व्यंग्य – और लैला मजनू मिल गए
बड़ा ही प्यारा गीत है, फिल्म एक दूजे के लिए का और इसमें लिखे हुए शब्द ना केवल प्यारे और कर्णप्रिय है बल्कि सच भी है। लैला मजनू का इतिहास हम सभी जानते है। वो दोनो आज भी अमर है क्योंकि वो कभी नहीं मिल पाए ।
लेकिन आज का इतिहास लैला मजनू के मिल जाने से बना है। हम लोग लैला मजनू की प्रेम कहानी के इस पक्ष को पहले कभी नहीं जान पाए थे। बिलकुल उसी तरह जैसे चंद्रयान ३ के पहले चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के इतिहास को नहीं जान पाए थे। खैर, देर आए दुरुस्त आए। चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव का इतिहास भी पता चल गया और लैला मजनू के मिलने से बने वर्तमान और इतिहास का पता भी इस दुनिया को पता चल गया है।
…चलिए देखते है क्या गुल खिल गए उनके मिलने से ।
सितंबर माह २०२३:
श्रीमान मजनू कुटुम्ब न्यायालय (फैमिली कोर्ट) के बाहर चाय की टपरी पर कुछ उदास और लुटे पिटे हुए से बैठे है। बैठे बैठे बस वो चाय के गिलास को घूरे जा रहे थे, लगता था कि वो चाय के गिलास में रेगिस्तान वाली लैला की तस्वीर खोजने की असफल कोशिश कर रहे हो। तस्वीर तो दिखी लेकिन आज की लैला की वो भी कर्कश आवाज के साथ।
हम तुम दोनो जब मिल जायेंगे एक नया इतिहास बनायेंगे और अगर हम ना मिल पाए तो तो भी एक नया इतिहास बनायेंगे
लैला (गुस्से में): तुम क्या समझते हो, में तुमको आसानी से जाने दूंगी, मेरा नाम भी लैला है, में तुमको चैन से प्रदूषित हवा भी नहीं लेने दूंगी। अगर में उस जन्म में तुम्हारे लिए जान दे सकती थी तो इस जन्म में जान ले भी सकती हूं। तुम क्या समझते हो, में तुम्हे आसानी से तलाक लेने दूंगी? बिलकुल नहीं और तीन तलाक के प्रतिबंधित होने के बाद तो बिलकुल नहीं। अगर मैने तुम्हारे बाल नही झड़वा दिए (गंजा होने की प्रक्रिया) तो मेरा नाम भी लैला नही है।
और लैला गुस्से में पैर पटकती हुई चली गई। साथ में थी उसकी सहेली, नारिमुक्ति मोर्चा वाली एडवोकेट रुधमति ।
तलाक ? हां जनाब आपने सही सुना है। लैला और मजनू कुटुम्ब न्यायालय (फैमिली कोर्ट) में तलाक की तारीख के लिए ही आए थे ।
क्या कहा? इनके सिर्फ नाम ही लैला मजनू है और इनका पूर्व जन्म के लैला मजनू (कैस) से कोई नाता नहीं था?
