मेरी कलम से
मैं आज की औरत हूं
अपना वक्त खुद ही बदल सकती हूं
हालात से लड़ती हूं
तकदीर से भिड़ती हूं
रसोई से निकालकर कदम
बाहर की दुनिया में भी उलझती हूं
न कोई शिकवा न कोई उम्मीद
न कोई ख्वाहिश न कोई भीख
अपने हिस्से की खुशियों को,
खुद के दम पर ही
अब हासिल करती हूं
बेड़ियों से अब क्या डरना
मुश्किलों से अब क्या भागना
जमाने से होकर बेखौफ
अपनी जिंदगी के रंग
अब मैं खुद ही चुनती हूं
अबला नहीं, लाचार नहीं
कम पढ़ी मगर गंवार नहीं
अब जमाने का भार नहीं
कोई संभाले इसका भी इंतजार नहीं
क्योंकि मैं आज की औरत हूं
अपना वक्त और हालत
खुद ही बदल सकती हूं।
सुपर्णा मिश्रा
लखनऊ
9026475828