कोरोना , आध्यात्मिक चिंतन और प्रभाव
इस लेख में कोरोना वायरस के समय की परिस्थितियां आध्यात्मिक दृष्टिकोण का सकारात्मक प्रभाव, कोरोना के दुष्प्रभाव और सद्प्रभाव का संक्षिप्त विवेचन करने का प्रयास किया गया है
कोरोना , आध्यात्मिक चिंतन और प्रभाव-
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कोरोना वायरस की उत्पत्ति और उसका प्रभाव दिसंबर 2019 को चीन के वुहान शहर से हुआ ,फरवरी माह में कोरोना ने भारत के साथ कुछ अन्य देशों में भी प्रवेश किया और देखते ही देखते विश्व के प्रायः सभी देशों को अपनी चपेट में ले लिया , इस वायरस के लक्षण सर्दी खांसी और निमोनिया और सांस लेने में तकलीफ देखी गई, किंतु इसका संक्रमण इतना प्रभावशील था कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते ही क्रमश: दूसरे , तीसरे और चौथे अंकगिनित व्यक्तियों को लगता जाता था /
हमें इस वायरस का पता तब चला जब 9 मार्च को हम सपरिवार तीर्थ यात्रा के लिए सूटकेस दरवाजे से बाहर निकाल रहे थे तभी हमारे बच्चों के फोन आए
उन्होंने उसके भयावह परिणाम बताएं और हमें रोक दिया।
व्हाट्सएप खोल कर देखा तो हम भी दंग रह गए चीन के हालात वीडियो बयान कर रहे थे हजारों लोग मर रहे थे मरने से पहले भी बहुत बुरे हालात थे ,हमने जाना कैंसिल किया और फिर शुरू हुआ दिन भर व्हाट्सएप पर चलते भयभीत दृश्यों का सामना ,अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था किंतु शीघ्र ही खबर मिलने लगी भारत में उसके पांव पसारे जाने की और फिर धीरे-धीरे पूरे विश्व में उसकी जड़ें फैलने की ,भयभीत होना स्वाभाविक था। लॉकडाउन लगने लगा लोग घरों में कैद होने लगे पूरा विश्व कई कई दिनों तक बंद रहा, मन व्याकुल रहने लगा।
अध्यात्म कहता है कालचक्र का प्रभाव नियमानुसार निश्चित समय इसीलिए होता है हम उस में किसी तरह की तोड़ मरोड़ नहीं कर सकते। हमने अपना दृष्टिकोण बदला चिंतन किया तो हल निकला कि यह स्थितियां शीघ्र समाप्त नहीं होंगी और इन पर काबू पाना हमारे वश में नहीं है फिर स्थितियों के चिंतन से तनाव व्यग्रता और समय बर्बाद होगा ,हालात संवेदनशील थे स्वयं को व्यस्त रखना ही सारगर्भित था।
मैंने एक साहित्य एवं कला समूह स्थापित कर उस पर ऑनलाइन कार्यक्रम करवाना प्रारंभिक कर दिया ।लोगों को जैसे ठौर मिल गया देखते ही देखते बहुत से लोग उसमें जुड़ गए , उस पर साप्ताहिक साहित्यिक कार्यक्रम होने लगे। लोगों का ध्यान उन घटनाओं से हटकर सकारात्मक सृजन में लगने लगा,।
लोकगीतों का कार्यक्रम भी हुआ जिसने हमें अंदर तक से झकझोर दिया, सोचने पर विवश हो गई कि इतने मार्मिक और मधुर गीत समाप्ति की कगार पर क्यों है इस प्रश्न की व्याकुलता के बाद ही एक हल सामने रख दिया और मैंने एक लोक भाषाओं की पुस्तक लुप्त होती लोक भाषाओं के संरक्षण के उद्देश्य प्रकाशित करने का निश्चय कर लिया ।
