व्यंग्य – ससुराल गेंदा फूल

बड़े बुजुर्ग फरमाते रहे हैं कि कलजुग में सार (साला) , बार (बाल) और ससुरार (ससुराल) काफी महत्वपूर्ण हुआ करेगा। जिस बहनोई को देखकर साला नामक प्राणी की घिघ्घी बंध जाया करती थी वह प्राणी न जाने कब चुपके से ब्रदर- इन-ला हो गया। इसका तो पता ही नहीं चला। बालों का विकल्प विग हो गया । अब तो जिस रंग के सूट पहने जाते हैं उसी रंग की विग भी लगाई जाती है। पर बालों की दुनिया में एक पक्ष यह भी है कि जिस तेजी से पुरुष गंजे हो रहे हैं और स्त्रियों के बालों की चोटी पतली और छोटी होती जा रही है उसमें केश विन्यास और केश का न होना कोई खास समस्या नहीं रह गई है।
कलजुग की तीसरी नियामत ससुराल मानी गई थी। स्त्री-पुरूष के लिये ससुराल के अलग -अलग मायने हैं । जहां स्त्रियों के लिये ससुराल का मतलब ज़िम्मेदारी एवं कर्तव्य हुआ करता था वहीं पुरुषों के लिये ससुराल जाना मतलब आंनद की यात्रा पर जाना होता था।
विवाह के बाद एक युवक अपने ससुराल के गांव गया। वहाँ पर उसका बहुत ही जोरदार स्वागत हुआ। खेती-किसानी की एक रसा ज़िंदगी बरसों से बिता रहे उस युवक को सपने में भी गुमान नहीं था कि ससुराल जाने पर ज़िंदगी इतनी सुखद एवं स्वादिष्ट भी हो सकती है। उसने इतने सुख देखे कि अपने मन के उद्गार कहने को व्याकुल हो उठा ।
जब कहीं उसे अपनी बात को कहने का सही विकल्प नहीं मिला तो उसने खुशी एवं उत्साह में ससुराल वाले घर के दरवाजे पर रात को चुपके से लिख दिया –
“ससुराल है सुख का द्वार”।
अगले दिन सुबह जब वह उठा तो देखा कि उसकी लिखी हुई इबारत के नीचे लिखा हुआ था –
“जब रहे दिन दो -चार”।
युवक ने ससुराल को स्वर्ग का द्वार समझ लिया था मगर उसे जो तंज भरी बात कही गई उससे उसका मन थोड़ा खराब हो गया। परंतु वह ससुराल के सुखों को छोड़कर तुरंत अपनी मेहनतकश ज़िंदगी में लौटना नहीं चाहता था। “ये दिल मांगे मोर” की सोच वाला वह युवक सुख और आत्मसम्मान के संघर्ष में दिन भर ससुराल में अपने धर्मसंकट से जूझता रहा। अंत में उसने तय किया उसके पशोपेश का उत्तर वहीं से मांगा जाए जहाँ से उसकी पहली बात का उत्तर आया था।
रात को उसने चुपके से उसी स्थान पर लिखा-
“जो रहे मास-मसवारा”।
अगली सुबह जब युवक उठा उसने देखा कि उसकी इबारत के नीचे जवाब लिखा हुआ था –
“तो पकड़े तसला-थारा”।
युवक को उसका उत्तर मिल गया था । उसने सोचा कि जब तसला -थारा और कुदाल ही पकड़ना है तो ससुराल में क्यों पकड़ा जाए ?बल्कि अपने घर ही जाकर मेहनत वाले काम किये जायें। उसे यह भी समझ में आ गया कि पुरुषों के लिये ससुराल के सुख बस चार दिनों तक सीमित है । चार दिन से अधिक ससुराल में रहने वाला पुरूष विशेष मेहमान नहीं बल्कि सामान्य परिवार के सदस्य की तरह हो जाता है ।उसकी कोई विशिष्टता नहीं रह जाती है।
जीजा की इबारत के नीचे उनके प्रश्नों के उत्तर लिखने वाली साली इस प्रकरण से बखूबी वाकिफ थीं। जीजा के चार दिनों के स्वागत सम्मान को देखकर उनके मन में कई विचार दिन -रात, उथल -पुथल कर रहे थे। स्वागत की विशिष्टता देखकर अभिभूत हुई लेडी समानता की पैरोकार और इंकलाब की हिमायती हुआ करती थी। उसी युवक की साली ने सोचा कि काश ऐसा हो कि पुरूष को जो चार दिन का विशिष्ट सुख ससुराल में मिला है वैसा ही सुख अगर उसकी ससुराल में मिले तो ?
