नीव के पत्थर

इलेक्ट्रीशियन – हर घर का अनदेखा नायक

इसराफ़ील: जो अंधेरे से लड़ता है

रात के क़रीब ग्यारह बज रहे हैं। मुंबई के मीरा रोड इलाके के काशीमिरा स्लम में, एक बिल्डिंग के आसपास हलचल मची हुई है। बिजली गुल है, और उमस भरी गर्मी में लोग बालकनी से झाँककर नीचे का नज़ारा देख रहे हैं। बच्चे रो रहे हैं, बुज़ुर्ग हाथ के पंखों से खुद को हवा कर रहे हैं, और कुछ युवा ग़ुस्से में बिजली विभाग को कोस रहे हैं।

तभी कोई कहता है, “इसराफ़ील को बुलाओ! वह कुछ ही मिनटों में सब ठीक कर देगा।”

चंद मिनटों में, एक दुबला-पतला युवक अपनी पुरानी एटलस साइकिल पर औज़ारों की बैग लिए वहाँ आ पहुँचता है। चेहरा आत्मविश्वास से भरा हुआ, आँखों में नींद का कोई नामोनिशान नहीं। वह आते ही बिल्डिंग के मेन स्विच रूम का ताला खुलवाता है और तारों की जाँच करने लगता है। लोगों के चेहरों पर थोड़ी उम्मीद झलकने लगती है।

यार, इसराफ़ील न होता तो आज पूरी रात अँधेरे में कट जाती!” एक युवक बगल वाले से कहता है। कुछ देर में तारों की गड़बड़ी पकड़ में आ जाती है। इसराफ़ील बड़े इत्मीनान से एक पुराना कनेक्शन निकालकर नया जोड़ लगाता है, और मेन स्विच को फिर से चालू कर देता है। बिल्डिंग की बत्तियाँ जगमगाने लगती हैं।

लोगों को राहत मिलती है। कोई कहता है, “कितने पैसे हुए भइया?” इसराफ़ील मुस्कुराकर जवाब देता है, “बस उतना ही दीजिए जितना सही लगे।


इसराफ़ील अपने तेज़ और सटीक काम के लिए जाना जाता है। इलाके में जब भी कहीं बिजली की कोई समस्या होती है—चाहे वह रात के बारह बजे हो या सुबह पाँच बजे—लोग सबसे पहले उसी को याद करते हैं। उसका हुनर यह है कि वह मिनटों में समस्या की जड़ तक पहुँच जाता है। वह कभी फ़ालतू का सामान नहीं बदलता, न ही ग्राहकों से अतिरिक्त पैसे वसूलने की कोशिश करता है।

लोगों के बीच यह भी चर्चा रहती है कि अगर दस बिजली मिस्त्री (इलेक्ट्रिशियन) मौजूद हों, तो भी वे “सबसे पहले इसराफ़ील को ही बुलाएँगे।” इसकी वजह है उसका बेहतरीन ट्रैक रिकॉर्ड: आज तक उसने कोई भी काम अधूरा नहीं छोड़ा है। वह जितने वक़्त में कहता है, लगभग उसी वक़्त में मरम्मत का काम पूरा कर देता है।

इसराफ़ील के हाथ में मानो कोई जादू है। पुराने वायर हों या नए, कॉपर की वायरिंग हो या एल्यूमिनियम की, वह सबके बारे में जानता है। वह किसी भी सर्किट में गड़बड़ी होने पर बस एक-दो जगह अपने टेस्ट पेन या मल्टीमीटर से चेक करता है, और तुरंत समझ जाता है कि कहाँ कमी है। फिर बिना देरी किए, वह समस्या को सुलझा देता है।

कई बार ग्राहक, उसके काम से खुश होकर, उसे ज़रूरत से ज़्यादा पैसे देने की कोशिश करते हैं। लेकिन वह मुस्कुराकर कहता है, “मेरे लिए आपका संतोष ही सबसे बड़ी कमाई है।” वह सिर्फ उतना ही लेता है, जितना वह वाजिब समझता है। इसी ईमानदारी के कारण लोग उस पर आँख बंद करके भरोसा करते हैं।


