पापड़ की लोई बनाने का एक यंत्र…श्रीदास डागा
चित्र देख कर शायद आप इस यंत्र को कोई संगीत का वाद्य यंत्र समझेंगे।
जबकि ऐसा है नहीं। यह अपने आप में अनोखा यंत्र है जो कि महिलाओं की सुख सुविधा का ध्यान रखने वाले और स्त्री शिक्षा के प्रवर्तक बीकानेर के एक प्रसिद्ध माहेश्वरी परिवार की धरोहर है। बीकानेर के वैष्णव परिवारों में शुचिता का बहुत ध्यान रखा जाता था। समृद्ध परिवार की गृहिणियाँ भी घर का कामकाज स्वयं करती थी. ही सहायता में गुरियानियों (ब्राह्मणियाँ) सहयोग करती थी, जिनके घर भी बाणियों से ही चलते थे।
अब आइए बात करते हैं इस यंत्र की यह यंत्र पापड़ की लोई या लोए/या पेड़ काटने का यंत्र है।
श्रीदास डागा
इस यंत्र के 2 भाग है। नीचे के लकड़ी के चौखटे में बने खानों में पापड़ के बेलनाकार टुकड़े सजा दिये जाते थे। दूसरी ढक्कन नुमा चौखट में समानांतर दूरी में मजबूत तार लगे हैं। इस चौखटे को ढक्कन की तरह रख कर दबाया जाता । जिससे पापड़ के एक जैसे लोए कट जाते। अब कुशल गृहणियाँ यह निश्चित करती थीं कि पापड़ पूरे गोल और एक नाप के हो।
घर की मुखिया सूरज की रोशनी में पापड़ देख कर जांच करती थी की पापड़ बिचदा यानी बीच से पतला और किनारे से मोटा ना हों। लड़कियों को सिखाते समय दादी माँ या बुआ दादी बैलन का भी प्रयोग कर लेती थीं।
विगत 20-25 वर्षों में घर मे पापड़ बनाने की परंपरा लुप्त होती जा रही है। यह यंत्र एक संग्रहालय की वस्तु बन गया है। एक जमाना था जब विवाहों में वृहद भोज कई दिन चलते थे विवाह के लिए पापड़ बड़ी बनाना एक वृहद कार्य होता था। जब कई कई मन पापड़ बनते थे तब बीकानेर में रिश्तेदारों के घर पापड़ बेलने भेजे जाते थे जब पापड़ के लोए भेजे जाते तो खाने के लिए भी भेजे जाते 500 लोओ पर 50 लीए खाने के लिए भेजने का अलिखित नियम था बड़ी सुंदर सामाजिक व्यवस्था थी।
यह यंत्र हमारे संबंधी ने बीकानेर से लाकर अपने गोदाम में रखा हुआ है।