GeneralHealth

पारंपरिक खाद प्रसंस्करण की अनदेखी समस्या और दुष्परिणाम

आजकल हमारी जिंदगी में स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएं हैं। जो लोग स्वस्थ जीवनशैली जीते हैं, बुरी आदतों से दूर रहते हैं, उनका भी स्वास्थ्य गिरता दिख रहा है। दिल का दौरा, टाइप 2 डायबिटीज और अन्य बीमारियों की खबरें आम हो गई हैं। ये युवा लोग हैं, 40-45 साल की उम्र के आसपास, जिनमें कोई स्पष्ट बीमारी का कारण नहीं दिखता, फिर भी वे बीमार पड़ते हैं। हम अक्सर इसका कारण प्रदूषण मानते हैं, लेकिन एक महत्वपूर्ण कारण पारंपरिक खाद्य प्रसंस्करण विधियों का भूल जाना भी हो सकता है।

हमारे पूर्वजों ने खाद्य प्रसंस्करण के ऐसे तरीके विकसित किए थे जो खाद्य के पोषण मूल्य को कम नहीं करते थे। वे इस बात का ध्यान रखते थे कि जो हम खाते हैं उसकी गुणवत्ता और पोषण सामग्री बनी रहे। शायद, आज के मशीन युग में सौन्दर्य प्रेमी खाद्य में गुणवत्ता नहीं सौन्दर्य ढूंढते है। इसलिए हमारे खाद्य प्रसंस्करण के पारंपरिक तरीके जो गुणवत्ता को प्राथमिकता देते थे अब भूले जा रहे हैं । उद्योग बाजार की मांग के अनुरूप ही उत्पादन करते हैं । यह एक ऐसा समय है जहाँ हमें अपने फन्डमेनटल सही करने पड़ेंगे ।  
जब आज हम पौष्टिक भोजन की तलाश करते हैं, तो हमारा रास्ता अक्सर जैविक उत्पादों पर खत्म होता है, जबकि पारंपरिक खाद्य प्रसंस्करण विधियों को हम भूल जाते हैं । हम लगातार पाते हैं कि पारंपरिक खाद्य प्रसंस्करण विधियां बेहतर थीं, चाहे वह तेल, गेहूं, सब्जियों या अन्य उत्पादों का हो, वे खाद्य पदार्थों के पोषण मूल्य को बनाए रखती थीं। इसलिए, पौष्टिक भोजन की तलाश हमें अक्सर हमारी परंपराओं की ओर वापस ले जाती है।

ऐसी ही कुछ अनुभूति हमको तब हुई जब हम गाडरवारा, जिला नरसिंहपुर में इनबूक कैफै की शुरुआत करने पहुंचे । यहाँ नर्मदा घाटी में उपजाऊ जमीन में हिंदुस्तान की सबसे उच्च किस्म की दाल पैदा होती है । यहाँ की दाल विश्व प्रसिद्ध है । यहाँ हमें दाल के कारण एक ऐसी कहानी पता चली जिसके कारण इनबूक कैफै सोशल मैगजीन में पारंपरिक खाद्य प्रसंस्करण के लेख की सीरीज चालू कर रहे हैं । 

मुख्य बिंदु

ज्ञातव्य है की इनबुक फाउंडेशन ग्रामीण भारत में लाइब्रेरीज की स्थापना करता है । इन लाइब्रेरियों के माध्यम से इनबूक गाँव का अर्बन भारत से संपर्क स्थापित करता है । इस संपर्क के फलस्वरूप शहरी क्षेत्र में रहने वाले सम्पन्न लोग किताबें, खिलौने, पुराने इलेक्ट्रानिक्स जैसे मोबाईल, लैपटॉप आदि दान करते हैं । इसके साथ ही इनबूक फाउंडेशन गाँव को ट्रैड, पावर जनरेशन, ग्रामीण पर्यटन के क्षेत्र में भी मौके प्रदान करवाने में मदद करता है । 