इसराफ़ील का दिन रोज़ एक ही तरीके से शुरू होता है। सुबह होते ही वह अपनी छोटी-सी झुग्गी से निकलता है, जहाँ वह अपने माता-पिता के साथ रहता है। वह जल्दी उठकर हाथ-मुँह धोता है, माँ के हाथ की बनी चाय पीता है, और अपनी पुरानी एटलस साइकिल निकालकर काशीमिरा की सँकरी गलियों से बाहर आ जाता है।

कुछ ही देर में वह सलीम हार्डवेयर नाम की एक पुरानी दुकान पर पहुँचता है। यह दुकान उसकी अस्थायी कार्यस्थली की तरह है। यहीं वह दिन भर के ऑर्डर का इंतज़ार करता है। कभी कोई फ़ोन पर बुलावा आता है, कभी कोई दुकानदार आकर बताता है कि “फलाँ जगह बिजली का फॉल्ट हो गया है।” और अगर कुछ देर तक कोई ख़बर न मिले, तो वह दुकानदारों से पूछ आता है कि कहीं कुछ काम हो तो बताओ।

सलीम हार्डवेयर के मालिक, सलीम भाई, इसराफ़ील को अपना छोटा भाई मानते हैं। वह उसे चाय पिलाते हैं, कभी-कभी नाश्ते का भी इंतज़ाम कर देते हैं। बदले में इसराफ़ील, हार्डवेयर की दुकान में बिजली से जुड़ा कोई काम हो, तो फ़ौरन कर देता है।

दुकान के आसपास कुछ और कारीगर भी आते-जाते हैं—प्लंबर, बढ़ई, पेंटर वग़ैरह। इसराफ़ील सबके साथ मिल-जुलकर रहता है। कोई उसे फ़ोन पर मदद के लिए बुलाए, तो वह मना नहीं करता। इसी मिलनसार स्वभाव के कारण उसके बहुत दोस्त बन गए हैं।


मुंबई एक तेज़ रफ़्तार शहर है। लोग यहाँ रात में भी दिन की तरह काम करते हैं। ऊँची इमारतें, चमचमाती रोशनी, मॉल, मल्टीप्लेक्स—सब कुछ 24×7 चलते हैं। लेकिन इस चकाचौंध के बीच कई लोग ऐसे भी हैं, जो दिन-रात मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालते हैं।

इसराफ़ील उन्हीं में से एक है। वह अपने हुनर से संतुष्ट है। उसे यह एहसास है कि उसके बिना कई घरों में अँधेरा छा सकता है। वह जानता है कि उसकी मेहनत लोगों को सीधा राहत देती है।

जब भी कहीं बिजली गुल होती है, इसराफ़ील सबसे पहले पहुँचता है। लोग उसकी सादगी और मेहनत की तारीफ़ करते नहीं थकते। वह कभी काम को टालता नहीं, न ही कोई बहाना बनाता है।

इसराफ़ील कहता है, “अगर मैंने किसी को वादा किया कि मैं दस बजे पहुँचूँगा, तो मैं दस बजे ही पहुँचूँगा।” उसकी इसी वचनबद्धता के कारण लोग उसकी इज़्ज़त करते हैं।


कई बार काम इतना आसान नहीं होता। बिजली के तार जल गए हों, या ट्रांसफार्मर में गड़बड़ी हो, या फिर किसी ऊँची इमारत की मेंटनेंस के लिए रात में चढ़ना पड़े—इसराफ़ील कभी पीछे नहीं हटता।

एक बार की बात है, मीरा रोड की एक बड़ी सोसायटी में रात के दो बजे अचानक बिजली चली जाती है। लिफ्ट बंद हो जाती है, लोगों के फ़ोन डिस्चार्ज होने लगते हैं, और सिक्योरिटी गार्ड भी परेशान हो जाता है। कोई भी समझ नहीं पाता कि क्या किया जाए।

