मेरी कलम से
मेरी कलम से
गज़ल
तन्हा हूं
इंसानी हुजूम में भी तन्हा हूं
मुझे खुद पता नहीं कहां हूं।
मुहब्बत करने की जुर्रत क्या कर दी
वफा के हाशिए से भी लापता हूं।
वो आईना आज भी मुझे पहचान लेगा
यकीनन मेरा चेहरा हु-ब-हू दिखा देगा।
अरे
मुहब्बत ही तो की थी
जमाना
और कितनी बड़ी सजा देगा?
ये दरख्त की मानिन्द जिन्दगी
परवाहे फलसफा क्या होगा
पंचतत्व करे इंतजार जिसका
रौशनी या अंधेरे का असर क्या होगा।
एक दिन उड़ जायेंगे प्राण पखेरु
सबकुछ क्षत-विक्षत होगा।
हर रंग दिखायेगी जिन्दगी
गिला-शिकवा किसी से क्या होगा।
बहुतों ने छिड़के होंगे जले पर नमक
पर
मरहम की तरह जो देंगे श्रद्धांजलि
मीत वही सच्चा होगा।