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“अब तुम कुत्ते वाले हो गए हो”

   डॉ.करुणा पाण्डे – 9897501069
  2/62 -सी , विशालखंड ,गोमतीनगर ,लखनऊ |

बात उस समय की है जब हमने वी.आर.एस. लेने की योजना बनाई , क्योंकि स्थानान्तरण के कारण हमारी कोई कम्पनी स्थाई नहीं बन पा रही थी | बार-बार सामान शिफ्ट करने के कारण सारा फर्नीचर टूट-फूट रहा था |ससुराल से आई सारी चीज़े नेस्तनाबूंद हों ,उससे पहले ही कहीं सेटिल होना बहुत ज़रूरी था ,क्योंकि हर ट्रान्सफर पर कोई न कोई चीज़ टूटती और हमारी श्रीमती जी का दुःख और गुस्सा दुगुने वेग से हम पर फूटता | इसलिए हमने निश्चय किया कि अब वी.आर.एस. लेकर मज़े से आराम करते हुए पेंशन खाई जाए | पर हमारी श्रीमती जो एक समाज सेवी भी हैं (घर सेवी कतई नहीं हैं ) , उनका सोचना था कि अगर हम घर में खाली बैठेंगे तो अकेलेपन का शिकार हो जायेंगे और उनकी समाज सेवा में बाधा पड़ेगी | लिहाज़ा हमको व्यस्त रखने के लिए उन्होंने एक कुत्ता पालने की योजना बनाई | अब कुत्ते की नसल , और कुत्ते की चर्चा हर महफ़िल में होने लगी | गूगल, डॉग प्लेनेट , मोहल्ला कुत्ता समिति , नगर कुत्ता एसोसिएशन आदि जगहों पर हमारी श्रीमती जी रिसर्च करने लगी और तीन महीने की खोज के बाद एक नस्ल उनको पसन्द आई | आते ही चहकते हुए बोली –“अजी सुनते हो , मैंने तुम्हारे लिए एक धाँसू नस्ल का कुत्ता आर्डर कर दिया है | बस अब तुम कुत्ते में बिजी रहना जिससे मैं अपनी समाज सेवा निर्विध्न कर सकूँगी | और हाँ अब कुत्ता घर में आ रहा है ,थोड़ा मैनर भी सीख लो , अपने खर्चों को कम करो क्योंकि कुत्ते के खर्चे बढ़ गए हैं |”
हमने कहा –“ठीक है हमें आपकी बात मंज़ूर है , इसके अलावा हमारे पास कोई चारा भी तो नहीं है | पिछले छब्बीस साल से आपके कहे अनुसार चल रहे हैं |”

