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राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस विशेष- हमारे डॉक्टर

वैसे तो चिकित्सक खुद में ही मानवता के प्रतीक होते हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी जनसेवा में लगे रहते हैं और मानव पीड़ा का उपचार कर उन्हें वेदना से निजात दिलाते हैं। 

डॉ. विधानचंद्र राय 

ऐसे ही एक महान उपचारक जिन्होंने मानवतावादी सेवक के रूप में खुद को स्थापित किया। डॉक्टर विधान चंद्र राय जिनका जीवनकाल 01 जुलाई 1882 से 01जुलाई1962 रहा। इन्होंने अपने जीवन में लाखों मरीजों का इलाज़ किया।

डॉक्टर विधानचंद्र राय ने चिकित्सा क्षेत्र में रहकर पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया। ये गाँधी जी के निजी चिकित्सक भी रहे। साथ ही स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और मुख्यमंत्री मंत्री भी रहे। इसके बावजूद भी चिकित्सा क्षेत्र में सहयोग देकर मानव पीड़ा हरते रहे। संयोग से से 1 जुलाई डॉक्टर विधान चंद्र राय की जन्म तिथि भी है और पुण्यतिथि भी। इसलिए प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई को डॉक्टर विधान चंद्र राय की स्मृति में राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस मनाया जाता है।

डॉ. द्वारकानाथ शांताराम कोटणीस

ऐसे ही पीड़ित मानवता सेवा की मिसाल बने और मानव सेवा बिना भेदभाव के करते रहने का विचार देने वाले डॉ. द्वारकानाथ शांताराम कोटणीस जिनका जीवनकाल 10 अक्तूबर 1910 से 09 दिसंबर 1942 रहा, ने एक भारतीय चिकित्सक होने के बावजूद भी सन 1938 में चीन- जापान युद्ध के समय जिन्हें पाँच डक्टरों की टीम के साथ चीन भेजा गया था वहाँ डॉक्टर कोटणीस ने निःस्वार्थ चीनी सैनिकों की रात-दिन सेवा की, इन्होंने पाँच वर्ष तक वहाँ अपनी सेवाएँ दीं । कभी कभी तो डॉक्टर कोटणीस ने 72 घण्टे तक युद्ध में घायल सैनिकों के ऑपरेशन कर उनकी जान बचाई।  मानव सेवा को सर्वोपरि रखते हुए डॉक्टर कोटणीस विश्वयुद्ध के सिपाहियों का इलाज करते-करते प्राण त्याग देने वाले निःस्वार्थ महान सेवक थे।

रेडक्रॉस सोसाइटी

मानवसेवा के लिए चिकित्सकीय क्षेत्र में अग्रणी संस्था रेडक्रॉस से कौन परिचित नहीं होगा। मानव सेवा कार्यों के लिए जिसकी स्थापना  जीन हैनरी ड्यूनेन्ट ने सन् 1919 में की थी। यह एक गैर सरकारी संगठन है। भारतवर्ष में 1920 में संसदीय अधिनियम के तहत रेडक्रॉस सोसाइटी का गठन हुआ। तब से इसके स्वयंसेवक विभिन्न प्रकार की आपदाओं में निरन्तर निःस्वार्थ भाव से अपनी सेवा दे रहे हैं। मानव सेवा के कार्यों के लिए ही 1901 में हैनरी ड्यूनेन्ट को पहला नोबल पुरस्कार मिला । इस गैर सरकारी संगठन का मुख्य उद्देश्य आपदाओं से त्रस्त रोगियों, घायलों और युद्ध कालीन बंदियों और असहायों की देखरेख कर मानवीय पीड़ा को कम करना है। आज विश्व के अधिकांश ब्लड बैंकों का संचालन रेडक्रॉस एवं सहयोगी संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। रेडक्रॉस द्वारा चलाये गए रक्तदान जागरूकता अभियान के कारण ही आज थैलीसीमिया, कैंसर, एनीमिया जैसी अनेक बीमारियों से हज़ारों लोगों की जान बच रही है। इसके साथ-साथ रेडक्रॉस युद्ध में घायल सैनिकों की चिकित्सा तथा प्राकृतिक आपदाओं के बीच फँसे लोगों की मदद में निरंतर डँटा रहता है जो कि अपने आप में एक अनोखी मिसाल है।

डॉ. ऐश्वर्या कांडपाल नैनीताल 

वर्तमान में कोरोनाकल महामारी में गरीब बेटियों के लिए मानवता का पर्याय बनी डॉ. ऐश्वर्या कांडपाल। डॉक्टर ऐश्वर्या कांडपाल नैनीताल जिले में 14 वर्षों से मरीजों का इलाज़ कर रही हैं। डॉक्टर ऐश्वर्या कांडपाल ने कोरोनाकल में मानवता का प्रमाण देते हुए जहाँ बीमार लोगों और असहाय लोगों का उपचार किया । वहीं गरीब परिवार की चार बेटियों को अपनी बेटी मानते हुए उनकी 12वीं तक की शिक्षा का जिम्मा उठाकर समाज में मिसाल कायम की।

इसी प्रकार से देश के अनेक डॉक्टर अपना दर्द भुलाकर, घर परिवार से दूर रहकर समाज में अपनी सेवाएँ देते रहे।

चिकित्सक सेवाएँ युद्ध के समय भी बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। द्वंद के समय सिपाहियों का घायल होना स्वाभाविक है। मुख्यतः इसी को नजरअंदाज रखते हुए आर्मी मेडिकल कोर की स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल मेडिकल सर्विसेज के रूप में की गई थी। बाद में मद्रास मेडिकल सर्विसेज, बॉम्बे मेडिकल सर्विसेज में गठन किया गया। ये तीनों मेडिकल सर्विसेज अप्रैल 1886 में संयुक्त रूप से इंडियन मेडिकल सर्विसेज में परिवर्तित हो गईं। 

आजादी के उपरांत 26 जनवरी 1950 को आईएमसी के नाम को परिवर्तित कर सेना चिकित्सा कोर रखा गया। सेना चिकित्सा कोर का वैसे तो विशेष कार्य सेना के कर्मचारियों और सिपाहियों को चिकित्सीय सेवाएँ प्रदान करना उनका उपचार करना था, परंतु किसी विशेष आपदा या महामारी फैलने पर ये देश के आंतरिक मामलों और आम मानव जाति को अपनी चिकित्सीय सेवाएँ बखूबी देते हैं। 

साथ ही बहादुरी के मामले में भी सेना चिकित्सा कोर सम्मान और पुरस्कारों में किसी से कम नहीं। इस कोर के नाम अब तक 3 महावीर चक्र, 3 कीर्तिचक्र, 20 वीर चक्र, 5 शौर्य चक्र, 5 उत्तम युद्ध सेवा पदक, 3 पद्मभूषण, 4 पद्मश्री शामिल हैं। 

सेना चिकित्सा कोर का मानव सेवा चिकित्सीय कार्य के साथ-साथ बहादुरी में भी अपनी सेवाएँ देना अद्भुत और अतुलनीय कार्य है, जिसके लिए हमारे भारतवर्ष को इन पर गर्व है।

Chinese Ambassador to India Sun Weidong hailed Dr Dwarkanath Kotnis for providing medical assistance in China and saving many lives during the second Sino-Japanese War in 1938. Speaking at a commemorative event at the 110th birth anniversary of Dr Kotnis, Sun said that Dr Kotnis was an outstanding representative of India and a monument to China-India friendship.

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