शूरवीरो की गाथा

गुमनाम नायक -“शहीद तेलंगा खड़िया”

मारे देश को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने के लिए अनगिनत भारतीयों ने अपने-अपने स्तर पर योगदान दिया,किसी ने अपने धन से तो किसी ने अपने तन से।

    अंग्रेजों से डटकर मुकाबला करने में कई वीर सपूतों ने संघर्ष किया तब जाकर मां भारती को स्वतंत्र कराया गया। कुछ क्रांतिकारियों, नेताओं को तो हम सब जानते हैं लेकिन अधिकांश अमर सपूत गुमनामी में खो गये। इन्हीं गुमनाम शहीदों में से एक थे वीर सपूत

“तेलंगा खड़िया”

  तेलंगा खड़िया का जन्म ९ फरवरी १८०६ को गुमला जिले के मुरगू गांव में हुआ था। पिता हुइया एवं माता पेतो, तेलंगा को बचपन से ही अंग्रेजों के द्वारा किए जा रहे जुल्मों की बात बताते थे इसलिए उनके बाल मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत पैदा हो गई थी।वे बचपन से ही वीर और साहसी थे।तेलंगा का शरीर मजबूत कद काठी एवं सांवले रंग का था। तेलंगा की पत्नी का नाम रतनी  तथा एक बेटा जोगिया खड़िया था। तेलंगा का मुख्य कार्य खेती करना था।

   सन् १८४९-५०ई. में भारत में अंग्रेजों के द्वारा क्षेत्र के लोगों से मनमाना कर बसूलना और जुल्म करते हुए सहना मजबूरी था क्योंकि उस समय लोगों में एकता नहीं थी और वे अंग्रेजों के बहकावे में आ जाते थे। अंग्रेजों के द्वारा किए जा रहे शोषण एवं अत्याचार को देखकर तेलंगा ने कुछ करने की ठान ली। खेती के साथ  लोगों को एकजुट करने, अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने,गदा, तलवार और तीर चलाने की कला को सिखाते हुए कई पंचायतों की स्थापना की।

   तेलंगा द्वारा किए जा रहे सकारात्मक ,संगठनात्मक कार्यों और पंचायतों की स्थापना की खबर जब अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंची तो खलवली मच गई और उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाई क्योंकि वो ऐसे ही अपने काम करता रहेगा तो लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर देगा। अंग्रेजों ने तेलंगा को गिरफ्तार करने का फैसला लिया।जब इसकी खबर तेलंगा को लगी तो वह भूमिगत हो गए और छिप कर कार्य करने लगे। एक दिन वो एक गांव में पंचायत का गठन कर रहे थे उसी समय अंग्रेजों के एक भारतीय दलाल जमींदार ने अंग्रेजों तक सूचना पहुंचा कर उन्हें गिरफ्तार करवा दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर कलकत्ता जेल भेज दिया। जहां पर उन्हें काफी दिनों तक रखा गया।जेल से रिहा होने के बाद पुनः उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया।

   २३ अप्रैल १८८० के दिन अपने नियमानुसार तेलंगा अपने लोगों को तीर, तलवार सिखाने से पहले घुटना टेक कर धरती माता और सूर्यदेव की पूजा कर रहे थे ठीक उसी समय अंग्रेजों के दलाल वोधन सिंह ने उन्हें गोली मार दी।उसी जगह उनकी मौत हो गई।तेलंगा की मौत की खबर जब लोगों को लगी तो चारों ओर सन्नाटा छा गया, लोग फूट फूट कर रोने लगे।

  तेलंगा के वंशज आज भी मुरगू गांव से कुछ दूरी पर घाघरा गांव में रहते हैं। खड़िया जाति के लोग उन्हें ईश्वर के रूप में पूजते हैं।

भारत माता को अपना जीवन अर्पण करने वाले इस वीर सपूत से देशवासी अंजान है। सरकार ओर सामाजिक संगठनों ने भी इन्हें भुला दिया।तेलंगा खड़िया की स्मृति में आज भी तेलंगा समाज में तेलंगा संबत की प्रथा जारी है। इस वीर सपूत की समाधि चंदाली में बनाईं गई थी लेकिन उचित देखभाल न होने के कारण वह भी पूरी तरह आज उपेक्षित है।

         तेलंगा खड़िया मां भारती के एक सच्चे वीर क्रांतिकारी सपूत थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ उनके द्वारा किए जा रहे शोषण तथा अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपने प्राणों का बलिदान दिया था।

   कैफे सोशल इस वीर सपूत को शत् शत् नमन करता है।

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