जंगल ,धरती और हम
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“दोनों जीपें हमें पहाड़ी के नीचे छोड़ देनी पड़ीं। अब तुम समझो तीन किलो मीटर चढ़कर पहाड़ी पर जाना। हम चढ़ते गए ,अब हमको तो आदत थी लेकिन वह टीम ठहरी शहरी और दिल्ली के नखरे लिए। सुबह के ग्यारह बजे भी पसीना पोंछती बड़ बड़ करती चल दी। एक अफ़सर मार बड़बड़ायें थोड़ी सी ऊँचाई पर जीप नहीं चढ़ सकती थी?हम कहें कि `सरकार `का ऑर्डर नहीं था कि आप लोग जीप से ऊपर चढ़ें।वे भिनभिनायें कि सरकारी आदमी हम हैं यानी हम सरकार हैं .हम पर हुकुम चलाने वाले` सरकार` कौन आ गये ? हम उन्हें समझाएं अगर सात सौ पिट्स , पिट्स मायने ?जंगल में पेड़ लगाने से पहले गढ्ढे तैयार करने पड़ते हैं। ये गिनने हैं तो सरकार को नाराज़ कर गिन नहीं पाएंगे। अब ऊपर पहुंचें तो टीम की सिट्टी पिट्टी गुम। “
“सिट्टी पिट्टी काहे को गुम ?“
“पहाड़ी की चोटी के मैदान को `सरकार` के आदमियों ने हाथ में राइफ़ल्स लिये घेरा हुआ था। आज का ज़माना होता तो तुम्हें `शोले `का गब्बर ये पूछता याद आ जाता कि अरे ओ साँभा !कितने आदमी थे ?अठ्ठाईस उन्त्तीस साल पहले कौन जानता था `शोले वोले`क्या है ? और अगर हम पहले बता देते कि `सरकार `मतलब डाकुओं का कुख्यात सरदार तो वे लोग जीप उल्टी तरफ़ मोड़ ,पल्टी मार दिल्ली वापिस भाग लेते। “ बंगाली बाबू अपने फ़ॉरेस्ट विभाग के किस्से सुनाना शुरू कर दें तो उन्हें बीच में रोकना टोकना मुश्किल है।
कहाँ अठ्ठाईस उन्त्तीस साल पहले उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर के पास का जंगल– कहाँ कुख़्यात ददुआ डाकू का ज़माना –कहाँ शोले पिक्चर –ये डाकू सरदार `सरकार` ददुआ डाकू के आस पास के थे। ये तय है कि ब्रिटिश राज्य हो या उस इलाके का कुख्यात डाकू जिसे सब` सरकार` कहते थे ,वे लोगों के,साथ ही पर्यावरण की चिंता करने वाले उसके सरंक्षक भी थे। जिस पर्यावरण की चिंता लोगों को अब खाये जा रही है ,हमारे ऋषि मुनि , हमारे पूर्वज ,ब्रिटिश सरकार यहां तक की डाकू भी इस पृथ्वी को बहुत जतन से ,स्नेह से सहेजे हुये सुरक्षित हम तक पहुंचा पाए हैं। ये तो हम लोगों ने नदियों से छेड़ छाड़ कर ,धुँआ उगलने वाली चिमनियों से , जंगल में सीमेंट के कंक्रीट के जंगल उगा दिए ,अपनी ग़लतियों से ओज़ोन में छेद कर दिया है। अब भुगत रहे हैं मौसम की हर जगह अदला बदली।
फ़ॉरेस्ट वाले बंगाली बाबू के इस किस्से पर बातें बाद में पहले कल्पना कर लें ब्रिटिश कोलोनियल सरकार ने सोचा होगा इस अथाह वन सम्पदा को किस तरह संयोजित किया जाए जिससे इसके अंदर की कीमती चीज़ें मानव के काम आ सकें।
