हम कितना भी आंग्ल भाषा का ज्ञान बटोर ले लेकिन अवसरवादियों को संबोधित करने के लिए हिंदी के एक बहुप्रचलित मुहावरे पर ही आश्रित होना पड़ता है और वो है “ बेपेंदी का लोटा”
वैसे तो यह मुहावरा सब जीवित प्राणियों पर लागू होता है लेकिन इसकी लोकप्रियता को आसमान पर पहुंचाने के लिए राजनेताओं और बुद्धिजीवियों का योगदान अतुलनीय है। जब हम राजनेताओं के योगदान की महिमा का बखान करे और उसमे सुशासन बाबू अर्थात कुर्सी कुमार का नाम ना ले तो यह बहुत बड़े अन्याय की बात होगी। वैसे तो बहुत सारे राजनेताओं का नाम “बेपेंदी का लोटा” नाम की सूची में शामिल है लेकिन ये अपने सुशाशन बाबू का ही प्रताप था जिसने इस मुहावरे की महिमा में चार चांद लगाए हैं।
क्या कहा ? आपको “लोटा” शब्द का अर्थ नही पता? लो कर लो बात, ये क्या बात हुई। चलो कोई बात नही हम बताए देत है। तो भईया लोटा एक प्रकार का बहुपयोगी बर्तन होता है जिसका उपयोग बहुतायत पानी को लाने और ले जाने के काम में लिया जाता है। मजे की बात तो ये है कि लोटा पकड़ने की हस्तमुद्रा से ही आप लोटा पकड़ने वाले की मंशा जान सकते है जैसे कि देवता पर जल चढ़ाना, अतिथि को पानी पिलाना या फिर शौच (टॉयलेट) को जाना ।
वैसे तो यह मुहावरा सब जीवित प्राणियों पर लागू होता है लेकिन इसकी लोकप्रियता को आसमान पर पहुंचाने के लिए राजनेताओं और बुद्धिजीवियों का योगदान अतुलनीय है। जब हम राजनेताओं के योगदान की महिमा का बखान करे और उसमे सुशासन बाबू अर्थात कुर्सी कुमार का नाम ना ले तो यह बहुत बड़े अन्याय की बात होगी। वैसे तो बहुत सारे राजनेताओं का नाम “बेपेंदी का लोटा” नाम की सूची में शामिल है लेकिन ये अपने सुशाशन बाबू का ही प्रताप था जिसने इस मुहावरे की महिमा में चार चांद लगाए हैं।
क्या कहा ? आपको “लोटा” शब्द का अर्थ नही पता? लो कर लो बात, ये क्या बात हुई। चलो कोई बात नही हम बताए देत है। तो भईया लोटा एक प्रकार का बहुपयोगी बर्तन होता है जिसका उपयोग बहुतायत पानी को लाने और ले जाने के काम में लिया जाता है। मजे की बात तो ये है कि लोटा पकड़ने की हस्तमुद्रा से ही आप लोटा पकड़ने वाले की मंशा जान सकते है जैसे कि देवता पर जल चढ़ाना, अतिथि को पानी पिलाना या फिर शौच (टॉयलेट) को जाना ।
और एक जरूरी बात बताना भूल गया वो यह कि लोटा अंदर से बिलकुल खाली होता है और जो भी पदार्थ उसके अंदर भर दो, वो उसी को उड़ेलता है।
तो आज का विषय हमारे समाज में व्याप्त तरह तरह के बेपेंदी के लोटो के बारे में बताना नही है बल्कि ये बताना है कि हम सब लोटा है।
अरे! नाराज क्यों हो रहे है हो? इसलिए ना कि आपको लोटा बोला गया है? अरे! आप लोग भी तो सबको बेपेंदी का लोटा बोलते हो और आपको बोला गया तो ऐसे क्रोधित हो रहे हो जैसे सांड को लाल कपड़ा दिखा दिया गया हो? ध्यान से पढ़िए, हमने कहा हम सब लोटा है, ये नही कहा हम सब बेपेंदी के लोटे है।
तो चलिए हम बताते है कि क्यों हम लोग लोटा है? देखिए ये तो आपको पता है कि लोटा अंदर से खाली होता हैं और जो उसके अंदर डालते हैं वो वही वापस निकालता है। तो भईया जरा खुद अपने बारे में सोचो! क्या आप लोटे जैसा व्यवहार नहीं कर रहे हो? बल्कि यूं कहना चाहिए कि जितने शिक्षित और पढ़ें लिखे उतने बड़े लोटे।
आज आपके आसपास और सोशल मीडिया पर ऐसे शिक्षित लोटे खूब मिल जायेंगे जो उसी विषय और विचारधारा का समर्थन या फिर विरोध करते मिल जायेंगे जो उनके अंदर भर दिया गया है और भरा जा रहा है। हम और आप के अंदर जो चीज और विचार भरे जा रहे है हम उन्हीं को उड़ेल रहे है। तो क्या हम लोटा जैसे नही है? कहां है हमारी स्वतंत्र सोच, जहां हम किसी भी स्थान और घटना के बारे में स्वतंत्र राय दे सके बिना इस बात से प्रभावित हुए कि घटना में शामिल लोगों का धर्म, जाति या नागरिकता क्या है? क्या हम ऐसा कर पाते है? क्या हम कभी अपने विवेक का उपयोग कर गलत को गलत कह पाते है?
