मेरी कलम से
मैं खुश हूं कि नहीं
मैं खुश हूं कि नहीं
तुम इस बात की परवाह मत करना पापा!
अब अगर ख़ामोश हो भी जाऊं,
तो हर बार की तरह मेरा नाम लेकर,
मुझे याद मत करना पापा!
वो मायका है मेरा जीते जी नहीं,
छूट पाएगा मुझसे कभी।
पर हर बार मैं वक्त पर पहुंच जाऊं..
ये सोचकर मेरा इंतजार मत करना पापा!
मैं खुश हूं कि नहीं,
तुम इस बात की परवाह मत करना पापा!
ब्याह तो दिया है न मुझे
अपना एक फर्ज निभाने के लिए.
अब अगर मैं कह भी दूं कि..
बहुत तकलीफ में हूं मैं!
तो इस बात को सच मानकर..
स्वीकार मत करना पापा!!
मैं खुश हूं कि नहीं,
तुम इस बात की
परवाह मत करना पापा!!

रूचि अनुपम त्रिपाठी, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश