आसमानी मोगरा – शिवानी कार्की की कहानी

“ए मोना! आज तेरा ये नाटक खत्म होने वाला है… मुंबई से डॉ. हर्षित आ रहा है इस केस के लिए… क्यों डर तो नहीं लग रहा?” संदेह भरी डरावनी मुस्कान के साथ मिस मारिया बोली।
“बिल्कुल नहीं, क्योंकि मैंने रिधिमा का खून नहीं किया है… बल्कि डर तो आपको लगना चाहिए जो अपनी गलत तफ्तीश को सही साबित करने पर लगी हुई हो। समझी आप मिस… उम्म मिस्स… लंबे विराम के बाद भी याद करने में असफल होते हुए, उम्म्म नाम क्या था आपका?”
“फिर से नाटक शुरू? हाहाहा! या तो तू सच में पागल है या तीन महीनो से हमें बना रही है… मगर याद रख दफा 302 के जुर्म में अगर तुझे सूली तक न पहुंचाया तो मैं भी जेलर मिस मारिया नहीं…!”
“मैंने सचमुच कुछ…”
अधूरे वाक्य में ही दरवाजा खुलता है३ मोना चुप हो जाती है।
“मैम! आपको डी.आई.जी. सर बुला रहे है। डॉ. हर्षित आ गए है।”
“ले आ गया तेरी मौत का फरमान! जीवन वैसे तो तेरा नाम जीवन है पर तू आज किसी की मौत का फरमान लेकर आ गया है।” मारिया मोना की तरफ देख तीखी टिप्पणी करती है।
हवलदार जीवन सिंह की नजर न चाहते हुए भी मोना पर पड़ जाती है। इन दिनों जेल में जीवन की मोना से बहुत हमदर्दी हो गई थी। हे अम्बे मां! मोना मैम को बचा लेना (जीवन मन ही मन बुदबुदाने लगता है।)
“हवलदार! आ भी जा या तुझे भी यही बंद कर दूं?” पीछे गुस्से में मारिया चिल्लाती है।
“जी मैम आया।” जीवन हड़बड़ाते हुए बोला।
जेल से बाहर आकर जीवन फिर प्रसंग छेड़ता हैः
“मैम! मुझे लगता है मोना जी सचमुच निर्दोष है। कल भी कह रही थी मैंने कुछ भी किया।”
“अरे! तुझे नहीं पता जीवन! ये चोंचले है सब। मुंबई की मशहूर एक्टर रह चुकी है तो बचने को वही एक्टिंग यहां भी दिखा रही है। वो तो डी.आई.जी. सर की वजह से चुप हूं… वरना इसके खिलाफ तो इतने सबूत है कि इस जैसी को एक झटके में ठीक कर दूं।”
डी.आई.जी. का रूम आते ही मारिया आवाज नीचे कर लेती है। शांत भरे स्वर में पूछती हैः
“मे आई कम इन सर?”
“येस! सिट देअर!” इंस्पेक्टर इंदर चुप रहने का इशारा करते हुए बैठने को कहता है।
“तो आप है वो! जो रिधिमा मर्डर केस देख रही है?” डॉ. हर्षित पूछते हुए आंख के इशारे से उठने को कहता है।
“जी!” मारिया झेंपती हुई-सी खड़ी होती है।
“तो तीन महीनो से नो अपडेट? किसी से भी पूछताछ की कोई प्रोग्रेस नोट क्यों नहीं की?”
“सर! रिधिमा के पोस्टमार्टम में शरीर में सायनाइड मिला है। रिधिमा मुंबई से थी और यहां मोना से मिलने आई थी। आने के 2 घंटे में मर्डर हो गया। बाहर का कोई इन्वॉल्व नहीं। साइनाइड की बॉटल पर भी मोना के ही उंगलियों के निशान है। बस वो खुद कबूल नहीं रही।” अब की बार जवाब इंदर की ओर से था।
“और मोना का क्या कहना है?” हर्षित ने उलझते हुए पूछा।
“जवाब ही नहीं देती.. मेरा तो कहना है कि वो नाटक कर रही है, आपको एक बार मुझे अनुमति देनी चाहिए मैं 2 मिनट में सच उगलवा…”
“वो पब्लिक फिगर है मारिया। हम केस को ऐसे हैंडल नहीं कर सकते।” डी.आई.जी. बीच में रोकते हुए बोले।
“अपना नहीं… उनका क्या कहना है, वो बताइए।” हर्षित खीझते हुए बोला।
“सर वो तो कहती है उसे कुछ याद नहीं, कभी अपना तो कभी मेरा नाम भूल जाती है… कभी आधा तो कभी पूरी घटना का मनगढ़ंत ब्यौरा सुनाती है… कभी-कभी तो मुझसे…”
“येस एक्जेक्टली! बिकॉज मेबी शी इज नॉट ए क्रिमिनल एट ऑल। और ये देखिए।” डॉ. हर्षित कमरे में लाइट्स ऑफ कर प्रोजेक्टर ऑन कर देता हैं। फिर एकदम गंभीर स्वर में कहने लगता है:
“देखिए मैंने मोना के केस को फिजिकली, मेंटली दोनों तरह से स्टडी किया। फैमिली बैकग्राउंड, स्कूल, कॉलेज और कैरियर भी।
बात ये है कि मोना के जन्मते ही उसकी मां नहीं रही। पैसे से अमीर मोना प्यार के मामले में अमीर नहीं थी। बचपन से गुमसुम रहने के कारण दोस्त भी न बन सके। और सबसे बड़ी ट्रेजेडी कि 16वें जन्मदिन पर उसके पिता की भी मौत हो गई। ये सदमा उसकी बर्दाश्त के बाहर था। अकेलेपन से तंग आकर उसने शराब और ड्रग्स शुरू कर दिए। अकेलेपन और स्ट्रेस ने उसे बुरी तरह इफेक्ट किया। और इनके बढ़ने से उसे मिर्गी के दौरे आने लगे। इलाज के लिए डॉक्टर ने अमेरिका भिजवाया। वहां डॉक्टरों ने उसे उसके दिमाग के दो हिस्से हिप्पोकैम्पस और एमिग्डला को निकलवाने की हिदायत दी। इलाज के बाद दौरे नहीं लेकिन दिमाग ने एंटरोग्रेड और नेट्रोग्रेड एम्नेशिया विकसित कर लिया। समय के साथ हालत और बदतर हो गई, जिससे उसे कभी नई घटनाएं याद नहीं रह पाती तो कभी वो पुरानी घटनाएं भूल जाती।”

“एम्नेशिया बोले तो?” जीवन सिंह उत्तेजना से पूछ बैठा।
“एम्नेशिया मतलब भूलने की बीमारी। मुझे लगता है इस केस की कड़ी भी इसके इर्द-गिर्द ही घूम रही है। लेकिन उसे पूरी तरह से समझने के लिए मुझे मोना से मिलना होगा।”
“आई कैन अंडरस्टैंड यू डॉक्टर। यू कैन मीट हर।” डी.आई.जी. सर की माथे की शिकन अब हल्की लग रही थी।
जेल न. 3 के दरवाजे पर हर्षित को छोड़कर मायरा वहां से पैर फटकारते हुए चली जाती है।
“इन्हे क्या हुआ?” हर्षित आश्चर्य में जीवन सिंह से पूछता है।
“दरअसल 30 सालों से यहां होने के कारण तीस हजारी के हर केस पर ये अपना एकाधिकार समझती है। पहली बार है कि केस में उनकी बात को तवज्जो नहीं दी जा रही। एकाधिकार छिनने पर किसे बुरा नहीं लगता। अधिकार मिलने की विडंबना ही यह है कि वो आपसे छिनना ही होता है।”
