कोरोना , आध्यात्मिक चिंतन और प्रभाव – मीना गोदरे
राजभाषा हिन्दी का सम्मान 2021 प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त आलेख
कोरोना वायरस की उत्पत्ति और उसका प्रभाव दिसंबर 2019 को चीन के वुहान शहर से हुआ,फरवरी माह में कोरोना ने भारत के साथ कुछ अन्य देशों में भी प्रवेश किया और देखते ही देखते विश्व के प्रायः सभी देशों को अपनी चपेट में ले लिया , इस वायरस के लक्षण सर्दी खांसी और निमोनिया और सांस लेने में तकलीफ देखी गई, किंतु इसका संक्रमण इतना प्रभावशील था कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते ही क्रमश: दूसर,तीसरे और चौथे अंकगिनित व्यक्तियों को लगता जाता था।
हमें इस वायरस का पता तब चला जब 9 मार्च को हम सपरिवार तीर्थ यात्रा के लिए सूटकेस दरवाजे से बाहर निकाल रहे थे तभी हमारे बच्चों केफोन आए उन्होंने उसके भयावह परिणाम बताएं और हमें रोक दिया।
व्हाट्सएप खोल कर देखा तो हम भी दंग रह गए चीन के हालात वीडियो बयान कर रहे थे हजारों लोग मर रहे थे मरने से पहले भी बहुत बुरे हालात थे ,हमने जाना कैंसिल किया और फिर शुरू हुआ दिन भर व्हाट्सएप पर चलते भयभीत दृश्यों का सामना ,अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था किंतु शीघ्र ही खबर मिलने लगी भारत में उसके पांव पसारे जाने की और फिर धीरे धीरे पूरे विश्व में उसकी जड़ें फैलने की ,भयभीत होना स्वाभाविक था।लॉकडाउन लगने लगा लोग घरों में कैद होने लगे पूरा विश्व कई कई दिनों तक बंद रहा, मन व्याकुल रहने लगा।
अध्यात्म कहता है कालचक्र का प्रभाव नियमानुसार निश्चित समय इसीलिए होता है हम उस में किसी तरह की तोड़ मरोड़ नहीं कर सकते।हमने अपना दृष्टिकोण बदला चिंतन किया तो हल निकला कि यह स्थितियां शीघ्र समाप्त नहीं होंगी और इन पर काबू पाना हमारे वश में नहीं हैफिर स्थितियों के चिंतन से तनाव व्यग्रता और समय बर्बाद होगा ,हालात संवेदनशील थे स्वयं को व्यस्त रखना ही सारगर्भित था।
मैंने एक साहित्य एवं कला समूह स्थापित कर उस पर ऑनलाइन कार्यक्रम करवाना प्रारंभिक कर दिया ।लोगों को जैसे ठौर मिल गया देखते ही देखते बहुत से लोग उसमें जुड़ गए , उस पर साप्ताहिक साहित्यिक कार्यक्रम होने लगे।लोगों का ध्यान उन घटनाओं से हटकर सकारात्मक सृजन में लगने लगा,।
लोकगीतों का कार्यक्रम भी हुआ जिसने हमें अंदर तक से झकझोर दिया, सोचने पर विवश हो गई कि इतने मार्मिक और मधुर गीत समाप्ति कीकगार पर क्यों है इस प्रश्न की व्याकुलता के बाद ही एक हल सामने रख दिया और मैंने एक लोक भाषाओं की पुस्तक लुप्त होती लोक भाषाओंके संरक्षण के उद्देश्य प्रकाशित करने का निश्चय कर लिया ।
अथक परिश्रम से पुस्तक की सामग्री ऑनलाइन जुटाना प्रारंभ कर दी और तीन महीनों में समग्र देश से चालीस लोक भाषाएं मेरे पास संग्रहित हो गई उनका संपादन कर उन्हें मैंने हिंदी की 5 उपभाषाओं 18 बोलियां और 12 उपबोलियों का रूप देकर प्रकाशित करवाया ।जिसकी देश के विभिन्न हिस्सों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएं आईं यह पुस्तक भारत की प्रथम ऐतिहासिक और देवनागरी लिपि लिखे मौलिक लोकगीतों की ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण पुस्तक बनी ।जिसने इंडिया वर्ल्ड के साथ अनेकों सम्मान पाए,कहने का तात्पर्य यह है कि विकट समय में सकारात्मक दृष्टिकोण और आत्मविश्वास से समय का सदुपयोग सृजन कार्यों में लगाया सकता है।
कोरोना वायरस की पहली लहर ने बहुतों को मौत के घाट उतारा था किंतु दूसरी लहर के चलते निरंतर बारिश की बूंदों की तरह टप टप मौतें हो रही थी न जाने कितने ही हमारे परिचित और स्वस्थ युवा,साहित्यकार पत्रकार डॉक्टर रिपोर्टर साधु संतों ने करोना की चपेट में अपना दम तोड़ दिया । वायरस के प्रभाव से अधिक लोगों का भय,अस्पतालो की
चरमराती व्यवस्थाएं , ऑक्सीजन की कमी, टूटती मरीजो की भीड़ और पनपते भ्रष्टाचार के कारण कितने ही लोग असमय ही काल के गाल में समा गए ।प्रकृति नियत और नियमानुसार कार्य करतीहै जिसे विज्ञान कंट्रोल तो कर सकता है पर निरस्त नहीं, नियत समय पर मौत अवश्यंभावी है फिर उसका डर कैसा ?चिंता तो तब होती है जब सारा विश्व इसकी चपेट में आता है इंसानी कारनामा होते हुए भी इसे प्राकृतिक आपदा ही कहा जाएगा।