नहीं जनाब ये पूर्व जन्म के लैला मजनू ही है, उस दर्दनाक परंतु अमर प्रेम कहानी के बाद लैला और मजनू की रूहें (आत्माएं)
सदियों तक भटकती रही और अंततः चित्रगुप्त को उन पर तरस आ ही गया और उन्होंने इन दोनो की आत्माओं को फिर से पृथ्वी पर जन्म लेने भेज दिया। कहानी में ज्यादा फिरकी (ट्विस्ट) ना करते हुए उन्होंने दोनों की याददाश को सुप्त अवस्था (स्लीप
उवकम) में रख के भेजा जो उन दोनो के १६ वे जन्म दिन पर क्रियाशील (एक्टिव) होना था। लेकिन पता नही उनके मन में क्या
चल रहा था किसलिए लैला को ३ साल पहले धरती पर भेज दिया और मजनू को उसके तीन साल बाद।
खैर १६ वे साल में पैर रखते ही लैला को पता चल गया की कौन है और वो अपने मजनू की खोज में मरीन ड्राइव पर बैठ कर समुद्र की लहरें गिनती थी। आखिरकार उसकी गिनती रंग लाई और करीबन तीन साल बाद एक दिन अप्रैल की चमचिमाती धूप
में उसको एक लड़का दिख गया जो कि और कोई नही मजनू था ।
लैला उस लड़के को देख उसकी और खिंचने लगी लेकिन लैला को अपनी तरफ आते देख वो लड़का डर के मारे भाग गया क्योंकि वो १६ वे जन्मदिन से पहले किसी लड़की से मिल कर कोई वबाल खड़ा नहीं करना चाहता था । और एक दिन जब वह अपना १६वा जन्मदिन अपने दोस्तो के साथ गिरगांव चौपाटी पर मना रहा था कि तभी लैला की स्कूटी उसकी तशरीफ (बन hip) पर टकराई क्योंकि चौपाटी की रेत उसके पैर रूपी ब्रेक के उपयोग के बाद भी स्कूटी के वेग (स्पीड) को कम नहीं कर पाई थी। बस फिर क्या, मजनू के हाथ से निकला केक समुद्र की आगोश में समा गया और मजनू अस्पताल में बेहोश पड़े मजनू को देख कर ही लैला पहचान गई कि ये तो उसका अमर प्रेमी मजनू है। इधर तशरीफ (बन hips) में चोट लगने पर मजनू की याददाश भी वापस आ गई थी।
क्या कहा? कही तशरीफ (hips) में चोट लगने से याददाश वापस आती है क्या? क्यों नही आ सकती? क्या सिर्फ हिंदी फिल्मों ने ही याददाश्त लाने का ठेका ले रखा है? या फिर फिल्मों ने ही दर्शकों को मानू बनाने का ठेका ले रखा है। सीधी बात है, हमारे मजनू की याददाश्त hips में चोट लगने पर ही आई थी और अब कोई तर्क नही और कहानी पर वापस आते है।
दोनो ने सरकारी अस्पताल में एक दूसरे को देखा और मरीजों की भीड़ में से भी एक दूसरे को पहचान लिया और तुरंत ही
रिलेशनशिप में आ गए। दोनो का प्रेम परवान चढ़ने लगा परंतु मिलने के लिए उनको अभी भी इंतजार करना था क्योंकि लैला
तो कानूनी रूप से निकाह योग्य हो गई थी (१६ साल की जो थी) लेकिन मजनू उस्ताद तो अभी भी सिर्फ १६ के थे और उनको ५ साल और इंतजार करना था।
खैर ५ साल का समय दोनो ने बैंडस्टैंड और चौपाटी के आसपास घूमते हुए, अपनी अपनी परीक्षाओं में केटी (KT) लगवाते हुए गुजार दिए और जैसे ही मियां मजनू २१ साल के हुए उन दोनों ने निकाह कर लिया। हालांकि मजनू के घरवालों ने लैला की उम्र का हवाला देते हुए निकाह का विरोध किया और उसको बहुत बुरा भला कहा । लेकिन उन लोगो का विरोध काम नही आया क्योंकि दोनो इस जमीन पर आए ही मिलने के लिए थे और उनके पास तो पूर्वजन्म के प्रेम का बैलेंस भी था।
खैर सादगी भरे धूमधाम से उन दोनों का निकाह पढ़ा गया और आखिरकार मिलन की रात भी आ गई। मियां मजनू ने बड़े अरमानों के साथ लैला के कमरे में प्रवेश किया और देखा कि लैला खिड़की में खड़े होकर नाले के पानी को निहार रही थी (ये नाला भी कभी मीठे पानी वाली नदी थी जो मानव की अंधी महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ चुकी थी।
मजनू ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा तो उसने गुस्से में हाथ हटा दिया। इधर हाथ हटा उधर मजनू के अरमान नीचे गिर पड़े। मजनू को समझ ही नही आया की माजरा क्या है। उसने हिम्मत जुटा कर पूछा।
मजनूः अरे लैलाजी क्या बात है, इतना गुस्से में क्यों हो?