ऐसा ही कुछ कार्यक्रम अभी गाडरवारा तहसील जिला नरसिंहपुर में चालू हुई । यहाँ सरपंचों व सचिवों के साथ बात करने पर पता चला की यहाँ गाँव की संपन्नता का कारण यहाँ पैदा होने वाली अरहर या तुअर दाल है । यहाँ की दाल विश्व प्रसिद्द है । यहाँ इसलिए अनेक दालमिले भी हैं । आगे बात करके पता चला की स्थानीय किसान या स्थानीय रहवासी अपने घरों में उपयोग के लिए मिल से प्रोसेस हुई दाल प्रयोग में नहीं लाते हैं अपितु अपनी तुअर दाल को स्वयं घर में ही प्रोसेस करते हैं। इस प्रोसेसिंग के कारण दाल की गुणवत्ता और पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है । जबकि, बड़े कारखानों में प्रोसेस की गई दाल, जो आकर्षक तो दिखती है, उसमें पोषक तत्व कम हो जाते हैं । क्योंकि आकर्षण बढ़ाने के लिए पॉलिशिंग प्रक्रिया के दौरान दाल की बाहरी परत हट जाती है या टूट जाति है । 

विश्लेषण

यह जानने के बाद हमने इस पर और जानने का प्रयास किया तो पाया कि घर पर दरी हुई दाल न केवल स्वाद में बेहतर होती है, बल्कि यह पोषण से भी भरपूर होती है। घर की गली दार और बड़ी मशीनों से निकलने वाली पॉलिश दाल के बीच में दो मुख्य फर्क होते हैं :

  • घर के अंदर जो दाल का प्रसंस्करण होता है वो बहुत कम तापमान पर होता है। ज्यादा तापमान पर जाने के बाद चीजें अपनी न्यूट्रिशनल वैल्यू खों देती हैं या कम कर देती है। इसलिए आज कल कोल्ड प्रेस ऑइल की डिमान्ड बड़ गई है ।  
  • अन्य बीजों की तरह दाल का भई बाहरी हिस्सा सबसे ज्यादा न्यूट्रिशियस होता है जो बड़ी मिलों में चमक बढ़ाने के चक्कर में पोलिश के दौरान टूट जाता है । इसको छोटी मिलों में या घरों में प्रोसेस करने वाले तरीकों में क्षरण नहीं होता है। 

निष्कर्ष

  • हमें यह भी पता चला की घर में दरी दाल मांग न होने के कारण व्यवसायिक रूप से नहीं बेची जाती है । यदि इसको बेचने की सुविधा हो तो यह हर ग्रामीण घर में बन सकती है । अगर ऐसा होता है तो यह ना सिर्फ शहरों में रहने वालों को स्वास्थ्य लाभ देगा अपितु ग्रामीण घरों में रोजगार भी देगा ।  
  • इस लेख से हमें यह सीखने को मिलता है कि घर पर प्रोसेस की गई दाल का पोषण महत्व समझना चाहिए। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि हमें अपनी पारंपरिक खाद्य प्रसंस्करण विधियों को महत्व देना चाहिए और उन्हें बनाए रखना चाहिए। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है, बल्कि हमें अधिक पोषण युक्त भोजन भी प्रदान करता है।

इन बुक फाउंडेशन का प्रयास

इन बुक फाउंडेशन इस जानकारी को लोगों के साथ साझा करने और घर पर प्रोसेस की गई दाल के महत्व को बढ़ावा देने के लिए काम करने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए, फाउंडेशन इन सेल्फ हेल्प ग्रुप और इन महिलाओं को जो घर के अंदर दालों को धरने का काम करती है, उनकी दाल को लोगों तक उपलब्ध कराएगा।

आप लोग जो भी इसके साथ जुड़ना चाहते हैं वो आज ही इन बुक फाउंडेशन से संपर्क कर सकते हैं।

घर में दाल कैसे दरी जाती है :-

  1. सही समय पर दाल को हार्वेस्ट करना । 
  2. उसे 2 दिन के लिए धूप में सुखना । 
  3. फिर उसे धोना वा तेल और हल्दी के घोल में उसे शुद्ध करना । 
  4. शुद्ध करने के बाद फिर 2 दिन के लिए धूप में सुखाना 
  5. सुखी और लिपि हुई दाल को पत्थर की चक्की से तोड़ना 
  6. फिर तेल में दाल कर पोंछना और चमकाना
सौरभ मिश्रा निदेशक, सीगल वेंचर प्राइवेट लिमिटेड

प्रिय पाठकों इसी विषय पर हमारे लेख को पढ़ना जारी रखें और बागवानी विभाग के महत्वपूर्ण बिंदुओं से लाभ उठाएं…..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button