गुमनाम नायक – स्व . कल्पना दत्त जी
कैफे सोशल मासिक पत्रिका में हम उन स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर रहे है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए ब्रिटिश हुकूमत से डटकर सामना करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।आज देश में उनके द्वारा किए गए योगदान को इतिहास में वो जगह नहीं मिली जिसके वो हकदार थें। भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए भारत के हर वर्ग और हर उम्र के लोगों ने भाग लिया था।
आज हम ऐसी महान वीर क्रांतिकारी महिला को याद कर रहे हैं जिन्होंने कम उम्र में ही लड़के का भेष रख कर अंग्रेजी हुकूमत से सामना किया था।
स्व. कल्पना दत्त जी ऐसी ही महान क्रांतिकारी महिला थी।
कल्पना दत्त जी का जन्म २७ जुलाई १९१३ को श्रीपुर चटगांव (बंग्लादेश) में हुआ था।
आपकी प्रारंभिक शिक्षा चटगांव में हुई थी, आगे की पढ़ाई के लिए सन् १९२९ में हाईस्कूल की परीक्षा पास कर वह कलकत्ता चली गई, यहां बेश्यूम कालेज में भर्ती हुई। स्नातक की पढ़ाई करते समय आप क्रांतिकारियों के वारे में भी पढ़ती थी, जिनसे वह बहुत अधिक प्रभावित हुई।
जब अंग्रेजों को भारत से हटाने की मुहिम चल रही थी तब गुलामी की फिजाओं में बड़ी हो रही
कल्पना जी यहां एक छात्र संघ से जुड़ गई। यहां पर ही उनकी मुलाकात बीना दास और प्रीति लता वड्डेदार जैसी क्रांतिकारी महिलाओं से हुई, जो लगातार आजादी के लिए सक्रिय थी।
कल्पना दत्त जब सिर्फ 14 वर्ष की थी तब उन्होंने चटगांव में एक विद्यार्थी सम्मेलन में भाषण दिया था। उनके उस भाषण से लोगों में कल्पना की निडरता और गुलामी के प्रति सोच का एहसास करा दिया। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि “दुनिया में हमें गर्व से मस्तक ऊंचा करके जीना है तो माथे से गुलामी का कलंक मिटाना होगा” अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने के लिए अपनी शक्ति का संचय करो, क्रांतिकारियों का साथ दो और अंग्रेजों से लड़ो।
कलकत्ता में पढ़ाई के समय वह उस समय के प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्यसेन की इंडियन रिपब्लिक आर्मी से जुड़ गई । यहां काम करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सन् १९३० में जवाहरलाल नेहरू की गिरफ्तारी पर आपने कालेज में हड़ताल करवा दी। इसके बाद चटगांव शस्त्रागार पर हमला कर उसे लूट लिया।
जब अंग्रेजों ने इन लोगों को पकड़ने के लिए कार्यवाही की तो कल्पना जी को भी पढ़ाई छोड़कर चटगांव लोटना पड़ा।इसी समय कई क्रांतिकारी साथी गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेजों की नजर से बचने के लिए उन्होंने लड़के का भेष रख लिया। भूमिगत रहते हुए निरंतर क्रांतिकारियों के सम्पर्क में रही। लड़के के भेष में अब वह कलकत्ता से विस्फोटक सामग्री और संगठन के साथियों को हथियार पहुंचाने लगी।
अपने साथियों को जेल से छुड़ाने के लिए जेल को डायनामाइट से उड़ानें की योजना बनाई।इस योजना पर अमल हो पाता ठीक उससे पहले इस योजना का पता अंग्रेजों को लग गया। पुलिस इन लोगों को पकड़ने के लिए प्रयास करने लगी। लेकिन कल्पना जी वहां से भाग कर भूमिगत हो गए गई। भूमिगत होने के बाद एक दिन कल्पना, सूर्य सेन व अन्य साथी गांव के एक मकान में छुपे हुए थे तभी पुलिस वहां पहुंच गई लेकिन यह लोग वहां से भाग निकले। परंतु १६ फरवरी १९३३ को किसी काम से घर के बाहर निकले तो पुलिस ने घेर लिया और वही पुलिस से मुठभेड़ हो गई। २ घंटे तक आमने सामने की लड़ाई में सूर्य सेन तो गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन कल्पना अंग्रेज सिपाहियों पर गोली चलाते हुए भाग निकली। आखिरकार मई १९३३ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली। इस समय वह सिर्फ २१ वर्ष की थी।
अपनी पुस्तक “चटगांव शस्त्रागार आक्रामण” में लिखा कि जेल में गांधी जी मुझसे मिलने आए,वे मुझसे मेरी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण बहुत नाराज थे।पर उन्होंने कहा में फिर भी तुम्हारी रिहाई के लिए कोशिश करूंगा। सन् १९३७ में जब पहली बार प्रदेशो में भारतीय मंत्री मंडल बने तब गांधी जी, रविन्द्र नाथ और सी एफ एंड्रयूज के विशेष प्रयत्नों से १मई १९३९ को वह जेल से रिहा हो गई । इसके बाद वह कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य बन कर ” ट्रेड यूनियन वर्कर” के रूप में कार्य करने लगी।
द्वितीय विश्व के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में फिर से सक्रिय होने के कारण १९४१ में आप पर फिर से पावंदिया लगा दी गई।
सन् १९४३ में आपका विवाह कम्युनिस्ट नेता श्री पूरन चंद जोशी के साथ हुआ था। सितंबर १९७९ में पुणे में आपको “वीर महिला” की उपाधि से सम्मानित किया गया।
जीवन के अंतिम समय तक आप दिल्ली में रही।८ फरवरी १९९५ को अंतिम सांस ली।
भारत माता की इस वीरांगना को स्वतंत्र भारत में गुमनामी में अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ी।
वीर महान क्रांतिकारी कल्पना दत्त जी को कैफे सोशल शत् शत् नमन करता है।