श्रीमती जी बौखलाई और बोली – “हर समय इस तरह की व्यंगात्मक बात करके मेरा जी क्यों जलाते हो | एक मैं हूँ जो हर समय तुम्हारी खुशी की ही सोचती हूँ ,जो भी कर रही हूँ तुम्हारे लिए कर रही हूँ , बेवकूफ हूँ न मैं –|”
श्रीमती जी को नाराज़ करने का मतलब घर को अखाड़ा बनाना था | हमने पैंतरा बदला और मनुहार करते हुए कहा –“अरे जानू तुम्हारे बिना तो मैं अधूरा हूँ ,जीवन में हर टेंशन मतलब –मतलब चहल-पहल तुम्ही से तो है | छब्बीस साल से मैं तुम्हारी उँगलियों के इशारे पर नाच रहा हूँ मतलब मेरा मतलब है तुम्हारी जुल्फों के साए में मस्त हूँ , तुम तो मेरी जूलियट हो जानी” कहते हुए हमने उनको बांहों में भरना चाहा |
उनहोंने हमारा हाथ छटकते हुए कहा –“छी –इस उम्र में आपको ऐसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती , घर में कुत्ता आ रहा है ,वी.आर.एस. ले रहे हो , कुछ तो शर्म करो” कहते हुए खिसक गईं |
“अच्छा जानते हो तुम्हारे लिए कौन सी नस्ल का कुत्ता ला रही हूँ |”
“ मुझे क्या पता , तुम्हीं बता दो यार” मैंने कुत्ते के प्रसंग से उकताकर कहा |
“ये गोल्डन रिट्रीवर नस्ल का है |”
“ये नस्ल कौन सी होती है , हमने तो एल्शेसियन ,भोटिया , पमेलियन , ढटुआ आदि नाम ही सुने हैं |”
“अरे वह सब पुरानी बातें हैं | अब ज़माना हाई-टेक हो गया है | अच्छी और मँहगी नसल के कुत्ते से अपना स्टैण्डर्ड बढ़ता है , समाज में इज्ज़त बढ़ती है |”
हमने बीच में बात काटते हुए कहा –“यार बच्चों से इज्ज़त बढ़ती है ,यह तो हम बचपन से सुनते आ रहे हैं | पर कुत्तों से इज्ज़त बढ़ती है ,सुनकर अटपटा लगता है |”
हमें बीच में टोकते हुए श्रीमती जी बोली – “अरे मेरे मिट्टी के माधो ! पुराने समय से ज़रा बाहर आओ | भई वह ज़माने हवा हो गए जब बच्चों से इज्ज़त बढ़ती थी | अब बच्चों से नहीं कुत्तों से समाज में पहचान मिलती है ,इज्ज़त मिलती है ,समझे – कहते हुए श्रीमती जी का चेहरा गर्व से चमक रहा था | जानते हो कितने का है , पूरे चालीस हज़ार में सौदा करके आई हूँ |”
“च—च —- चा –चालीस हज़ार , क्या कह रही हो , कुत्ते के चालीस ह़जार – तुमने भाँग तो नहीं खाई है” हमारा हार्ट-फेल होने को था |
“अरे वह तो पचास माँग रहा था , बड़ी मुश्किल से चालीस हज़ार में राज़ी हुआ | वह तो जान-पहचान थी वर्ना तो इनकी कीमत एक लाख तक भी होती है | अरे अपने पति के अकेलेपन को दूर करने के लिए मैं चालीस तो क्या अस्सी हज़ार भी दे देती डियर”और लाड़ से श्रीमती जी ने मेरे सिर को सहलाया | हमें तो मानो लकवा मार गया था पर श्रीमती जी के सहलाने पर हमारा रक्त संचार फिर नार्मल होने लगा | हमने सोचा गोल्डन शब्द लगा है ,तो महँगा तो होगा ही | हमारी समझ में पत्थर पड़ चुके थे | हमने अपना सिर खुजाते हुए कहा –“तुम कह रही हो तो ठीक ही कह रही होगी , क्योंकि तुम तो हर तरह के समाज में जाती हो , अपना तो बस आफिस की फाइलों के ढेर और घर के सिवा कुछ एक्सपोज़र ही नहीं है | ज़िन्दगी भर बच्चों पर खर्चा किया है ,अब अपने लिए तुम्हारे स्टेटस के लिए कुछ खर्च कर लिया तो क्या सोचना और हम चाय पीने लगे |

शाम को श्रीमती जी गोल्डन रीट्रीवर जाति  के कुत्ते को लेकर जब घर आई तो उनके पैर ज़मीन में नहीं पड़ रहे थे | कुत्ता लेकर एक बंदा आया था | साथ में कुत्ते का सामान लेकर एक और लड़का आया जिसमें खाने का बर्तन ,शैम्पू ,खिलौने ,ब्रश ,ड्राई शैम्पू ,मेडिकल बुकलेट ,तीथर पेड्डीगिरी , और भी नजाने क्या-क्या था | मैडम ने दो सौ रूपये उन लड़कों को दिए और गेट बन्द कर , कुत्ते को लेकर मेरे पास आईं | कुत्ता सुन्दर सफ़ेद था | उसके गले में सुन्दर सा पट्टा और सुन्दर सी रस्सी पड़ी थी | प्यार से उसे सहलाते हुए कुत्ते से बोली –“फ्लफी बेटा, हेल्लो बोलो , देखो ये तुम्हारे पापा हैं | बेटा जल्दी से दोस्ती करो |”
“क्या ! कुत्ते का पापा , तुम्हारा दिमाग ख़राब तो नहीं हो गया है |”
“देखो जी , तमीज से बोलो ,इसे कुत्ता मत कहो , इसे डोगी कहो ,और जब मैं इसे अपने बेटे की तरह मान सम्मान दे रही हूँ ,तो तुम इसके पापा ही तो कहलाओगे | इसके पापा बनकर समाज में तुम्हारी इज्ज़त ही बढ़ेगी ,समझे -|”
अट्ठाईस साल में तुमने मुझे इतना समझदार बना दिया है कि इशारों में ही तुम्हारी बात समझ जाता हूँ | इस बात को समझने में ही मेरी भलाई है | चलो बच्चों ने इज्ज़त नहीं बढ़ाई इसका अफ़सोस नहीं रहेगा , क्योंकि अब कुत्ता नहीं –नहीं –डोगी हमारी इज्ज़त बढाने आ गया है ,और हमारा सीना गर्व से तन गया |

