परमवीर चक्र विजेता – कैप्टन योगेन्द्र सिंह यादव
वर्ष 1996 ई. में जब महज 16 साल के लड़के योगेन्द्र सिंह यादव को भारतीय सेना की भर्ती का चयन-पत्र मिला तो उनके घर वालों और गाँव वालों की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। इसके महज 3 साल बाद इस लड़के ने 1999 के कारगिल युद्ध में ऐसा पराक्रम दिखाया कि आज भी उसे याद कर दुश्मन के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। इस पराक्रम के लिए उसे सबसे कम उम्र में सेना के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
परिचय : जन्म और परिवार
सूबेदार मेजर और मानद कप्तान योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के औरंगाबाद अहीर गाँव के एक फ़ौजी परिवार में हुआ था। उनके पिता करण सिंह यादव ने भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजीमेंट में अपनी सेवा देते हुए 1965 और 1971 के युद्ध में भाग लिया था। योगेन्द्र जी के बड़े भाई जितेंद्र सिंह यादव भी सेना की आर्टिलरी शाखा में हैं। मिलिट्री ट्रेनिंग के कुछ साल बाद 1999 में योगेन्द्र परिणय-सूत्र में बंध गए। विवाह के 15 दिन बाद ही सेना के मुख्यालय से सामान बाँध कर कारगिल पहुँचने का आदेश आ गया। महज 19 साल के योगेन्द्र के लिए यह निर्णय कतई आसान नहीं था। उन्होंने देश-सेवा का निश्चय किया और कारगिल पहुँच गए।
मिशन इम्पॉसिबल : टाइगर हिल का विजय अभियान
योगेन्द्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर्स के साथ कार्यरत कमांडो प्लाटून ‘घातक शक्ति’ का हिस्सा थे, जो 3-4 जुलाई 1999 की रात द्रास सेक्टर के टाइगर हिल पर तीन सामरिक बंकरों पर कब्ज़ा करने के लिए नामित की गयी थी। बंकर एक ऊर्ध्वाधर, बर्फ से ढके हुए 1000 फुट ऊंची चट्टान के शीर्ष पर स्थित थे। योगेन्द्र स्वेच्छा से चट्टान पर चढ़ गए और भविष्य में आवश्यकता के मद्देनजर वहाँ रस्सियों को स्थापित किया। उन्होंने आधा रास्ता ही पूरा किया था कि तभी एक दुश्मन बंकर ने मशीन गन और रॉकेट से भयंकर गोलीबारी आरम्भ कर दी, जिसमे प्लाटून कमांडर और दो अन्य शहीद हो गए। अपने गले और कंधे में तीन गोलियों के लगने के बावजूद, यादव शेष 60 फुट की ऊंचाई चढ़ते हुए शीर्ष पर पहुंच गए। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वह रेंगते हुए पहले बंकर में घुस गए और एक ग्रेनेड से चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और शत्रु को स्तब्ध कर दिया। इससे बाकी पलटन के चट्टान पर चढ़ने के लिए रास्ता साफ़ हो गया। उसके बाद यादव ने अपने दो साथी सैनिकों के साथ दूसरे बंकर पर हमला किया और हाथ से हाथ की रोमांचक लड़ाई में चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। इस प्रकार 17 गोलियां लगने के बावजूद योगेन्द्र अपनी पलटन को टाइगर हिल पर विजय प्राप्त कराने में सफल रहे।
सम्मान और लोकप्रियता :
कारगिल युद्ध में उनकी इस भूमिका के कारण कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव को ‘टाइगर हिल का टाइगर’ कहा जाता है। कैप्टन योगेन्द्र की अद्भुत वीरता और अदम्य साहस के लिए उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। लेकिन बाद में यह पता चला कि उनकी यूनिट में उनके ही नाम के एक और सैनिक योगेंद्र सिंह यादव टाइगर हिल विजय के दौरान शहीद हुए थे जो उनके ही पड़ोसी जिले मेरठ के थे और कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव के बहुत घनिष्ठ मित्र थे। यह भी स्पष्ट हुआ कि मेरठ के शहीद योगेंद्र सिंह यादव को सेना मेडल मिला है जबकि परम वीर चक्र पाने वाले बुलन्दशहर के योगेंद्र सिंह यादव जीवित हैं और आर्मी रेफरल हॉस्पिटल दिल्ली में सुधार की हालत में हैं। तब तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वेद प्रकाश मलिक वहाँ पहुंचे और योगेंद्र सिंह को देश के सबसे बड़े सैन्य पुरस्कार के लिए जानकारी और बधाई दी।
साल 2021 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें मानद कप्तान की उपाधि से विभूषित किया गया। वह कौन बनेगा करोड़पति शो में अमिताभ बच्चन के विशेष आमंत्रण पर अपने साथी परमवीर चक्र विजेता सूबेदार संजय कुमार के साथ शामिल हुए और जीती गई पूरी धनराशि आर्मी वेलफेयर फण्ड में दान कर दिया। देश सेवा के लिए वर्ष 2014 में इनको उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के सर्वोच्च पुरस्कार यश भारती से सम्मानित किया गया। बॉलीवुड की फ़ीचर फ़िल्म एल ओ सी कारगिल (2003 फ़िल्म) में योगेंद्र सिंह यादव का किरदार अभिनेता मनोज बाजपेयी ने निभाया।
युगों तक बने रहेंगे प्रेरणास्रोत :
भारतीय सेना की आधिकारिक वेबसाइट पर योगेन्द्र सिंह यादव के परमवीर चक्र की प्रशस्ति के सम्बन्ध में 3-4 जुलाई 1999 की हैरतअंगेज घटना और मात्र 19 साल के ग्रेनेडियर योगेन्द्र की साहसिक गाथा को ओजपूर्ण शब्दों में बयाँ किया गया है – “अपने कई घावों और सामने से निरंतर बरसतीं शत्रु की गोलियों से बेपरवाह ग्रेनेडियर यादव शत्रु के ठिकानों की ओर आगे बढ़ते रहे। ग्रेनेड दागते और गोलीबारी करते हुए यादव ने बेहद नज़दीकी मुकाबले में अपने कई दुश्मनों को मार गिराया और उनकी ऑटोमेटिक फायरिंग शांत करा दी। शरीर में कई घाव होने के बावजूद उन्होंने रणभूमि से अपने को बचा कर निकालने से मना कर दिया और लगातार मोर्चा सम्भाले रहे…ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव ने चरम प्रतिकूल परिस्थितियों में अतिविशिष्ट साहस, अदम्य वीरता, धैर्य और दृढ़ता का प्रदर्शन किया” । राष्ट्र की सेवा में कैप्टन योगेन्द्र जैसे सपूत सदा के लिए अमर हो जाते हैं और देशवासियों के लिए प्रेरणा की एक मिसाल बन जाते हैं। ऐसी मिसाल, जो युगों-युगों तक मशाल की तरह घने अँधेरों में भी राष्ट्र की सच्ची सेवा, निष्ठा, दृढ़ता और साहस के लिए उनका पथ-प्रदर्शन करती रहती है।
जय हिन्द!
डॉ. परम प्रकाश राय
सहायक प्रोफ़ेसर,
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग,
मगध विश्वविद्यालय, बोध गया