अथक परिश्रम से पुस्तक की सामग्री ऑनलाइन जुटाना प्रारंभ कर दी और तीन महीनों में समग्र देश से चालीस लोक भाषाएं मेरे पास संग्रहित हो गई उनका संपादन कर उन्हें मैंने हिंदी की 5 उपभाषाओं 18 बोलियां और 12 उपबोलियों का रूप देकर प्रकाशित करवाया ।जिसकी देश के विभिन्न हिस्सों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएं आईं यह पुस्तक भारत की प्रथम ऐतिहासिक और देवनागरी लिपि लिखे मौलिक लोकगीतों की ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण पुस्तक बनी । जिसने इंडिया वर्ल्ड के साथ अनेकों सम्मान पाए,कहने का तात्पर्य यह है कि विकट समय में सकारात्मक दृष्टिकोण और आत्मविश्वास से समय का सदुपयोग सृजन कार्यों में लगाया सकता है।
कोरोना वायरस की पहली लहर ने बहुतों को मौत के घाट उतारा था किंतु दूसरी लहर के चलते निरंतर बारिश की बूंदों की तरह टप टप मौतें हो रही थी न जाने कितने ही हमारे परिचित और स्वस्थ युवा,साहित्यकार पत्रकार डॉक्टर रिपोर्टर साधु संतों ने करोना की चपेट में अपना दम तोड़ दिया । वायरस के प्रभाव से अधिक लोगों का भय,अस्पतालो की
चरमराती व्यवस्थाएं , ऑक्सीजन की कमी, टूटती मरीजो की भीड़ और पनपते भ्रष्टाचार के कारण कितने ही लोग असमय ही काल के गाल में समा गए । प्रकृति नियत और नियमानुसार कार्य करतीहै जिसे विज्ञान कंट्रोल तो कर सकता है पर निरस्त नहीं, नियत समय पर मौत अवश्यंभावी है फिर उसका डर कैसा ?चिंता तो तब होती है जब सारा विश्व इसकी चपेट में आता है इंसानी कारनामा होते हुए भी इसे प्राकृतिक आपदा ही कहा जाएगा।
ऐसी घटनाओं की उपेक्षा करना , प्रकृति का मजाक बनाने की तरह है अतः सावधान और सतर्क रहना आवश्यक है। ऐसे समय अपनी जरुरतों के लिए लिए धन है तो संतुष्ट रहें अपनी आवश्यकताओं को भी कुछ कम करें। किंतु यदि नहीं है तो ऑनलाइन बहुत कुछ हो रहा है उस पर अपना ध्यान अधिक दें, सीखें और प्रयोग करें, जो हो रहा है उस पर से ध्यान कम करें वह जितने समय का है होकर रहेगा। आध्यात्मिक यही कहता है।
कोरोना की दूसरी लहर समाप्त हो गई लोग घर से निकलने लगे किंतु ऑफिस के काम घर में हो सकते हैं तो बाहर इतने लोगों को निकलने की आवश्यकता क्या है ,पृथ्वी के प्रदूषण के कारण भी यही हैं ।प्रकृति ने अपना न्याय स्वयं किया है सबको घरों में बंद करके आज वह स्वच्छंद हुई है उसकी रूपरेखा ही बदल गई है। उसके प्रति भी संवेदनशील होना हर इंसान का कर्तव्य है,। परिस्थितियां तो बदलेगी जरूर किंतु अब भारत का नया स्वरूप होगा इस अंतराल में लोगों ने कम से कम कुछ तो सीखा है।जो सीखा है वह सिखाया गया है लॉक डाउन खुलने के बाद भी उसी मितव्ययता, सादगी, संवेदना, स्वच्छता सहयोग और प्रेम से रहकर कोरोना जैसी स्थितियों की पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है।