अंत में किसी को याद आता है: “इसराफ़ील को बुलाते हैं।” वह गहरी नींद में होता है, लेकिन फ़ोन की घंटी सुनते ही उठ जाता है। बिना किसी शिकायत के, अपनी एटलस साइकिल निकालता है और सोसायटी पहुँचता है।

वहाँ जाकर वह देखता है कि मेन पैनल में कोई बड़ी गड़बड़ी है। वह फ़ौरन काम पर लग जाता है, तारों की पड़ताल करता है, और पता लगाता है कि पैनल का एक महत्त्वपूर्ण सर्किट क्षतिग्रस्त हो चुका है। उसके पास कुछ ज़रूरी उपकरण तो हैं, लेकिन इतना बड़ा पार्ट बदलने के लिए उसे कुछ अतिरिक्त सामान की ज़रूरत पड़ती है।

रात के दो बजे कहाँ मिलेगा? लेकिन वह हार नहीं मानता। किसी तरह एक दोस्त को जगाता है, जो दूसरी जगह से पार्ट ले आता है। कुछ घंटे की मेहनत के बाद सुबह पाँच बजे बिजली फिर से बहाल हो जाती है। सोसायटी के लोग उसकी तारीफ़ करते हैं, उसे दोगुना भुगतान देना चाहते हैं, लेकिन वह फिर कहता है, “जितना सही है, उतना ही दीजिए।


इसराफ़ील न केवल अपने काम में निपुण है, बल्कि उसका व्यवहार भी बहुत सहज है। वह कभी किसी से ऊँची आवाज़ में बात नहीं करता, न ही ग्राहकों को डराता या दबाव डालता है।

  • ग्राहक सेवा: जब भी कोई ग्राहक उसे बुलाता है, वह पहले उन्हें समस्या समझने की कोशिश करता है। फिर calmly समझाता है कि क्या करना होगा, कितना खर्च आ सकता है, और कितना समय लगेगा।
  • मिलनसार स्वभाव: वह हर किसी के साथ मित्रता रखता है। चाहे वह सलीम हार्डवेयर के आसपास के कारीगर हों या सोसायटी के सिक्योरिटी गार्ड—सब उससे खुश रहते हैं।
  • ईमानदारी: वह कभी भी अपने फायदे के लिए गलत सलाह नहीं देता। अगर कोई पार्ट सही सलामत है, तो वह उसे बदलने को नहीं कहता।

यही वजह है कि लोग उसे दिल से पसंद करते हैं और उसकी तारीफ़ दूसरों से भी करते हैं।


मुंबई में मानसून आते ही, बिजली की समस्याएँ और बढ़ जाती हैं। कहीं शॉर्ट सर्किट हो जाता है, कहीं तार टूट जाते हैं, कहीं पानी भरने से ट्रांसफार्मर में दिक्कत आने लगती है।

इसी दौरान, एक दिन सुबह से ही मूसलाधार बारिश हो रही है। इसराफ़ील सलीम हार्डवेयर की दुकान पर बैठा है, भीगते-भीगते आया है, लेकिन फिर भी मुस्कुरा रहा है। तभी एक फ़ोन आता है—एक बड़े अपार्टमेंट में बिजली चली गई है। लोग लिफ्ट में फँसे हुए हैं।

वह बिना देर किए वहाँ पहुँचता है। अपार्टमेंट के बेसमेंट में पानी भरा हुआ है। कोई भी नीचे जाने की हिम्मत नहीं कर रहा। इसराफ़ील एक प्लास्टिक कवर से अपने औजारों को सुरक्षित रखता है, रबर के जूते पहनता है, और पानी में उतरकर बिजली के पैनल तक पहुँचता है।