“समझ गया, अब तुम जा सकते हो।” हर्षित रूखेपन से बोला।
जीवन सिंह खिसियाया हुआ-सा वहां से चला जाता है।
जेल की जालियों के बीच से हर्षित देखता है । बिखरे बाल, सूखी नम आंखे, हल्के गुलाबी होंठ, और सफेद साड़ी में बैठी छोटी छोटी-सी सिसकियों की आवाज के साथ बैठी मोना उसे बहुत आकर्षित लगती है। आह! ऐसा भला चेहरा भी क्या किसी का खून कर सकता है? एक समय कितनी कमाल की एक्ट्रेस थी। हर्षित मन ही मन बुदबुदाता है।
“आपकी इजाजत हो तो क्या अंदर आ सकता हूं?” हर्षित दरवाजे की ओट से विनम्रता से पूछता है।
“हां!” मोना ऊपर देखती है। आधा उजला अंधेरा होने के कारण वो हर्षित का चेहरा नहीं देख पाती।
“हेलो! मैं डॉ. हर्षित आहूजा फ्रॉम बांद्रा, मुंबई। आपके केस के सिलसिले में आपसे मिलने आया हूं।”
“जी! पूछिए आप क्या पूछना चाहते है?”
“जी मैंने कहा मिलने, पूछताछ करने नहीं।”
मोना फिर ऊपर देखती है लेकिन फिर अंधेरे के कारण वो हर्षित का चेहरा नहीं देख पाती।
“आप पहले यहां रोशनी करवा देंगे।”
“हां, हां बिल्कुल! जीवन ! यहां लाइट जला दो प्लीज। अम्म… रुको मैं ही जला देता हूं।” मोना से आदेश मिलने पर वो कुछ हड़बड़ा जाता है।
उसकी हड़बड़ाहट देखकर मोना को हंसी आ जाती है। अचानक कमरा रोशनी से भर जाता है।
“मिस्टर आसमानी आई मीन हर्षित! तुम?”
“जी हां! एक्ट्रेस मोगरा जी”। हर्षित मुस्कुराहट के साथ कहता है।
“तुम यहां कैसे हर्षित! मुझे अब अपनी हालत के लिए और बुरा लग रहा है।” मोना रुआंसे स्वर मे बोली।
“क्यों मोना? मैं तुम्हारी मदद के लिए ही तो आया हूं। बिल्कुल परेशान मत हो, मैं सब ठीक कर दूंगा।” हर्षित आत्मविश्वास से भरकर बोला।
“नहीं आना चाहिए था।”
एक पल के लिए कमरे में विराम छा जाता है।
फिर चुप्पी तोड़ते हुए हर्षित बोलाः “एक बात पूछूं? कॉलेज के बाद अनुराग और तुम्हारा क्या हुआ? मुझे लगा था तुम लोग साथ होंगे?”
“नहीं हर्षित! अनुराग ने मेरे हेल्थ इश्यूज के चलते मुझे छोड़ दिया था। फिर अनुराग और रिधिमा शादी भी करने वाले थे।”
“ओह! इस केस के लिए अनुराग का स्टेटमेंट नहीं लिया गया?”
“लिया था। उसे भी मुझ पर ही शक है।” मोना एक ठंडी आह भरते हुए बोली।
“हम उसे गलत साबित करेंगे।”
“ओके!” मोना हल्का सा मुस्कुरा देती है मानो उसे हर्षित की हर बात पर विश्वास है।
“और मेरे बारे में क्या ख्याल है तुम्हारा?” हर्षित नजरें नीची करता हुआ बोला।
“देखो हर्षित! मुझे बहुत खुशी है कि मेरे मुश्किल समय में तुम मेरे साथ हो लेकिन पहले की बात और थी अब मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं।” मोना सिर नीचा कर लेती है।

“मोना! प्लीज स्टॉप। मैं अनुराग की वजह से कभी तुमसे ये नहीं कह पाया लेकिन सचमुच मैं हमेशा से मिस मोगरा के साथ ही इस मिस्टर आसमानी को जोड़ना चाहता था।”
“पर मेरे हेल्थ इश्यूज?”
