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एक गीत ऐसा जिसे सुनकर प्रधानमंत्री भी रो पड़े थे!

देश का शायद ही कोई ऐसा नागरिक होगा जिसने इस गीत को न गाया हो, जिसे यह गीत सुनकर आँखों में आँसू न आए हों। हम बात कर रहे हैं उस गीत की जो हर भारतवासी दिलो-दिमाग पर छा गया था और आज भी उसकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई है।

गीतकार प्रदीप

वह गीत हैः

ऐ मेरे वतन के लोगो
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सबका
लहरा लो तिरंगा प्यारा

आजादी के पहले और बाद में बहुत से देशभक्ति गीत लिखे गए लेकिन इस गीत में हमारे देश और वीर सैनिकों की शौर्यगाथा का जिस प्रकार बखान किया गया वह अभूतपूर्व था।

यह गीत भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों के लिए महान् गीतकार कवि प्रदीप ने लिखा था। इस गीत का संगीत रचा रामचंद्र जी ने और गाया था स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी ने।

यह गीत २७ जनवरी १९६३ के दिन दिल्ली स्थित राष्ट्रीय स्टेडियम में पहली बार गाया गया था। इस गीत ने देशवासियों को बहुत भावुक कर दिया था उन्हें अहसास हुआ कि हमारे जवान सीमा पर तैनात होकर कितना बड़ा त्याग और बलिदान करते हैं तभी हम अपने घरों में सुरक्षित रह पाते हैं, तीज त्योहार और उत्सव मना पाते हैं।

गीत को सुनकर प्रधानमंत्री सहित सभी रोने लगे थे।

१९६२ में भारत चीन युद्ध के समय सेना की मदद के लिए पूरे देश में एक होड़ लगी थी। इसी कड़ी में हमारे फिल्मी जगत के लोग भी आगे आए। मेहबूब खान ने एक रेंजर फंड आयोजित किया, जिससे पैसे जमा कर सकें। 

यह आयोजन दिल्ली में हुआ था और इसमें राष्ट्रपति डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू, दिलीप कुमार, देवानंद सहित और भी बहुत से गणमान्य लोग उपस्थित थे। आयोजन शुरू हुआ। कलाकार आए और गीत गाने लगे। मोहम्मद रफी ने अपनी आजादी को गाया और समाँ बाँध दिया। इसके बाद लता ने मंच पर आईं और उन्होंने ऐ मेरे वतन के लोगो गाना शुरू किया तो पूरे स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया। गाना खत्म होने के बाद जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना की आवाज से पूरा स्टेडियम गूंजने लगा। सभी लोग अगल-बगल, इधर- उधर देख कर उस आवाज को ढूंढने लगे जो स्टेडियम में चारों ओर से आ रही थी। दरअसल संगीतकार रामचंद्र जी चाहते थे कि जब कोरस गाया जाए तब आवाज गूंजे। इसलिए उन्होंने अपने कोरस गायकों को पर्दे के पीछे छुपा दिया था। ताकि ऐसा लगे कि पूरा हिंदुस्तान ही लता जी के साथ गा रहा है। गाना खत्म होने के बाद महबूब खान लता जी के पास आकर बोले कि उन्हें पंडित जी बुला रहे हैं। लता जी नेहरू जी के पास पहुँची तो उन्होंने देखा कि पंडित नेहरू आँखों में आँसू लिए खड़े थे। उन्होंने भावुक होते हुए कहा लता तुमने आज मुझे रुला ही दिया।

गीत की रचना की कहानी

संगीतकार रामचंद्र जी ने लोकप्रिय व प्रसिद्ध कवि प्रदीप से कहा कि वह एक गीत भारतीय सेना के लिए लिखें जिसमें वीर सैनिकों के शौर्य और उनके बलिदान का वर्णन हो। प्रदीपजी ने पहले तो सोचा कि फोकट का काम है, शायद पैसे तो मिलेंगे नहीं। फिर कुछ सोच कर हाँ कर दी। प्रदीपजी एक दिन ऐसे ही माहिम समुद्र तट पर टहल रहे थे कि अचानक उनके दिमाग में एक पंकि आई और उन्होंने तुरंत ही गीत का पूरा अंतरा तैयार कर लिया। चलते हुए ही एक राहगीर से पैन मांगा और सिगरेट का डिब्बा फाड़ कर उस पर लिखने लगे। घर पहुँचते-पहुँचते पूरा गाना ही लिख दिया। उन्होंने कुल 100 पैरे लिखे थे लेकिन रामचंद्र जी ने इस गीत का कुछ हिस्सा ही लिया था। अब इस गीत को किस से गवाया जाए, यह चुनौती सामने आई। 

लता मंगेशकरजी उस समय तक भारत की सबसे लोकप्रिय व प्रसिद्ध गायिका बन चुकी थीं। लेकिन रामचंद्र जी से उनकी बातचीत बंद थी, ऐसे में रामचंद्र जी ने आशा भोंसलेजी से संपर्क किया और रिहर्सल भी शुरू कर दी। लेकिन कवि प्रदीपजी चाहते थे कि यह गाना लता जी ही गाएँ और तब इसके लिए लता जी से सम्पर्क किया गया। श्री रामचंद्र जी ने कहा कि लता और आशा दोनों ही साथ में गाएँ। लेकिन आयोजन के ठीक एक दिन पहले आशाजी ने रामचंद्र जी को फोन करके कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए वह दिल्ली नहीं जा पाएँगी। आखिर में लता जी ने ही यह गीत गाया। इस तरह से कवि प्रदीपजी, संगीतकार रामचंद्र जी और गायिका लता मंगेशकरजी की तिकड़ी ने एक नया इतिहास रच इस गीत के माध्यम से हर भारतीय के मन में देश और सेना के प्रति सम्मान और गर्व का भाव भर दिया।

जय हिन्द,   जय हिन्द,   जय हिन्द की सेना

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