हिंदी प्रतियोगिता

हज फिर कभी

 

                  हज-फिर कभी”

आज पड़ोस में सन्नाटा छाया है।रात होने को है।सड़क सुनसान सी पड़ी है।शबाना उत्सुकता भरी निगाहों से अपने सामने वाले घर की तरफ देख रही है।आज कान्हा बाहर खेलता दिखायी नही पड़ रहा।शबाना की निगाह कुछ कमजोर हो चली है।

सिकुड़ी हुई आंखों से देख ही रही थी कि कान्हा की मां शोभा चेहरा लटकाये हुये दरवाज़े पर आकर उदास बैठ जाती है।

आज कान्हा उसके साथ नही है।हर रोज वो कान्हा को लेकर शाम के वक्त दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती है।मोहल्ले के आस-पास के चार-पांच घरों में कान्हा ही सबसे छोटा बच्चा है।

जून का महीना चल रहा है तो अब सुबह-शाम ही कान्हा का नटखट रूप दिखाई पड़ता है।कान्हा सड़क पर इधर-उधर भागता हुआ लोगो का दिल बहलाता रहता है।

कभी जमीन चाटने लगता है, कभी कुछ उठाकर मुहं में ले लेता है।मां डांटती है तो रोना शुरू कर देता है।कभी किसी से टकराने से बचता है।कभी इधर गिरता है, कभी किसी पड़ोसी के घर में जा घुसता है।

सवा दो बरस के कान्हा का मुख चंद्रमा के समान सुन्दर है।बड़ी-बड़ी कजरारी आंखे उसकी ओर सबका ध्यान खीचती हैं।मुस्कुराते हुए जब उसके चार दांत दिखाई देते हैं तो वो ओर भी मनभावना हो जाता है।
उसके पैर हैं कि घर में टिकते ही नही। आते-जाते सभी राहगीर उसे देख मुस्कुरा पड़ते हैं; उसके भंवर पड़े गालों को पकड़कर खीच देते हैं।

शबाना-अरी शोभा आज कान्हा दिखाई नही पड़ता,

शोभा- क्या बताऊं ताई,आज सुबह से उसे बुखार है;सारा बदन तप रहा है,कल जो बारिश पड़ी थी तो भीग गया था। उसके पापा दवाई लाये थे पर आराम नही हुआ।अब जब वो  काम से लौट आयेंगे तो फिर डॉक्टर को दिखाने ले जायेंगे।

शबाना-मै देखती हूं,शबाना भीतर जाकर देखती है तो कान्हा तपा हुआ सो रहा है।

शबाना-सूती कपड़ा और पानी लेकर आ,भिगोकर इसके माथे पर रखने से बुखार कुछ कम हो जायेगा।
शोभा-अभी लाई।

लो ताई। ला तु इसके माथे पर भीगी पट्टी रख मै इसके हाथ पैर की मालिश करती हूं।

फिर शोभा पट्टी को पानी में भिगोकर कान्हा के माथे पर रखती,
शबाना सूती कपड़े से उसके हाथ पांव की मालिश कर रही है; पर बुखार है कि उतरता ही नही।

तभी कान्हा के पापा, विकास आ जाते हैं। नमस्ते ताई,
अब इसका बुखार कैसा है।

शोभा-लो पानी पियो और जल्दी से खाना खाकर इसे डॉक्टर साहब के पास दिखाने ले चलो।

विकास-पानी पीते हुए,ठीक है तु जल्दी खाना ला दे,
और ताई के लिये चाय बना दे,

शबाना-नही बेटा रहने दे मेरे शौहर फल बेचकर आते ही होंगे,
अब चलती हूं,कान्हा को जल्दी दिखा आना।
दोनो कान्हा को लेकर डॉक्टर साहब के पास जाते है।

डॉक्टर-कान्हा की नव्ज़ देखते हुये, बुखार तो और बढ़ गया है,
दवाई ठीक से दी थी।
शोभा-हां जी डॉक्टर साहब।

मै अभी ये दवाई लिख रहा हूं और ब्लड से रिलटेड टैस्ट भी लिख रहा हूं।आजकल डेंगू चल रहा है इसलिए टैस्ट जरूरी है।
पास की लैब से करा लेना।

विकास-जी डॉक्टर साहब,

दवाई लेकर वे कान्हा का ब्लड टैस्ट करा देते हैं।

लैब वाला कहता है रिपोर्ट कल सुबह तक मिलेगी।

घर आकर शोभा कान्हा को थोड़ा सा दलिया बनाकर देती है,
फिर दवाई देकर उसके हाथ पैर की मालिश करने लगती है,