यहाँ की गर्मी से अँग्रेज़ बहुत घबराये हुए थे वह भारत के मैदानों व पहाड़ों की ख़ाली ज़मीन को पेड़ों से ढक देना चाहते थे जिससे कुछ तो यहाँ की ज़मीन ठंडी हो। सन 1894में पहली बार फ़ॉरेस्ट पॉलिसी बनाई गई थी। पहाड़ों पर ढेरों हिल स्टेशंस बनाने के लिये उन्होंने अपना दिमाग़ लगाया होगा। ये पहाड़ काटकर सड़कें तो कुदाल पकड़े भारतीय हाथों ने बनाई होंगी। ख़ैर —
ये विचित्र बात बँगाली बाबू ने ही कभी बताईं थी ,“ ब्रिटिश सरकार ने जंगलों के बीच आदिवासियों की गरीबी दूर करने के लिए जंगल के बीच बीच में ` माफ़ी गाँव ` बसाये थे । यहाँ पर वे लकड़ी से घर बनाते थे। उन्हें विश्वास में लिया गया कि उन्हें गोरों से डरने की ज़रूरत नहीं है ये गाँव के बीच की जंगल सम्पदा उनकी है। “
“तो वो सरकार बहुत दयालु भी थी ?“
“इसमें उनका भी फ़ायदा था जंगल का रख रखाव ,पेड़ लगाना पहले से अधिक होने लग गया था। “
पहाड़ों पर 3000 फ़ीट पर रोपे गए साल के वृक्ष, 6000 -6500 फ़ीट की ऊंचाई पर पाइन्स और उसके ऊपर देवदार के वृक्ष। सड़क के किनारों पर नीम ,पीपल और जामुन के पेड़ों की भरमार कर दी। समुद्र किनारे रोपे युक्लिप्टस व नारियल के वृक्ष .ब्रिटिश सरकार के सामने उदाहरण था दुनियां में पहली बार इंडोनेशिया में डच सरकार द्वारा आरम्भ किये फ़ॉरेस्ट मैनेजमेंट का । भारत में उन दिनों बहुत सी ज़मीन ऊसर पड़ी थी , मिट्टी खिसक कर बिखरती या उड़ती रहती थी। ऐसी ज़मीन पर अंग्रेज़ों ने पेड़ों को जैसे अर्जुन ,कंजी , महुआ व विलायती बबूल को रोपने का आरम्भ किया था।आजकल तो जाने कितने लोगों ने `अफ़ॉरस्टेशन `यानी कि ऊसर ज़मीन को उपजाऊ बना कर ऐसी फसलें खड़ी कर दीं हैं जो उपयोगी वस्तुएं पैदा कर रही हैं।
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बंगाली बाबू इस जंगल में स्टाफ़ क़्वार्टर में समय काट रहे थे। गाँव वालों ने उनकी यहां पोस्टिंग होते ही हिदायत दे दी थी कि घने जंगलों में कभी अपने वन विभाग की वर्दी पहनकर न जाँयें । पता नहीं कब डाकू उन्हें अपना दुश्मन समझ गोलियों से भूनकर कहाँ पटक दें .कभी कोई जान ही नहीं पायेगा कि बंगाली बाबू कहाँ गायब हो गए। । वह रात में क़्वार्टर के बाहर कुर्सी डाल सिगरेट फूंकते रहते कि ये तो समय बताएगा कि उनका व उनके भाई का ये निर्णय ठीक था कि नहीं कि खुद नौकरी के चक्कर में शहर दर शहर भटकते रहो लेकिन परिवार एक ही स्थान पर रहना चाहिए। दोनों भाई पिता के जंगल विभाग में हर दूसरे तीसरे साल ट्रांस्फ़र होने से त्रस्त रहते थे। ऊंची नौकरियों का सपना सपना ही रह गया था। कहीं एक स्थान पर जमते तो वे भी ठीक से पढ़ाई कर पाते। उनके छोटे भाई फिर भी कुछ वर्ष बाद अपनी सरकारी नौकरी में भी अपने होम टाऊन में ही जमे रहे.