संपूर्ण विश्व में करोना काल की स्थितियां बहुत चिंताजनक थी कोरोना की पहली लहर बहुतों को मौत के घाट उतार चुकी थी किंतु अनापेक्षित रुप से दूसरी लहर तो असुर बन बाहें फैलाए काल के गाल में ले जाने आतुर थी।शायद ही कोई घर बचा हो जहां उसके पैने पंजे न पड़े हों। कहीं कहीं तो पूरा परिवार उसकी चपेट में आ गया था ,अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की मारामारी हो रही थी एक तरफ लोग अपनी जान बचाने सब कुछ दांव पर लगा रहे थे तो दूसरी ओर इस मौके को भुनाने वाले भी कम नहीं थे ब्लैकमेल करके इंजेक्शन चौगुनी कीमत में बेचे जा रहे थे ऑक्सीजन सिलेंडर जिसे जरूरी समझा गया उसे लगाया गया किसी की तो लगी हुई ऑक्सीजन को निकाल कर दूसरे को लगा दी कोई ऑक्सीजन के लिए अस्पतालों में दर-दर भटका , किसी ने ब्लैक में बेचा तो कहीं जमाखोरी हुई, बहुतों ने आक्सीजन की कमी के कारण तो बहुतों ने महत्वपूर्ण इंजेक्शन रेमडेसिविर ना मिलने के कारण तड़प कर दम तोड़ दिया, लाशों को उठाने पर भी सौदेबाजी हो रही थी भूखे भेड़िए की तरह अपना जमीर बेचने वाले मौत के इस तांडव में अपनी जेबें भर रहे थे । परिवार में माता पिता बच्चों को देखे बिना ही जलाया जा रहा था ,अर्थी को कंधा देने वाला भी कोई नहीं था। कब्रिस्तान में जगह मिलना मुश्किल हो रही थी वहां भी ब्लैक में जगह मिल रही थी सुनकर अपने कानों पर विश्वास नहीं होता किंतु यह घिनौना सत्य था जो मानवता को तार-तार कर रहा था
लंबे समय तक चले कोरोना वायरस के प्रभाव से निर्मित लॉक डाउन की स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई कल- कारखाने बंद हो गए ,उच्च वर्ग की अपेक्षा मध्यम वर्ग के लोग जूझ रहे थे दवाइयों फल सब्जियों, अनाज के लिए ,और निम्न वर्ग के लोगों को भारत सरकार ने खाने के लिए अनिवार्य व्यवस्था कर दी थी कोई भी व्यक्ति भूख से नहीं मरा यह बड़ी उपलब्धि थी भारत के लिए। किंतु बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों के बंद होने से मजदूरों को अपने गांव पलायन करना पड़ा वह बहुत बड़ी ह्रदय विदारक स्थितियां थी जब धूप में पैदल मजदूर अपने गांव तक जा रहे थे और गांव में भी उनकी रोजी-रोटी का जरिया नहीं था सोच कर दम घुटता है कैसे जिए होंगे वह लोग ।भारत ही नहीं विश्व के अधिकांश करोना प्रभावित देशों में त्राहि-त्राहि मची हुई थी
विकराल और भयावह स्थिति में इंसानियत के उच्चादर्श को स्थापित करने वाले लोगों की भी कमी नहीं थी। कितने ही डॉलर सफाई कर्मी पुलिस कर्मियों ने सेवा करते-करते दम तोड़ दिया ।, रात दिन अपनी जान की परवाह किए बगैर परिवार से दूर कभी कभी कमरे में बंद दिन भर भारी किट पहनकर डॉक्टर घंटों भूखे प्यासे मरीजों की सेवा में लगे रहे, नर्से सफाई कर्मचारी हॉस्पिटल का स्टॉफ समर्पित होकर मरीजों की सेवा में जुटे रहे, कितने ही मरते मरीजों को उन्होंने बचाया और देवदूत बनकर मानवता की मिसाल कायम की।
निगम कर्मचारी जान की परवाह किए बिना अस्पतालों से लाशों को मरघट तक ले जाकर जलाने का काम कर रहे थे, बीमारी ही ऐसी थी कि छूने मात्र से लगने का डर था।
पुलिसकर्मी भी मुस्तैदी से सेवा कार्यों में डटे रहे, गरीबों तक अनाज पहुंचाना मास्क के लिए प्रतिबंधित करना और उपेक्षा करने वालों को समझाना,सख्ति करना लोगों को अनाउंसमेंट कर बचाव के उपाय बताना उनकी महती सेवा के कार्य थे।