शाम को फ्लफी आया था ,यह उसकी पहली रात थी ,वह भी अपनों से बिछड़ा था –लिहाज़ा थोडा गुमसुम था | हमारी श्रीमती जी उसका मन लगाने के लिए रात भर लोरी गाकर ,थपकी देकर और सहलाकर उसे सुलाती रहीं | हमको कुत्ते से ईर्ष्या होने लगी पर अपना-अपना भाग्य —|

दूसरे दिन श्रीमती जी सुबह टहलाने ले गयी | लौटकर उसको गर्म पानी में पेडीगिरी भिगोकर दी, उसके खाने के बर्तन को खुद साफ़ किया | हमने कहा-“नौकर साफ़ से साफ़ करवालो |” 

“नौकर शायद ठीक से साफ़ नहीं करेगा और उसे इन्फेक्शन हो जायेगा नाश्ता खिलाकर उसे हलके गुनगुने पानी से शैम्पू किया | पिछले माह ही हम प्यार से श्रीमती जी के लिये अच्छी क्वालिटी का तौलिया सेट लाये थे – जिसमें एक हम प्रयोग कर रहे थे और एक श्रीमती जी – श्रीमती जी फ्लफी के लिए वही मँहगा अपना तौलिया निकालकर ले आई | हमने कहा –“ये क्या इतना मँहगा तौलिया क्यों बर्वाद कर रही हो ? पुरानी बनियान से पोछ दो |” तो तमककर बोली –“कैसी लालाओं जैसी बातें कर रहे हो , ऐसा वैसा डोगी नहीं है , गोल्डन रिट्रीवर है | हम हमेशा की तरह चुप हो गए | खैर कुत्ते का श्रृगार कर उसे पिंजड़े में डालकर श्रीमतीजी चाय बनाकर लाई  | इस कार्यक्रम में नौ बज गए थे | हमें आफिस जाना था | हमने जल्दी से चाय पी और बाथरूम में घुस गए | वहां जल्दबाजी में हमने कुत्ते के शैम्पू से बाल धो लिए | बाहर आये तो शैम्पू की महक चारों तरफ फ़ैल गयी |


