परमवीर चक्रशूरवीरो की गाथा

कश्मीर के मसीहा’ प्रथम सिख यूनिट के नायक : लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय

27 अक्टूबर 1947 का दिन भारतीय सैन्य इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इसी दिन कश्मीर में पहली बार उतरी थल सेना की प्रथम सिख इन्फेंट्री (पैदल सेना) ने पाकिस्तान से आए घुसपैठियों को मार भगाया था। आजादी के बाद देश की सेना का यह पहला हमला था जिसमें सिख यूनिट ने कम संसाधनों के बावजूद उच्च किस्म के सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया और कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय के नेतृत्व में घुसपैठियों को शीलातांग की लड़ाई के बाद बाहर खदेड़ दिया गया। तभी से भारतीय थल सेना इस जीत को 27 अक्टूबर के दिन ‘इन्फेंट्री डे’ के रूप में मनाती है। इस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को प्रत्येक वर्ष विजय स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। 

आरंभिक जीवन और सैन्य-सेवा :

रंजीत राय का जन्म 6 फरवरी 1913 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) के एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उन्होंने बिशप कॉटन स्कूल, शिमला में अध्ययन किया और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में पहले पाठ्यक्रम में भाग लिया। बाद में, वह एक प्रशिक्षक के रूप में कमांड एंड स्टाफ कॉलेज, क्वेटा (अब पाकिस्तान में) में तैनात होने वाले पहले भारतीय अधिकारियों में से एक थे। उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में 1 फरवरी 1935 को अधिकारी सेवा संख्या IC-12 के साथ कमीशन किया गया। 24 फरवरी 1936 को उन्हें 11वीं सिख रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में तैनात किया गया। 4 मई 1936 को लेफ्टिनेंट और 4 फरवरी 1942 को कप्तान के रूप में उन्हें पदोन्नत किया गया। 

कैप्टन रंजीत राय के नेतृत्व में भारतीय सेना की श्रीनगर-विजय

देश के विभाजन के समय से ही कश्मीर पर विवाद था। कश्मीर को कब्जाने के लिए पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर को हमला बोल दिया था। कश्मीर में कई घुसपैठिए दाखिल हो गए थे जो हथियारों से लैस थे। ये पाकिस्तानी कबायली छापामार सैनिक थे। 26 अक्टूबर को महाराजा कश्मीर ने इस विवादित हिस्से को भारत के पक्ष में सौंप दिया था। तत्काल दुश्मनों से सामना करने के लिए थल सेना की प्रथम सिख यूनिट को लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय के नेतृत्व में विमान से श्रीनगर रवाना किया गया। स्वतंत्र भारत की यह पहली फौजी टुकड़ी थी जिसे युद्ध के मैदान में भेजा गया था और राय स्वतंत्रता के बाद युद्ध में भाग लेने वाले भारतीय सेना के पहले अधिकारी थे।

1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के शुरू होने से ठीक पहले लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय को वाशिंगटन डी.सी. में एक सैन्य सहचारी (मिलिट्री अटैशे) के रूप में तैनाती के लिए चुना गया था, लेकिन जब उन्हें पाक के ख़िलाफ़ जम्मू-कश्मीर-अभियान के लिए चुना गया तो इस असाइनमेंट को बदल दिया गया। जब पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर पर आक्रमण किया, उस वक़्त राय गुड़गांव में सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन की कमान संभाल रहे थे और भारत-पाक विभाजन के शरणार्थियों के लिए व्यवस्था कर रहे थे। उनके सैनिकों की दो कंपनियों को 30 डकोटा विमानों में एयरलिफ्ट किया गया था, जिनमें से एक को बीजू पटनायक (जो बाद में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने) ने श्रीनगर भेजा था। राय को ऑपरेशन का आदेश तत्कालीन कैप्टन एस. के. सिन्हा ने सौंपा था, जो लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए और बाद में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने।

राय के नेतृत्व में भारतीय सेना श्रीनगर में डटी हुई थी, लेकिन उनसे संख्याबल में काफ़ी अधिक रहे पाकिस्तानी कबायली छापामार बारामूला में सभी धर्मों के लोगों को लूटने, बलात्कार करने और जलाने के बाद श्रीनगर की ओर तेज़ी से बढ़ रहे थे। लेफ्टिनेंट राय ने ज़बरदस्त जोश का अपने सैनिकों में संचार किया और अद्वितीय नेतृत्व-कौशल तथा अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए श्रीनगर हवाई-क्षेत्र की सफलतापूर्वक रक्षा की, जिससे और अधिक भारतीय सैनिकों के श्रीनगर में उतरने का रास्ता साफ़ हो सके। हैरतअंगेज युद्ध करते हुए प्रथम सिख यूनिट अपने कमांडिंग ऑफिसर राय के नेतृत्व में श्रीनगर से आगे बारामूला व पत्तन पहुंची और तब बारामूला-श्रीनगर राजमार्ग की रक्षा हो सकी तथा घुसपैठियों को शीलातांग की लड़ाई के बाद बाहर खदेड़ा जा सका। बेहद कम संसाधनों के बावजूद इस भारतीय सैन्य टुकड़ी ने अद्भुत सैन्य-कौशल का प्रदर्शन करते हुए दुश्मनों के बड़े हमले को निष्क्रिय कर दिया, किन्तु दुर्भाग्य से भारत के मुकुट कश्मीर की रक्षा में सन्नद्ध लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय 27 अक्टूबर 1947 को शहीद हो गए। 

‘कश्मीर के मसीहा’ को महावीर चक्र पुरस्कार

मरणोपरांत शहीद लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय को ‘युद्ध-क्षेत्र में अपनी जान की परवाह न करते हुए उच्चतम स्तर के साहस, दृढ़निश्चयी और प्रेरणादायी नेतृत्व’ के लिए स्वतंत्र भारत के पहले महावीर चक्र से अलंकृत किया गया। युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रथम सिख यूनिट को ‘कश्मीर के मसीहा’ का दर्जा दिया था। राय आज भी सेना में प्रथम सिख ‘कश्मीर के मसीहा’ के तौर पर जाने जाते हैं। राय के परिवार की पांच पीढ़ियों ने भारतीय सेना में अपना योगदान करते हुए देश-सेवा की है, जिसमें उनके पोते मेजर सेवानिवृत्त शिवजीत सिंह शेरगिल और नाती फरीदीजीत शेरगिल शामिल हैं। लेफ्टिनेंट रंजीत राय जैसा व्यक्तित्व सिर्फ़ अपने परिवार को ही नहीं वरन् पूरे समाज को देशभक्ति, वीरता, निष्ठा, नेतृत्व, साहस और पराक्रम जैसे गुणों को धारण करने की प्रेरणा देता है। वह एक सदैव प्रज्ज्वलित रहने वाली मशाल की तरह समाज का पथ-प्रशस्त करता है, जिससे राष्ट्र सदैव उच्चतम गुणों से परिपूर्ण सुरक्षित हाथों में रहे और बेहतर नागरिकों उन्नति तथा समृद्धि के पथ पर आगे बढ़ सके, भले ही इसके लिए एक देशभक्त शहीद ही क्यों न होना पड़े।

इसीलिए कवि जयशंकर प्रसाद ने ऐसे वीरों की कीर्ति को असंख्य और दिव्य-दाह सा बताया और उनके विजय की कामना की –“असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी / सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!/ अराति सैन्य सिंधु में, सुबाड़वाग्नि से जलो, / प्रवीर हो जयी बनो – बढ़े चलो, बढ़े चलो!”

अप्रतिम भारत-सपूतों के लिए कैफ़े सोशल की श्रद्धांजलि ।

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