उन्हें आज तक याद है जब वे छः साल के थे तो लखीमपुर खीरी में पिताजी के ट्रांसफर ऑर्डर आते ही अपने पक्के दोस्त सुनील के गले लगकर कितना रोये थे। वे भी रोये जा रहा था , “मैं तुझे जाने नहीं नहीं दूंगा या मैं पापा कहूंगा कि वे भी तुम्हारे साथ चलें। “
अब तो इन बचकानी बातों पर हंसी आती है। कितने शहर ,कितने दोस्त बने। उन दिनों उनके अपने बच्चे कानपुर में अपने पैतृक घर में ठीक से पढ़ लिख रहे थे। ।
उनके अपने घर पर महीने में दो तीन चक्कर तो लग ही जाते थे। वे आज हँसते हुये बताते हैं ,“हमसे रेलवे डिपार्टमेंट ने इतनी कमाई की है क्या बताएं ?“
“आपका रेलवे से क्या सम्बन्ध ?“
“अब देखो हम कानपुर जाने का रिज़र्वेशन करवाए बैठें हैं ऊपर से ऑर्डर आ गया कि कन्ज़रवेटर साहब इंस्पेक्शन को आ रहे हैं। कभी किसी मिनिस्टर साहब का ऑर्डर आ जाता कि वे अपनी फ़ेमिली के साथ छुट्टियां मनाने आ रहे हैं। झख मारकर अपना जाना केंसिल करो।“
“तो आप रिज़र्वेशन भी केंसिल करवा सकते थे ?“
“अरे !तब ऐसा थोड़े ही था कि मोबाइल पर `टुंग टांग` करो हो गया पांच मिनट में रिज़र्वेशन केंसिल।अब कौन जाता पंद्रह बीस किलो मीटर दूर रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन केंसिल करवाने। “
बंगाली बाबू की बातों से यही समझ में आता है कि ज़िंदगी जीने के लिए अपनी परिभाषा बनाओ जैसे कि उन्होंने सोचा कि परिवार को एक ही शहर में रक्खेंगे लेकिन ज़िंदगी किसी दूसरी बात पर पटकनी दे देती है। उन्होंने ये नहीं सोचा था कि जब वे रिटायर होकर घर लौटेंगे तो उनका मन ही अपने घर में नहीं लगेगा। उन दो औरतों यानी अपनी पत्नी व माँ के बीच रहकर ,उनकी नसीहतें सुनकर घबराहट होने लगती।सबसे बुरी बात तो उन्हें ये लगती थी कि दोनों उनकी सारे दिन चाय पीने की लत से परेशान थीं.मन ही मन वे समझ रहे थे कि ये दो औरतें जो उनके दो चार दिन घर पर आने पर पहले रसोई से निकलने का नाम नहीं लेतीं थीं अब वे अपनी आज़ादी छिन जाने से कुछ तो बौखलाई हुईं थीं ।
हाँ तो , तब बंगाली बाबू को ऊपर से आर्डर मिला था कि इस जंगल में सात सौ पिट्स यानी गड्ढे खोदे जाएँ। जंगल में उन्हें ऐसी जगह नहीं दिखाई दी कि जहाँ सात सौ पिट्स खोदे जाएँ। `सरकार `तक ये बात जा पहुँची थी। उन्हीं की तरफ से संदेसा आया कि उनके आदमी व कुछ गांव वाले मिलकर उस छोटी पहाड़ी की चोटी को समतल कर देंगे जिस पर पेड़ लग सकें। वैसे तो गाँव वाले इस पहाड़ी पर सरकार के आतंक से चढ़ते ही नहीं थे।
बंगाली बाबू के मातहत ने सलाह दी ,“साब !इन डाकुओं का भरोसा नहीं हैं। कब नाराज़ हो जायें , किस छोटी सी बात पर गोली से भूनकर रख दें। आप तो मना ही कर दो। “