वहाँ पहुँचकर उसे पता चलता है कि पानी की वजह से सर्किट बोर्ड में गड़बड़ी आ गई है। वह बहुत सावधानी से फ़्यूज़ बदलता है, एक्स्ट्रा पानी निकालने का इंतज़ाम करता है, और थोड़ी देर में लिफ्ट चालू हो जाती है। जो लोग फँसे हुए थे, वे बाहर निकल आते हैं। सब उसका शुक्रिया अदा करते हैं।


कई बार उसके दोस्त या जान-पहचान के लोग उसे सलाह देते हैं कि वह भी खाड़ी देशों में जाकर काम करे, जहाँ इलेक्ट्रिशियन को अच्छा पैसा मिलता है। वहाँ कुछ ही सालों में बड़ी बचत की जा सकती है, मकान ख़रीदा जा सकता है, गाड़ी ली जा सकती है।

लेकिन जब भी इसराफ़ील से कोई यह सवाल करता है, “तुमने कभी विदेश जाने के बारे में नहीं सोचा?” तो वह हमेशा मुस्कुराकर कहता है, “इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। अपना मुल्क और अपने वतन में रहना ही मुझे पसंद है। यहीं की गलियों में पला-बढ़ा हूँ, यहीं के लोग मेरे अपने हैं। पैसा ज़रूरी है, लेकिन संतोष और सुकून उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है।

उसकी यह बात लोगों को छू जाती है। कुछ लोग हँसकर कहते हैं, “यार, तुम बड़े भोले हो!” पर वह जानता है कि उसे अपने देश में रहकर ही खुशी मिलती है।


जब रात गहराने लगती है, इसराफ़ील अपना काम समेटकर लौटने लगता है। उसकी पुरानी एटलस साइकिल, जो सुबह से ही उसकी साथी रही है, अभी भी बाहर खड़ी रहती है। वह थका हुआ होता है, पर चेहरे पर संतुष्टि झलकती है।

झुग्गियों की सँकरी गलियों से गुज़रते हुए, वह सोचता है कि आज उसने कितने घरों में उजाला पहुँचाया, कितने लोगों की समस्या सुलझाई। कभी-कभी रास्ते में कोई और बुलावा आ जाता है, और वह बिना झिझक वहाँ भी पहुँच जाता है।

घर पहुँचते ही वह अपने माता-पिता से मिलता है, थोड़ा आराम करता है, और माँ के हाथ की बनी दाल-रोटी खाता है। उसे किसी बड़े होटल में खाना खाने का शौक नहीं, वह कहता है कि “माँ के हाथ का स्वाद दुनिया में सबसे बेहतरीन है।”


हर दिन की तरह अगली सुबह फिर आती है। सूरज की रोशनी झुग्गियों के टीन के छप्परों पर पड़ती है। इसराफ़ील जल्दी उठकर हाथ-मुँह धोता है, पिता से दुआ-सलाम करता है, और अपनी एटलस साइकिल पर सवार हो जाता है। आज उसे कौन से नए काम मिलेंगे, वह नहीं जानता, लेकिन इतना तय है कि जहाँ भी बिजली की समस्या होगी, लोग उसे ही याद करेंगे।

वह सलीम हार्डवेयर की दुकान पर पहुँचता है, जहाँ सलीम भाई उसे देखकर मुस्कुराते हैं—“आ गए उस्ताद? आज सुबह एक कॉल आया था, एक दुकान की वायरिंग खराब है, वहाँ जाना होगा।”

इसराफ़ील चाय की एक चुस्की लेता है और कहता है, “चलिए, सामान निकालते हैं।”

सलीम भाई उसे ज़रूरी सामान देते हैं—नए तार, कुछ फ़्यूज़, प्लग, स्विच इत्यादि। इसराफ़ील सबकुछ अपनी बैग में रखता है, एटलस साइकिल पर लादता है, और निकल पड़ता है।


कई बार लोगों को लगता है कि बिजली मिस्त्री या कारीगर ज़्यादा पैसे माँगते हैं, या सही सामान की जगह नकली सामान लगाकर मुनाफ़ा कमाते हैं। लेकिन इसराफ़ील के बारे में सब जानते हैं कि वह ऐसा नहीं करता।

