नीव के पत्थर

नींव के पत्थर – प्लंबर

11 मार्च को हर साल विश्व प्लंबिंग डे के रूप में मनाया जाता है ताकि सोशल हेल्थ और हाईजीन की महत्वपूर्ण भूमिका को समझाया जा सके। प्लंबिंग नहीं होती तो हमारे शहर और कस्बे कितने गंदे होते, इसे हम सोच भी नहीं सकते। प्लंबिंग न केवल साफ-सुथरे शहर का निर्माण करती है, बल्कि यह सारे ह्यूमन वेस्ट और कचरे को भी सही तरीके से व्यवस्थित करती है। विश्व प्लंबिंग डे के माध्यम से हमें स्वच्छता और प्लंबिंग के महत्व को समझाने का मौका मिलता है।


प्लंबर समाज में एक महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं। उन्हें सम्मान और क्रेडिट देना उनके योगदान के प्रति हमारी श्रद्धांजलि होती है। विश्व प्लंबिंग डे पर, अपने स्थानीय प्लंबर को उनके बेहतरीन काम के लिए धन्यवाद दें और उनकी महत्वाकांक्षा को समझें।
प्लंबिंग और स्वच्छता तंत्र हर घर और इमारत के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इसलिए, उनके योजना बनाने और कार्य करने की महत्वपूर्णता को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। इमारत की कुल लागत का एक बड़ा हिस्सा प्लंबिंग और स्वच्छता कार्यों पर खर्च होता है, जो हमारे स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

हमारे समाज में प्लंबर का बड़ा महत्व है। आर्थिक रुप से संघर्षरत ऐसे लोग प्रायः हर घरों की आवश्यकता हैं क्योंकि जल का सुचारु रुप से प्रवाह किसी भी घर में इनकी सहायता के बिना संभव नहीं है। यद्यपि इनकी कोई विशेष पहचान समाज में नहीं होती है, पर ये मानव जीवन के लिये बड़े उपयोगी होते हैं।

एक ऐसे ही प्लंबर के जीवन पर एक नजरः
सत्यपाल शर्मा ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है, जो 2007 से प्लंबर का काम कर रहे हैं। दिन रात संघर्षरत रहकर इन्होंने लोगों के घरों में जल प्रवाह सुनिश्चित किया है। आज इनके जीवन के कुछ पहलुओं को सामने ला रहा हूं, जो हर किसी के लिये अनुकरणीय है।

इनका बचपन आर्थिक कठिनाइयों और संघर्षों में बीता। पिता का सहयोग इन्हें कभी नहीं मिला। शिक्षा का वातावरण भी गांव में नहीं था। छोटी उम्र में ही अपने को स्थापित करने के लिये इन्होंने प्लंबर का काम सीखा बचपन में ही आर्थिक कठिनाइयों का इन्हें सामना करना पड़ा और गांव में दबंग लोग रहा करते थे। इन्हें जानबूझकर लोग परेशान भी किया करते थे। कभी-कभी इन्हें पैसे भी लोग नहीं दिया करते थे। छोटी ही उम्र में सीमा कुमारी नामक एक बहुत ही सुलझी हुई महिला से इनकी शादी हो गई थी। परिवार का बोझ बढ़ गया था। पुत्र का भी जन्म हो गया था। बाद में एक पुत्री भी हुई। जिम्मेवारियां बढ़ने लगी फलतः गांव छोड़कर यह “गया” शहर में आ गए।

शहर में आने के बाद भी उनकी समस्याएयें कम नहीं हुई। छोटे-छोटे काम मिला करते थे, इनकी तबीयत भी बीच में बहुत खराब हो गई थी किंतु अपनी पत्नी सीमा की सेवा की वजह से यह स्वस्थ हुए और आसपास के लोगों के बीच अपनी सेवा देने लगे।

इन्होंने संचय पर ध्यान दिया और अपने पुत्र की शिक्षा पर भी पूरा ध्यान दिया। उसकी पढ़ाई में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इनका कहना है कि मैंने अपना ध्यान नहीं रखा, दो रोटी कम खा करके भी अपने बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया। आज इनका पुत्र भारतीय फौज में कैप्टन है जो निःसंदेह इनकी पत्नी और इनका योगदान है।

इनकी एक पुत्री भी है शिल्पी रंजन। मैंने उससे भी बात की और उसने बताया कि बचपन से ही वह अपने पिता के संघर्ष को देख रही है और इसका बड़ा ही जबरदस्त प्रभाव उसके ऊपर पड़ा है। उसके अनुसार जिंदगी सरल नहीं होती और जो मेहनत करते हैं, वही जीवन में सफल होते हैं। शिल्पी रंजन ठण्म्क् कर चुकी हैं और वह अध्यापिका बनना चाहती है सत्यपाल शर्मा के घर का नाम फूटी है और इसी नाम से लोग उन्हें जानते हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि कम आमदनी के बावजूद उनके घर पर आने जाने वाले लोगों का तांता लगा रहता है और ये सभी का समुचित स्वागत करते हैं। यह बड़ी बात है कि आज के जमाने में कोई किसी को दो रोटी देना पसंद नहीं करता किंतु यह सभी अतिथियों को भोजन करा कर ही विदा करते हैं, जो आज के जमाने में बहुत बड़ी बात है। इंसानियत अभी भी इस धरती पर है और उनमें अधिक है जो अपनी भारतीय संस्कृति को अपनाये हुए हैं।

बातचीत के क्रम में मैंने फूटी जी उर्फ सत्यपाल शर्मा जी से पूछा कि आप अपने जीवन के अनुभव के आधार पर लोगों को क्या कहना चाहेंगे तो उन्होंने बताया कि व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वह इस धरती पर संघर्ष करने के लिए आया है और संघर्ष और संतोष ही सही जिंदगी की परिभाषा है।

अधिक पाने की अभिलाषा व्यक्ति को हमेशा दुख देती है। जिसके पास जितना अधिक है, वह उतना ही ज्यादा पीड़ित है। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि सुख सुविधा संपन्न लोग बहुत ही सुखी होंगे, लेकिन उनके अंदर का दर्द वही जानते हैं और यह उनके द्वारा विभिन्न घरों से पाए हुए अनुभव का नतीजा है।

सत्यपाल शर्मा की कहानी सिद्ध करती है कि संघर्ष और संतोष ही सच्चे जीवन की परिभाषा हैं। उन्होंने आत्मनिर्भरता की पथ पर चलते हुए अपने सपनों को साकार किया, और अब उनका पुत्र एक सफल सेना अधिकारी है।

प्रो. विनय भारद्वाज
ज्योतिषाचार्य और मानविकी संकायाध्यक्ष,
मगध विश्वविद्यालय, गया

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