व्यंग्य – नॉट आउट @हंड्रेड

“ख्वाबों, बागों, और नवाबों के शहर लखनऊ में आपका स्वागत है” यही वो इश्तहार है जो उन लोगों ने देेखा था जब लखनऊ की सरजमीं पर पहुंचे थे। ये देखकर वो खासे मुतमइन हुए थे। फिर जब जगह जगह उन लोगो ने ये देखा कि
“मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं ” तो उनकी दिलफरेब मुस्कराहटें कान कान तक की खींसे में बदल गईं।
“अवधपुरी मम पुरी सुहावन ” लेकिन ये अवध पुरी नहीं थी।
एक मुद्दत हुई थी इस शहर ने कोई बड़ा जलसा नहीं देखा था, वैसे भी जलसा में रहने वाले बच्चन साहब अब लखनऊ में कम ही आते हैं। वरना शाम ए अवध का दीदार करने वो अक्सर लखनऊ आते रहते थे, और डाबर का च्यवनप्राश खाकर अपनी बूढ़ी हड्डियों का तान कर कहा करते थे कि यूपी में दम है। लेकिन लगता है कि च्यवनप्राश और यूपी दोनों से उनका मोह कम हो गया है, अब आह भर के कहते हैं –
“कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही ”
ऐसे ही थे एक महानुभाव बैरागी साहब जिन्होंने लोक निर्णाण विभाग की ठेकेदारी करके खूब पैसा बनाया था अतीत में। लेकिन फिर अचानक उनका जीवन की रंगीनियों से मोहभंग हो गया तो साहित्य का रेनेसांस करने निकल पड़े। उन्होंने सौ लोगों को पुरस्कृत करने का बीड़ा उठाया। देश भर से आवेदन मंगवाए। साहित्य के षोडश वर्षीया से उम्र के अंतिम पायदान तक के एप्लीकेशन आ गए।सबको चुनकर बताया गया कि फलां तारीख को आपको शताब्दी स्तर के सम्मान दिए जाएंगे। इतनी उदारता बख्शी गयी कि 21 वीं शताब्दी में पैदा हुआ बंदा भी शताब्दी सम्मान के योग्य पाया गया, जबकि वो बन्दा ठीक से बालिग भी ना हुआ था, और उसके घरवाले उसे सब्जी लाने के योग्य तक ना समझें हों। लेकिन हिंदी साहित्य की यही उदारता है कि ये सबको अपने में समा लेता है।
जिन नौकरी पेशा और साहित्य से बाहर के लोगों को इस सम्मान के लिए गहन परीक्षण के लिये चुना गया।उनसे बताया गया कि गारंटी तो नहीं है मगर फिर भी उन्हें मार्ग व्यय देने का यथासम्भव प्रयास किया जाएगा दिया। अलबत्ता उनके भोजन और आवास की उत्तम व्यवस्था की जायेगी।तमिलनाडु से लेकर अंडमान तक के रणबांकुरे और वीरांगनाएं साहित्य के इस महायज्ञ में वीरगति को प्राप्त होने निकल पड़े, वो तराना गा रहे थे आजादी वाला, टुकड़े टुकड़े गैंग की आजादी वाला नहीं बल्कि सचमुच की आजादी वाला
”आओ प्यारे वीरों आओ, साथ में देवियों को भी बुलाओ
सर्वस्व लुटाकर अपना तुम, साहित्य की बेदी पे बलि बलि जाओ”
लोगों ने दफ्तरों से छुट्टियां लीं, हवाई जहाज और एसी ट्रैन को बुक कराया इस प्रत्याशा में कि मार्गव्यय तो मिल ही जायेगा। किसी ने हवाई अड्डे से तो किसी ने रेलवे स्टेशन से अपना स्टेटस अपडेट किया कि हम शताब्दी वीर या वीरांगना होने जा रहे हैं। राजधानी पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि आयोजन लखनऊ में नहीं बल्कि लखनऊ से थोड़ी दूर काकोरी नामक जगह पर है।
शहीदों की भूमि काकोरी का नाम सुनकर साहित्यकारों के मन में शहादत का भाव उत्पन्न हो गया। उन्होंने सोचा कितने उच्च कोटि के विचार हैं आयोजकों के। आयोजकों में से एक बंदा मोटर साईकिल से आगे चल रहा था उसके पीछे पन्द्रह ई रिक्शा।
इस जुलुस को एक गेट पर पहुंचा कर मोटर साईकिल सवार गायब हो गया।
