दिव्यांगों के बीच का एक पुरुषार्थी -डॉ महेंद्र कुमार उपाध्याय
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डॉ महेंद्र कुमार उपाध्याय उ०प्र०के जनपद जौनपुर के अंतर्गत ग्राम व पोस्ट डमरूआ के निवासी हैं | आपका जन्म 10 जुलाई, 1969 ई० में हुआ |
आपने हाईस्कूल ( उ० प्र० बोर्ड ) की परीक्षा 1984 ई० में सम्मान सहित (ऑनर्स ) प्रथम श्रेणी में , इंटरमीडिएट ( उ० प्र० बोर्ड ) की परीक्षा 1986 में प्रथम श्रेणी , स्नातक ( बी० ए० ) की परीक्षा ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय ) 1989 ई० में प्रथम श्रेणी में , स्नातकोत्तर( एम० ए० ) की परीक्षा 1991 ई० में श्रेष्ठता सूची में द्वितीय स्थान के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की | आपने उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम एवं ख्यातिलब्ध इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही 2001 ई0 में डॉक्टर ऑफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की |
आप बाल्यकाल से ही संघर्षशील रहे | आपके अनुसार जीवन में संघर्ष से व्यक्तित्व विकास और बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त होता है | आप धैर्य से संघर्षों का सामना कर सफलता के मार्ग को प्रशस्त किये |
आपको उच्च शिक्षा प्राप्त करने की प्रेरणा आपके पिताजी से प्राप्त हुई | उत्साहवर्धन का कार्य ग्राम के एक अंग्रेजी विषय के प्रोफेसर श्री राजपूत तिवारी ने किया | आप दोनों की प्रेरणा से डॉ० उपाध्याय ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक प्रोफेसर के पद को अलंकृत किया | आप का मानना है कि उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति जीवन के पुरुषार्थ एवं उचित – अनुचित का निर्णय करने में समर्थ होता है | समाज एवं राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका होती है |
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सम्प्रति , आप विश्व के प्रथम दिव्यांग विश्वविद्यालय – जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय , चित्रकूट ( उ० प्र० ) के इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के विभागाध्यक्ष एवं शिक्षा , प्रबंधन एवं ललित कला संकाय के संकायाध्यक्ष हैं |इसके पूर्व आप मानविकी, सामाजिक विज्ञान, संगीत एवं कंप्यूटर विज्ञान संकाय के 2016 से 2019 तक संकायाध्यक्ष रहे | आप दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद (14-12-2019 से 14 12 2021) पर सफलतापूर्वक अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किये |
आपके निर्देशन में दिव्यांग विद्यार्थियों के बहुमुखी विकास हेतु अनेक कार्य किए गए हैं | विश्वविद्यालय में कौशल विकास एवं समसामयिक विषयों पर अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं परिचर्चा का आयोजन करने में आप की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है | आप दिव्यांग विद्यार्थियों को शिक्षित – प्रशिक्षित कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का एक चुनौतीपूर्ण कार्य कर रहे हैं |
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इस प्रकार समाज के एक विशिष्ट वर्ग की आप द्वारा सेवा का कार्य किया जा रहा है | आप का मानना है कि सकलांग विद्यार्थी दिव्यांग विद्यार्थियों की विशिष्ट कला एवं क्षमता से प्रेरणा ले और यह समझ विकसित करें कि वह किसी से कम नहीं है उनके प्रति सहानुभूति रखें | आपकी दृष्टि में विद्यार्थी को अपने अध्ययन में अनुशासन , लक्ष्य के प्रति दृढ़ता, समयबद्धता एवं नियमित अध्ययन का सदैव ध्यान रखना चाहिए |
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