तो ऐसी ख्वाबो वाली ससुराल होने के लिये ऐसे अतरंगी पति भी तो मिलने चाहिये। तो ऐसे पति की तलाश में एक क्रांति की पक्षधर टाइप महिला ने सोचना शुरू किया।
भारत में दहेज से लेकर विवाह से जुड़ी हर्ष फायरिंग तक अपराध है तो पति कैसे खरीदे जा सकते हैं। यहां पर “दूल्हा बिकता है” जैसी फिल्में तो बनती हैं पर वास्तव में दूल्हे की खरीद गैर कानूनी है।
मगर दुनिया बाजार में सब कुछ बिकता है जिस चीज की एक देश में पाबंदी होती है वही चीज दूसरे देश में आसानी से मिल जाती है। तो इस निराली दुनिया के एक अलबेले शहर में किसी दुकान पर यह इश्तहार चमक रहा था “यहाँ पति खरीद सकती हैं”।

पतियों वाली दुकान तो मिल गई मगर वहाँ पर “वापसी नहीं होगी” और शर्तें लागू” की शर्त भी लगी थी।
काफी दिनों से ऐसी किसी अजूबे की तलाश कर रही वह महिला उस दुकान पर पहुंच ही गई। उसने इश्तहारों को बगौर पढ़ा और मुआयना करने के लिए स्टोर में घुस गई।जिसके तलों की बानगी कुछ यूं थी।
पहला तल-
“इस मंजिल के पति बारोज़गार और नेकबख्त हैं’।
महिला कंधे उचकाकर आगे बढ़ती हुई बोली ‘इसमें क्या खास बात है ”?
दूसरा तल –
इस मंजिल के पति बारोजगार, मृदुभाषी और बच्चों के प्रेमी हैं”।
महिला ने तुनककर कहा “ इनको झेलो औऱ इनके बच्चों को भी” यह कहकर आगे बढ़ गई।
तीसरा तल-
“इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले हैं। नेक तो हैं ही और खुबसूरत भी हैं”। महिला बुदबुदाई कि “आजकल पैसा हो तो सब पुरुष खूबसूरत हो ही जाते हैं । इसमें ऎसी क्या बड़ी बात हो गई”?
चौथा तल-
इस मंजिल के पति अच्छी कमाई वाले हैं। सरल स्वभाव के हैं खुबसूरत भी हैं। यह घर के कामों में मदद भी करते है”।
महिला को पुरुषों की यह केटेगरी पसंद आई । उसने सोचा यही सही रहेगा । उसने सोचा कि कुछ और भी विकल्प हों तो उन्हें भी देख लेने में क्या हर्ज है।
पांचवा तल-
इस तल के पति में वो सारी खूबियां हैं जो पहले चार तलों के पतियों में मिलती हैं। इसके अलावा इस तल के पति न सिर्फ अपनी बीबियों से प्यार करते है बल्कि जीवन भर उनके प्रति वफादार भी रहते हैं।”
महिला यह पढ़कर खुश हो गई । वह कुछ देर तक खड़ी सोचती रही फिर उसने आगे की सीढ़ियां तलाशनी चाहीं तो उसे एक बोर्ड लिखा हुआ मिला –
“आगे और कोई तल आबाद नहीं है ।आप इससे आगे का तल तलाशने वाली न तो पहली औरत हैं और न ही अंतिम। जो भी महिला इस स्टोर में घुसती है वह ये दिल मांगे मोर की तर्ज पर इस अंतिम मंजिल तक आ ही जाती है। इससे ज्यादा गुणों वाला पति सिर्फ मन का वहम होता है। कृपया दाईं ओर की सीढ़ियों का प्रयोग करके स्टोर से बाहर चली जाएं क्योंकि वापसी की मनाही है”।
महिला इस व्यवहार से तिलमिला गई उसने दीवार पर लिखी इमारत पर खींच कर सैंडिल मारी और जोर से चीखी।
किसी ने किवाड़ पर दस्तक दी तो उसकी आंख खुली। बाहर से आवाज आई “क्या हुआ दीदी, कोई बुरा सपना देखा क्या” ?
महिला अंधेरे में आंखे फाड़ -फाड़कर देख रही थी और सोच रही थी कि यह बुरा सपना था या खुशनुमा सपना था। नेपथ्य में कहीं एक सुमधुर गीत बज रहा था “ससुराल गेंदा फूल” ।
समाप्त