पैंसठ महिलाओं और पचीस पुरुषों वाला ये कारवां गेट पर बहुत देर तक इंतजार करता रहा कि कोई उनका किराया दे दे, मगर मोटरसाइकल सवार ऐसे नदारद था जैसे गधे के सर से सींग। रिक्से वाले शोर मचाने लगे तो सबको झक मार के अपना किराया खुद देना पड़ा। महिलाओं को एक फार्म हाउस में ठहराया गया, बगल में एक बन्द आरा मशीन थी, पुरुषों को वहीं ठहराया गया।जिस फार्म हाउस में प्रोग्राम था, पता लगा वो अमिताभ बच्चन का है।
सभी महिलाओं के दरी पर लेटने की व्यवस्था थी, सिर्फ लेटने की ही व्यवस्था थी बाकी व्यवस्थाएं सभी को खुद करनी थीं, सबने अपने बैग का तकिया बनाया, और फिर काकोरी को याद कर कर के वो कयामत की रात काटी। पुरुषों के साथ तो और भी बेहतर हुआ। हमारे देश में पुरुषों के लिए ये लोगों की आम धारणा है कि उन्हें किसी किस्म के देखभाल और सुविधा की जरूरत ही नहीं है वो जन्म से ही कठोर और कठिन हालातों को झेलने के लिये अभ्यस्त होते ही हैं।सो आरा मशीन पर पटरों को
समतल करके जाजिम बिछा दिया गया। एक नए शायर ने खुद को तसल्ली दी,
“आज की रात आँखों में काट ले शबे हिज्र जिंदगी पड़ी है, सो लेना ”
रात को सभी को सामूहिक पूड़ी सब्जी का भोज दिया गया जो पास में किसी मंदिर में हो रहे कीर्तन की बदौलत उपलब्ध हो गया था।लेकिन शताब्दी के सम्मान यूँ ही नहीं मिला करते यही सोच कर लोगों ने मच्छरों और भुनगों के शोर के बीच शहादत की वो रात बिताई।लेकिन जहाँ समय ना कटे वहां फेसबुक और मंडली के मित्रों के साथ वक्त आसानी से बीत गया।लोगों के घरवालों के फोन आते रहे, कि रहने को कमरा कैसा मिला है, साथ में बाथरूम है या नहीं, स्टेशन पर लेने गाडी आयी थी या नहीं, भोजन कैसा मिला है, मीडिया कवरेज मिल रहा है या नहीं कौन से चौनल पर लाइव आयेगा।
लेकिन काकोरी की बलिदानी भूमि पर किसी ने उफ तक ना की और आल इज वेल का मैसेज घरवालों को भेज दिया।सुबह कार्यक्रम शुरू हुआ, वैसे तो कार्यक्रम तीन घण्टे का था, मगर स्थानीय प्रशासन से ना तो इसकी अनुमति ली गयी थी, और ना ही सूचना दी गयी थी, और मंदिर के जिस अहाते में ये कार्यक्रम रखा गया था पुरस्कार वितरण का, वहाँ के लोगों को ये सब ना रास आया ना पसन्द।
किसी मसखरे ने पुलिस को खबर कर दी और मीडिया वाले भी इस इवेंट की चिकोटी काटने पहुंच गए। आधे घटें में कार्यक्रम समाप्त करने का अल्टिमेटम मिल गया।
यानी एक मिनट में तीन लोगों को अवार्ड देना था, दे दना दन अवार्ड दिए जाने लगे लोग ना सेल्फी ले पाये और ना ही ग्रुप फोटो। सहवाग की तरह ताबड़तोड़ बैटिंग हुई और आधे घण्टे में हंड्रेड नाट आउट का स्कोर हो गया, और बैरागी जी अंतर्ध्यान हो गए।मार्ग व्यय की इच्छा वाले लोग उन्हें ढूंढते रहे।
उनके सामने अवार्ड था और एक बड़ा गर्व खोने की अनुभूति, कि रात उन्होंने जिस फार्म हाउस को अमिताभ बच्चन का फार्म हाउस समझ कर गर्व किया था, वो फार्म हाउस किसी दूसरे का है, अमिताभ का फार्म हाउस थोड़ी दूरी पर है।थोड़ी देर बाद वो सब एक साथ होकर शताब्दी के अभिनेता के फार्म हाउस पर शताब्दी
सम्मान के साथ खड़े होकर फोटो खिंचवा रहे हैं। किसी ने पूछा
“कितने साहित्यकार हैं, कितनी फोटो हैं और कितने अवार्ड हैं”
किसी मसखरे ने धीरे से कहा “नाट आउट /हंड्रेड ”
आपने भी कुछ सुना… समझा क्या…।