लैलाः (लाल पीले होते हुए) गुस्सा ? क्यों मुझे गुस्सा नहीं आना चाहिए? तुम्हारी अम्मी और बहन अपने आप को क्या समझते है? कहती है मेने छोटे से बच्चे को अपने प्यार के जाल में फांस लिया है? तुम बच्चे हो? अरे नौका मिलता तो ४ बच्चे कर चुके होते तुम अभी।
मजनू: अरे लैलाजी, छोड़ो उन लोगो की बातें हर घर में ऐसा होता है ना, इसमें उनका कोई दोष नही है, ये सब हुआ मेरी उम्र को लेकर और इसके लिए चित्रगुप्त महाराज दोषी है। अगर वो मुझे थोड़ा पहले भेज देते तो घर वालो को बोलने का मौका ही नही मिलता ।
लैलाः ओहो अगर में बड़ी हो गई तो तुमको इसमें भी प्रोब्लम लग रही है, तुमको तो छोटी उम्र की लैला चाहिए जिस पर तुम अपनी पितृसत्ता (Patriarch) रूपी हुकूमत चला सको। तुम सब मर्द होते ही ऐसे हो ।
मजनू: अरे इसमें पितृसत्ता की बात कहां से आ गई? तुम भी कहां महिला मुक्ति मोर्चा वाली बाई जैसा बर्ताव कर रही हो? बाहर देखो कितना अच्छा मौसम हैं, आसमान में निकले हुए चांद और तारे कितनी सदियों और कालों से हमारे मिलन का इंतजार कर रहे है। आओ मेरे सीने से लग कर सदियों से चल रही इस अधूरी प्रेम कहानी को पूर्णता (कंप्लीट) की और ले चलते है?
लैलाः नहीं, मुझे हाथ नहीं लगाओ, मैं कोई तुम्हारी दासी या बांदी नही हूं। मेरे भी अधिकार है और अगर तुमने मेरी इच्छा के विरुद्ध हाथ लगाया तो समझ लेना ये वैवाहिक बलात्कार माना जायेगा।
मजनू (कन्फ्यूज और उदास होते हुए): अरे, आप कैसी बात कर रही हो, में और तुम्हारे साथ बलात्कार ? तुम भूल गई, मेने तुम्हारे लिए रेगिस्तान की खाक छानी है, लोगो के पत्थर खाए है और तुम्हारे प्रेम में स्वयं ख़ुदा और परमात्मा को भी भूल गया था। मैंने कभी तुम्हारे मुकद्दस (पवित्र बतनक) शरीर को छुआ भी नहीं था और आज भी तुमसे गुजारिश कर रहा हूं तो इस कायनात की इच्छा से कर रहा हूं जो चाहती है कि हमारी प्रेम कहानी एक अंजाम तक पहुंचे, इसको कोई मुकाम तो मिले ।
लैला (और गुस्सा होते हुए): में कुछ नहीं जानती, तुम तब तक मुझे हाथ नहीं लगा सकते जब तक कि तुम्हारी मां बहन मुझसे माफी नहीं मांगेगी?
मजनू (प्रेमपूर्वक बोलते हुए): ठीक है, में कल उन दोनो को समझा दूंगा लेकिन ये समय उचित नहीं है, रात बहुत हो गई है, क्यों मुझे और इन चांद सितारों को तड़पा रही हो । आओ एक दूसरे में समा कर इनके इंतजार को खत्म करे ।
लैलाः नही, आज मेरा मूड नही है, हम कल बात करते है ।
और लैला अपनी पीठ मजनू की तरफ करके सो गईं और मजनू बेचारा रात भर जाग कर आत्ममंथन करता रहा। खैर सुबह हुई तो मजनू ने अपनी मां बहन को अपनी समस्या बताई तो वो दोनो उस पर फट पड़े और बोले “शर्म नही आती तुमको हम लोग माफी मांगे, जोरू के गुलाम, एक दिन हुआ नही और बीबी की तरफदारी करने लगे कुछ दिन बाद तो तुम हम लोगो को घर से बाहर ही निकाल दोगे, नामाकुल कहीं का “
उस दिन मियां मजनू को दिन में तारे नजर आ गए। पूरा दिन घर में ऐसी शांति रही जैसे तूफान आ कर चला गया। मजनू पूरा दिन लैला को मनाने में लगा रहा परंतु लैला टस से मस नहीं हुई। आखिर वो भी लैला थी, वोही लैला जिसने अपने पूर्व जन्म में मजनू के ऊपर अपनी जान कुर्बान कर दी थी। ये बात । अलग है कि इस जन्म मैं वो मजनू की जान लेने पर लगी थी।
