शूरवीरो की गाथा

पीर अली खान

1857 की क्रांति में देश के हजारों लोग भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने की जंग में कूद पड़े थे। कुछ को छोड़कर बाकी के लोगों को भुला सा दिया गया। इतिहास की किताबों में आज भी ऐसे नायकों की शौर्य गाथा मौजूद है, जिन्होंने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। कैफे सोशल ऐसे ही गुमनाम नायकों को अपने हर संस्करण में उनके द्वारा किए गए कार्यों को याद कर रहा है।इस बार हम एक ऐसे जांबाज सिपाही की भूली-बिसरी कहानी से आपका परिचय कराने जा रहे हैं जिन्होंने कम समय में बहुत ही बड़ा काम किया था।


आजादी के दीवाने इस नायक का नाम शहीद पीर अली खां था।

पीर अली का जन्म सन् १८१२ में लखनऊ (कहीं कहीं पटना का नाम भी आता है) में हुआ था। चूंकि वह गुप्त रहते हुए स्वतंत्रता आंदोलन के लिए कार्य करते रहे थे, इसलिए जन्म स्थान के बारे में कोई निश्चितता नहीं है। पीर अली जब केवल ७ वर्ष के थे तब ही अपने घर से भागकर पटना चले गए। जहां उनकी परिवरिश नवाब मीर अब्दुल्ला ने की थी। उन्होंने यहीं पर शिक्षा प्राप्त की थी। पीर अली को अरबी, फारसी और उर्दू भाषा का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने पटना में रहते हुए कई वर्षो तक पुस्तक विक्रेता का काम किया। अंग्रेजी सरकार द्वारा किए जा रहे जुल्म के विरोध में उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू किया और वह स्थानीय क्रांतिकारी परिषद के सदस्य बन गए। स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लेकर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया। उन्हें अब देश के क्रांतिकारी के नाम से जाने जाना लगा।

पीर अली एक ऐसे योद्धा थे जिनका नाम इतिहास के पन्नों में बहुत कम देखने को मिलता है परंतु उनका योगदान बहुत बड़ा था। १८५७ की क्रांति में पीर अली ने पटना में सभी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनकी किताब की दुकान पर बिहार के क्रांतिकारी इकट्ठे होकर योजनाएं बनाते थे। ३ जुलाई १८५७ को पीर अली ने अपने साथियों के साथ मिलकर प्रशासनिक भवन में जाकर जोरदार नारेबाजी की थी। पीर अली ने भारत की स्वतंत्रता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण काम किए थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी मौलवी मोहम्मदी को हथियार खरीदने में मदद करने के लिए राजी किया जिसके साथ उन्होंने दानापुर में अंग्रेजी सेना सेवा शिविर पर एक साहसिक हमले का आयोजन किया था।

इसकी खबर जब अंग्रेज सरकार को लगी तो इन्हें गिरफ्तार करने के लिए योजना बनाई गई। इसके बाद उन्हें ४ जुलाई १८५७ को गिरफ्तार कर लिया गया। पीर अली को आजाद कराने के लिए उनके साथियों ने सरकार को बहुत परेशान किया।अब तक अंग्रेजी हुकूमत के अंदर पीर अली का खौफ पैदा हो गया था। जब पीर अली को गिरफ्तार कर लिया गया तो अंग्रेज अफसर ने कहा कि अगर तुम अपने साथियों के नाम बता दो तो तुम्हारी जान बच सकती है तो उन्होंने बड़ी बहादुरी से जवाब दिया कि “जिंदगी में कई ऐसे मौके आते हैं जब जान बचाना जरूरी होता है लेकिन जिंदगी में जान देने का मौका कम मिलता है” मेरे खून से लाखों बहादुर पैदा होंगे और तुम्हारे जुल्म को खत्म कर देंगे।


ब्रिटिश हुकूमत में पीर अली का इतना भय हो गया था कि गिरफ्तार करने के २ दिन बाद ही उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सरकार ने उनके सम्मान में पटना हवाई अड्डे के पास एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा। तथा शहीद “पीर अली खान पार्क” जो पटना में गांधी मैदान के पास जिला मजिस्ट्रेट के आवास के सामने स्थित बच्चों का पार्क उनके नाम पर है।

हमारे महान देश भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने के लिए पीर अली जैसे अनेकों वीर सपूतों ने अनेक वर्षों तक आंदोलन किया था इसके फलस्वरूप देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। स्वतंत्रता तो अवश्य मिली लेकिन पीर अली जैसे अनेकों सपूतों के वलिदान से।

कैफे सोशल अपने वीर सपूत को शत् शत् नमन करता है।

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