नींव के पत्थर – एम्बुलेंस ड्राईवर (चालक)
“रफ्तार नहीं, ज़िम्मेदारी हूं मैं”
एम्बुलेंस चालक बसंत मिश्रा, भिण्ड (म.प्र.) की कहानी

सड़कों पर जब सायरन बजाती हुई एम्बुलेंस गुजरती है तो हर कोई किनारे होकर उसे देखता है… लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उस सायरन के पीछे बैठे व्यक्ति की ज़िंदगी भी हर पल दौड़ रही होती है — किसी और की ज़िंदगी बचाने के लिए।
एंबुलेंस आपातकालीन बचाव के लिए समर्पित एक वाहन है। एंबुलेंस चालक का कार्य कम से कम समय में घटना स्थल पर पहुंच कर रोगी को आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर निदान और उपचार के लिए अस्पताल में भेजना होता है।
जीवन बचाने के लिए गति की आवश्यकता होती है लेकिन गति पर नियंत्रण और रफ्तार रखना एंबुलेंस चालक का मुख्य दायित्व होता है।
किसी भी मरीज को अस्पताल लेकर जाने या अस्पतालीय सुविधा मिलने से पहले या दुर्घटना स्थल पर पहुंच कर दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को सबसे पहले एंबुलेंस चालक ही मदद करता है।
एम्बुलेंस ड्राईवर एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे आपातकालीन समय में अपने सभी कामों को छोड़कर एम्बुलेंस लेकर जाना होता है। एम्बुलेंस चालक मरीज को अस्पताल तक तो पहुंचाता ही है लेकिन जब आवश्यकता होती है तो मरीज का प्राथमिक उपचार भी करता है उन्हें आक्सीजन भी देता है।
एम्बुलेंस चालक गंभीर रूप से बीमार या घायल लोगों को उनके घरों या दुर्घटना स्थलों से अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस चलाते हैं।वे मरीज को अस्पताल तक लें जानें के साथ स्ट्रेचर पर ले जाने में ईएमटी की मदद भी करते हैं।

एक सफल एम्बुलेंस ड्राईवर मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस को यथासंभव शीघ्रता एवं सुरक्षित तरीके से चला कर अपने कर्तव्य का पालन करता है।सच तो यह है कि “किसी भी मरीज या दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को सबसे पहले एंबुलेंस चालक ही मदद करता है “
एम्बुलेंस ड्राईवर का कार्य सिर्फ वाहन चलाने तक ही सीमित नहीं रहता है बल्कि रोगी की चिकित्सकीय मदद से पहले सहायता करना, रोगी का मूल्यांकन करना,सी. पी. आर उठाने और आवश्यकता पड़ने पर दवा देना, तकनीशियनों और अस्पताल के साथ सम्पर्क करना होता है। इसके अलावा अपने वाहन का उचित रखरखाव, समय पर जांच कर उसे हर हाल में तैयार रखना होता है।
एक सफल एम्बुलेंस ड्राईवर की कार्यकुशलता उसके काम के साथ उसके मिजाज पर निर्भर करता है यह कहना है एक ऐसे ही एम्बुलेंस ड्राईवर बसंत मिश्रा जी का। बसंत मिश्रा का मानना है कि एम्बुलेंस अन्य वाहनों जैसा एक वाहन नहीं है बल्कि यह रोगी को आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं प्रदान कराने तक एक पुल का कार्य करता है।
मौ जिला भिण्ड के निवासी बसंत मिश्रा हालांकि कृषि कार्य करते हैं और अपने खाली समय को धार्मिक गतिविधियों के साथ वाहन चालक का भी कार्य करते हैं।जब उन्हें पता चला कि इनबुक फाऊंडेशन एक एम्बुलेंस उनके नगर को प्रदान कर रहा है तो उन्होंने स्वेच्छा से इसे चलाने और रखरखाव की बात कही।
बसंत मिश्रा का कहना है इनबुक फाऊंडेशन पहले भी कई तरह के सामाजिक कार्यों में लगा हुआ है तो वह भी प्रेरित होकर अपना योगदान देना चाह रहे हैं।उनका मानना है कि एम्बुलेंस ड्राईवर का कार्य बहुत ही जिम्मेदारी वाला होता है। इसमें समय की कोई निश्चता नहीं है, कभी भी कहीं से भी फोन आ सकता है तो उन्हें भी इस कार्य को प्रमुखता से लेना होता है।