बंगाली बाबू एक दो दिन सोचते रहे फिर उन्होंने `सरकार `के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी। जंगल विभाग के कर्मचारियों की देख रेख में व स्थानीय गाँव वाले मज़दूरों व डाकुओं से सात सौ गढ्ढे खुदवा कर उसमें घास , बालू व मिट्टी डाल कर तैयार करवा दिए थे।जून जुलाई में बारिश होते ही इसमें पेड़ों की पौध रोप दी जानी थी।
अब ऐसे में जब शहरों में सरकारी आदेश पांच सौ वृक्षारोपण के होते हैं। सरकारी अधिकारी अपनी बहिनों ,भाइयों ,भान्जियों ,साली ,साले सलहेज ,अड़ौस पड़ौस वालों के लॉन में पहले से लगे पेड़ पौधे की भी गिनती शामिल कर सरकारी फ़ाइल्स पर वृक्षारोपण की खानापूर्ति करते हों तो जंगल में किसने देखा कि सात सौ पिट्स खोदे गए हैं या नहीं ?तो दिल्ली से अधिकारी उन पिट्स का निरीक्षण करने घने जंगलों के बीच आना चाहते थे कि पिट्स खोदे भी गए हैं या महज पेपर वर्क कर दिया है। अब बंगाली बाबू ठहरे उसूल के पक्के उन्हें ये बात बहुत बुरी लगी कि कोई उनके काम पर शक करे ?
उनके बॉस ने फ़ोन पर समझाया ,“बुरा मत मानिये ,ये एक रुटिन इंस्पेक्शन है। “
“ सर !आपको पता नहीं है गाँव वालों से कहो कि सात सौ गढ्ढे खोदो तो वे एक भी कम नहीं बल्कि सात आठ अधिक खोद देंगे क्योंकि उनका जीवन ही जंगल पर टिका है।वे तो आज तक अंग्रेज़ों की प्रशंसा करते हैं कि उन्होंने भारत में जंगली बबूल के पेड़ खड़े करके उनकी ईंधन की समस्या हल कर दी है। “
“ ग्रेट . “
“सर ! आप तो जानते ही हैं इस पेड़ में इतने कांटे होते हैं कि एक चिड़िया भी न बैठे। फल ये न दे ,फूल ये न दे। वे इन्हें काटकर अपना खाना बनाते हैं। ये इन्हें विलायती बबूल कहते हैं। “
“ओ -वेरी इंट्रेस्टिंग बट वी विल बी कमिंग फ़ॉर इंस्पेक्शन। “
और दो जीप में भरकर वन विभाग की टीम यहाँ आ पहुंची थी। बंगाली बाबू सर की जीप में सवार हो गये। पहाड़ी की तलहटी पर जैसे ही दो जीपें पहुंचीं वैसे बनर्जी साब ने कहा,“ यहाँ से आप सबको ऊपर पैदल जाना होगा।“
जीप के ड्राइवर ने मुस्तैदी से कहा था ,“अरे इस छोटी पहाड़ी पर जीप चढ़ाना कौन सी बड़ी बात है ?“
“ये तो मुझे भी पता है लेकिन`सरकार `का कड़ा आदेश है कि आप सबको जीप नीचे ही छोड़नी पड़ेगी। “
सर भुनभनाये थे ,“सरकार वो हैं या हम ?“
बनर्जी साब ने समझाया था ,“आप सरकारी कर्मचारी हैं लेकिन ये तो इस इलाके की सरकार `हैं।मतलब यहाँ उनका दबदबा है। इनकी बात सबको माननी पड़ती है। “
“ये क्या बात हुई ?“
