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(व्यंग्य) – साहित्य का कैशबैक

मशहूर हिंदुस्तानी लेखक रस्किन बांड साहब ने फरमाया कि हिंदुस्तान में लिखने वाले ज्यादा हो गए हैं जबकि पढ़ने वाले कम ,उन्होंने अच्छी बात कही लेकिन पूरी बात नहीं कि हिंदुस्तान में अवार्ड देने वाले ज्यादा हो गए हैं जबकि लेने वाले कम ।

एक दौर था कि एक पुरस्कार को लेने के लिये हजारों लोग प्रयास करते थे मिलता किसी एक खुशनसीब को था अब हालात बदल गए हैं पुरस्कार ज्यादा हैं आवेदक कम ,हजारों पुरस्कार बिना बंटे रह जाते हैं जिस तरह कंपनियों के गीजर और फ्रिज बिना बिके रह जाते हैं,तब कंपनियां उस पर छूट और कैशबैक का ऑफर चलाती हैं ।

ऐसा ही एक आफर पिछले महीने मुझे भी आया।पुरस्कार की सूचना हर लेखक के लिये वैसे ही होती है जैसे फेसबुक पर 1095 लोगों के कमेंट रिप्लाई कर चुकी महिला पर 1096वां कॉमेंट बन्दा इस उम्मीद में कर देता है कि शायद इस बार मेरी दाल गल जाए सो वाकई ये दाल गलने जैसा ही था कि ईमेल में लिखा था कि हम आपकी कविताओं से प्रसन्न होकर साहित्य शिरोमणि का सम्मान आपको देने जा रहे हैं ,दस हजार नकद,शाल,मोमेंटो तो रहेगा ही जगह और दिन की सूचना जल्द ही दी जायेगी।पहले तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा जैसे कि कुछ रोज पहले हमारे दफ़्तर वाली  मैडम  सामने आकर अकेले में हमसे पूछ बैठीं “आज कैसी लग रही हूं मैं “।मैं क्या करता मैंने उस ख्वाब की ताबीर करते हुए कहा “कहर लग रही हो “।उसने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा “लेकिन बॉस ने कहा कि मैं तो बवंडर लग रही हूं और आपने सिर्फ कहर कहा ‘यू जेलस” ।मैंने बात संभाली”बवंडर के बाद ही कहर आता है दोनों ही सूरत में बिजली तो आशिक के दिल पर ही गिरनी है “।

और यही बिजली मुझ पर गिरी जब मैंने ईमेल को ध्यान से पढ़ा कि कविता हेतु सम्मान ,पर कविता तो मैं लिखता नहीं ,व्यंग्य लेखक को कविता का सम्मान मिलना ऐसा ही था जैसे  हिंदी साहित्य के किसी दगे कारतूस को कोई  अंग्रेज़ी मीडियम से पढ़ी और मल्टी नेशनल कंपनी में मोटी तनख्वाह पाने वाली युवती प्रेम निवेदन कर दे ।फिर अचानक ईमेल पर एक मोबाइल नंबर दिखा और नाम दिखा मैना विरहणी। मैंने मैना का मधुर स्वर सुनने के लिये  उस नंबर को  इतनी बार रिंग किया जितनी बार  देश में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के कांग्रेस ने ख्वाब देखें हो मगर हर बार उस नंबर पर कौवे की भाँति यही कर्कश जवाब मिलता  कि रिचार्ज ना कराने के कारण इन नंबर पर सेवाएं बन्द कर दी गयी हैं मुझे हैरानी हुई कि जो लोग बन्दी 35 रुपये का रिचार्ज ना करवा पा रही हो वो दस हजार का अवार्ड मुझे कैसे देगी लेकिन इस बात की तसल्ली भी होती थी कि अवार्ड कैश मिलेगा ,चेक से मिलने का खतरा नहीं है कि चेक बाउंस हो जाये और मैं काठ का उल्लू बना फिरूँ।

दिन गुजरते गए लेकिन ना अवार्ड वाली का नंबर लगा और ना अवार्ड का दर्शन ।मेरी हालत उस भूखे इंसान की तरह हो गयी थी जिसे थाली का भोजन तो परोस दिया गया हो मगर उसे खाने की मनाही हो कि अभी ठाकुर जी का भोग नहीं लगा  है। खाने की मनाही हो,भूख लगी हो ,थाली सामने रखी हो और भोजन की महक नथुनों में घुसी जा रही हो और बैकग्राउंड में गाना बज रहा हो 

“जित्थे होती है हथियार दी पाबंदी ,वीर उतथे ही फायर करता ” तो फिर बन्दे की हालत वैसी ही हो जाती है जैसे लालू के बेटों का अंग्रेज़ी में ट्वीट करना।

दिन ऐसे बीत रहे थे जैसे कि मानों धरती जल रही हो ,घर ,दफ्तर हर जगह वो ईमेल मैंने ही लीक किया था अब सब राफेल के रेट की तरह मुझसे सवाल पूछ रहे थे कि कब मिलेगा अवार्ड, और मैं सोनाक्षी सिन्हा की तरह असमंजस में था जो पापा के लिए कांग्रेस का वोट मांगते हुए सपा को कोसती हैं और मम्मी के लिये सपा का वोट मांगते हुए कांग्रेस की लानत -मलानत कर डालती हैं । मेरे लिये अब इस अवार्ड को हासिल करना उतना ही बड़ा यक्ष प्रश्न था जितना कि संसद में एक भी सीट ना होने के बावजूद मायावती का प्रधानमंत्री बनने का मंसूबे पालना।