कितने ही करोना मरीज ऐसे थे जिनके घर में कोई बनाने वाला नहीं था तब उन्हें खाना बना बनाकर भेजने वाले भी देवदूत से कम नहीं थे, बहुत से दानदाता और इंसानियत के पुरोधा बड़े-बड़े भोजनालय और लंगर खोलकर मरीजों , गरीबों और मजदूरों को खाना बांटने का काम कर रहे थे।
संपूर्ण भारत कोरोना की चपेट में था कुछ लोगों ने घर पर रहकर ही देसी इलाज किया ,कुछ लोगों को समझ में नहीं आया सर्दी खांसी मानकर टाल दिया ,कुछ लोगों ने आयुर्वेदिक इलाज लिया और कुछ लोग एलोपैथिक इलाज करवाने गए।
कफ होने से सांस की तकलीफ होना स्वभाविक है किंतु उतनी नहीं जितने लोगों को हुई ,क्योंकि इसमें मौत के भयावह दृश्य, और उस समय की विकराल स्थितियों से उपजे भय ने इंसान को अंदर तक तोड़ दिया था वह डरता हुआ हॉस्पिटल जाता और व्यवस्थाएं सही ना मिलने पर शीघ्र ही दम तोड़ रहा था।
कोरोना वायरस के प्रभाव से कुछ सकारात्मक बातें भी देखने मिली , घर में सभी के रहने से आपसी प्यार और सौहार्द बढा, कुछ लोग जो तलाक की बात करते थे एक होकर साथ में रहने लगे थे जो झगड़ते थे उन्हें भी जिंदगी की कीमत समझ में आ गई थी ,नौकर चाकर का घर में आना बंद होने से नौकरशाही से छुटकारा मिला घर के बने खाने का आनंद पूरे परिवार ने लिया और मिल बांट कर काम और बुजुर्गों का सम्मान किया ।
बाहर पूरा शहर सन्नाटे में , लोग घरों में बंद और प्रकृति जैसे खुलकर सांस ले रही थी
नदियां निश्छल कल कल बह रही थी पर्वतों पर धुंध नहीं दिख रही थी पेड़ पौधे एक अलग ही हरितमा में झूम रहे थे आवागमन बंद होने से धूल भी नहीं दिखती थी लगता था जैसे प्रकृति को इंसानों से आजादी मिल गई हो।
और सच भी है प्रकृति ने इशारा किया था पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता जा रहा था गोरैया लुप्त हो गई थी सड़कें चौड़ी हो गई , नदी पहाड़ जमीन बनते गए ,जंगल काटे गए, वायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण वनस्पति प्रदूषण जल प्रदूषण आदि पर्यावरण को दूषित कर रहे थे,। भौतिकता में लिप्त लोगों को सोचने का भी वक्त नहीं था आखिर प्रकृति ने अपना न्याय स्वयं कर लिया।वह सख्त होने लगी प्रदूषण कम होने लगा।सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम बंद नहीं हुए थे वार्तालाप व्हाट्सएप पर हो रहा था जो कमा सकते थे व्हाट्सएप पर कमा रहे थे क्रय विक्रय वस्तुओं का आदान प्रदान हो रहा था, कुछ समय ऑनलाइन बंद होने पर स्थितियां विकट हो गई थी।
जिन्हें समय नहीं मिलता उन्हें घर में रहकर समय मिला और उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया कुछ लोगों ने तो इस समय में विशेष कार्य किए जो कभी नहीं हो सकते थे। हिंदी के प्रति बुजुर्ग से युवा वर्ग तक का झुकाव बढा़ , सब ने ऑनलाइन कार्य करना सीखा। साहित्य लेखन का विस्तार हुआ, ऑनलाइन ऑफिस और क्रय विक्रय होने लगा , लोग स्वच्छता रखने लगे बाजार की वस्तुएं धोकर उपयोग करने लगे।
सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो यह समय कुछ सिखाने आया था लोगों को यह बात समझना चाहिए वह बुरा वक्त फिर कभी ना आए इसलिए इन कुछ बातों पर अमल हमेशा करना चाहिए
मेरी डॉक्टर बेटी और दामाद ने अपने संस्कारों को विस्मृत नहीं किया और जान जोखिम में डालकर दिन रात कोरोना मरीजों को मार्गदर्शन दवाएं और सेवा कर ईमानदारी से अपना फर्ज निभाया । मुझे गर्व है दुनिया के ऐसी सभी बच्चों पर ।
सबसे विशिष्ट बात भारत में विशिष्ट योग्यता धैर्य साहस और संवेदनशील जैसी गुणों वाले प्रधानमंत्री जी का होना है जिन्होंने अपनी सूझबूझ और सहृदयता से शीघ्र ही इस स्थिति पर काबू पा लिया। वो समय समय पर लाकडाउन और लोगों को जागरुक करते रहे, उनके निर्देशन में शीघ्र ही वैक्सीन की खोज की गई और भारत के प्रत्येक नागरिक को दो दो डोज लगवाकर , इस बीमारी पर काबू पा लिया है विकट स्थितियों से गुजरने के बाद भी आज भारत विकास की ओर आत्मविश्वास और प्रबल ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है क्योंकि नया भारत शिक्षित और जागरुक है ,सरकार मृत परिवारों की सहायता और बेरोजगारों को रोजगार देने में सजग है सरकार के प्रयासों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है सच ही कहा गया है जिस देश का राजा योग्य बुद्धिमान ,संवेदनशील , धैर्यवान, साहसी आत्मविश्वास और ऊर्जा से भरा हो उस देश की प्रजा भी धैर्यवान और आत्मविश्वासी होती है किन्हीं भी स्थितियों में अधिक विचलित नहीं होती
और शीघ्र संतुलन बना लेती है।
आज भारत कोवैक्सीन और कोविशील्ड बनाकर विदेशों में भी भेज रहा है और अपने देश में शीघ्रता से डेढ़ सौ करोड़ पब्लिक को लगाए जाने का काम भी पूर्णता की ओर है। इंग्लैंड ने भारत की
कोविशील्ड पर विश्वसनीयता नहीं रखी और इंग्लैंड आने वाले भारत वासियों को कोरोना नेगेटिव होने के बाद भी दस दिन क्वॉरेंटाइन किया ,अब यही नीति भारत ने इंग्लैंड के साथ अपना कर साहस और स्वाभिमान का परिचय दिया है।
नमन है इस भारत भूमि को जहां प्रत्येक ह्रदय में जलती धर्म योग और संवेदना की प्रज्जवलित अग्नि समस्त बाधाओं को जलाकर भस्म कर देती है।
वक्त परिवर्तनशील होता है
एक दौर चला जाता है तब एक दौर नया आता है
परिवर्तन से इस जीवन का रहा सतत नाता है
काल चक्र के फेर से कब कौन यहां घबराता है
जो बीत गया वह वक्त गया नव वक्त सृजन करता है
भारत के भाल पर चमकता विकास का देदीप्यमान सूर्य कह रहा है हर मुश्किल एक चुनौती है जिन्हें जीतना भारत वासियों का अटल विश्वास है
करोना काल के साथ अन्य प्राकृतिक विपदाओं और दूसरे देश के हमलों से निपटने में भी भारत कामयाब रहा ।हमें गर्व है उस भारत के नागरिक होने का जहां की सभ्यता और संस्कृति मानवता की मिसाल कायम करती है
जय हिंद जय भारत
लेखिका मीना गोदरे ,अवनि, इंदौर
मो, 94793 86446
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पता-निशदिन औरा, बी- ब्लाक,307
महालक्ष्मी नगर,
बालाजी हाइट के पास ,इंदौर ,
(मध्य प्रदेश)452010