Generalपरमवीर चक्र

परमवीर मेजर होशियार सिंह

देश के हर वीर सिपाही में कुछ ऐसी ही पंक्तियों से सजा हुआ जा रहता है, इसलिए वो शिद्दत और जांबाजी से दुश्मन के छक्के छुड़ाने मे सफल होता है और वतन की खातिर अपने लहू से भी खेल जाता है, तब कहीं जाकर मेजर होशियार सिंह जैसे सितारे चमक कर परमवीर चक्र के हकदार हो पाते हैं।

इच्छा बलवती होकर संवेदनाएँ मर जाती है

तब अपनो को गैर बनाकर लौलने की सुनामी आ जाती है।

कुछ ऐसी ही घटना को पाकिस्तानियों ने अंजाम दिया पूर्वी पाकिस्तानियों के साथ।

जो इंसानियत को तार तार करता हुआ अजीब दर्दनाक था जब खुद पाकिस्तान फौजें पूर्वी पाकिस्तान को गोलियों से भूनने लगीं। बमबारी से निहत्थे नागरिकों को तथा बांग्ला भाषी अर्ध सैनिक बलों को कुचला जाने लगा और हालत यह हो गई कि वहाँ से बांग्ला भाषी लोग भाग कर भारत में शरण पाने लगे।

देखते-देखते लाखों शरणार्थी भारत की सीमा में घुस आए। उनके भोजन और आवास की जिम्मेदारी भारत पर आ गई। भारत ने जब पाकिस्तान से इस बारे में बात की तो उसने इसे अपना आंतरिक मामला बताते हुए भारत को इससे अलग रहने का ज्ञान दे दिया साथ ही शरणार्थियों की समस्या के बारे में पाकिस्तान ने हाथ झाड़ लिए।

शान तेरी कभी कम न हो ऐ वतन मेरे वतना।

तेरे आशिक दुआ कर चले, हुस्न तेरा दमकता रहे।

सर हमारा रहे न रहे, तेरा माथा चमकता रहे। 

तेरा महके हमेशा चमन, ऐ वतन मेरे वतन।

पाकिस्तान की इस नजरअंदाजी को देख भारत के पास सिर्फ एक चारा था कि वह अपने सैन्य बल का प्रयोग करे, जिससे पूर्वी पाकिस्तानी नागरिकों का भारत की ओर पलायन रुके। इस मजबूरी में भारत को उस सैनिक कार्रवाई में उतरना पड़ा जो अंतत भारत-पाक युद्ध में बदल गई।

परमवीर मेजर होशियार सिंह का शौर्य-

शोले भड़क गए थे आँखों में देख वर करतूत दुश्मन की।।

शुरू हो गई गाथा यहीं से होशियार सिंह के परमवीर बनने की।

वैसे तो स्वतन्त्र भारत ने अब तक पाँच युद्ध लड़े है जिनमें से धार में उसका सामना पाकिस्तान से हुआ था। यह युद्ध शुरु भले ही पाकिस्तान ने किया हो, उनका समापन भारत में किया और विजय का सेहरा उसी के सिर बंधा इन चार युद्धों में एक युद्ध जो 1971 में लड़ा गया वह महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है क्योंकि इस लड़ाई को भारत ने कई मोर्थो पर लड़ा जिसमें एक मोर्चे पर भारत के परमवीर मेजर होशियार सिंह ने भी कमान संभाली पाकिस्तान को पराजित करके एक ऐसे नए राष्ट्र का उदय किया, जो पाकिस्तान का हिस्सा था और वर्षों से पश्चिम पाकिस्तान की फौजी सत्ता के अन्याय और बर्बरता को रह रहा था। वहीं हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान, 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश बना।

इस युद्ध में मेजर होशियार सिंह का पराक्रम और जोश अतुलनीय ही था।

हुंकार भरी भी भारत के शेर ने 

संभाल कर हर मोर्चे को धीर और विवेक से।

अब इस युद्ध के मोर्चे की बात करें शकरगढ़ पठार भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए एक महत्त्वपूर्ण ठिकाना था। भारत अगर इस पर कब्जा जमा लेता है, तो वह एक और जम्मू कश्मीर तथा उत्तरी पंजाब को सुरक्षित रख सकता है. दूसरी ओर पाकिस्तान के ठीक मर्मस्थल पर प्रहार कर सकता है। इसी तरह अगर पाकिस्तान इस पर कब्जा रखे तो वह भारत के भीतर घुस सकता है। जाहिर है कि यह बेहद मौके का ठिकाना था जिस पर दोनों ओर के सैनिकों की नजर थी।

शकरगढ़ पठार का 900 किलोमीटर का वह संवदेनशील क्षेत्र पूरी तरह से प्राकृतिक बाधाओं से भरा हुआ था जिस पर दुश्मन ने बहुत सी. टैंकभेदी बारूदी सुरंगें बिछाई हुई थीं। 14 दिसम्बर 1971 को 3 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग ऑफिसर को सुपवाल खाई पर ब्रिगेड का हमला करने के आदेश दिए गए। इस 3 ग्रेनेडियर्स को जरवाल तथा लोहाल गाँवों पर कब्जा करना था। 15 दिसम्बर 1971 को दो कम्पनियों, जिनमें से एक का नेतृत्व मेजर होशियार सिंह संभाल रहे थे हमले का पहला दौर लेकर आगे बढ़ीं। दोनों कम्पनियों ने अपनी विजय दुश्मन की भारी बारी बनवारी तथा मशीनगन की बौछार के बावजूद प्राप्त कर ली। इन कम्पनियों ने दुश्मन के 20 जवानों को युद्धबंदी बनाया और भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद अपने कब्जे में ले लिया उन हथियारों में उन्हें मीडियम मशीनगन तथा रॉकेट लांचर्स मिले।

