नीव के पत्थर

हमारी नर्स – सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है !

अपने लिए तो सभी जीते हैं पर दूसरे के लिए खुद जोखिम लेकर सेवा भाव से लगे रहना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है। इस संसार में हर कोई अपने और अपनों के लिए ही जीता है किन्तु चिकित्सक और नर्से राष्ट्र और समाज के लिए समर्पित होकर जो सेवा करते हैं, वह अनमोल है।

जब देश में कोरोना महामारी अपने भयंकर रूप में संसार में फैली हुई थी तब उस समय की कठिनाइयों में हम सब डर के कारण अपने अपने घरों में छिपे हुए थे उस समय में जब आप बिल्कुल अकेले रहकर अपने परिवार को भी अपने पास नहीं रख सकते थे, देख सकते तब भी उन भयावह पलों में अपनी जान जोखिम में डालते हुए चिकित्सकों के साथ साथ नर्स भी अपने दायित्वों को समझते हुए बेहद अहम भूमिका निभा रही थी। अपने घर परिवार से दूर रहकर बिना किसी नय और चिंता किए हुए कभी पिता कभी मा. कभी भाई और बहन के रूप में दिलासा देते हुए अनवरत हम मरीजों का इलाज करने में मदद कर रही थी।

किसी भी मरीज को ठीक करने में जितना बड़ा योगदान एक चिकित्सक का होता है, उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका नर्स की भी होती है। नर्स अपने मरीजों को ममता प्यार और सेवाभाव से देखभाल कर उनकी आधी बीमारी को यूं ही दूर कर देती है। मरीजों के साथ उनका लगाव, जुड़ाव, निस्वार्थ सेवा नाव, उनका साथ, भावनात्मक रिश्ता हम मरीजों के दर्द को काफी कम कर देता है ।

वैश्विक महामारी के समय में पूरा विश्व नर्सों के योगदान को कभी भी भुला नहीं सकता। अपने घर परिवार से दूर रहकर, जबकि उन्हें भी पता है कि ना जाने कब वह भी इस बीमारी की चपेट में आ सकती है तब भी निस्वार्थ भाव से जिस तरह लोगों की सेवा कर रही थी. उसके लिए हम सबको उनका उनके कामों का सम्मान करना चाहिए। हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि ये पूरी तरह से स्वस्थ सुरक्षित रह कर मानव जीवन को बचाने का काम करती रहें।

आरोग्य धाम अस्पताल ग्वालियर में कोरोनावायरस के समय मेरी शल्य चिकित्सा की गई, साथ में कोरोनावायरस से संक्रमित था तब अस्पताल में कार्यरत एक ऐसी ही नर्स ने मेरी जिम्मेदारी, देखभाल T हसते मुस्कुराते हुए की वो मेरे लिए अविस्मरणीय संस्मरण है। उनसे एक संक्षिप्त मुलाकात में उनसे बात की जिससे उनके द्वारा किए गए सेवा कार्यों को समझा।

उन्होंने बताया (नाम न छापने के लिए कहा कि अपने काम और मरीजों की सेवा तन, मन और लग्न से कार्य कर रही है। प्रतिदिन घंटे की ड्यूटी (सेवा) करने ८ के बाद अस्पताल में ही एक कमरे में अकेले ही रहकर अपने लिए भोजन तैयार करती हूँ, क्योंकि परिवार के किसी भी सदस्य को अपने साथ नहीं रख सकते थे। अकेले ही अपने को समझाने की कोशिश करती हूं कि शायद ईश्वर ने उन्हें इस समय के लिए ही इस सेवा में आने का अवसर दिया है। उनका कहना है कि मरीज की सेवा करना ही पहला धर्म है। घर वालों के आशीर्वाद से अपनी ड्यूटी कर रही हूँ। बिना किसी डर (कोरोना) के ।

संकट की घड़ी में सभी को अपना सेवा धर्म निभाते हुए धैर्य से काम करना चाहिए।
उनका देश के लिए संदेश है कि वैश्विक महामारी के कठिन समय हो या फिर किसी भी तरह की तकलीफ हो. हमें धीरज से काम लेना चाहिए ।
किसी भी तरह से आत्म विश्वास कमजोर नहीं होने देना चाहिए। अस्पताल प्रशासन द्वारा बनाए गए नियमों का कठोरता से पालन करे साथ में ही सेवा में लगे हुए चिकित्सक, कर्मचारियों पर विश्वास करें। क्योंकि हम में से कोई भी मरीजों की सेहत से खिलवाड़ नहीं कर सकते। हमें मालूम है कि मरीजों की नजर में इसे धरती का भगवान कह कर बुलाते है। किसी भी तरह की परेशानियों में हमारी भी परेशानी को समझें।

हम लोग कोई भी गलत काम अपनी मर्जी से नहीं करते हैं।
जीवन बचाने का हर संभव प्रयास हमारा होता है. बाकी तो सब कुछ ईश्वर के हाथों में है!
विश्व की समस्त नर्सों का हम सब अपने स्तर पर सम्मान करते हुए ईश्वर से उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करे।
इनके द्वारा दी गई सेवा अद्वितीय अनमोल है। इस सेवा के लिए
जितना कहा जाए वह कम है।
सम्मान करें हम सब उनका
जो राष्ट्र और समाज के लिए जीते है।

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by संजीव जैन
संपादक – मंडल
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संजीव जैन
संपादक – मंडल

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