व्यंग्य – आज के अंगुलिमाल
बाबू चरणदास आज बहुत ही गहरी सोच में बैठे थे। वो एकटक होकर हथेली में रखी महंगी विदेशी हीरे जड़ित घड़ी को निहारे जा रहे थे। वो समझ ही नही पा रहे थे वो इस बहुमूल्य और उनकी पहुंच से बाहर इस ऊपरी कमाई के समय-स्वरूप का क्या करे जिसका बाजार मूल्य करीब करीब १८ लाख का था।
अभी अभी एक ठेकेदार उनको ये नजराना भेंट करके गया था।
आप सोच रहे होंगे तो इसमें इतना सोचने की क्या बात हैं? हमारा भारतीय समाज तो उपहार लेने और देने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है तो अगर बाबू चरणदास को किसी ने उपहार स्वरूप हीरे जड़ित घड़ी दी है तो इसमें क्या इतनी हाय तौबा ?
आपको इसमें कुछ अजीब नही लग रहा है क्योंकि आप को बाबू चरणदास का परिचय नहीं पता है। बाबू चरणदास भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है, आम भाषा में बोले तो IAS officer है। और इस समय बहुत ही ऊंचे ओहदे पर पदस्थ है।
उन्होंने आज तक अपने आप को इन उपहारों से दूर रखा था और इसके लिए वो अपने परिवार और सहयोगियों के बीच हंसी के पात्र भी बनते रहे है। उनके खुद के बच्चे और एक मात्र पत्नी यदा कदा उनको इस बात के ताने मार ही देते थे कि वो गलती से गलत सर्विस में आ गए है और उनकी ईमानदारी की वजह से बहुत सारी भौतिक सुख सुविधाओं से उसी तरह वंचित रह गए है जिस तरह से कुपोषण के शिकार बच्चे सरकारी प्रोटीन से रह जाते है। क्योंकि बाबू चरणदास के परिवार और रिश्तेदारों का मानना था कि सरकारी सेवा का मतलब ही अधमरी जनता का दोहन करना था और बाबू चरणदास ऐसा ना करके गलत उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है और उनको सरकार-पोषित-परिवारों के बीच में अवांछनीय (not desirable) बना के रख दिया।
इसी तरह से उनके जीवन की नैय्या उधेड़बुन के सागर में हिचकोले खाती हुई आज ऊपरी-कमाई के तट से टकरा गई और वहां उनकी मुलाकात ठेकेदार साहब से हुई जिन्होंने बिना सोचे समझे इतना मूल्यवान उपहार उनके हाथों में रख दिया।
उस घड़ी को देखते देखते उनकी आंख लग गई और वो ऊपरी-कमाई-लोक में पहुंच गए। उस लोक की भव्यता देख कर वो स्तब्ध रह गए थे। ” क्या ये ऊपरी-कमाई-लोक भारत देश का ही हिस्सा है? या फिर में कही और आ गया हूं? बाबू चरणदास सोचने लगे। फिर उनके मन ने जवाब दिया “नही नही, ये भारत देश का हिस्सा नहीं हो सकता है क्योंकि यहां तो धन और धान्य की कोई कमी नही है जबकि भारत में तो जब देखो साधनों का रोना लगा रहता है? वहां पर गांव की छोटी सी नदी पर पुल बनाने के लिए पैसे नहीं होते, कैसे बच्चे रस्सी पकड़ कर नदी पार करते है, जबकि यहां तो एक एक अधिकारी के लॉकर और अलमारी में स्वयं देवी लक्ष्मी कागज़, हीरे, जवाहरात और स्वर्ण धातुओं के रूप में पसरी रहती है?
उन्होंने फिर से अपना परिचय पत्र देखा जिस पर लिखा हुआ था `भारतीय प्रशासनिक सेवा` पर उनका मन मानने को तैयार नहीं था कि ये भारत है, उसने फिर कहा नही नही ये कोई दूसरा लोक है, ये भारत नही हो सकता है? यहां पर तो बाबुओं और अधिकारियों के परिवार वालों के लिए ही नही बल्कि उनके पालतू कुत्तों के लिए भी सुख सुविधाओं के अंबार लगे हुए है, सुरा और सुंदरियों की महफिलें लगी हुई है। ये भारत कैसे हो सकता है जहां पर अभी कुछ दिन पहले एक ब्राह्मण परिवार के कई सदस्यों की मृत्यु भूख के कारण हो गई थी (ऐसी घटनाएं और भी हो सकती है)।
ये सोचते सोचते वो आगे चले तो उनको जोशी दंपत्ति मिले जो ट्रैक्टर में नोटो (भारतीय मुद्रा) को भूसे /चारा (fodder) की तरह भरे हुए थे। अरे आप जोशी दंपत्ति को नही जानते? अरे मध्यप्रदेश के कुख्यात अधिकारी दंपत्ति जिनके पास से ३०० करोड़ रुपए बरामद हुए थे।
बाबू चरणदास ने उनको देख कर नमस्कार किया और बोले ” अरे जोशीजी आप यहां और ये क्या है?”