“उसके लिए आपका डॉक्टर है न! तुम्हें यकीन नहीं?”
“यकीन है। तुम्हे याद है मेरे “आसमानी मोगरा” नाटक के बाद तो तुम पूरे कॉलेज में अगले कई दिनों तक आसमानी रंग की कमीज पहनकर ही घूमते रहे।”
“तुम्हारी एक्टिंग ही इतनी जबरदस्त थी यार। मगर एक मिनट… तुम्हें ये कैसे याद है? जेलर का कहना है तुम्हें पिछला काफी कुछ भूल गया है।”
“हाहाहा! मन में बसी यादों का तो यार बीमारी भी कुछ नहीं कर सकती।” मोना खिलखिलाकर हंसने लगती है। उसके खिलखिलाने की आवाज दीवारों से टकराकर यूं गूंजती है मानो जेल ही हंसने लगी हो।
“ठीक है मोना! फिर आऊंगा।”
“हम्म, जल्दी आना।” मोना के मन में कही फिर आशा का दीपक जलने लगता है।
“क्या कहा मोना ने?” डी.आई.जी. सर उत्सुकता से पूछते है।
“उसे कुछ भी याद नहीं है।” हर्षित ने रुखा-सा जवाब दिया।
“मैंने तो कहा था वो नाटक कर रही है।” मिस मारिया तमकते हुए बोली। हर्षित मारिया को बुरी तरह आंख दिखाता है।
इंस्पेक्टर इंदर मारिया को चुप रहने का इशारा करते हुए बोलता हैः “नहीं सर, वो तो बस…”
“मेरे पास एक तरीका है, हम अगर जानना चाहते है कि मर्डर वाले दिन क्या हुआ था? तो हमें मोना को उसके दिल्ली वाले बंगले पर ही भेजना होगा जहां मर्डर हुआ है।”
“लेकिन अगर वो भाग गई तो?” मिस मारिया बोली।
इंस्पेक्टर इंदर फिर मारिया को आंख दिखाता है।
“नहीं भागेगी। हम उसे वहां भेजेंगे और बाहर दो पुलिसवाले तैनात करेंगे। ताकि मोना को कोई तकलीफ ना हो।”
“तकलीफ?” सारे एक स्वर में शक्की निगाहों से पूछते है।
संभलते हुए, “मेरा मतलब वो भागे नहीं। या कोई अनहोनी न हो।”
“हम उसे कहेंगे कि घटना से जुड़ा जो याद आता रहे वो लिख ले। क्योंकि जाहिर है एक बार में सब कुछ याद नहीं आएगा। लेकिन मेडिसिन लेते रहने से कुछ-कुछ याद आता रहेगा। इस तरह हम मर्डर करने वाले तक आसानी से पहुंच सकते है।”
“आई कैन अप्रूव इट। लेकिन मेरे उपर मीडिया का भी बहुत दबाव है। ख्याल रखना।” डी.आई.जी. ने हर्षित को सावधान किया।
“सर मैं आपकी बात समझ गया। मैं मोना से भी बात करके आता हूं।” हर्षित बिना उत्तर सुने चला जाता है।
हर्षित जेल नंबर 3 में जाकर मोना को सारा निर्धारित प्लॉन समझा देता है। और फिर इंस्पेक्टर की आपत्ति के बावजूद, मीडिया से बचते हुए अपनी गाड़ी से मोना को उसके घर छोड़ आया। नोटबुक उसके हाथ में देकर उसकी कलाई पर भी लिख देता हैः “रिधिमा से जुड़ा जो याद आए, लिखते जाना।” फिर कुछ रुककर ‘आसमानी मोगरा’ लिख उसके बीच एक दिल भी बना देता है।
आखिरकार दो दिन बीत गए।
हर्षित के दो दिन काफी बेचौनी में बीते। उसे यही चिंता थी कि मोना ने क्या किया होगा? वो मीडिया और इन्वेस्टिगेशन के चलते वहां विजिट भी नहीं कर सकता था।
अचानक फोन की घंटी बजती है…
“हेलो मोना! कैसी हो? कुछ लिखा? हेलो?”