कान्हा सिसकता हुआ सो जाता है।

3:30 बजे रात को कान्हा बुखार से तप कर लाल हो जाता है।
शोभा उसकी हालत देख रो पड़ती है।

अजी सुनिये तो! कान्हा को तो आराम हो ही नही रहा।
बुखार बढ़ता ही जा रहा है।

विकास-सुबह को डॉक्टर साहब के पास चलेंगे तब तक रिपोर्ट भी मिल जायेगी।

उधर शबाना को भी कान्हा की फिक्र में नींद नही आ रही।
रफीक़-सोजा सुबह कान्हा के पास चलेंगे।

शबाना-क्या करूं नींद ही नही आ रही।वो मासूम तप रहा था।उसकी हालत देखी ना जा रही थी।

तुम्हे याद हैं ना एक बार हमारा बड़ा बेटा तौफीक़ भी ऐसे ही बुखार से कई दिन बीमार रहा था और फिर छोटा वाले इमरान को भी बुखार हो गया था वो दिन बड़ी मुश्किल से कटे थे।आज मुझे वो दिन याद आ गये।
रफीक़-हाँ; मुझे याद है। तु खुदा पर यकीन रख अल्लाह के रहम से सब ठीक हो जायेगा।
शबाना-आमीन।
या “खुदा” अपने बंदो पर रहम अताकर।

सुबह होते ही कान्हा को लेकर डॉक्टर के पास पहुंच जाते।
रिपोर्ट देखकर डॉक्टर साहब कहते हैं मुझे इसी बात का डर था।
शोभा- किस बात का डर!!

कान्हा को डेंगू हो गया है…डॉक्टर
डेंगू!!विकास चौंककर बोला।

हाँ-विकास,कान्हा को हॉस्पिटल में भर्ती कराना है।जल्दी करो।
विकास-डॉक्टर साहब क्या खर्चा आयेगा।

डॉक्टर-वो तो इलाज के दौरान ही पता पड़ेगा कि कितने दिन में कान्हा ठीक हो जायेगा।
ठीक है शोभा तु कान्हा के साथ यहीं रुक मै घर से रुपये लेकर आता हूं।
वो कान्हा के कपड़े, तौलिया, कटोरी, गिलास, जग,चम्मच, प्लेट और रात को यहाँ रुकने के लिये बिछौना लेते आना।

ले आऊंगा…विकास ये कहता हुआ तेजी से चला गया।
घर पहुंचने पर बाहर खड़ी शबाना पूछती है वे दोनो कहाँ हैं
विकास सारी बात बता देता है।

शबाना भी विकास के साथ अस्पताल आ जाती है।
हाय रे!ना जाने किसकी नज़र लग गई इस मासूम को।

हाँ ताई नज़र ही लगी है मेरे हंसते खेलते लाल को..शोभा आँसू पूछते हुए कहती है।

शबाना-रो मत, हिम्मत रख,कान्हा जल्दी ही ठीक हो जायेगा, देख सामने गणेश जी की मुर्ति है हाथ जोड़कर प्रार्थना कर आ।

कान्हा को भर्ती कर लिया जाता है।दवाइयों की बोतल चढ़ने लगती है।
ऐसे ही दो दिन बीत जाते हैं।

डॉक्टर साहब देखने आते है।
विकास- कुछ सुधार नही लग रहा डॉक्टर साहब।
डॉक्टर-आज की कंडीशन देख लगता है इसे शहर के बड़े हॉस्पिटल में शिफ्ट करना पड़ेगा।

विकास-मै गरीब मजदूरी करने वाला बड़े अस्पताल का खर्चा कैसे उठा पाऊंगा।आप ही देख लो।

डॉक्टर-अगर मुझसे ठीक हो पाता तो मै यहाँ से बड़े हॉस्पिटल को रेफर करने की बात ही नही कहता।जाओ पैसे जमा कर कान्हा को डिस्चार्ज करा लो।
विकास और शोभा खड़े के खड़े रह जाते हैं।
हे भगवान!!! अब क्या होगा?

