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भारतीय सांस्कृतिक एवं धार्मिक स्थलः श्री काशी विश्वनाथ मंदिर

प्राचीन काल से ही भारत मंदिरों का देश रहा है। भारत के प्राचीन मंदिर न केवल धर्म और संस्कृति के बल्कि ज्ञान-विज्ञान और कला के भी केंद्र रहे हैं।इन मंदिरों में विभिन्न विषयों के सैकड़ों आचार्य छात्रों को शिक्षा देते थे। देश-विदेश के हजारों जिज्ञासु नौजवान इन मंदिरों में शिक्षा लेने के लिए आते थे।प्राचीन भारतीय मंदिर अपने ज्ञान-विज्ञान के द्वारा समस्त भूमंडल को आलोकित करते थे।इन मंदिरों की व्यवस्था को संचालित करने के लिए सभी भारतीय शासक उदार हृदय से सहयोग करते थे।

इन्हीं मंदिरों में से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का भी स्थान प्रमुख रहा है।अयोध्या के श्री राम मंदिर के पश्चात श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ही सनातन धर्मावलंबियों के आस्था और विश्वास का केंद्र रहा है।श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण गुप्त वंश के महान शासक चंद्रगुप्त द्वितीय ने लगभग 2000 वर्ष पूर्व में करवाए थे। इन्हें विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है।

सन 1679 ईस्वी में औरंगजेब के दरबार में एक दरबारी ने फारसी भाषा में एक खबर पढ़ा- ” मुल्तान के कुछ सूबों और विशेषकर बनारस में अपनी रद्दी किताबें अपनी पाठशाला में पढ़ाते हैं और इन पाठशालाओं में हिंदू और मुसलमान विद्यार्थी और जिज्ञासु उनके बदनामी भरे ज्ञान-विज्ञान को पढ़ने की दृष्टि से आते हैं।”

कट्टरपंथी बादशाह औरंगजेब ने जब यह सुना तो सूबेदारों के नाम यह फरमान जारी किया कि “वह अपनी इच्छा से काफिरों के मंदिर और पाठशालाएं ध्वस्त कर दें। उन्हें इस बात की भी सख्त हिदायत दी गई कि वे सभी तरह के मूर्ति पूजा संबंधित शास्त्रों का पठन-पाठन और मूर्ति पूजन भी बंद करा दे।”

सूबेदारों ने बादशाह के आदेश का पालन तो किया,किंतु श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के संदर्भ में वे मौन ही रहे। फलत: औरंगजेब स्वयं एक विशाल सेना के साथ बनारस पहुंचा और सन 1679 ईस्वी में भयंकर नरसंहार के पश्चात श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर विवादित ढांचा बनाने में सफल रहा।इसी विवादित ढांचे को ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से आज भी जाना जाता है।

औरंगजेब का शासनकाल सनातन धर्मावलंबियों के लिए त्रासदी का काल रहा है। औरंगजेब कट्टरपंथी मुसलमान था।उसने हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाने के उद्देश्य से सैकड़ों मंदिरों को ध्वस्त कर वहां मस्जिद का निर्माण करवाया।मथुरा के केशव राय का मंदिर,उड़ीसा का मंदिर,गुजरात के शीश नाथ का मंदिर,आदि इसके सर्वोच्च उदाहरण है।अहमदाबाद के चिंतामणि मंदिर में भयंकर नरसंहार करवा कर वहां मस्जिद का निर्माण करवाया गया था। इन मंदिरों में स्थित देवी देवताओं की मूर्तियों को टुकड़े-टुकड़े करवाकर दिल्ली और आगरा के मस्जिदों की सीढियों पर मुसलमानों के पैरों तले कुचलने के लिए डलवा दिया गया। औरंगजेब द्वारा हिंदुओं के शिक्षण संस्थाओं पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों द्वारा इस्लाम धर्म अस्वीकार करने पर औरंगजेब ने उन्हें जिंदा ही दीवार में चुनवा दिया था।

