नींव के पत्थर – दूधवाले समाज के अनदेखे नायक
समाज के विकास और प्रगति में अक्सर हमें उन लोगों के बारे में नहीं पता चलता जो चुपचाप, बिना किसी शोर-शराबे के अपना कर्तव्य निभाते हैं। ये लोग हमारे रोजमर्रा के जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनका संघर्ष और योगदान अक्सर अनदेखा रह जाता है। इनकी मेहनत और ईमानदारी ही समाज की असली ताकत होती है। ऐसे ही एक उदाहरण हैं श्री रेवाराम चोधरी, जो अपने कठिन और श्रमसाध्य काम के माध्यम से न केवल अपने परिवार को संजीवनी दे रहे हैं, बल्कि समाज की नींव भी मजबूत कर रहे हैं।
“नींव के पत्थर” का सही अर्थ श्री रेवाराम चोधरी की कहानी में समाहित है। उनका जीवन एक मिसाल है, जो यह साबित करता है कि छोटे से छोटे कार्य भी अगर ईमानदारी और मेहनत से किए जाएं, तो वे समाज के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। इस लेख में हम श्री चोधरी के संघर्ष और सफलता की कहानी को जानेंगे, जो हर रोज़ अपने काम से समाज की नींव को और भी मजबूत बना रहे हैं।
दूधवाले भाई भी ऐसे ही लोगों में से हैं, जिनका योगदान हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है, फिर चाहे वह कोरोना महामारी का समय हो या फिर सामान्य दिनचर्या का।
“सोचिए, अगर दूध न हो तो सुबह की शुरुआत कैसे होगी? बिना दूध के न तो चाय मिलेगी, न ही सही तरीके से नाश्ता हो पाएगा।” बिना दूध के, न तो कोई संपूर्ण आहार बनेगा, न शरीर को सही पोषण मिलेगा। न हमारी हड्डियाँ मजबूत होंगी, न त्वचा चमकेगी।”
दूधवाले भाई, जिनसे हम रोज़ सुबह मिलने के लिए तैयार होते हैं, वे हमारे जीवन में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका काम केवल दूध पहुंचाना नहीं है, बल्कि वे हमारी सुबह को एक नए उत्साह और ताजगी से शुरू करते हैं। हमें यदि कभी उनके बिना सुबह का समय गुजारना पड़े, तो हमें उनकी अहमियत का एहसास होता है। उनका काम न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण होता है, बल्कि यह हमारी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा बन जाता है।
श्री रेवाराम चोधरी का जीवन संघर्ष और मेहनत की कहानी है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने काम और परिवार की भलाई के लिए समर्पित की है। आज भी वे राजनगर इंदौर में रहते हैं और अपनी साइकिल पर दूध बांटते हैं। उनके इस कार्य को देखकर यह समझा जा सकता है कि कैसे छोटे से छोटे काम भी समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। श्री चोधरी का जीवन यह दर्शाता है कि कैसे कठिनाइयों के बावजूद एक व्यक्ति अपनी मेहनत और ईमानदारी से न केवल अपने परिवार को मजबूत करता है, बल्कि समाज की सेवा भी करता है।
श्री रेवाराम चोधरी का जन्म देपालपुर के पास एक छोटे से गांव में हुआ था। वह 7 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे और उनके पिताजी का निधन बहुत ही छोटी उम्र में हो गया था। पिताजी के निधन के बाद उनका पालन-पोषण उनके भाइयों ने किया। उन्होंने बताया कि उनके जीवन का सबसे कठिन समय वह था जब उनके पिता का निधन हुआ और उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
श्री चोधरी ने अपने जीवन की शुरुआत बहुत ही कठिनाइयों से की। लगभग 24 साल पहले, वे इंदौर आए और यहां अपने भाइयों के साथ दूध बांटने का काम शुरू किया। शुरूवात में यह काम बहुत कठिन था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उन्होंने इस कार्य में न केवल अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त की, बल्कि अपनी ईमानदारी और निष्ठा से समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई। आज भी वे लगभग 110 लीटर दूध साइकिल पर लेकर सुबह और शाम घर-घर बांटते हैं। उनके इस काम में कोई छुट्टी नहीं होती, वे हर रोज़ अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं, चाहे मौसम कैसा भी हो।
श्री चोधरी ने अपने जीवन की शुरुआत बहुत ही साधारण तरीके से की। उन्होंने पहले ₹50 महीने की नौकरी की थी, लेकिन धीरे-धीरे मेहनत के साथ उनकी आमदनी बढ़ी। आज वे महीने में लगभग ₹5000 कमा लेते हैं, और इसके अलावा उनके पास खुद की दो भैंसें हैं, जिससे उनका परिवार आसानी से अपना खर्च चला सकता है। उनका कहना है कि शुरुआत में यह काम बहुत कठिन था, लेकिन आज उनके पास घर, परिवार और अपनी मेहनत से एक मजबूत स्थिति है।
श्री चोधरी का काम हर दिन, हर मौसम में निरंतर चलता है। चाहे सर्दी हो, गर्मी हो या बरसात, उन्हें अपने कार्य में कोई छुट्टी नहीं मिलती। यह काम ऐसा है जो रोज़ सुबह और शाम घर-घर जाकर करना होता है। इस कारण से वे अपने परिवार के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते। लेकिन उनका कहना है कि यह उनका कर्तव्य है और उन्हें इसे पूरी जिम्मेदारी से निभाना चाहिए।
जब देश में कोरोना वैश्विक महामारी अपनी चरम सीमा पर थी, तब श्री चोधरी ने अपनी और अपने परिवार की जान जोखिम में डालकर लोगों तक दूध पहुंचाया। इस कठिन समय में, जब लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल सकते थे, श्री चोधरी ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया। उनके लिए यह कर्तव्य था, और उन्होंने अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए किसी भी प्रकार का जोखिम उठाने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। यह उनकी निष्ठा और समर्पण को दर्शाता है।
लोगों से अपेक्षाएँ
श्री चोधरी का कहना है कि वे बस यही चाहते हैं कि लोग उन्हें इंसान की तरह समझें और हमेशा उनके काम और मेहनत को सम्मान दें। वे यह भी कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति बेईमानी से पैसे नहीं कमाना चाहता। उनका मानना है कि मेहनत और ईमानदारी से किया गया काम हमेशा फल देता है।
सामाजिक कार्यों में योगदान
श्री चोधरी का मानना है कि जब कोई व्यक्ति अपने परिवार को आर्थिक रूप से सक्षम बना लेता है, तो उसे समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए। उन्होंने बताया कि वे हमेशा अपने गांव में जाकर गरीब बच्चियों की शिक्षा के लिए काम करते हैं। उनका सपना है कि बेटियां पढ़-लिखकर अपने गांव का नाम रोशन करें और समाज में एक नई रोशनी लाएं। उनका कहना है कि अगर बेटियां शिक्षित होंगी, तो समाज का भविष्य उज्जवल होगा।
प्रश्न 1: आजकल दूध में मिलावट के मामलों की संख्या बढ़ रही है। क्या आपको कभी इस बारे में चिंता होती है?