कान्हा को वापिस बीमार हालत में घर ले आते हैं।
विकास अपने ठेकेदार के पास जाता है और बीस-पच्चीस हजार रुपये एडवांस मांगता है।

ठेकेदार-दो चार हजार तो दे सकता हूं पर इतने सारे नही।
रिश्तेदारों से भी मदद नही मिलती।
विकास घर लौट आता है।

शबाना और शोभा कान्हा के पास बैठे हैं।
विकास सिर पकड़कर नीचे ही बैठ जाता है।
शोभा- पैसो का इन्तजाम हो गया?
नही हो पाया।अब कैसे करेंगे।

तुम चिंता मत करो मै अपना मंगलसूत्र बेच दूंगी और पैसे आ जायेंगे।
विकास-अरी इतने पैसो से काम नही चलेगा।,
लगता है लाला के पास घर गिरवी रखना पड़ेगा।

घर गिरवी क्यों रखते हो-शबाना बीच में टोकते हुए बोलती है।
ताई घर गिरवी रखने के सिवाय और कोई चारा भी तो नही है।

तुम रुको मै तौफिक़ के अब्बा से पूछकर आती हूं।
शायद कोई इंतज़ाम हो जाए।

शबाना सारी बात घर जाकर बताती है।
रफीक़-हमारे पास थोड़े से पैसे रखे हैं।उतनो से काम नही चलेगा।

शबाना-बैंक में पचास हजार पड़े हैं।
अरी बुढ़िया! वो तो हज जाने के लिये इकट्ठा किये हैं। अभी तो और चाहिएं।

शबाना-तुम्हे याद है जिस दिन कान्हा हुआ था उस दिन ही हमारा पासपोर्ट बनकर आया था।
और अभी कुछ दिन पहले जब कान्हा का जन्मदिन था तो तब हमारा हज जाने वालो की लिस्ट में नाम आया था।ये बच्चा हमारे लिये खुशियां लेकर आया है।

रफीक़-हज जाने का मौका बार-बार नही मिलता।
शबाना- “हज फिर कभी” मैने फैसला कर लिया है।किसी मजबूर की मदद से बड़ी कोई इबादत नही।

तुम जल्दी जाओ और बैंक से रुपये निकालकर ले आओ।
रफीक़-अच्छा,जैसी तेरी मर्जी।
रफीक़ बैंक से रुपये निकाल लाता है।

फिर कान्हा के घर जाकर कहते हैं,लो कान्हा के इलाज के लिये रुपये
शोभा और विकास आस भरी आंखो के साथ खड़े हो जाते हैं।
अरे ताई, ताऊजी इतने रुपये नही ले सकते।
हम कैसे उतारेंगे।

रफीक़-तुम अभी रख लो।
शबाना-धीरे-धीरे उतार देना।अब जल्दी कान्हा को ले जाओ।
विकास-रोते हुए बहुत-बहुत शुक्रिया।बड़ी मेहरबानी।
मै एक एक पैसा जल्दी ही उतार दूंगा।

कान्हा को लेकर शहर के बड़े अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता है।
कान्हा को तीन दिन ICU में रखने के बाद सामान्य वार्ड में भेज दिया जाता है।

अब उसकी हालत स्थिर है

रफीक़ कुछ फल लेकर आता है।अब कैसा है कान्हा?
विकास-अभी कुछ सुधार है।तुम्हारी दुआ से कुछ ठीक है।शाम को डॉक्टर साहब आगे का हाल बतायेंगे।

रफीक़-खुदा का शूक्र है।शबाना कल से दुआ पढ़ रही है।

रफीक़-कान्हा को देखते हुये कहता है इसका ख्याल रखना।मै फिर शबाना के साथ आऊंगा।
ठीक है ताऊ जी।

डॉक्टर साहब कहते है अब रिपोर्ट नॉर्मल है। हीमोग्लोबिन भी बढ़ रहा है।सब सही रहा तो चार-पांच दिन बाद छुट्टी मिल जायेगी।

विकास और शोभा हाथ जोड़कर डॉक्टर साहब को धन्यवाद कहते हैं।
चार दिन बाद शबाना और रफीक़ आते है।अब कैसा है रे तु।
कान्हा मुस्कुरा देता है।

तभी डॉक्टर साहब आते हैं और कहते हैं अब कान्हा स्वस्थ है आप इस घर ले जा सकते हैं।सबके चेहरे खिल उठते हैं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।

रफीक़- जल्दी मिठाई ले आओ।मै जाने का बंदोबश्त करता हूं।

हाँ ताऊ जी अभी लाया।

सब कान्हा को घर ले आते।
कुछ दिन बाद मोहल्ले की रौनक फिर लौट आती है।

फल बेचकर लौटते वक़्त रफीक़ कान्हा को पहले की तरह केला खाने को देता है।
कान्हा मुस्कुराकर अपने नन्हे हाथों से केला पकड़ लेता है।
शोभा और विकास हर रोज़ शबाना और रफीक़ का शुक्रिया कहते नही थकते।

शबाना के त्याग ने कान्हा की जान बचा दी।

नमस्ते।
सादर,
धन्यवाद,
Note-काल्पनिक कहानी वास्तविकता से संबंध नही।

सौरभ चौधरी।

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