एक बुज़ुर्ग अधकारी ने कहा था ,“ इन स्थानीय लोगों को हमें इन्हें नाराज़ नहीं करना चाहिए क्योंकि अभी अभी ज्वाइंट फ़ॉरेस्ट मैनेजमेंट का आरम्भ हुआ है. हमें लोकल लोगों का विश्वास जीतना है। यदि इन लोगों की बात नहीं मानी तो ये बात जंगल की आग की तरह फैल जाएगी। विलेजर्स को- ऑपरेट करना बंद कर देंगे । “
धूप कुछ चढ़ने लगी थी मजबूरी में जीप से उतरकर सबने अपनी अपनी कैप पहन ली , कुछ लोगों ने काले , भूरे गॉगल्स पहन लिए थे। अभी आधी ही चढ़ाई चढ़ी थी कि कुछ लोग तो हाँफने लगे थे। बस सर शायद खूब वर्ज़िश करते होंगे ,वे ही सबसे आगे उत्साह से चल रहे थे।
रास्ते में सर ने चुटकी ली ,“कहिये बंगाली बाबू कहीं ज्वाइंट फ़ॉरेस्ट मैनेजमेंट का आरम्भ करने वाले अजित कुमार बनर्जी आपके रिश्तेदार तो नहीं हैं ?“
बंगाली बाबू भी हंस पड़े ,“हो सकता है । मैं यहाँ जंगलों में रहता हूँ इसलिए अजित साब की इस योजना की बहुत इज़्ज़त करता हूँ। यदि पंचायत ,स्थानीय लोग हमारा साथ नहीं देते तो कड़क पहाड़ी मिट्टी में हम कैसे सात सौ पिट्स खोद पाते ?“
एक मातहत ने पूछा ,“अजित कुमार बनर्जी कौन हैं सर !?“
“इन्होंने ही तो सन 1971 पश्चिमी वेस्ट बंगाल में सबसे पहले पश्चिमी मिदनापुर ज़िले में अराबरी रिसर्च रेंज में ज्वाइंट फ़ॉरेस्ट मैनेजमेंट आरम्भ करवाया था जिससे जंगल और उसकी बायोडाइवर्सिटी के सरंक्षण पर प्रभाव पड़ा था।“
सर ही सबसे पहले चलते हुये पहाड़ी के ऊपर के मैदान पर पहुंचे थे। उनके पीछे थे बंगाली बाबू सर के चेहरे के एक एक भाव को देखने के लिए उत्सुक ,होंठों पर मुस्कान दबाये। ऊपर कदम रखते ही जैसे सर की सांस अटक गई थी। उस पहाड़ी को घेरे खड़े थे काले ,कत्थई कुर्ते ,सफ़ेद धोती पहने , सिर पर साफ़ा लपेटे हाथ में राइफ़ल लिए काली मूंछों वाले हट्टे कट्टे लोग . सर ने आग्नेय नेत्रों से बंगाली बाबू को देखा और फंसे गले से उनकी फुसफुसाहट निकली ,“ये सब क्या है –ये कौन हैं ?`
बनर्जी साब भी धीमे स्वर में बोले ,“ये सरकार के आदमी हैं। “
“और सरकार कौन हैं ?“
“इस इलाके का सबसे बर्बर डाकू। “
“फिर तुमने हमें मरने क्यों बुला लिया ?“
“आपको हम इनडाइरेक्टली मना कर रहे थे कि यहाँ नहीं आएं और आप हमारे काम पर शक कर रहे थे .“
“अगर तुम बता देते कि यहाँ डाकुओं का मामला है तो हम क्यों मरने आते ?“
“अगर हम ऐसा कहते तो आप समझते हम ग़लत हैं ,झूठ बोल रहे हैं। आप बेफ़िक्र रहें `सरकार `के आदमियों ने भी पिट्स खोदने में मदद की है।आप लोगों को कोई तंग नहीं करेगा क्योंकि पेड़ तो इन लोगों को भी चाहिए। “
