कविता
- मेरी कलम से
चाहत…..सौजन्य: श्री डी. के.सक्सेना(दीप-दर्शन)
हम भी क्या मनन कर बैठे! होकर खाना बदोश ,जहाँ अपना समझ बैठे।
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मेरी कलम से; रूह – ए – कायनात
सलवटे मलबूस (बिस्तर) की, आँखों में बदन की भूख, क्या सिर्फ टुकड़ा-ए-गोस्त ही थी मैं? शक सुवहा, वासना से मिले…
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