उत्तर:
“जी हां, यह सच है कि दूध में मिलावट के कई मामले सामने आ रहे हैं। लेकिन मैं खुद दूध की गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखता हूँ। मैं जो दूध लोगों तक पहुँचाता हूँ, वह शुद्ध और ताजे स्रोत से आता है। मेरे पास अपनी दो भैंसें हैं, और मैं इन्हें ताजे चारे से खिलाता हूँ, ताकि दूध की गुणवत्ता बेहतरीन हो। दूध की गुणवत्ता को लेकर मेरी जिम्मेदारी है, और मैं इसे ईमानदारी से निभाता हूँ।”
प्रश्न 2: क्या आपके ग्राहक कभी दूध की गुणवत्ता को लेकर सवाल करते हैं, और आप उनका विश्वास कैसे जीतते हैं?
उत्तर:
“हां, कुछ ग्राहक मुझसे दूध की गुणवत्ता के बारे में सवाल करते हैं, खासकर जब वे मिलावटी दूध के मामलों के बारे में सुनते हैं। मैं उन्हें समझाता हूँ कि दूध शुद्ध है और इसके अलावा, मैं उन्हें बता सकता हूँ कि यह मेरे द्वारा पाले गए गायों और भैंसों का दूध है, जो स्वच्छता और शुद्धता के सभी मापदंडों को पूरा करता है। मैं उन्हें यह भी बताता हूँ कि मैं दूध को कभी भी बिना जांचे या बिना गुणवत्ता की पुष्टि किए नहीं बेचता। मेरी पारदर्शिता और ईमानदारी उनके विश्वास को मजबूत करती है।”
प्रश्न 5: मिलावटी दूध के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। क्या आपको लगता है कि सरकार और समाज को इसे रोकने के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए?
उत्तर:
“बिलकुल, यह एक गंभीर समस्या है। सरकार को दूध की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए और मिलावट करने वालों के खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान करना चाहिए। इसके साथ ही, समाज में भी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, ताकि लोग शुद्ध दूध की पहचान कर सकें और इसका सही इस्तेमाल करें। दूधवाले को भी अपनी भूमिका समझनी चाहिए और अपनी गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं करना चाहिए। इस मुद्दे पर सबका एकजुट होना जरूरी है।”
सोचिए, अगर दूध न हो तो क्या होगा? चाय की तो बात ही छोड़िए, वो प्याली भी हाथ में नहीं आ पाएगी, जिसमें दिन की शुरुआत का स्वाद मिलता है। नाश्ता तो बिल्कुल अधूरा रहेगा, ओट्स या दलिया बिना दूध के जैसे किसी खाली बर्तन में गिरा हुआ दाना। कैल्शियम की कमी से हड्डियाँ चिल्लाएंगी, लेकिन हमें पता नहीं चलेगा। दूध वाला भइया अगर छुट्टी पर चला जाए, तो लगेगा जैसे पूरा मोहल्ला ही सुस्त हो गया हो! दूध में मिलावट की खबरें तो आए दिन सुनने को मिलती हैं, लेकिन क्या करें, ‘मिलावट’ को हम एक समझदारी ही मानने लगे हैं, क्योंकि बिना दूध के सुबह तो हो ही नहीं सकती!”
श्री रेवाराम चोधरी का जीवन यह साबित करता है कि समाज में छोटे-छोटे कामों का भी बेहद महत्व होता है। उन्होंने अपने काम से यह सिद्ध कर दिया कि अगर कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों को ईमानदारी और मेहनत से निभाता है, तो वह न केवल अपने परिवार को बलवान बनाता है, बल्कि समाज की नींव भी मजबूत करता है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि हर काम, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, अगर ईमानदारी से किया जाए, तो वह समाज के लिए अहम हो सकता है।
श्री चोधरी जैसे लोग हमारे समाज के असली नायक हैं, जिनका योगदान कभी भी छोटा नहीं हो सकता। उनके संघर्ष और समर्पण की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में जो भी काम करें, उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करें, ताकि हम भी समाज के विकास में अपना योगदान दे सकें।
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