मेरी कलम से
अनोखा प्रेम; रोली शुक्ला
है बड़ा अनोखा प्रेम कृष्ण का,
वर्षाने की राजकुमारी से,
आधुनिक युग का हर प्रेमी,
क्यों करता तुलना गिरधारी से |
छल सीखा गर छलिया से,
तो धर्म से वंचित क्यों प्राणी,
ये माया जाल विधाता की,
जो है सबका पालनहारी ।
पढ़ा पाठ यदि मोह का तो,
परिभाषा त्याग की भी जानो,
करते आशा क्यूं नारी से,
स्वयं के कर्तव्य भी पहचानो वो क्या समझे पर पीड़ा को,
जिसने पाई खुशियाँ सारी,
सब कुछ खोकर भी मुस्काना,
सीखें हम मुरली धारी से |
है बड़ा अनोखा प्रेम कृष्ण का,
वर्षाने की राजकुमारी से,
आधुनिक युग का हर प्रेमी,
क्यों करता तुलना गिरधारी से ।।