परमवीर चक्रशूरवीरो की गाथा

मेजर विवेक गुप्ता – कारगिल युद्ध के नायक 1999

| महावीर चक्र |

हमारे भारत – भू की मिट्टी में वीरों की गाथाएं, शौर्य के गुण और हिम्मत, साहस के तत्व इस प्रकार सम्मिलित हैं कि इस धरती पर जन्म लेने मात्र से ही इन सभी का समावेश स्वतः ही हो जाता है। सोशियाल मैगजीन में ‘ महावीर गाथा’ का पत्रक यूं ही नहीं बना। भारत – भूमि का प्रत्येक जीव अपनी रगों में भारत की मिट्टी की सुगंध रखता हैं। आज हम ऐसे ही वीर सैनिक की बात करने जा रहे हैं जो अपने पिता से प्रेरित और भारत देश के लाडले बेटे मेजर विवेक गुप्ता हैं।

धन्य हुई है कोख सदा से , उन माताओं की। जनकर पूत विवेक सरीखे, रची कड़ी गाथाओं की।

मेजर विवेक गुप्ता, एमवीसी[1] (2 जनवरी 1970 – 13 जून 1999) को शायद ही ऐसा कोई भारतीय होगा जो नहीं जानता हो। पिता के कर्नल होने के कारण बचपन से ही मेजर विवेक जी ने देशभक्ति के किस्से सुने हैं और उन्हीं से प्रभावित होकर पले- बढे हैं। प्रखर बुद्धि और साहस के धनी मेजर विवेक गुप्ता भारतीय सेना में अधिकारी थे।

मात्र 22 वर्ष की आयु में 13 जून 1992 को भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से सेकण्ड लेफ्टिनेंट के रूप में पास हुए। इसके बाद उन्हें भारतीय सेना में सबसे वरिष्ठ रायफल रेजीमेंट राजपूतना रायफल रेजीमेंट की सेकंड यूनिट में नियुक्त किया गया। बहुत जल्द वो अपनी प्रतिभा के दम पर साहसी यूनिट में शामिल हो गए । वह यूनिट उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में तैनात थी। जम्मू कश्मीर में अपने कार्यकाल के दौरान 1999 के कारगिल युद्ध (ऑपरेशन विजय) के दौरान वे उनके कार्यों हेतु भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हुए। राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट में कमीशन दिया गया, जो कि बहादुर योद्धाओं के लिए प्रसिद्ध पैदल सेना रेजिमेंट है। 1997 में, मेजर विवेक ने सेना अधिकारी कैप्टन राजश्री बिष्ट से शादी की।


मेजर विवेक गुप्ता एक साहसी और समर्पित सैनिक थे, जिन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) प्रशंसा पत्र भी प्राप्त हुआ है। वे राजपुताना राइफल्स की दूसरी बटालियन से संबंधित थे, जिसे 2 राज राइफल्स के नाम से भी जाना जाता है। उनकी असाधारण क्षमताओं को पहचानते हुए, उन्हें इन्फैंट्री स्कूल, महू में हथियार प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया।

मेजर विवेक गुप्ता ने कारगिल युद्ध के में अपनी अदम्य शक्ति का प्रदर्शन किया और दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। मेजर विवेक गुप्ता ने तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। द्वितीय राजपुताना राइफल्स ने युद्ध में तब प्रवेश किया जब भारतीय सेना के पास आक्रमण के दायरे के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं थी। मेजर गुप्ता और राजपुताना राइफल्स की दूसरी बटालियन के लोगों को द्रास सेक्टर में तोलोलिंग में बिंदु 4590 पर फिर से कब्ज़ा करने का काम सौंपा गया था।

उनके मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। राजपूताना राइफल्स में शामिल होने के ठीक सात साल बाद 13 जून को मेजर विवेक कारगिल युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गए।
हम सदैव उनके समर्पण का स्मरण करते रहेंगे । जो कार्य वो अधूरा छोड़ गए हैं वह अब हम पूरा करेंगे।

कैफे सोशल मैगजीन ऐसे वीर सैनिकों को नमन वंदन करती है।
????जय हिन्द जय भारत ????