“हां हर्षित! तुम आ जाओ।” मोना का स्वर रूखा था। हर्षित का दिल बैठ गया। फोन कट जाता है।
शायद मोना को कुछ याद नहीं आया। देखता हूं। हर्षित स्वयं में बुदबुदाता है।
“हेलो डी.आई.जी. सर! मोना का रिस्पॉन्स आ गया है। आप टीम भेज दीजिए। मै भी वही पहुंच रहा हूं।”
हर्षित आसमानी कमीज पहनकर मोगरे के फूल गाड़ी में रख लेता है। और मुस्कुराहट के साथ मोना के घर की ओर निकल पड़ता है।
हर्षित वहां पहुंच कर देखता हैः
दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। ऊपर से जीवन सिंह सीढ़ियां उतरता हुआ आ रहा है। घबराए स्वर में कहता हैः “हर्षित साहब! मोना मैम ने आत्महत्या कर ली है। शायद जहर खाया है। ये चिट्ठी और नोटबुक मिली है।”
हर्षित के पैरो तले जमीन खिसक जाती है। कांपते हाथो से वह चिट्ठी और नोटबुक पकड़ता हैः
28 02 2023ः आज रिधिमा आई है। मेहंदी पर अनुराग का नाम लिखवाकर। कितनी खुशकिस्मत है। और मैं? मेरी नसीब में तो बस अकेलापन है। आखिर क्यों? इससे हर मामलों में बेहतर होने के बाद भी अनुराग मेरा न हो सका।
28 02 2023ः मैं रिधिमा को नहीं मारना चाहती थी वो तो पता नहीं कैसे?
28 02 2023ः मैने चुपके से रिधिमा के चाय में सायनाइड की गोलियां मिला दी है। मैं अपने आपे से बाहर होती जा रही हूं।
28 02 2023ः मैने खिड़की से बॉटल को गार्डेन में फेंक दिया है। मुझे डर लग रहा है। ओह! मुझसे ये क्या हो गया।
नोटबुक पढ़कर हर्षित भौंचक्का रह जाता है। उसे आभास भी नहीं था कि अकेलापन और प्यार की कमी मोना के जीवन में इतनी अधिक गहरा गई थी। अब चिट्ठी पढ़ने की बारी थीः
मेरे प्यारे आसमानी ‘हर्षित’,
मुझे पता है तुमने आज भी आसमानी रंग पहना हुआ होगा। और मोगरा तो जरूर लाए होंगे! मैं दवाइयां लेना बिल्कुल नहीं भूली और, और तुम्हें भी लेकिन देखो मैंने रिधिमा के साथ जो किया उसकी सजा तो मुझे मिलनी चाहिए ना? हर्षित अगर तुम पहले मिलते ना तो सब ठीक हो जाता यार। पर अब तो मैंने सब खराब कर दिया न? मुझे माफ करना! मैं तुम्हारी स्मृतियों में रहूं, मेरे लिए इतना बहुत है। तुमसे मिलना तो चाहती थी पर जानती थी तुम मुझे इस केस से बचा लोगे। इसीलिए खुद को सजा देनी पड़ी। सच कहूं तो मैं भी मिस्टर आसमानी के साथ ही इस मिस मोगरा को जोड़ना चाहती थी। पर अब वाकई बहुत देर हो चुकी है।
तुम्हारी मोगरा ‘मोना’।
शिवानी कार्की
अध्ययनरत परास्नातक, दिल्ली विश्विद्यालय