  • उसके पास ग्राहक की सूची है, जिसमें कुछ बड़े रेस्टोरेंट, दुकानें, और अपार्टमेंट शामिल हैं। सबने उसे अपना स्थायी इलेक्ट्रिशियन बना लिया है।
  • वह कभी भी नकली सामान का प्रयोग नहीं करता, क्योंकि उसे पता है कि इससे आगे चलकर लोगों की सुरक्षा को ख़तरा हो सकता है।
  • वह हमेशा रसीद देता है, जिससे लोगों को पता चलता है कि उन्होंने क्या सामान ख़रीदा और कितने का।

यही पारदर्शिता उसे दूसरे कारीगरों से अलग करती है।


इसी ईमानदारी और मेहनत की वजह से काशीमिरा के लोग इसराफ़ील को दिल से चाहते हैं। अगर वह कभी बीमार पड़ जाए या कुछ दिनों के लिए काम पर न आए, तो लोग परेशान हो जाते हैं—“अरे, इसराफ़ील कहाँ गया?”

कुछ लोग उसे मज़ाक में “बिजलीवाला डॉक्टर” भी कहते हैं, क्योंकि वह हर फ़ॉल्ट को ऐसे ठीक करता है जैसे डॉक्टर मरीज़ का इलाज कर रहा हो।

जब कोई उससे पूछता है, “तुम कब तक इसी तरह साइकिल चलाते रहोगे?” तो वह मुस्कुराकर कहता है, “जब तक चलती है, चलने दो। ये भी तो मेरे संघर्ष की साथी है।”


इसराफ़ील की कहानी सिर्फ एक बिजली मिस्त्री की कहानी नहीं, बल्कि उन लाखों मेहनती लोगों की कहानी है, जो अपने दम पर दूसरों के जीवन में रोशनी लाते हैं। वह न तो बहुत पढ़ा-लिखा है, न ही उसके पास बड़े-बड़े सर्टिफिकेट हैं, लेकिन उसके पास हुनर है, ईमानदारी है, और लोगों का भरोसा है।

हर सुबह सलीम हार्डवेयर के सामने बैठकर नए काम का इंतज़ार करना, अपनी एटलस साइकिल के साथ बारिश, धूप, आंधी—हर मौसम में लोगों की मदद के लिए निकल जाना, और देर रात तक किसी न किसी सोसायटी या दुकान में फॉल्ट ठीक करना—यही उसकी ज़िंदगी का हिस्सा है।

लोग उसके बारे में कहते हैं, “अगर इसराफ़ील न होता, तो पता नहीं क्या होता।” वह वाकई नींव का पत्थर है—बिना दिखावे के, बिना किसी बड़े नाम या प्रचार के, चुपचाप समाज को रोशन करने वाला एक असली हीरो।

और सबसे बड़ी बात यह है कि वह विदेश या किसी बड़े शहर में जाने की बजाय, अपने वतन में रहकर ही ख़ुश है। उसके लिए पैसा ही सब कुछ नहीं—उसके लिए संतोष, सुकून, और लोगों का प्यार ज़्यादा मायने रखता है।

जब हम अगली सुबह उठकर स्विच ऑन करते हैं और लाइट जल जाती है, तो शायद हमें याद भी न हो कि इसके पीछे कितनी मेहनत छिपी है। लेकिन इसराफ़ील जैसा कोई व्यक्ति, कहीं न कहीं, तारों के बीच चिंगारी से जूझ रहा होता है, ताकि हमारे घर में उजाला बना रहे।

यह कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। अगली सुबह फिर आती है, और इसराफ़ील फिर अपनी एटलस साइकिल पर बैठकर निकल पड़ता है—क्योंकि उसे मालूम है कि कहीं न कहीं फिर कोई फॉल्ट हुआ होगा, और लोग उसकी राह देख रहे होंगे। वह हर दिन अपने वादे को निभाता है—लोगों के घरों में रोशनी और दिलों में भरोसा जगाए रखने का वादा।

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