अब तक बाकी लोग भी ऊपर आ गये थे। उनके चेहरे बर्फ़ जैसे जम गये थे ,सफ़ेद पड़े । सर ने बमुश्किल अपने आपको संभाला व मातहतों को बताया कि इन बंदूक धारियों से उन्हें कोई ख़तरा नहीं है,हाँलाकि वे स्वयं अपनी इस बात के लिए आश्वस्त नहीं थे ।वे हिदायत देने लगे कि कौन कहाँ पर सामने दिखाई देते पिट्स गिनना शुरू करेगा। लोग अपने डरे काठ हुए शरीर को जबरन हिलाकर चलने को तैयार हुए कि कड़क आवाज़ गूंजी ,“ कौनूँ अपनी जगह से नाहीं हिलिये जब तक सरकार नहीं आ जात। “
बंगाली बाबू में ही साहस था ,उन्होंने उस ठिगने मोटे डाकू से पूछा ,“वे कब तक आएंगे ?“
“वो देवी माँ के दर्शन के लिए गये रहें ,आवन की तैयारी है। “
`सरकार `ने इस सरकारी दल को आधा पौन घंटा तपती धूप में इंतज़ार करवा ही लिया।लोग बेसब्र डरे हुए बार बार अपने रूमाल निकाल कर अपना पसीना पोंछ रहे थे। तब कहीं सरकार माथे पर तिलक लगाये अपना घोड़ा दौड़ाते अपने दो साथियों के साथ प्रगट हुये और दोनों हाथ जोड़कर ऊँचे करके दहाड़े ,“राम राम सबको.“
सबकी जुबां तालू से चिपक गई थी सिर्फ़ बंगाली बाबू ने हाथ जोड़कर कहा था ,“राम राम सरकार !आदेश दें कहाँ से पिट्स की गिनती शुरु करवाएं ?“
“देवी माँ का मंदिर उत्तर दिसा मा पड़त है। जहाँ से हम अभी पहाड़ी चढ़े रहे तो बस वहीं से उन्हें हाथ जोड़ गिनती सुरु की जाए । “
सभी लोग लड़खड़ाते ,लटपटाते क़दमों से दिल की धुक धुक पर काबू पाते चेहरे पर डरी खिसियाई मुस्कान लिए उधर चल दिए। लेकिन तीनों अफ़सर कोई फ़ाइल खोलकर देखने लगे दरअसल वे अपनी घबराहट छिपाना चाह रहे थे।
तभी सरकार दहाड़े ,“ओ तीनों तुम कउनों लाट साब हो जो गढ्ढों की गिनती न करियो ?“तीनों ने सिटपिटाते हुये फ़ाइल बंद कर दी और उत्तर दिशा में चल दिए। सरकार के घोड़े के पास से गुज़रते हुए तीनों के कान की लवें लाल पड़ गईं थीं।
ये सब ज़मीन का अपना अपना क्षेत्र बाँटकर गढ्ढे गिनते हुए ,साथ लाई फ़ाईल में गिनती लिखते जा रहे थे। तब तक `सरकार किसी साथी की बिछाई चारपाई पर बैठकर बीड़ी फूंकने लगे थे।
थोड़ी देर बाद सरकार की बन्दूक लहराई ,“आज समझ लो तुम सबकी परीक्सा है ,अगर गिनती ग़लत हुई तो —–.“सरकार वीभत्स हंसी हंस दिए। इन डरे हुए शहरी लोगों को उन्हें और डराने में बहुत मज़ा आ रहा था।
सब अपना काम जल्दी ख़त्म करके यहां से भागना चाहते थे। कुछ देर में वे बीच में अपनी अपनी फ़ाइल लेकर इकठ्ठे हो गए। तीनों अफ़सर सबके आंकड़ों का जोड़ करने में लग गए। पिट्स की संख्या थी सात सौ दस। अब किसी की हिम्मत न हो बिल्ले के गले में कौन घंटी बांधे –ग़लत गिनती सुन कहीं गोली चल गई तो ?सर ने चतुराई से बंगाली बाबू को फ़ाइल पकड़ा दी और बोले ,“आप ही अपने सरकार को पिट्स की गिनती बताइये। “
बंगाली बाबू को अपनी हँसी दबानी मुश्किल हो रही थी .
