहीं बल्कि काम बन गया हो, ऐसे वीर का एक ही नाम हो सकता है और वो है ‘कैप्टन अंशुमन सिंह’।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं एक ऐसे जांबाज की जिसे हाल ही में मरणोपरांत कीर्ति चक्र से नवाज़ा गया है।
कैप्टन अंशुमन सिंह बचपन से ही बहुत होनहार और मेधावी छात्र थे। किसी भी प्रतियोगिता का पर्याय बन चुके अंशुमन ने कभी हारना सीखा ही नहीं। वे न केवल शिक्षा में अव्वल रहे बल्कि अन्य सकारात्मक गतिविधियों में भी सक्रिय रहे। कैप्टन अंशुमन की रगों में एक सैनिक का खून था इसीलिए वीरता, बहादुरी और देशभक्ति उनके संस्कारों में थी।
अंशुमन सिंह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। उनका घर लार थाना क्षेत्र के बरडीहा दलपत में था। वर्तमान में कैप्टन अंशुमन सिंह का परिवार लखनऊ में रहता है।
कैप्टन अंशुमन सिंह की शिक्षा
कैप्टन अंशुमन सिंह का जन्म 1997 में भारत के उत्तर प्रदेश के बरडीहा दलपत गांव में हुआ था। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के प्रतिष्ठित चैल मिलिट्री स्कूल में शिक्षा प्राप्त की और राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल चैल में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। फिर वे उच्च शिक्षा के लिए पुणे में सशस्त्र बल चिकित्सा महाविद्यालय (AFMC) में शामिल हो गए, जहाँ उन्होंने सैन्य चिकित्सा, उच्च ऊंचाई वाली चिकित्सा और युद्ध में लगी चोटों के बारे में कठोर प्रशिक्षण प्राप्त किया। सीखने की इस ललक ने ही उन्हें ऊंचाइयों के इस मकाम पर पहुंचाया है।
एमबीबीएस पूरा करने के बाद, उन्होंने आगरा में एक साल की इंटर्नशिप की। कईं चुनौतियों के बावजूद, वे एक चिकित्सा पेशेवर के रूप में अपने काम के सदैव तत्पर रहे।
सिचाचिन में थी उनकी तैनाती
कैप्टन अंशुमन सिंह की तैनाती जुलाई 2023 में सियाचिन ग्लेशियर में 26 पंजाब बटालियन के 403 फील्ड में अस्पताल में रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर पद पर हुई थी। सर्दियों के महीनों में यह क्षेत्र दुर्गम बन जाता है और सैनिकों को 19,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर दुर्गम इलाकों में चौकियों पर तैनात रहकर देश की सुरक्षा में लगा रहना पड़ता है। सैनिकों को नियमित गश्त लगानी पड़ती है। रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर के रूप में कार्यरत कैप्टन अंशुमन सिंह क्षेत्र में तैनात सभी सैनिकों को चिकित्सकीय देखभाल प्रदान करने के लिए सेवारत थे।
वीरता की वह गाथा जिसे कभी भुलाया नहीं जायेगा
19 जुलाई 2023 की सुबह लगभग 3 बजे, सियाचिन के चंदन ड्रॉपिंग ज़ोन में गोला-बारूद के भंडार में आग लग गई। कैप्टन अंशुमन ने आग से होने वाली हड़बड़ाहट की आवाजें सुनी और अपने फाइबर ग्लास हट से बाहर निकले। कैप्टन अंशुमन को जल्दी ही एहसास हो गया कि उनके कई सैनिक अंदर फंसे हुए हैं और उन्हें बचाना चाहिए। अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना, वे जोखिम से पूरी तरह वाकिफ थे और अपने साथी सैनिकों को बचाने के लिए तुरंत आगे आए।
भीषण आग से उत्पन्न खतरे के बावजूद, वह निडरता से प्रभावित क्षेत्र में गए और जीवित बचे लोगों की तलाश करने और उन्हें सुरक्षित निकालने में लग गए। त्वरित सोच और निडर प्रवृति का प्रदर्शन करते हुए, कैप्टन अंशुमन सिंह ने पास के फाइबर ग्लास हट से चार से पांच व्यक्तियों को बचाने में कामयाबी हासिल की, जो तेजी से धुएं से भर रहा था और आग पकड़ने की कगार पर था। उनकी सूझबूझ से घायल व्यक्तियों को सुरक्षित निकाला गया, फिर उन्होंने देखा कि मेडिकल जांच कक्ष में आग लगी हुई थी।
वह मेडिकल सहायता बॉक्स को वापस लेने के लिए अपने फाइबर ग्लास हट के अंदर गए, हालांकि, वे बाहर नहीं निकल पाए क्योंकि आग फैल गई थी और तेज हवाओं के कारण उनके ठिकानों को अपनी चपेट में ले लिया था।वे बुरी तरह घायल हो गए। आग की उन लपटों से उन्होंने बाकी लोगों को तो बाहर निकाल लिया परन्तु स्वयं को उस देशभक्ति की अग्नि में झोंख दिया। वे दूसरों की मदद करते- करते स्वयं कब इतना घायल हो गए उन्हें पता ही नहीं चला।
यही तो देशभक्ति होती है, जिसमें हम अपनी सुरक्षा से पहले दूसरों का ध्यान रखते हैं। आग की लपटें इतनी तेज़ थी कि उनका शरीर तभी बाहर निकला जा सका जब आग थोड़ी शांत हुई। उन्हें असपताल ले जाया गया। परंतु इलाज के दौरान उन्हें कईं प्रयासों के बाद भी बचाया नहीं जा सका। वे देशभक्ति की ज्वाला में शहीद हो गए।
जिस देश के हवनकुंड में वे शहीद हुए हैं , उनकी उस शहादत को हम सदैव याद रखेंगे।
तिरंगे में लिपटा दे ये तन मेरा,
या तूफानों की बना दे नौका।
बना ले मुझे अपने जल की धार,
या बना ले हवा का इक झोंका।।
कैप्टन अंशुमन सिंह के पूजनीय और अनुकरणीय प्रयासों को कैफ़े शोशल मैगज़ीन सलाम करती है।
जय हिंद , जय भारत