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गुमनाम गणितज्ञ : विज्ञानी बाबू वशिष्ठ नारायण सिंह

14 नवंबर विज्ञानी बाबू की पुण्यतिथि पर विशेष
वशिष्ठ नारायण सिंहः जिन्हें भारतवासियों ने भुला दिया – प्रवीण कुमार जैन (कंपनी सचिव)

बिहार के भोजपुर जिले के आरा के पास बसंतपुर गाँव है, इस गाँव के आसपास वाले भी नहीं जानते हैं कि यह गाँव कहाँ पर है। पर जैसे ही आप कहेंगे कि गणित वाले ‘वशिष्ठ बाबू का गाँव’ कहाँ हैं? तो लोग सरलता से आपको बसंतपुर का पता बता देंगे।

हम बात कर हैं वशिष्ठ नारायण सिंह की, जिनका जन्म वर्ष 1942 में 2 अप्रैल को श्रीमान् लाल बहादुर सिंह और श्रीमती लहसो देवी के घर हुआ था। माता पिता ने उनका नाम रखा गया था वशिष्ठ नारायण सिंह और आगे चलकर इस बालक ने यथा नाम तथा गुण को उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ भी किया।

उनके पिता एक निर्धन परिवार के मुखिया थे और पुलिस विभाग में बहुत कम वेतन पर नौकरी करते थे इसलिए उनके घर में अभावों व समस्याओं का डेरा था।

पर वशिष्ठ नारायण सिंह पढ़ने में बहुत तेज़ थे पर जीवन अभाव भी उनकी प्रतिभा व बुद्धिमानी को दबा नहीं सके। उस जमाने में उनके क्षेत्र में नेतरहाट विद्यालय सबसे प्रसिद्ध था जिसमें प्रवेश पाना वैसे तो बहुत कठिन था ही पर एक गरीब परिवार के बच्चे के लिए तो असंभव ही था पर कहते न जहाँ चाह होती है वहाँ राह बन ही जाती है तो उन्होंने उस नेतरहाट विद्यालय में प्रवेश पा ही लिया।

नेतरहाट आवासीय विद्यालय में प्रवेश

तत्कालीन अविभाजित बिहार के राँची शहर से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर नेतरहाट आवासीय विद्यालय है, यह विद्यालय बिहार का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय माना जाता है। अंग्रेजी माध्यम की अंधी दौड़ के वर्तमान समय में भी यह विद्यालय हिन्दी माध्यम का है और अपनी श्रेष्ठता बनाए हुए है। यह विद्यालय इतना लोकप्रिय है कि इसे देखने पर्यटक भारी संख्या में आते हैं। बोर्ड की परीक्षाओं में शीर्ष 10 में यहाँ के विद्यार्थी ही आते हैं। वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे विद्यार्थियों ने इस विद्यालय की प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए थे। उन्होंने इसी विद्यालय से पढ़कर मैट्रिक और इंटर की परीक्षाओं में बिहार राज्य में टॉप किया था। 

नेतरहाट विद्यालय के बाद वशिष्ठ नारायण सिंह ने पटना विज्ञान महाविद्यालय से बीएससी की पढ़ाई की और गणित में ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की।

प्रोफेसर जॉन कैली से भेंट

इसी महाविद्यालय में उन्हें प्रोफेसर जॉन कैली से मिलने का अवसर मिला और उनके जीवन की दशा बदल गई।  कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्केले में गणित के प्रोफेसर जॉन कैली गणित अधिवेशन में भाग लेने पटना आए थे। उन्होंने गणित के बड़े उलझे 5 प्रश्न सभा में पूछे। सभा में उपस्थित कोई भी व्यक्ति एक भी प्रश्न को हल नहीं कर पाया जबकि वशिष्ठ नारायण सिंह ने सभी पाँचों प्रश्न अलग-2 ढंग से हल करके सबको चौंका दिया। प्रोफेसर कैली इस बात से उनसे बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने आगे शोध व अध्ययन के लिए सिंह को अमेरिका बुला लिया। उनके मार्गदर्शन में ही वशिष्ठ नारायण सिंह ने वर्ष 1969 में कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्केले में पीएचडी पूरी की थी, आज से लगभग 52 वर्ष पहले। वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बने। “चक्रीय सदृश समष्टि सिद्धान्त” पर किये गए उनके शोधकार्य ने उन्हें भारत और विश्व में प्रसिद्ध कर दिया।

डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह अमरीकी अंतरिक्ष संगठन नासा से भी जुड़े और उन्होंने वहाँ नौकरी भी की। 1969 में ही नासा का अपोलो मिशन भी प्रमोचित हुआ था, इसी मिशन से मानव ने सबसे पहले चंद्रमा पर पैर रखा। इस मिशन के समय भी वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और उस समय की एक कथा मिलती है कि अपोलो मिशन के दौरान सभी कंप्यूटर बंद हो गए थे, तब वशिष्ठ नारायण सिंह ने एक गणना की, जब कंप्यूटर चालू हुए तो वशिष्ठ और कंप्यूटरों की गणनाएँ समान पायी गयीं।

1973 में विवाह

इस घटना के बाद न केवल भारत में बल्कि विश्व में उनके नाम चर्चा होने लगी थी। विवाह के लिए आसपास से रिश्ते आने लगे तब न चाहते हुए भी 1973 में वशिष्ठ नारायण विवाह वंदना रानी सिंह के साथ बंधन में बँध गए। उनके अध्ययन को लेकर एक रोमांचक घटना यह भी है कि जिस दिन उनका विवाह था उस दिन भी पढ़ाई के कारण उनकी बरात लगने में देर हो गई थी।  ब्याह के महीने भर बाद वे भैया भाभी को लेकर अमेरिका चले आए।

स्वदेश वापसी

अमेरिका में इनकी पत्नी को इनकी कुछ हरकतें अजीब सी लगीं। कहा जाता है कि एक बार उनकी पत्नी ने उन्हें कुछ दवा लेते देख लिया और तब से ही परिवार को वशिष्ठ नारायण जी की मानसिक अस्वस्थता का पता लग गया था। यहाँ तक तो सबकुछ ठीक चल रहा था। पर उनका मन अमेरिका में नहीं लग रहा था और वे वर्ष 1974 में भारत लौट आए और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में सहयोजित प्राध्यापक रूप में कार्य करने लगे। केवल 8 महीने बाद ही वहाँ से नौकरी छोड़कर टाटा आधारभूत शोध संस्थान (टीआईएफआर) से जुड़े उसके बाद कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यिकीय संस्थान में कार्य किया।

इस सबके बीच इनकी मानसिक स्थिति सुधरने के बदले बिगड़ती जा रही थी। भारत आने के बाद 2 वर्ष भी नहीं बीते थे कि वर्ष 1976 में उनकी असामान्य दिनचर्या व व्यवहार के चलते उनकी पत्नी ने इनको तलाक दे दिया। विवाह विच्छेद वशिष्ठ जी झेल नहीं पाए उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया और वे ज़्यादा हिंसक होने लगे। यहीं से उनका जीवन पूरी तरह तहस-नहस होना शुरू हो गया।

परिजनों ने परेशान होकर इन्हें कांके के मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कर दिया जहाँ पता चला कि वे एक गंभीर मानसिक रोग से ग्रसित हैं जिसे मनोविदलता (शिजोफ्रेनिया) कहा जाता है।

इसके बाद से इनका जीवन बहुत ही दुखद स्थिति में चला गया। 

गणित की दुनिया में रहने वाले वशिष्ठ अब किसी और दुनिया में ही थे। मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में इनका इलाज हुआ। धीरे-धीरे हालत में सुधार भी होने लगा।

कुछ साल बाद पिताजी का देहांत हो गया। वशिष्ठ अंतिम संस्कार के लिए घर आए और पागलखाने वापस लौटने से मना कर दिया। हालत में सुधार संतोषजनक था तो अनुमति भी मिल गई। बड़े भाई पुणे की सैनिक छाबनी में कार्यरत थे। वशिष्ठ नारायण अपने भाई के साथ रहने पुणे चले गए।

उनको पुनः अगस्त 1989 को राँची में इलाज कराकर उनके भाई उन्हें बैंगलुरू ले जा रहे थे कि रास्ते में ही खंडवा स्टेशन पर वशिष्ठ जी उतर गए और भीड़ में कहीं खो गए। खूब ढूंढा गया। कोई पता न चला। 5 साल बाद कूड़े के ढेर के पास छपरा में मिले। तब से परिवार वालों ने उन्हें अपने पास ही रखा, नज़र से दूर नहीं जाने दिया लेकिन एक लंबे अवधि तक किसी भी सरकार ने इनकी सुध नहीं ली। 

स्थानीय समाचार-पत्रों की रिपोर्टिंग और सरकार ने ली सुध

स्थानीय समाचार-पत्रों ने इस बात पर काफी रिपोर्टिंग और सरकार को वशिष्ठ नारायण सिंह जी की मदद करने के लिए विवश कर दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने उनकी सुध ली। उन्हें राष्ट्रीय मानसिक जाँच एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान बैंगलुरू इलाज के लिए भेजा गया। जहाँ मार्च 1993 से जून 1997 तक इलाज चला। इसके बाद से वे गाँव में ही रह रहे थे।