मैं उसी तरह हताश था जैसे कि सेक्युलर पार्टियों का साम्प्रदायिकता को ना हरा पाने पर होती हैं। यारों -दोस्तों से मैंने मिलना जुलना बंद कर दिया था ,हर जगह बस एक सवाल “कब मिलेगा अवार्ड”।।                                       

फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।।
यही शेर सुनाकर मैं अपना अज्ञातवास काट रहा था।

तब तक तक एक दिन मैना जी का फोन आया उन्होंने मुझसे कहा “देखिये हम जिम्मेदार लोग हैं साहित्य में शुचिता के पक्षधर ,अतः आप दस हजार नकद इनाम पाना चाहते हैं तो टीडीएस की रकम भिजवा दें दस परसेंट ।”मैंने उनसे विनम्र निवेदन किया “जी मैं कविता नहीं ,व्यंग्य “उन्होंने बात को काटते हुए कहा “दिल्ली आने की तैयारी कीजिये,टीडीएस की रकम तुरंत भेजें “ये कहकर उन्होंने फोन काट दिया ,मैंने बहुत बार उन्हें फोन मिलाया लेकिन वो फोन पर ऐसे ही नदारद रहीं जैसे लघुकथा की किताबों की बिक्री ।मैंने नेहरू कट,कुर्ता पायजामा और पंप शूज का इन्तजाम कर लिया और मैना की वाणी सुनने का ऐसे प्रतीक्षा करने लगा जैसे मुलायम सिंह यादव का सैफई महोत्सव ।

एक दिन फिर मैना वाणी मेरे मोबाईल में मधुर वचनों से बोलीं “देखिये आपको बताना भूल गयी थी कि सरकार के नए कानून के हिसाब से अब कवियों पर जीएसटी 18 परसेंट कर दी गई है इसलिये आपको 8 परसेंट इनाम की रकम का और यानी आठ सौ रुपये और भेजने होंगे ,हम साहित्य में उच्च मानकों के पक्षधर

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अब तो जाते हैं बुतकदे से मीर।   

हैं सो तुरंत पैसे भेजें और दो हफ्ते बाद पुरस्कार समारोह है”।मैंने कहा कि “लेकिन मैं कवि नहीं”तब तक फोन कट चुका था और उनका मेरी  काल को  रिसीव करना ऐसे ही था चंद्रबाबू नायडू का सरकार के पांचवें साल में भाजपा को खराब बताना।

मैंने दुबारा उनकी कही रकम भेज दी ।और फिर ऐसे राह तकने लगा जैसे अमिताभ बच्चन ,अभिषेक बच्चन की किसी सोलो हिट फिल्म की राह तकते हों ।चन्द रोज बाद फिर उनका फोन आया और उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में मुझसे कहा “मुझे पता नहीं था कि आप झूठे,बेइमान और फ्रॉड हो जबकि साहित्यकार होने का दम्भ भरते हो मुझे पता लगा है कि आप कवि नहीं हैं ,व्यंग्यकार हैं क्या ये बात सच है “ये कहते हुए उन्होंने केजरीवाल की भांति मुझ पर अनगिनत आरोप लगाए और मेरी एक ना सुनी ।

मैं क्या करता ,अंत में उन्होंने कहा कि साहित्य के हित मे वो अवार्ड कैंसिल नही करेंगी इसलिये अब कविता की जगह व्यंग्य पर अवार्ड दिया जाएगा।चूंकि गलती मैंने की है जो उन्हें नहीं बताया इसलिये जो शाल,मोमेंटो कविता के पुरस्कार हेतु बनवाये गए थे वे बेकार हो गए और अब उनकी जगह पर सब व्यंग्य के नए सामान लेने पड़ेंगे । कविता का अवार्ड देने के लिए जो बड़े कवि बुलाये गए थे उनके किराये और होटल की एडवांस बुकिंग कैंसिल करनी पड़ेगी और फिर से किसी बड़े व्यंग्यकार से समय लेना पड़ेगा और किसी नई तारीख और जगह पर पुरस्कार वितरण करना पड़ेगा इसलिये कविता को व्यंग्य पुरस्कार में बदलने के लिये और अपनी गलती की भरपाई के लिये तुरंत आठ हजार रुपये भेज दो ,नहीं तो फेसबुक पर तुम्हारी अच्छी खबर लेगी हमारी संस्था”ये कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया ।

मैंने  बहुत मिन्नत की ,कि ये अवार्ड मुझको नहीं चाहिये लेकिन वो टस से मस ना हुईं।वो आठ हजार रुपये भरने पड़े अब ये पुरस्कार का लालच था या फेसबुक पर मुझे दी गई धमकी का असर था ये सवाल उठना ही जटिल था जितना ये पता लगाना कि करण जौहर की कलंक ज्यादा महान फ़िल्म है या राम गोपाल वर्मा की शोले।

इसी बीच मैना का एक और ईमेल आया है कि जल्द ही पुरस्कार समारोह दिल्ली में होने वाला है ।जगह और तारीख,,, जी बस पता चलते ही बता दूंगा और हाँ आप समारोह में आना जरुर☺️
…समाप्त कृते

दिलीप कुमार, व्यंग्यकार

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