एम्बुलेंस चालक बनने की प्रेरणा आपको कैसे मिली?
मुझे जब पता चला कि इनबुक फाउंडेशन हमारे नगर को एक एम्बुलेंस उपलब्ध करवा रहा है, तो मैंने स्वेच्छा से इसे चलाने और देखरेख की ज़िम्मेदारी लेने का प्रस्ताव रखा। मुझे लगा कि यह सिर्फ वाहन चलाना नहीं, बल्कि ज़रूरतमंद को समय पर सहायता पहुंचाने का एक सामाजिक उत्तरदायित्व है।
“जब संस्था समाज के लिए इतना कर रही है, तो मुझे भी आगे आना चाहिए। एम्बुलेंस चलाना मेरे लिए सिर्फ पेशा नहीं, एक पुण्य है।”
आपके अनुसार एम्बुलेंस चलाना सिर्फ ड्राइविंग नहीं, एक सेवा भी है – आप इसे कैसे देखते हैं?
मेरे लिए एम्बुलेंस सिर्फ एक वाहन नहीं, बल्कि रोगी और अस्पताल के बीच एक जीवनदायिनी पुल है। इसमें तेज़ी भी ज़रूरी है और सावधानी भी। समय पर पहुंचना, सही रास्ता चुनना, और यदि ज़रूरत हो तो प्राथमिक उपचार देना – यही मेरी सेवा है।
क्या कभी कोई ऐसा अनुभव हुआ जिसने आपको भावनात्मक रूप से झकझोर दिया?
जी हां, एक बार रात में एक नवजात शिशु को समय पर ऑक्सीजन की ज़रूरत थी। मैंने बिना समय गंवाए बच्चे को अस्पताल पहुंचाया। बाद में जब परिवार ने कहा कि ‘आप नहीं होते तो बच्चा नहीं बचता’ – तब पहली बार समझ आया कि मेरी भूमिका कितनी अहम है।

एम्बुलेंस सेवा में काम करने की सबसे बड़ी चुनौती क्या होती है?
सबसे बड़ी चुनौती समय की अनिश्चितता है। न दिन देखना होता है, न रात। कभी भी फोन आ सकता है और तुरंत निकलना होता है। रास्ते खराब हों, मौसम खराब हो, या गाड़ी में दिक्कत – सबको पार करना पड़ता है।
आप कृषि कार्य भी करते हैं और धार्मिक गतिविधियों में भी शामिल रहते हैं। फिर यह ज़िम्मेदारी कैसे निभाते हैं?
कृषि मेरे जीवन का हिस्सा है और धार्मिक कार्यों से मन को शांति मिलती है, लेकिन एम्बुलेंस सेवा मेरे दिल का काम है। जब किसी की जान बचती है और उनकी आंखों में संतोष होता है, तो लगता है कि सही राह पर हूं।
आप इस सेवा को समाज के लिए किस रूप में देखते हैं?
यह एक प्रकार की सामाजिक जिम्मेदारी है। जैसे पुलिस, फौज और डॉक्टर समाज की सुरक्षा करते हैं, वैसे ही एम्बुलेंस चालक भी जीवन रक्षक भूमिका निभाता है। मैं खुद को एक ज़िम्मेदार माध्यम मानता हूं, जो किसी को अस्पताल तक सुरक्षित पहुंचाता है।
इनबुक फाउंडेशन की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?
इनबुक फाउंडेशन समाज के लिए लगातार अच्छा कार्य कर रहा है। जब मुझे पता चला कि वे एम्बुलेंस की व्यवस्था कर रहे हैं, तो मैं भी प्रेरित हुआ। उनकी सोच ने मुझे भी सामाजिक सेवा में भागीदार बना दिया।
क्या आप कोई संदेश देना चाहेंगे युवा पीढ़ी को?
हां, मैं यही कहना चाहूंगा कि हर काम में गरिमा होती है। अगर हम ईमानदारी और सेवा भाव से कोई भी कार्य करें, तो वह समाज के लिए प्रेरणा बन सकता है। दूसरों की मदद करने में जो सुकून मिलता है, वह किसी भी बड़े पुरस्कार से ज्यादा होता है।
यह सच है कि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कई ऐसे किरदार होते हैं जो दिखते नहीं, पर उनकी अहमियत जीवन से कम नहीं होती — चाहे वो दूध वाला हो, सफाई कर्मचारी हो, डाकिया हो या एम्बुलेंस ड्राइवर जैसे बसंत मिश्रा। ये वे “नींव के पत्थर” हैं जिन पर समाज की इमारत खड़ी है। इनका काम भले ही साधारण लगे, लेकिन यही काम असाधारण असर छोड़ता है। आइए, हम सब मिलकर इन जमीनी हीरों को वह सम्मान दें जिसके वे सच्चे हकदार हैं। @cafesocialmagazine आगे भी ऐसे ही असली नायकों की कहानियां आपके सामने लाता रहेगा — क्योंकि यही वो लोग हैं “जो वाकई मायने रखते हैं”।

संपादक – मंडल
@cafesocialmagazine &
@inbookcafe , @inbook.in