अगले दिन 16 दिसम्बर, 1971 को 3 ग्रेनेडियर्स को घमासान युद्ध का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान जवाबी हमला करके अपना गंवाया हुआ क्षेत्र वापस पाने के लिए जूझ रहा था। उसके इस हमले में उसकी ओर से गोलीबारी तथा बमबारी में कोई कमी नहीं छूट रही थी। 3 ग्रेनेडियर्स का भी मनोबल ऊँचा था। वह पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे जवाबी हमलों को नाकाम किए जा रहे थे। 17 दिसम्बर, 1971 को सूरज की पहली किरण के पहले ही दुश्मन की एक बटालियन ने म और गोलीबारी से मेजर होशियार सिंह की कम्पनी पर फिर हमला किया। मैजर होशियार सिंह ने इस हमले का जवाब एकदम निडर होकार दिया और वह अपने जवानों को पूरे जोश से जूझने के लिए प्रोत्साहित करते रहे, उनका हौसला बढ़ाते रहे। हालांकि वह घायल हो गए थे, फिर भी वह एक खाई से दूसरी खाई तक जाने और अपने जवानों का हौसला बढ़ाने रहे। उन्होंने खुद भी एक मीडियम मशीनगन उस समय थाम ली. जब उसका गनर मारा गया। इससे उनकी कम्पनी का जोश दुगना हुआ और वह ज्यादा तेजी से दुश्मन पर टूट पड़े।

उस दिन दुश्मन के 89 जवान मारे गए, जिनमें उनका कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद अकरम राजा भी शामिल था। 35 फ्रंटियर फोर्स राइफल्स का यह ऑफिसर अपने तीन और अधिकारियों के साथ उसी मैदान में मारा गया था।

सारा दिन दुश्मन की बटालियन की फौज के बचे-खुचे सैनिक मेजर होशियार सिंह की फौज से जूझते रहे। शाम 6 बजे आदेश मिले कि 2 घण्टे बाद युद्ध विराम हो जाएगा। दोनों बटालियन इन 2 घण्टों में ज्यादा से ज्यादा वार करके दुश्मन को परे कर देना चाहते थे। जब बुद्ध विराम का समय आया उस समय तक मेजर होशियार सिंह की 3 ग्रेनेडियर्स का एक अधिकारी तथा 32 फौजी मारे जा चुके थे। इसके अलावा 3 अधिकारी 4 जूनियर कमीशंड अधिकारी तथा 86 जवान घायल थे। तभी मेजर होशियार सिंह की बटालियन को युद्ध विराम के बाद जीत का सेहरा पहनाया गया। 17 दिसम्बर 1871 के युद्ध विराम के बाद बांग्लादेश के उदय की वार्ता शुरू हुई। मेजर होशियार सिंह को परमवीर चक्र प्रदान किया गया।

“ऐसे ही कोई परमवीर चक्र का हकदार नहीं हो जाता। 

कहावत है भूत के पाँच पालने में दिख जाते हैं”

बचपन से कुछ ऐसे ही अलबेले हाव भाव के वे हमारे परमवार संवर सम्मानित ‘मैजर होशियार सिंह जिनका संक्षिप्त जीवन परिचय इस प्रकार है-

होशियार सिंह का जन्म 5 मई, 1936 को सोनीपत हरियाणा के एक जीव सिखाना में हुआ था। उनकी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा स्थानीय हाई स्कूल में तथा उसके बाद जाट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में हुई। वह एकमेचावी छात्र उन्होंने मेट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी। पढ़ाई के साथ-साथ वह खेल कूद में भी आगे रहते थे। होशियार सिंह पहले राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के लिए बॉलीबाल की पंजाब कंबाइंड टीम के लिए चुने गए और वह टीम फिर राष्ट्रीय टीम चुन ली गई जिसके कैप्टन होशियार सिंह थे। इस टीम का एक मैच जाट रेजिमेंटल सेंटर के एक उच्च अधिकारी ने देखा और होशियार सिंह उनकी नजरों में आ गया। इस तरह होशियार सिंह के फौज में आने की भूमिका बनी। 1957 में उन्होंने 2 जाट रेजिमेंट में प्रवेश लिया बाद में वह 3 ग्रेनेडियर्स में कमीशन लेकर अफसर बन गए। 1971 के युद्ध के पहले होशियार सिंह ने 1955 में भी पाकिस्तान के खिलाफ लड़ते हुए अपना करिश्मा दिखाया था। बीकानेर सेक्टर में अपने क्षेत्र में आक्रमण पेट्रोलिंग करते हुए उन्होंने ऐसी महत्वपूर्ण सूचना लाकर सौंपी थी, जिसके कारण बटालियन की फतह आसानी से हो गई थी और इसके लिए उनका उल्लेख मैसेड इस डिस्पैचेज में हुआ था। फिर, 1971 का युद्ध तो उनके लिए निर्णायक बुद्ध था जिसमें उन्हें देश का सबसे बड़ा सम्मान प्राप्त हुआ।

अब आन पर आती, तो खेल जाते हैं दुश्मन से।

वतन की खातिर वीर, अंग कर जाते हैं दुश्मन से। 

आँच नहीं देते कभी आबरू पे वतन की। 

दिखाकर जज्बा परमवीर का फतह से दामन भर लेते हैं।

मेजर होशियार सिंह जी के इसी जज्बे को सलाम जिन्होंने वतन की आप पे आँच नहीं आने दी. फतह के आँचल से दुश्मन को शिकस्त देकर देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया और परमवीर चक्र के हकदार बने मी भारती के इस शेरदिल शहीद सपूत को कैफे सोशल की तरफ से कोटि कोटि नमन।

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