इनको व्यस्त देखकर बाकी टीम के लोग नीचे जाने के रास्ते पर चल दिए ।
तभी `सरकार `का हुंकारा गूंजा ,“आप सब कहाँ खिसक लिये ? कोई अपनी जग्या से नहीं हिलेगा। “
वे डरते हुए लौट आये थे। बंगाली बाबू हाथ में फ़ाइल लिए `सरकार `के पास पहुंचे। सिर ऐसे झुकाया जैसे बाअदब —बामुहालज़ा कर रहे हों। उन्होंने `सरकार `से कहा ,“सबने सात सौ दस पिट्स गिने हैं। “
उत्तेजना में `सरकार `चारपाई से खड़े हो गये ,“बाह !साबास तुम सब गढ्ढे सही गिने हो। “
सर ने दूर से ही इनका अभिवादन किया और तेज़ कदमों से नीचे जाने के रास्ते पर चल दिए। उनके कदम कह रहे थे -`जान बची और लाखों पाये।` उनकी टीम उनसे भी तेज़ चली जा रही थी कि फिर एक हुंकारा उठा ,“तुम सब्ब कहाँ भागे जा रहे हो बिना हमसे परमीसन लिए ?“
सर को एक क्षण लगा कि गुस्से में कहीं गोली न चला दी जाए। उनसे घबराहट में इतनी बड़ी ग़लती कैसे हो गई ?आख़िरकार पूरी टीम की ज़िम्मेदारी उन पर है।
ख़ैर ,बोझिल क़दमों से टीम लौट ली थी। सर के पास आते ही सरकार ने कहा ,“आप हमारे मेहमान हो ,भोजन का टैम हुई रहा है। हम आप लोगन को बिना भोजन कराये कैसे जान दे सकत हैं ? आख़र आप हमारी व गाँव वालों की ज़मीन ,पेड़ों की रक्सा के लिए काम कर रहे हो। “
कहकर वे एंड़ लगाकर घोड़े पर चढ़ गए और अपने सहायक व बंगाली बाबू से बोले ,“मेहमानों को नीचे गाँव में लिवा लाओ। वहां गाँव वाले हम सबका राह देख रहिन है।हम तब तक तलक चलकर इंतजाम देखत हैं। “
सबको लगा कि यहां आकर वे पहली बार खुलकर सांस ले पा रहे थे ।
गाँव में नीम के पेड़ों की छाँव तले स्कूल की टाट पट्टियाँ बिछाई हुईं थीं। सामने गाँव के झोंपड़ों के बीच से दूर गंगा नदी की झलक दिखाई दे रही थी। पूरी टीम ने टाट पट्टी पर बैठकर अपने पीछे दीवार पर राइफ़ल टिकाये डाकुओं के साथ पत्तल में शुद्ध घी की गर्म गर्म फूली हुई पूरियां ,आलू की लटपटी सब्ज़ी ,शकोरे में बूरा पड़ा दही ,शुद्ध घी का सूजी का हलुआ व बूंदी के स्वादिष्ट लड्डू जमकर खाये — वे इस शुद्ध घी की गर्म गर्म अनोखी दावत को कभी भूल नहीं पाये।
अलबत्ता वहां से चलते समय सर व बंगाली बाबू उलझे हुए सशंकित थे -क्या कहा था `सरकार` ने? —` आख़िर आप हमारी व गाँव वालों की ज़मीन ,पेड़ों की रक्सा के लिए काम कर रहे हो।` — तो ये ज़मीन भारत सरकार की है या इन गांव वालों व `सरकार की ?
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