आज लगभग 352 वर्षों पश्चात भारतीय माताओं के द्वारा इंसाफ की लड़ाई प्रारंभ कर दी गई है।औरंगजेब के द्वारा स्थापित ज्ञानवापी मस्जिद के पश्चिमी दीवार पर मां श्रृंगार गौरी मंदिर है।जिसमें भारतीयों को वर्ष में केवल 1 दिन ही वह भी कुछ घंटों के लिए पूजा करने की अनुमति प्राप्त है।भारतीय माताओं ने न्यायालय में एक याचिका दायर कर प्रतिदिन श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा अर्चना करने की इजाजत मांगी है।न्यायालय भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए विवादित ढांचे का सर्वे कराने के आदेश दे दिए हैं। न्यायालय का यह फैसला वामपंथी, कट्टरपंथी,देश के कुछ धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों और उदारवादी लोगों को परेशान कर दिया है। अपने को सहनशीलता का चैंपियन बताने वाले ये लोग न्यायालय के फैसले को सहन नहीं कर पा रहे हैं,इसलिए सर्वे करने गए कोर्ट कमिश्नर पर इन्होंने भेदभाव का आरोप लगाकर सर्वे के काम को पहले ही दिन बाधित कर दिया क्योंकि सर्वे से यह साफ हो जाएगा कि यहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है।क्योंकि सर्वे करने वाले अपना कार्य विश्वास के आधार पर नहीं,धर्म के आधार पर नहीं,बल्कि विज्ञान के आधार पर करेंगे और विज्ञान कभी झूठ नहीं बोलता है। विज्ञान हमेशा सच बताता है,इसलिए सर्वे का फैसला अत्यंत महत्वपूर्ण होगा ।

सर्वे के दौरान पहली बार भारतीय समाज को विवादित ढांचे में कैद भारतीय संस्कृति के दर्शन हुए।मस्जिद के पश्चिमी दीवार पर कलस, कमल,त्रिशूल और स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं। मस्जिद के पश्चिमी दीवार पर मंत्र भी उकेरे गए हैं।मस्जिद के अन्य दीवारों पर भी त्रिशूल, डमरू के चिन्ह,हाथी और मगरमच्छ जैसे पशुओं की आकृतियां उकेरी गई है।मस्जिद के अंदर चार खम्भे जिनकी लंबाई 8 फीट है,अति प्राचीन काल के बताए जाते हैं।इन खंभों पर कलश और घंटियां बनाई गई है।मस्जिद के तहखाने में हिंदू देवी देवताओं की खंडित मूर्तियां आज भी उपलब्ध है।मीनार के नीचे सीढ़ी के पास भी मंत्र उकेरे गए हैं।वजूखाने में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का व्यास 7 दशमलव 10 सेंटीमीटर है।जिसे आतताईओ ने तोड़ने का असफल प्रयास किया है।जिसके कारण उसमें 63 सेंटीमीटर गहरा सुराख हो चुका है।वजूखाने में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग से नंदी की दूरी 83 फीट है।आज भी नंदी महाराज स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के तरफ मुख करके उनके उद्धार की प्रतीक्षा कर रहे हैं।किसी भी मंदिर परिसर में नंदी का मुख शिवलिंग के तरफ ही होता है,ऐसा वैदिक नियम है।इसलिए नंदी का मुख जिस दिशा में है,वही स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है।

ये सब बातें प्रमाणित करती है कि ‘श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ही औरंगजेब द्वारा विवादित ढांचे का निर्माण करवाया गया था।’वास्तव में इन लुटेरे बादशाहो ने मंदिर के मलवे से ही विवादित ढांचे का निर्माण करवाया था।मंदिरों के शिखर को तोड़कर मंदिरों की दीवारों पर ही गुंबद बना दिया गया।भारत में इस तरह के लगभग 3000 विवादित ढांचे हैं।जिनमें से पहला विवादित ढांचा अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद ६दिसंबर १९९२को गिर भी चुका है।सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से वहां भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है।

सन 1679 ईस्वी में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर औरंगजेब द्वारा विवादित ढांचे का निर्माण किया गया।जहां स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है,वहां कट्टरपंथियों ने वजूखाना का निर्माण करा रखा है।लगभग 352 वर्षों से भगवान विश्वेश्वर वजूखाने में कैद हैं।तब से आज तक भगवान विश्वेश्वर और भारतीयों के साथ, भारतीय संस्कृति के साथ नाइंसाफी होती आई है। 18 सितंबर 1991 को भारत सरकार द्वारा उपासना स्थल कानून बनाकर इस नाइंसाफी को हमेशा के लिए स्थाई कर दिया गया।इस कानून के द्वारा यह तय किया गया कि कोई भी धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 के दिन जिस स्थिति में था उसी स्थिति में रहेगा। वास्तव में यह कानून उन लुटेरे शासकों और उनके वर्तमान अनुयायियों के हित में बनाए गए थे।इस कानून के द्वारा भारतीय संस्कृति को हमेशा के लिए विवादित ढांचों में कैद करके रखने का प्रयास किया गया।इसलिए इसे काला कानून कहना न्याय संगत होगा।

जब मंदिर तोड़कर विवादित ढांचे का निर्माण किया गया तब किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई।लगभग 352 वर्षों तक किसी ने कुछ नहीं कहा।विवादित ढांचा बनने के उपरांत लोग धर्मनिरपेक्ष हो गए। अचानक से लोग सहनशील होते चले गए। इतनी बड़ी नाइंसाफी करने वाले लोग विवादित ढांचा बनने के पश्चात आपसी भाईचारे का संदेश देते रहे किंतु जब सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे नाइंसाफी को समाप्त कर वास्तव में आपसी भाईचारा स्थापित करने का समय आता है तो ये कट्टरपंथी लोग इंसाफ मांगने वालों को,न्याय की मांग करने वालों को, सांप्रदायिक,दंगाई,शांति विरोधी बताना प्रारंभ कर देते हैं।धर्मनिरपेक्षता और भाईचारा की बात करने वाले देश के कुछ कट्टरपंथी लोग अत्यंत परेशान हो चुके हैं। न्यायालय के फैसले से उनकी परेशानी बढ़ गई है।जब मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई तब ये लोग कहां थे?और आज जब अदालत अपना काम कर रही है तो उन्हें इतनी परेशानी क्यों हो रही है?कई 100 वर्षों पहले शासकों ने जो गलतियां की,अंग्रेजों ने जो गलतियां की क्या आज का भारत भी उन्हीं गलतियों को दूहरायेगा? सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे नाइंसाफी को समाप्त करने का समय आ चुका है।

श्री राम मंदिर अयोध्या की तरह ही प्राचीन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के भी तीन दावेदार हैं अर्थात तीन पक्ष हैं।पहला पक्ष स्वयं श्री काशी विश्वनाथ जी हैं।इनके वकील विजय शंकर रस्तोगी जी हैं।साथ ही विष्णुशंकर जैन और हरिशंकर जैन भी हैं।दूसरा पक्ष सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड है तथा तीसरा पक्ष अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी है।वर्तमान में उस विवादित ढांचे पर अंजुमन इंतजामियां मस्जिद कमेटी का अधिकार है। तीनों पक्ष न्यायालय में अपनी- अपनी दावेदारी सिद्ध कर रहे हैं।

विवादित ढांचे के बगल में वर्तमान में जो श्री काशी विश्वनाथ मंदिर है,उसे मालवा की रानी अहिल्याबाई ने सन १७८० ईसवी में हिंदुओं के पूजा अर्चना करने के लिए बनवाई थी।बाद में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने उस मंदिर के शिखर पर 880 किलोग्राम सोना मढवा दिया। महारानी अहिल्याबाई और महाराजा रणजीत सिंह के प्रयास से हिंदू संस्कृति को पुनर्जीवन प्राप्त हो सका।किंतु मूल एवं प्राचीन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर सनातन धर्मावलंबियों के अधिकार से बाहर ही रहा आज हम लोग जिस श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने जाते हैं, वह महारानी अहिल्याबाई द्वारा स्थापित है, महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा संवर्धित है और भारत के वर्तमान यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त करने के लिए लालायित है।

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