हमने बालों को सँवारा , हमारे बाल रेशम की तरह मुलायम हो गए थे | उसी समय कहाँ से राहू की तरह वह फ्लफी का बच्चा आ टपका और उसने हमारे तौलिये को अपना तौलिया समझकर झपट्टा मारा और खींचकर ले गया | हम किसी तरह अपनी लाज बचाते हुए कमरे की तरफ भागे |
हमने कहा –“ देख लो इतने मँहगे कुत्ते में भी स्ट्रीट डॉग वाली आदतें हैं |”
श्रीमती जी सफाई देते हुए बोली –“ दरअसल इसमें फ्लफी की कोंई गलती नहीं है | गलती आपकी है ,आपने उसी  की तरह का तौलिया लपेटा था और वह उसे अपना समझ बैठा | देखा मेरे फ्लफी की पहचान शक्ति कितना तेज़ है | अबसे आप इसका प्रयोग मत करियेगा |”
इस बीच हमारी श्रीमती जी ने उल्टा सीधा दलिया बनाकर मेज पर रख दिया | जब खाने बैठे तो हमें चम्मच नहीं दिखी , हम चिल्लाये –“अरे सुनती हो , कहाँ हो ? मुझे चम्मच तो दे जाओ
वह बोली –“वहीं रखी है , मैं फ्लफी के पास हूँ |”
“अरी भागवान मैं आफिस चला जाऊं तो तुम सारे दिन कुत्ते नहीं—नहीं डौगी के पिन्जरे के पास रहना |”
वह तमककर आई और बोली –“ क्या कहा ,–पिंजरा ! जरा सिविलियन बनो | कैनल कहो कैनल  यह पिंजरा नहीं है | फिर हमारे बालों को छूकर बोली –“ये क्या तुमने फ्लफी के शैम्पू से बाल धोये हैं | जनाब यह बहुत महँगा शैम्पू है इससे तुम बाल मत धोना | इसे छिपाकर रखना पड़ेगा” कहते हुए वह हमारी तरफ आँखें ततेर  कर देखने लगी |
हमको बहुत अपमान महसूस हुआ ,पर हम तो इसके आदि हो चुके थे | हमने कहा –“भई गलती हो गयी है , जल्दबाजी में देखा नहीं ,अबसे ध्यान रखेंगें” और आफिस चल दिए | रास्ते में हमको आदमी होने का बहुत अफ़सोस हुआ | आदमी – वह भी आदर्श माँ बाप के घर पैदा होने का और भी अफ़सोस हुआ | दहेज़ प्रथा का औचित्य भी हमारी समझ में आ रहा था | मन पाश्चाताप से भरा था | काश हमको भी महँगा खरीद कर लाया होता ,तो कुछ तो इज्ज़त मिलती | यही विषाद भरे ख्याल दिमाग में घूम रहे थे कि आफिस आ गया | सारे दिन मुझे अपना जीवन कुत्ते से भी निम्न स्तर का महसूस हो रहा था | पर कर्म की गति को कौन बदल सकता है |
शाम को हमें बाज़ार से घर का सामान लाना था | हमने कार निकाली तो कुत्ता नहीं-नहीं डोगी महाराज उछलकर उस की सीट पर बैठ गए | हम उनको झिडक्ने वाले ही थे कि हमारी श्रीमती जी बोली – देखा आपने, अच्छी ब्रीड का कमाल ,कितनी शान के साथ कार के आगे बैठा है |” हम क्या कहते | चुपचाप सर हिला दिया | हम ड्राइविंग सीट पर बैठ ही रहे थे कि हमारी श्रीमती जी बोली – अरी -रे-  आप हटिये मैं ड्राइव करूंगी |
आप गाडी चलायेंगी , पर आपको तो यह पसंद नहीं है | आप ड्राइवर थोड़े ही हैं यही तो आपने कहा था जब मुझे डाक्टर के पास जाना था और फिर ओला करके मैं गया था |
देखिये जी ,आप हर बात में दखल न दिया करें | अरे गोल्डन रिट्रीवर के लिए ड्राइविंग करके मेरी इज्जत बढ़ेगी ,सबके बीच में चर्चा होगी , आप समझते क्यों नहीं , फ्लफी के आने से हमारी हर गतिविधि चर्चा में आ गयी है | हमारी किट्टी में आधे से ज्यादा समय तक केवल हमारी सदस्याओं के डोगी की ही बातें होती हैं | आजकल फ्लफी को कारण सब मुझे  बहुत इज्जत देने लगे हैं | पर आपको क्या पता ,,वह कक्हते हैं न कि बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद — कहते हुए श्रीमती जी ने गाडी स्टार्ट कर दी आगे की सीट पर फ्लफी के साथ बैठकर वह गानों का आनंद ले रही थीं और हम पीछे की सीट पर बैठे एक बार फिर अपने भाग्य को कोसते हुए प्रार्थना कर रहे थे कि प्रभु आप हमरे सभी पुन्य कर्मो की एवज़ में हमें अगले जन्म में कुत्ता न न – डोगी का जन्म देना | एक बार फिर हमें अपनी आदमियत पर अफ़सोस हो रहा था |  


शाम को फिर कुत्ता पुराण शुरू हो गया | हमारा काम तो सिर्फ कुत्ते न न डोगी को घुमाना ,उसका बाज़ार से सामान लाना और उसकी तारीफ़ करना ही था ,बाकी काम तो हमारी श्रीमती जी करती थी | श्रीमती जी कुते को लोरी सुनाने में व्यस्त थीं और हम सो गए | हम सो ही रहे थे कि सुबह-सुबह श्रीमती जी की आवाज़ आई –“ अजी कब तक सोते रहोगे | जल्दी उठना शुरू करो , अब तुम कुत्ते वाले हो गए हो |” हम आधी आँख बन्द किये ही कुत्ते की रस्सी पकड़कर उसे घुमाने के लिए बाहर ले गए | रास्ते भर हम सोच रहे थे कि हमारा समाज कहाँ जा रहा है , मानव संस्कृति से ज्यादा कुत्ता संस्कृति पर ध्यान दिया जा रहा है | कहीं यह हमारे समाज को तोड़कर न रख दे | पर कुछ कह नहीं सकते थे क्योंकि हम भी अब कुत्ते वाले हो गए थे |

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