माँ का बलिदान
उस वक्त अस्पताल के आईसीयू में करीब रात के लगभग 10.30 बज रहे थे, मुख्य डॉक्टर अपनी विजिट करके जा चुके थे, मरीजों से मिलने का विजिटिंग टाइम भी निकल चुका था, इसलिए ज्यादातर मरीज खाना आदि खाने के बाद अकेले ही सो रहें थे…
चिरपरिचित सी सेनेटाइजर की गंध, स्टेनर के पोहे, हर पलंग के पीछे अलमारी पर दवा की ट्रे, लगभग हर मरीज के पास सलाईन लगे स्टैंड, लगभग सारी लाइट्स बन्द हो चुकी थी..
पूरे आईसीयू वार्ड में गहन खामोशी थी.. मगर रोहन की माँ सुधा की नाजुक परिस्थिति देखते हुये उस ‘‘हेड नर्स‘‘ ने रोहन और उसके पिता को एक साथ सुधा के पास उस वक्त भी जाने की ‘‘विशेष अनुमति‘‘ दे दी थी…
वेंटिलेटर पर पड़ी सुधा की तबियत देखते हुये पिताजी ने रोहन के कंधे पर हाथ रखकर कहा, बेटा पिछले 6 दिन से तेरी माँ वेंटिलेटर पर है… कोई सुधार नहीं दिख रहा, ऊपर से यह रोज का 20 हजार रुपये का बिल, हम सारी प्रोपर्टी बेचने को मजबूर हो जायेंगे मगर फिर भी बिल न चुका पाएंगे…. कल से तो डॉक्टर भी यही सलाह दे रहें हैं कि वेंटिलेटर हटा दो, वह जी चुकी हैं, जितनी जिंदगी वह जी सकती थी…. वैसे भी उसे कुछ न पता चलेगा कि वेंटिलेटर हट गया हैं या नहीं… एक दो मिनट में सबकुछ खत्म हो जायेगा।
पिताजी की बात सुनकर रोहन फफककर रो पड़ा.. बोला कैसा कह रहें हैं आप.. बचपन में जब मुझे निमोनिया हुआ था, तब आप भी न थे तो माँ मुझे गोद लिए 6 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल में दवा कराने ले गई थी, इलाज को पैसे न थे तो शादी में मिली अपनी चूड़ियां तक बेचकर उसने मेरा इलाज कराया था..मैं तब ही मर जाता तो कहाँ से जोड़ता यह दौलत… मेरी सबसे बड़ी दौलत तो मेरी माँ ही है… उसे भले ही श्वास लेते नहीं बन रही… मगर वह ‘‘चेतना शून्य‘‘ नहीं है…
मैं सबकुछ बेंच कर भी उसका इलाज करवाऊंगा.. वह ‘चेतना शून्य‘‘ हो भी गई हों तो भी मुझमें अभी ‘‘चेतना‘‘ बाकी है.. मैं यूँ माँ को मरने नहीं दूंगा…. उम्र पड़ी है.. दौलत बटोरने को …भगवान ने चाहा तो फिर कमा लूँगा।
रोहन भावुक होकर रोने लगा था, तभी उन दोनों के बात करने की वजह से आईसीयू के ‘‘सतत सन्नाटे में व्यवधान‘‘ पड़ता देखकर ‘‘हेड नर्स‘‘ ने इशारे से रोहन और उसके पिता को आईसीयू वार्ड से बाहर जाने का संकेत दिया…
पिताजी और रोहन एक आज्ञाकारी छात्र की तरह उस इशारे को समझते हुये बिना कुछ कहे उस आईसीयू से बाहर चले गये…
रोते बिखलते हुये रोहन को देखकर पिताजी को शायद अपनी ‘‘गलती‘‘ का अहसास हो चुका था, इसलिए वह उसे संयत करने का प्रयास कर रहें थे।
तभी नर्स ने दौड़कर डयूटी डॉक्टर को बुलाया, डॉक्टर छाती को ठोककर सुधा को बचाने का अंतिम प्रयास कर रहा था.. कार्डियक मोनिटर पर गिरती पल्स रेट्स 62..56…45…36..30..21..10..0… चिकित्सकीय रूप से सुधा को मृत घोषित कर रहीं थी.. अब कार्डियक मोनिटर पर सीधी रेखा सुधा के निधन की ऑफिशियल पुष्टि कर रही थी…
डॉक्टर ने रोहन के पिता को सॉरी कहते हुये पूछा कि वेंटिलेटर हटाने के लिए नर्स को किसने कहा था?
रोहन के पिता ने चकित होकर हेड नर्स की तरफ देखा और हेड नर्स ने डॉक्टर की तरफ….
किसी साजिश के अंदेशे को भांपकर डॉक्टर ने तुरंत ही ‘‘हेड नर्स‘‘ से ब्ब् ज्ट रिकॉर्डिंग देखने को कहा…
लगभग आधे घण्टे पूर्व की उस रिकॉर्डिंग को खोजने में उन्हें ज्यादा वक्त न लगा.. उसमें साफ दिख रहा था कि रोहन और उसके पिता के आईसीयू से जाने के बाद.. सुधा ने पुरजोर कोशिश करके, अपना एक हाथ जो पट्टी के सहारे पलंग से बंधा था, उसे झटका देकर छुड़ा लिया.. और खुद ही उसने अपने मुँह पर लगें ‘‘वेंटिलेटर मास्क‘‘ को खींचकर निकाल लिया था.. एक दो मिनट के हिचकोले खाकर सुधा का शरीर सदा के लिये शांत हो गया।
रोहन ने सच ही कहा था उसकी माँ को श्वसन तंत्र में समस्या जरूर थी..मगर वह ‘‘चेतनाशून्य‘‘ नहीं थी।