इसके बाद तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने इस बीच उनकी सुध ली थी। स्थिति ठीक नहीं होने पर उन्हें 4 सितम्बर 2002 को मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया। करीब एक साल दो महीने उनका इलाज चला। स्वास्थ्य में लाभ देखते हुए उन्हें यहाँ से छुट्टी दे दी गई थी।

तब से वे अपने गाँव बसंतपुर में उपेक्षित जीवन व्यतीत कर रहे थे। 2019 में आरा में उनकी आंखों में मोतियाबिन्द का सफल ऑपरेशन हुआ था। अखबारों में उनकी अस्वस्थता, उपेक्षित जीवन  गरीबी के समाचार छपे तो कई संस्थाओं ने डॉ वशिष्ठ को गोद लेने की पेशकश की थी। लेकिन उनकी माता को ये स्वीकार नहीं था। 

बीच-2 में समाचार-पत्रों में उनके बार में समाचार छप जाते थे जिसे पढ़कर फिल्मकार प्रकाश झा ने इच्छा प्रकट की थी कि वे वशिष्ठ नारायण सिंह के जीवन पर आधारित एक फिल्म बनाएँगे।

वे एक ऐसे भारतीय गणितज्ञ थे जिसने आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती दे डाली थी।

वशिष्ठ नारायण सिंह को गणितज्ञ जॉन नैश के साथ रखकर भी देखा जाता है। ज्ञात हो जॉन नैश को भी शिजोफ्रेनिया नाम की बीमारी थी। बस अंतर केवल इतना ये है कि जॉन नैश की बीमारी का इलाज हो गया था और वशिष्ठ नारायण सिंह का इलाज नहीं हुआ।

14 नवंबर, 2019 को इस महान् गणितज्ञ के दुखद निधन की खबर आई

14 नवंबर, 2019 को इस महान् गणितज्ञ के दुखद निधन की खबर आई कि पटना के पटना चिकित्सा महाविद्यालय में उनका निधन हो गया है। फिर ट्विटर पर एक वीडियो आया जिसमें उनके परिवार वाले सरकारी एंबुलेंस के लिए परेशान नज़र आ रहे थे। अंतिम समय में उनके छोटे भाई अयोध्या सिंह उनके साथ थे। ट्विटर के माध्यम से देशभर में खबर फैल गई और राज्य सरकार की थू-थू होने लगी। सरकार के अधिकारी नींद से जागे और फिर वशिष्ठ नारायण सिंह का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया। 

उनके निधन की खबर सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश कुमार सिंह ने अपने ट्विटर अपना गुस्सा प्रकट करते हुए साझा की थी उन्होंने लिखा खबरों के बीच रहने और उन्हें लोगों के साथ साझा करने का काम पिछले ढाई दशक से कर रहा हूं, लेकिन वशिष्ठ बाबू के जाने की खबर मन को झकझोर गई, क्योंकि हमारी जैसी कई पीढ़ियां उनकी विलक्षण कहानी को बचपन से ही सुनती आ रही है। एक छोटा सा ट्वीट कर दिया, ताकि देश-दुनिया को पता चल सके कि ये विलक्षण प्रतिभा अब हमारे बीच नहीं रही।

साथ में सूचना कि अस्पताल के बाहर उनके छोटे भाई अयोध्या प्रसाद सिंह वशिष्ठ बाबू के पार्थिव शरीर को स्ट्रेचर पर रखकर खड़े हैं क्योंकि अस्पताल प्रशासन ने एंबुलेंस नहीं मुहैया कराई। जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वशिष्ठ बाबू के देहांत की सूचना मिल चुकी थी और वो अपने शोक संदेश में कह रहे थे कि वशिष्ठ बाबू का निधन दुखद है, उन्होंने पूरे बिहार का नाम रौशन किया और उनके जाने से वो मर्माहत हैं।

अस्पताल प्रशासन में इतनी भी संवेदनशीलता नहीं थी कि वो उस महान विभूति को उसकी अंतिम यात्रा में गरिमामय ढंग से बिना विघ्न विदा करे।महान् गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन का शोक संदेश मिलते ही पूरे देश में शोक छा गया। इस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित कई बड़े नेताओं ने भी दुख जताया और 2020 में मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।

चित्र व आलेख सामग्री सौजन्य- इंटरनेट व विकिपीडिया से !!

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