उदाहरण के लिए अगर हम भ्रष्टाचार के विरोध में है, तो क्या हमारा व्यवहार सब भ्रष्टाचारी अधिकारियों, उच्च पदों पर बैठे लोगो या नेताओं के लिए एक सा होता है? या फिर हम भी कह देते है, “ तेरा नेता मेरे नेता से ज्यादा भ्रष्ट”
या फिर अगर हम स्वतंत्र विचार के समर्थक है तो फिर हमारी प्रतिक्रिया व्यक्ति विशेष को देख क्यों बदल जाती है? या फिर चुनावी के बाद उपजी एक हिंसा, दूसरी हिंसा से कम या बड़ी क्यों हो जाती है? आखिर क्यों? अगर हम लोकतंत्र के समर्थक है, तो लोकतंत्र के ऊपर हुए हर प्रहार पर हमारी प्रतिक्रिया एक समान क्यों नही होती? क्या आपको नहीं लगता है कि आजादी का मतलब सिर्फ गोरों के शासन से मुक्ति नही बल्कि अपने विवेक से सोचने की भी आजादी थी। तो कही ना कही हम भी लोटे ही हुए ना और वो भी बेपेंदी के।
और मजे की बात तो ये है कि जितना प्रसिद्ध और बड़ा बुद्धिजीवी वो उतना ही बड़ा लोटा और वो भी बेपेंदी का। हम लोग सिर्फ राजनेताओं को बेपेंदी का लौटा कहते है पर क्या आपने अपने आसपास पाए जाने वालें प्रसिद्ध पत्रकार, बुद्धिजीवी, फिल्म कलाकारों, सामाजिक संस्थाएं, मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरण संरक्षक और विभिन्न उच्च पेशे में कार्यरत पेशेवर इत्यादि लोगो को देखा है? क्या आपको नहीं लगता ये लोग तो उच्च-गति-संचलित बेपेंदी के लोटे है? उदाहरण के लिए एडिटर गिल्ड के निंदा पत्र जो सिर्फ एक विशेष विचारयुक्त पत्रकारों के ऊपर कार्यवाही के लिए प्रेषित (issue) किए जाना या फिर “गोली को लानत भेजना” (गोली तो बेचारी बदनाम हो गई) या फिर उच्चतम न्यायालय के द्वारा दो एक से विवाद में दिए गए विभिन्न प्रकार का फैसले या फिर एक जगह जंगल काटने विरोध लेकिन दूसरे जंगल के लिए सन्नाटा।
अगर आप आसपास देखेंगे तो ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे और उनके पीछे कोई ना कोई कारण भी मिलेगा चाहे वो सत्ता से करीबी हो या फिर आर्थिक। आप इनके लिए एक हिंदी फिल्म का गाना भी गुनगुना सकते है ” बेदाग नही कोई, यहां पापी सारे है। ना जाने कहां जाए हम बहते धारे है”
तो फिर हुए ना हम भी लोटे और जब तक हम अपनी स्वंत्रता का या अपने स्वतंत्र विचारों का उपयोग नहीं करते या फिर हम दूसरे के विचारो को बिना समझे उड़ेलते है तब तक हम लोटे ही है तो फिर:
“ गर्व से कहो हम लोटे है”