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इनबुक एक कोशिश तस्वीर बदलने की

*इनबुक एक कोशिश तस्वीर बदलने की*

आज समाज में तेजी से बदलाव हो रहा है । हम अब डिजिटल दुनिया में जीने लगे हैं। इस दुनिया की कोई सीमा नहीं है । यह असीमित है। की यहां सबकुछ है। बस किसी मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट, पीसी इत्यादि पर एक ‘टच’ करने की जरूरत है। एक ‘टच’ हुआ नहीं कि मनमानी चीज मिल गई। सचमुच इस डिजिटल बनती दुनिया ने हमारे जीवन को कितना आसान बना दिया है। हम जादू की झप्पी से चीजों को पाने लगे हैं। इस तरक्की की लगातार दौड़ में सोशल नेटवर्क एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है, जहां सबकुछ है • अच्छा भी बुरा भी। नजरदारी भी कुछ खास नहीं है। कहीं न कहीं यह भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से मेल नहीं खाती है। इसे ध्यान में रखते हुए एक अलग तरीके के सोशल नेटवर्क ‘इनबुक’ को लॉन्च किया गया है। यह नेटवर्क पूरी तरह से देसी है । भारतीय है। यह मिलावट से मुक्त है। इस पर पाश्चात्य संस्कृति का किंचित मात्र भी प्रभाव नहीं है।

‘इनबुक’ को लॉन्च करने के पीछे एक बहुत बड़ा उद्देश्य है, जो सीधे आम जनता से जुड़ा हुआ है। इसका लक्ष्य आम लोगों को अपने सोशल नेटवर्क का हिस्सा बनाना है। इसमें जो भी सामग्री है, वह पूरी तरह से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को ध्यान में रखकर परोसी गई है। इसका अर्थ कतई नहीं है कि इसमें आधुनिकता नहीं है। यह पूरी तरह से आधुनिक है, डिजिटल है, फिर भी सामाजिक दायरे में है। इसमें दिमाग को दूषित करने की नहीं, बल्कि उसे टॉनिक देने की सामग्री है। इसे नकारात्मकता से मुक्त रखने का भरसक प्रयास किया गया है।

इनबुक सिर्फ डिजिटल प्लैटफॉर्म तक ही सीमित नहीं है। यह वास्तविक दुनिया से भी वास्ता रखता है। इसके तहत अनेक चौरिटेबल कार्य किए जा रहे हैं, जो समाज के उत्थान के प्रति समर्पित हैं। इसके लिए समाज में शिक्षा को बढ़ावा देकर उसे सशक्त बनाया जा रहा है। ‘इनबुक’ ने ग्रामीण क्षेत्रों में लाइब्रेरी खोलना शुरू किया है, जहां पर लोगों को पुस्तकों को पढ़ने के लिए उत्साहित किया जा रहा है। उन स्थानों पर ‘इनबुक’ अधिकांश सहयोग देकर पुस्तकों को उपलब्ध रहा रही है। इसकी पहल से उत्साहित होकर स्थानीय लोग भी इसमें योगदान दे रहे हैं। इसके साथ ही स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस एवं अन्य अवसरों पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

इनबुक अपनी पत्रिका के माध्यम से उन लोगों की सुध ले रहा है, जो वंचित हैं। समाज में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे सचमुच हकदार हैं। उदाहरण के तौर पर एक सफाई कर्मी को आम तौर पर हेय दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन वह कुछ दिन कॉम पर न आए, तो उसकी अहमियत समझ में आती है। सफाई के बिना जीना दूभर हो जाता है। इसी प्रकार एक ट्रैफिक कांस्टेबल अगर ठीक से ट्रैफिक नियंत्रण न करे, तो सड़क पर चलना कठिन हो जाता है।

इस ‘इनबुक’ में हम उन दूर-दराज के क्षेत्रों की खबरों एवं समस्याओं को लेकर आ रहे हैं, जिसकी खबर कोई नहीं करता है। इसमें उन समस्याओं को प्रकाशित तो किया ही जाएगा, साथ ही इस पत्रिका की प्रति को विभिन्न विभागों, नौकरशाहों एवं सरकारी एजेंसियों के पास प्रेषित करने की भी योजना है। इसके माध्यम से हमारी कोशिश वंचित क्षेत्रों की तस्वीर को बदलना है।

यह सही है कि ‘इनबुक में ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों की समस्याओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाएगा, लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि शहरांचलों को छोड़ दिया जाएगा। वह भी हमारी खबरों और लेखों का हिस्सा होंगे। इसके साथ ही इसमें स्वास्थ्य, खेल, राजनीति, आर्थिक, उद्योग-धंधे से जुड़े ढेरों लेख एवं स्तम्भ होंगे। इसे पाठकों की रुचि एवं उनकी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत किया जाएगा।

आशा है आपको यह अवश्य पसंद आएगा । हाँ, इसकी मूल बुनियाद पाठक ही हैं। इसलिए पाठक अपने विचारों और सुझावों से हमारी अच्छाईयों, कमियों एवं त्रुटियों से हमें अवश्य अवगत करायें, जिससे हम अगले अंक में आवश्यक सुधार कर सकें। उम्मीद है कि आपको यह अदना सा प्रयास अवश्य पसंद आएगा ।

 Surendra Kumar Pahwa

Ex Chief Commissioner of Income Tax,

Ex Vice Chairman, Settlement Commission of India)

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