ऐसी घटनाओं की उपेक्षा करना , प्रकृति का मजाक बनाने की तरह है अतः सावधान और सतर्क रहना आवश्यक है।ऐसे समय अपनी जरुरतों के लिए लिए धन है तो संतुष्ट रहें अपनी आवश्यकताओं को भी कुछ कम करें।किंतु यदि नहीं है तो ऑनलाइन बहुत कुछ हो रहा है उस पर अपना ध्यान अधिक दें, सीखें और प्रयोग करें, जो हो रहा है उस पर से ध्यान कम करें वह जितने समय का है होकर रहेगा। आध्यात्मिक यही कहता है।
कोरोना की दूसरी लहर समाप्त हो गई लोग घर से निकलने लगे किंतु ऑफिस के काम घर में हो सकते हैं तो बाहर इतने लोगों को निकलने कआवश्यकता क्या है ,पृथ्वी के प्रदूषण के कारण भी यही हैं ।प्रकृति ने अपना न्याय स्वयं किया है सबको घरों में बंद करके आज वह स्वच्छंद हुई है उसकी रूपरेखा ही बदल गई है।उसके प्रति भी संवेदनशील होना हर इंसान का कर्तव्य है,।परिस्थितियां तो बदलेगी जरूर किंतु अब भारत का नया स्वरूप होगा इस अंतराल में लोगों ने कम से कम कुछ तो सीखा है।जो सीखा है वह सिखाया गया है लॉक डाउन खुलने के बाद भी उसी मितव्ययता, सादगी, संवेदना, स्वच्छता सहयोग और प्रेम से रहकर कोरोनाजैसी स्थितियों की पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है।
संपूर्ण विश्व में करोना काल की स्थितियां बहुत चिंताजनक थी कोरोना की पहली लहर बहुतों को मौत के घाट उतार चुकी थी किंतु अनापेक्षित
रुप से दूसरी लहर तो असुर बन बाहें फैलाए काल के गाल में ले जाने आतुर थी।शायद ही कोई घर बचा हो जहां उसके पैने पंजे न पड़े हों।कहीं कहीं तो पूरा परिवार उसकी चपेट में आ गया था ,अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की मारामारी हो रही थी एक तरफ लोग अपनी जान बचाने सब कुछ दांव पर लगा रहे थे तो दूसरी ओर इस मौके को भुनाने वाले भी कम नहीं थे ब्लैकमेल करके इंजेक्शन चौगुनी कीमत में बेचे जारहे थे ऑक्सीजन सिलेंडर जिसे जरूरी समझा गया उसे लगाया गया किसी की तो लगी हुई ऑक्सीजन को निकाल कर दूसरे को लगा दी कोई ऑक्सीजन के लिए अस्पतालों में दरदर भटका , किसी ने ब्लैक में बेचा तो कहीं जमाखोरी हुई, बहुतों ने आक्सीजन की कमी के कारण तो बहुतों ने महत्वपूर्ण इंजेक्शन रेमडेसिविर ना मिलने के कारण तड़प कर दम तोड़ दिया, लाशों को उठाने पर भी सौदेबाजी हो रही थी भूखे भेड़िए की तरह अपना जमीर बेचने वाले मौत के इस तांडव में अपनी जेबें भर रहे थे ।परिवार में माता पिता बच्चों को देखे बिना ही जलाया जा रहा था ,अर्थी को कंधा देने वाला भी कोई नहीं था।कब्रिस्तान में जगह मिलना मुश्किल हो रही थी वहां भी ब्लैक में जगह मिल रही थी सुनकर अपने कानों पर विश्वास नहीं होता किंतु यह घिनौना सत्य था जो मानवता को तार-तार कर रहा था
लंबे समय तक चले कोरोना वायरस के प्रभाव से निर्मित लॉक डाउन की स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई कल- कारखाने बंद हो
गए ,उच्च वर्ग की अपेक्षा मध्यम वर्ग के लोग जूझ रहे थे दवाइयों फल सब्जियों, अनाज के लिए ,और निम्न वर्ग के लोगों को भारत सरकार ने खाने के लिए अनिवार्य व्यवस्था कर दी थी कोई भी व्यक्ति भूख से नहीं मरा यह बड़ी उपलब्धि थी भारत के लिए। किंतु बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों के बंद होने से मजदूरों को अपने गांव पलायन करना पड़ा वह बहुत बड़ी ह्रदय विदारक स्थितियां थी जब धूप में पैदल मजदूर अपने गांव तक जा रहे थे और गांव में भी उनकी रोजी-रोटी का जरिया नहीं था सोच कर दम घुटता है कैसे जिए होंगे वह लोग ।भारत ही नहीं विश्व के अधिकांश करोना प्रभावित देशों में त्राहि-त्राहि मची हुई थी
विकराल और भयावह स्थिति में इंसानियत के उच्चादर्श को स्थापित करने वाले लोगों की भी कमी नहीं थी।कितने ही डॉलर सफाई कर्मी पुलिस कर्मियों ने सेवा करते-करते दम तोड़ दिया ।, रात दिन अपनी जान की परवाह किए बगैर परिवार से दूर कभी कभी कमरे में बंद दिन भर भारी किट पहनकर डॉक्टरघंटों भूखे प्यासे मरीजों की सेवा में लगे रहे, नर्से सफाई कर्मचारी हॉस्पिटल का स्टॉफ समर्पित होकर मरीजों की सेवा में जुटे रहे, कितने ही
मरते मरीजों को उन्होंने बचाया और देवदूत बनकर मानवता की मिसाल कायम की।