कविताएं और कहानियां

कोरोना काल की कहानी।

इस कोरोना काल में भारत ही नही अपितु पुरे विश्व की अर्थ व्यवसथा बिगड़ गई ।

इस कोरोना काल में मध्य वर्गी परिवार का जीवन बहुत मुशकिल हो गया । शीतल एक गृहणी है , उसका पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है । शीतल के ससुर पहले रोडवेज में थे ,अब रिटायर हो चुके है । शीतल गोरखपुर में अपने साँस – ससुर, दो बच्चे और अपने पति के साथ रहती है। पुरे परिवार में छः लोग है । लॉकडाउन में कंपनी बंद होने से पति घर में बैठ गया । अब घर सिर्फ उसके ससुर के पेन्सन से ही चलता था । एक रोडवेज कार्मचारि को कितना पेन्सन मिलता है , ये सबको पता होगा । पेन्सन से जो राशन आता था , वो महीने के चार दिन पहले ही खत्म हो जाता था । बहुत मुशकिल होता था, घर चलाना इसीलिए शीतल ने हफ्ते में तीन दिन का व्रत रखना सुरु कर दिया , ताकि अपने पुरे परिवार को खिला सके । तीन महीने बाद जब लॉकडाउन खुला तब उसके घर कुछ रिश्तेदार आए निमंतरण लेकर ,उस समय शीतल के घर में कुछ भी नहीं था , महीने का सब सामान खत्म हो चुका था । शीतल हर रोज भगवान् को बताशे का भोग लगाती थी । वही भगवान् का लगाया हुआ भोग मेहमान को पानी पीने के लिए ले आइ फिर वही बताशे डालकर उसने काला चाय बनाकर सबको दिया । मेहमान खाने के समय दोपहर में आए थे । इसी लिए शीतल ने मेहमान से खाने के लिए पूछा मेहमान ने कहा ‘ हाँ , खाना खा के ही जाएगें’ । उसके बाद वो रसोईघर में आ गई , उसके पीछे से उसके सांस और पति भी आ गए और बहुत गुस्सा हुए । उसके पति ने कहा ‘ तुम्हे पता था घर में सामान नहीं , तो तुमने खाने के लिए क्यों पुछा ?’ उसकी सांस ने कहा ‘ हम लोगो की बेजती करवाने के लिए । ‘ तब शीतल ने जवाब दिया ‘एसी कोई बात नहीं है , मेहमान खाने के समय पर आए थे , इस लिए मैंने पूछा , आप लोग जा के मेहमान के पास बैठीये । ‘ तब उसकी सांस बोली ‘ हम तो जाकर बैठ जाएगें , लेकिन तुम लाओ गी क्या , जब कुछ है नहीं । ‘ शीतल गैस पर कढ़ाई चढ़ाई उसमें एक चमच तेल डाला तेल गरम हो गया, तो उसमें पानी का छीटा मारने लगी छन – छन की आवाज सुनकर मेहमान समझे की कुछ अच्छा बन रहा है , वो अंदर ही अंदर खुश हुए , लेकिन ज्यादे समय रुकने से बहुत देर हो जाएगा हमें और भी जगह जाना है ।बहु अभी खाना बना रही फिर हम लोग खाएगें, तो बहुत ज्यादे समय लग जाएगा ,इस लिए हम चलते है फिर कभी आकर बहु के हाथ का खाना खाएगें, और मेहमान विदा लेके चले गए । मेहमान के जाते ही शीतल का पुरा परिवार गुस्से से रसोईघर में आ गया । उन्हें लगा के पहले ही उनका घर बहुत मुशकिल से चल रहा , जो बचा कुचा है उनकी बहु ने सब बरबाद कर दिया , लेकिन जब वो रसोईघर में आए , तो देखे की गैस पे एक कढ़ाई था और बगल में एक कटोरी पानी था । तब उसके पति ने कहा कि ‘ तुम तबसे क्या बना रही थी , यहाँ तो कुछ भी  नहीं है’ । तब शीतल ने कहा कि ‘ मैं क्या बनाती , घर में 5oog सूजी और दो चमच तेल के अलावा कुछ भी नहीं है । पहले बताशा दिया था पानी पीने के लिए फिर काला चाय दिया इसीलिए खाना खाने के लिए पुछा था । हमारी हालत क्या है , ये हमें बतानी किसी नहीं चाहिए हमारी माँ ने कहा था कि ‘ पैसा चला जाए तो वापस आ जाता है , लेकिन इज्जत चली जाए तो वापस नहीं आती।’ हम मेहमान से खाने के लिए नहीं पुछते , तो उन्हें बुरा लगता, इसलिए हमने खाने के लिए पुछा था । तब उसके पति ने कहा कि’ छन-छन की आवाज कैसे आ रही थी ।’ तब शीतल ने कहा कि ‘ “कढ़ाई मे तेल गरम” करके पानी का छीटा मार रही थी , जिससे उन्हें लगे की हम कुछ बना रहे है , एसा करने से हमारे घर की इज्जात भी नही गई और मेहमान भी खुश होकर गए । सारी बात सुनने के बाद उसके पति और सास को एहसास हुआ की शीतल बहुत ही समझदार महिला है । उस दिन पहली बार शीतल को उसके ससुराल में सम्मान मिला था ।

ये एक गृहणी की सच्ची कहानी है।

Related Articles

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button