हिंदी प्रतियोगिता

आशा की किरण

ये बस अँधियारी रात है
पूरा जीवन ही त्रास नहीं
सुबह हो सूरज न निकले
ऐसी तो कोई बात नहीं

छुपे हुये है बीज खुशी के
गहरे मन की धरती में
आशा पले होंगे अंकुरित
फूल खिलेंगे उपवन में
मन कभी डर जाता है
रितु कर दे न घात कहीं
सुबह हो सूरज न निकले
ऐसी तो कोई बात नहीं

रोकर क्यूँ याद करें उनको
खुशियां ही बाँटी है जिसने
आँसू हमारी आँखों के
अपनी अँजुरी भरे उसने
बात अलग ठोकर लगने पर
सँभाले अब वो हाथ नहीं
सुबह हो सूरज न निकले
ऐसी तो कोई बात नहीं

ज्यों धरा घूमती धुरी पर
समय पर बदल देती मौसम
ये दौर स्वतः ही बदलेगा
आज भले चाँदनी है मध्दिम
ये कल इतिहास कहलायेगें
जो होंगे अपने साथ नहीं
सुबह हो सूरज न निकले
ऐसी तो कोई बात नहीं

एक आँख रोती है फिर भी
हँसना पड़ता है दूजे से
खिल रहे जो नित नये फूल
देना है सम्बल सूझबूझ से
सींच जड़ो को आशाओं से
देना अश्रु बरसात नहीं
सुबह हो सूरज न निकले
ऐसी तो कोई बात नहीं

माला अज्ञात….

 

 

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