मेरी कलम से

नव वर्ष के संकल्प

वक्त का पहिया निरंतर चल रहा है
आज जो है वो कल बदल रहा है
वक्त का हमराज बनकर जो चला है
वह सिकंदर वक्त का बनता रहा है
नए वर्ष में आओ कुछ संकल्प लेंले
वक्त का है क्या भरोसा कल कहां है

महिलाओं को समर्पित
भरे ज्वालामुखी अंदर, भरी है खान रत्नो की
गरभगृह तोड़ कर निकलूं धरा को स्वर्ण कर दूंगी
विपदाएं हों कितनी भी मुझे रुकना नहीं आता
किसी पाषाण के आगे मुझे झुकना नहीं आता
मैं अवनि हूं, मैं मेरा कण कण जमीं से उर्वरा भर कर
तामिस्रा दूर कर सारी धरा को स्वर्ग कर दूंगी।

युवा वर्ग को समर्पित
बिखरते नींव के पत्थर भटकते राह जो दर दर
बदलकर सोच को उनकी अटल विश्वास भर दूंगी
वो हैं उम्मीद की दीपक है नए भारत के है सूरज
दिशाएं चीरकर संघर्ष कर जीना सिखा दूंगी
मैं अवनि हूं, मैं अंबर से रवि को बाहों में भरकर
सजाकर संस्कारों से नवल इतिहास रच दूंगी

बेटियों को समर्पित
जगत जननी बनकर जो बचाती रहती है अस्मित
खड़क हाथों में लेकर बेटियों का भय मिटा दूंगी
खड़ी जो रूढिया पर्वत बनी है राह की बाधक
बने जो पीर के कंटक रिवाजों-रस्म और नाटक
मैं अवनि हूं, कलम के तीर से करके उन्हें घायल
बना दानव को मानव, प्रेम की गंगा बहा दूंगी,

हिंदी को समर्पित
संस्कृत की जो संतति है देवमुख से जो निखरी है
बनकर प्राणवायु सी जो रग रग में विचरती है
उपेक्षाओं से जो गुजरी, हमारी मां वो हिंदी है
उसी के गीत गाती हूं उसी को गुनगुनाती हूं
मैं अवनि हूं जब तक सांस हैअपने प्रयासों से
सिंहासन पर बिठा सम्मान देकर ऋण चुकाऊंगी,

देश की दुश्मनों को समर्पित
लगी है आग जिनके दिल में स्वारथवश बगावत की
चली है आंधियां जिनके अहंकारों से युद्धों की
न तलवारों से तीरों से ,मै शब्दों की लकीरों से
हृदय झकझोर कर उनका परावर्तन दूंगी
मैं ‘अवनि‘हूं आपावन मन को उनके तार कर दूंगी
अमन और चौन की खातिर कलम कुर्बान कर दूंगी

बुजुर्गों को समर्पित
होकर पात भी पीले, नहीं टूटेंगे जब तक हम
हरे पत्ते नई कोपल न होगी शाख पर जब तक
मिले राही को छाया और मुसाफिर न रहे प्यासा
नई नस्लों की फसलों में नवल उन्माद भर दूंगी
मैं अवनि हूं, बदलते मौसमों का रुख बदल दूंगी
प्रदूषण हुई हवाओं को हवाओं को सुगंधित गंध कर दूंगी

मीना गोदरे, अवनि
केंद्रीय उपाध्यक्ष, अखिल भारतवर्षीय महिला परिषद,
संस्थापक-अवनि सृजन साहित्य एवं कला मंच, इंदौर

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