खैर एक बार फिर रात आयी और साथ में लाई मिलन की आस । लेकिन आज की रात भी कल जैसी रात के तर्क और कुतर्क के साथ खत्म हो गई।
सुबह मजनू ने फिर से कोशिश की कि उसकी अम्मी और बहन माफी मांग ले लेकिन फिर से उसको “जोरू का गुलाम और निकम्मा” जैसी उपाधि मिली।
घर की तीन देवियों के बीच फंस कर मजनू भाई त्रिशंकु बन कर रह गए थे। मजनू के घर में यही सिलसिला कही दिन तक चलता रहा और कोई भी पक्ष झुकने के लिए तैयार नहीं था और उन दोनो पक्षों के बीच मजनू फुटबॉल बन कर किक खा रहे थे।
तभी पारिवारिक कहानी में मोड़ आया और लैला से मिलने उसकी सहेली, महिला अधिकारों की महारानी एडवोकेट रु मती आई और जब उनको सारा माजरा पता चला तो उन्होंने तुरंत उसको कानून का सहारा लेने की सलाह दी और तुरंत
ही मजनू और उसके परिवार के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत मामला दर्ज करवा दिया। मजे की बात ये भी हुई कि पुलिस शिकायत (कंप्लेंट) में मजनू के ऊपर हिंसा मारपीट के साथ साथ यौन हिंसा और अप्राकृतिक संबंधों का आरोप भी लगाया गया था । क्या कहा आपने, सारे आरोप गलत थे? बिलकुल गलत थे लेकिन ये आरोप एक तरह के मानक (स्टैंडर्ड) आरोप थे जो हर वकील अपनी तलाक एप्लिकेशन या घरेलू हिंसा शिकायत में डालता है सनसनी फैलाने के लिए ।
FIR का परिणाम ये हुआ कि अगले दिन मजनू के घर उसको गिरफ्तार करने पुलिस आ गई । वो तो भला हो महाराज चित्रगुप्त का जिन्होंने अपनी राजनैतिक पहुंच का फायदा उठाकर उसको गिरफ्तार करने से रुकवाया।
ये सब देखकर मजनू का सारा प्यार छूमंतर हो गया और उसने अंतिम बार समझौते की कोशिश में असफल होने पर तलाक की अर्जी फाइल कर दी। तलाक ? हांजी क्योंकि फासिस्ट सरकार ने उससे तीन तलाक बोलने का अधिकार भी छीन लिया था ।
उसको तलाक फाइल किए हुए ३ साल हो गए थे लेकिन हर बार की तरह आज भी लैला ने रो रो कर, जज साहेब को अगली तारीख देने के लिए विवश कर दिया था ।
मजनू अपने ख्यालों में डूबा हुआ था कि तभी चाय वाले छोटू ने उसकी तंद्रा भंग की, उसकी चाय ठंडी हो चुकी थी । चाय ही क्या उसकी तो जिंदगी भी रु-ख हो चुकी थी ।
और तभी उसको पूर्व जन्म का वो दृश्य याद आया कैसे जब लोग उसको पत्थर मार रहे थे और लैला उसको सबसे बचा रही थी । कहां वो लैला और कहां ये लैला, ये सोच उसके चेहरे पर फीकी मुस्कान आ गई। अब उसको समझ आया कि उसकी प्रेम कहानी इसलिए अमर नही थी कि वो दोनो बहुत महान प्रेमी थे बल्कि वह अमर थी, दोनो के निश्चल प्रेम, जुनून और अनंत विरह ( जुदाई ) की वजह से और यदि वो कहानी भी पूर्ण होती तो उसका परिणाम शायद ऐसा ही होता। इसलिए खुसरो जी ने कहा,
खुसरो दरिया प्रेम का, ताकी उल्टी धार
जो उबरा सो डूब गया, जो सो पार
मजनू बोझिल कदमों से उठा और घर जाने के लिए ऑटो में बैठ गया, लेकिन ऐसा लग रहा था सारी कायनात उसको पूर्व जन्म की और ले जाने में लगी थी तभी तो ऑटो में लैला मजनू फिल्म का ये गीत बज रहा था,
” हुस्न हाजिर है मुहब्बत की सजा पाने को कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को । मेरे जलवो की खता है, जो यह दीवाना हुआ में हूं मुजरिम यह अगर, होश से बेगाना हुआ। “
इस गीत को सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो मन ही मन बुदबुदाया
“ आखिरकार लैला मजन मिल ही गए”