ललिता शर्मा नयास्था’
भीलवाड़ा, राजस्थान

महावीर चक्र: देश के वीर योद्धाओं का सम्मान

महावीर चक्र भारत का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है, जिसे युद्ध के समय असाधारण साहस और वीरता दिखाने वाले सैनिकों को दिया जाता है। इस पुरस्कार की स्थापना 26 जनवरी 1950 को की गई थी। यह उन सैनिकों के शौर्य को सम्मानित करता है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना असाधारण वीरता दिखाई हो। महावीर चक्र उन योद्धाओं का प्रतीक है, जिन्होंने युद्ध के दौरान अपने साहस और बलिदान से दुश्मन को परास्त किया।

Cafe Social Magazine का प्रयास

Cafe Social Magazine हमेशा से देश के वीर सैनिकों की अद्वितीय गाथाओं को समाज के सामने लाने के लिए समर्पित रहा है। हमने पहले परमवीर चक्र के सभी वीरता पुरस्कार प्राप्त करने वाले सैनिकों की कहानियों को प्रमुखता से कवर किया है, और अब हमारे इस विशेष सेक्शन में हम महावीर चक्र से सम्मानित वीर योद्धाओं की बहादुरी की कहानियों को एक-एक करके प्रस्तुत कर रहे हैं। इन कहानियों के माध्यम से हम उनके अदम्य साहस, बलिदान और वीरता को देशभर में प्रसारित कर रहे हैं, ताकि हर भारतीय इन नायकों के संघर्ष और बलिदान को समझ सके।

महावीर चक्र का स्वरूप

महावीर चक्र एक गोलाकार चांदी का पदक होता है, जिसके मध्य में अशोक चक्र बना हुआ है। इसके एक ओर देवनागरी लिपि में “महावीर चक्र” लिखा होता है। यह पदक बहादुरी का प्रतीक है, और इसे पहनकर हर सैनिक गर्व का अनुभव करता है। इसे प्राप्त करने वाले सैनिक न केवल अपने परिवार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा बन जाते हैं।

प्रमुख महावीर चक्र प्राप्तकर्ता

भारत के कई बहादुर सैनिकों ने महावीर चक्र प्राप्त किया है। उनके साहस और बलिदान की कहानियाँ हर भारतीय को गर्व महसूस कराती हैं। Cafe Social Magazine महावीर चक्र प्राप्त करने वाले हर वीर सैनिक की गाथा को प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध है।

  1. मेजर सोमनाथ शर्मा
    महावीर चक्र के पहले प्राप्तकर्ता मेजर सोमनाथ शर्मा थे। उन्होंने 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा करते हुए अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया। भले ही उनके पास सीमित संसाधन थे, फिर भी उन्होंने दुश्मनों को पीछे धकेला और अपनी टीम को मोर्चे पर डटे रहने के लिए प्रेरित किया। उनके बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
  2. कैप्टन अनुज नैयर
    कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन अनुज नैयर ने कठिन परिस्थितियों में अपने साथियों का नेतृत्व किया और कई दुश्मन पोस्टों को ध्वस्त किया। उनकी बहादुरी और बलिदान ने युद्ध के परिणाम को भारत के पक्ष में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अद्वितीय साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया।
  3. कर्नल होशियार सिंह
    1971 के भारत-पाक युद्ध में कर्नल होशियार सिंह ने लोंगेवाला पोस्ट की रक्षा करते हुए दुश्मन के कई हमलों को विफल किया। उनके अद्वितीय नेतृत्व और साहस के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
  4. मेजर सुधीर वालिया
    मेजर सुधीर वालिया ने 1999 के कारगिल युद्ध में दुश्मनों के खिलाफ कई अभियानों का नेतृत्व किया। उनकी निडरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

महावीर चक्र का महत्व

महावीर चक्र न केवल सैनिकों की वीरता को सम्मानित करता है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि देश की सुरक्षा के लिए हमारे सैनिक किस हद तक जा सकते हैं। यह पुरस्कार न केवल उन बहादुर सैनिकों की पहचान करता है जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाई, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी गर्व का प्रतीक है।

यह सम्मान आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति और सेवा की प्रेरणा देता है। महावीर चक्र हमें यह सिखाता है कि देश सेवा से बढ़कर कुछ नहीं है और हर भारतीय को अपने सैनिकों के बलिदान का आदर करना चाहिए।

निष्कर्ष

महावीर चक्र वीरता और बलिदान का प्रतीक है। इसे पाने वाले सैनिक हमारे देश के सच्चे नायक हैं, जिन्होंने अपने अद्वितीय साहस से देश की सुरक्षा की। उनके बलिदान को सम्मानित करना हमारा कर्तव्य है, और महावीर चक्र उसी वीरता का जीवंत प्रतीक है। ऐसे वीर योद्धाओं की कहानियाँ हमें हर पल प्रेरित करती हैं और हमें यह याद दिलाती हैं कि देश की सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

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