मेरी कलम से

मेरी कलम से – बेफ़िक्र, बेबाक़, बिंदास… जज्बात, ख्यालात, अल्फ़ाज़…

जो भटका हूं मैं खुद अपने शौक से,

कोई और ज़िंदगी का रास्ता ना दिखाओ मुझे तुम

बेतरतीबी में अपनी बड़ा खुश हूं मैं,
जीने का दूसरा तौर तरीका ना सिखाओ मुझे तुम

ये बेफिक्री है मेरा अंदाज़ जीने का,
ग़म और ग़ुरबत के सायों से ना डराओ मुझे तुम

बेबाक है मौज और मिजाज़ मेरे,
रस्मो रिवाज के तिलस्म में ना उलझाओ मुझे तुम

क्या करें, खुद से जो मोहब्बत मुझे,
किसी और माशूक़ो मेहबूब से ना मिलाओ मुझे तुम

जो है मेरी रूह भी उसी का कतरा,

किसी और खुदा से ना वाकिफ कराओ मुझे तुम ।।

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