जोशीजी ने हंसते हुए कहा ” अरे कुछ नही, बस मॉर्निंग वॉक के लिए गया था, तो एक ठेकेदार ने थोड़ी ताजी फसल दे दी बस वही लेके आ रहा था”
बाबू चरणदास ने आश्चर्यचकित होकर कहा ” अरे ये तो भारतीय मुद्रा है”
जोशी जी हंस कर बोले “ऊपरी-कमाई-लोक में इसको फसल के नाम से ही जानते है और ये प्रशानिक सेवा के खेत से उत्पन्न होती हैं पर आपको केसे पता होगा? खैर अब आप इस लोक में आ ही गए है तो आपको इसका भी पता चल जायेगा”
उनकी बात सुनकर बाबू चरणदास हमेशा की तरह क्रोधित नही हुए। शायद इस लोक की प्रदूषण मुक्त हवा का कमाल था!
थोड़ा और आगे चले तो उनको ठेकेदार मुंशी तोताराम दिख गए जिनकी कंपनी के ऊपर घटिया सड़क बनाने का इल्ज़ाम था और उनके ऊपर गठित जांच समिति के अध्यक्ष स्वयं बाबू चरणदास ही थे।
मुंशी तोताराम ने उनको नमस्कार करते हुए भारतीय मुद्राओं से भरी हुई एक टोकरी उनके हाथ में रख दी। बाबू चरणदास ने कहा ” ये क्या है”
“अरे कुछ नही साहब, बच्चो के लिए थोड़े से फल है” हंसते हुए जनाब दिया।
बाबू चरणदास ने बिना किसी प्रतिकार ( ऑब्जेक्शन) के वो टोकरी ले ली और घर जाकर अपनी धर्मपत्नी को थमा दी। भारतीय मुद्राओं से भरी हुई टोकरी को देख उनकी पत्नी और बच्चे बहुत खुश हुए, इतने खुश कि पूजा की थाली लाकर उन्होंने बाबू चरणदास की आरती उतारी।
बाबू चरणदास को अपने घर में इतना सम्मान कभी नही मिला था और बहुत समय के बाद अपने घर में बिना किसी तनाव के शाम बिता रहे थे। उस शाम घर में धर्मपत्नी की कर्कश आवाज की जगह हवाओ में मधुर स्वर लहरियां तैर रही थी। उनको पता ही नही था उनकी पत्नी की आवाज इतनी मधुर है।
“क्या में भारत के उसी घर में हूं जहां तनाव का माहोल होता था और घर में प्रवेश करते हुए रोज मुझे ताने मिलते थे, या मेरे घर विलासिता की वस्तुओ का अभाव होता था?” उनके मन में प्रश्न उठे लेकिन जवाब भी तुरंत मिल गया और आज शाम उनको यकीन हो गया था कि वह भारत में नही है बल्कि ऊपरी-कमाई-लोक में है जहां के सभी नागरिकों को ऊपरी कमाई रूपी फसल काटने और रखने का पूरा अधिकार है।
उस क्षण के बाद तो जैसे बाबू चरणदास की जिंदगी ही बदल गई, अब उनको लक्ष्मी के लिए पहली तारीख का इंतजार नही करना पड़ता है अब तो कोई भी कभी भी उनको लक्ष्मी से भरी हुई टोकरी पकड़ा जाता था।
पहले जो शाम, स्याह ( ब्लैक) होती थी, अब वो रंगीन हो गई थी और उनके पास विलासिता की वस्तुओ का अंबार लग गया था और उनके पत्नी बच्चे और रिश्तेदारों को उनके ऊपर अजीब सा अभिमान होने लगा था। जो बाबू चरणदास पहले अपने घर और रिश्तेदारों की आंख की किरकिरी था वो अब उनकी आंख का तारा हो गया था। उसके मां बाप, पत्नी बच्चे और सब रिश्तेदार बहुत खुश थे। उनके तरफ से दी जाने वाली उच्च वर्ग (हाई प्रोफाइल) पार्टियों की चर्चा से उपरी-कमाई-लोक के सभी समाचार पत्रों के पेज ३ भरे रहते थे। अल्प समय में ही बाबू चरणदास, शक्ति-गलियारे (पावर कॉरिडोर) के महत्वपूर्ण स्तंभ बन गए थे। सुरा, सुंदरी, मीडिया और नेताओं के जमघट उनके यहां आम हो गए थे।
पर कहते है ना कि सुख के दिन ज्यादा दिन नहीं रहते है और हर चांदनी रात के बाद अमावस की रात भी आती है। ऐसा ही कुछ बाबू चरणदास की जिंदगी में भी हुआ जब वह शराब ठेकेदार कालियानाथ से मुद्राओं से भरी टोकरी स्वीकार कर रहे थे कि इंस्पेक्टर शिशुपाल ने उनको रंगे हाथो पकड़ कर हवालात में बंद कर दिया।