मेजर पद्मपनी आचार्य एमवीसी
जिन्होंने घायल होने के बावजूद तोलोलिंग चोटी पर फहराया तिरंगा
कारगिल युद्ध को लेकर यूं तो बहुत सी कहानियां पढ़ी या सुनी होगी। इस युद्ध में मां भारती के सैंकड़ों वीर सपूतों ने लड़ते लड़ते अपने प्राण त्याग दिए। आज इस कड़ी में हम बात करेंगे देश के लिए मर मिटने वाले मां भारती के इस वीर सपूत की जिसकी कहानियां आपकी आंखें नम कर देंगी। ये कहानी है भारतीय सेना के उस बहादुर सिपाही की जिसने अपने परिवार से पहले अपने देश को आगे रखा उनका नाम है मेजर पùपाणि आचार्य।
व्यक्तिगत जीवन
मेजर पùपाणि आचार्य का जन्म 21 जून 1968 को एक वायु सेना परिवार में हुआ था जो मूल रूप से ओडिशा से थे, लेकिन तेलंगाना में हैदराबाद में बस गए। मेजर आचार्य की शादी चारुलता से हुई थी, जो 1999 में अपने पति के शहीद होने के समय अपनी बेटी अपराजिता से गर्भवती थी। जो उनकी मृत्यु के कुछ महीने बाद पैदा हुई थी।
उनकी बेटी अपराजीता आचार्य एक एनसीसी राष्ट्रीय कैडेट कोर की कैडेट हैं। आचार्य के पिता, जगन्नाथ आचार्य, 1965 और 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना के सेवानिवृत्त विंग कमांडर थे। वे वर्तमान में हैदराबाद में रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशालाओं के साथ काम कर रहे हैं। मेजर आचार्य अपने पीछे माता-पिता, पत्नी और बेटी अपराजीता को छोड़ गए थे। उन्हें 28 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान अपने कार्यों के लिए मरणोपरांत भारतीय सैन्य सम्मान, महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर आचार्य के भाई पद्मसंभव आचार्य 1999 में भारतीय सेना में कैप्टन थे और कारगिल में ऑपरेशन विजय का हिस्सा थे। मेजर आचार्य की मां श्रीमती विमला आचार्य एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अपने बेटे को एक खुशमिजाज व्यक्ति और एक उत्साही पाठक के रूप में याद करती हैं।
कारगिल गाथा
28 जून 1 999 को, थलोलिंग फीचर पर दूसरी राजपूताना राइफल्स द्वारा मेजर पùपाणि आचार्य ने कंपनी कमांडर के रूप में बटालियन हमले में दुश्मन की स्थिति पर काबू करने का दुर्जेय काम सौंपा गया, जो भारी सुरक्षा वाले क्षेत्र और व्यापक मशीनगन और तोपखाने से सुसज्जित थी। हालांकि, कंपनी की शुरुआत कमजोर हुई थी, जब दुश्मन की तोपखाने की आग ने प्रमुख पलटन का भछरी नुक्सान किया तब अपनी निजी सुरक्षा के प्रति उदासीन मेजर पùपाणि आचार्य ने आरक्षित प्लाटून का सहारा लिया और गोलों की बारिश के बीच भी अपना अभियान चलाया।उनके जन्मदिन के ठीक एक हफ्ते बाद, 28 जून, 1999 को, भारतीय सेना की दूसरी राजपूताना राइफल्स को तोलोलिंग टॉप पर दुश्मन के बंकर पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था क्योंकि यह श्रीनगर – लेह राजमार्ग (एनएच 1 डी) की ओर देखने वाली एक प्रमुख स्थिति थी। बटालियन की सफलता इस स्थिति पर शीघ्र कब्जा करने पर निर्भर थी। इस प्रकार, तोलोलिंग की लड़ाई कारगिल युद्ध की महत्वपूर्ण लड़ाइयों में से एक थी।
कारगिल में मेजर पùपाणि अचार्य का पराक्रम
28 जून 1999 पाकिस्तानी सैनिकों ने तोलोलिंग की चोटी पर कब्जा कर लिया था। तोलोलिंग सामरिक लिहाज से भी भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण चोटियों में से एक थी। लिहाजा पाक सैनिकों के कब्जे से तोलोलिंग को मुक्त कराने के लिए सेना ने रणनीति बनानी शुरू कर दी। दुर्भाग्य से, दुश्मन सेना के भारी तोपखाने हमले के कारण आक्रमण कंपनी को बड़ी संख्या में हताहतों का सामना करना पड़ा। लेकिन इसने मेजर आचार्य को अपने निर्धारित मिशन पर आगे बढ़ने से नहीं रोका। अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना, मेजर आचार्य ने रिजर्व प्लाटून को ले लिया और बमबारी के बीच उसका नेतृत्व किया। उनके कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हो गए लेकिन उन्होंने उन्हें प्रोत्साहित करना जारी रखा और शेष सैनिकों के साथ दुश्मन पर हमला किया। वह स्वयं रेंगते हुए दुश्मन के बंकर तक पहुंचे और हथगोले फेंके। जब वह गंभीर रूप से घायल हो गए और हिलने-डुलने में असमर्थ हो गए, तो उसने अपने आदमियों को आदेश दिया कि वे उसे छोड़ दें और दुश्मन पर हमला करें, जबकि वह गोलीबारी जारी रखे। रात भर चली भीषण आमने-सामने की लड़ाई के बाद, बटालियन टोलोलिंग चोटी पर फिर से कब्जा करने में सफल रही, और इस तरह कारगिल युद्ध का रुख बदल गया।
28 जून 1999 को 2-राजपूताना राइफल्स के मेजर पùपाणि आचार्य को कंपनी कमांडर के रूप में दुश्मन के कब्जे वाली अहम चैकी को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। खास बात ये थी कि यहां दुश्मन सेना न सिर्फ अत्याधुनिक हथियारों से लैस था बल्कि खतरनाक माइंस भी रास्ते में बिछा रखा था। बावजूद इन सब के मेजर पùपाणि ने अपनी बटालियन का नेतृत्व करते हुए दुर्गम पहाड़ी रास्तों पर चढ़ाए शुरू कर दी। मेजर की अगुवाई में उनकी बटालियन ने फायरिंग और ग्रेनेड की बारिश के बीच अपना अभियान जारी रखा।दुश्मन सेना के समीप पहुंचते-2 मेजर पद्मपनी को कई गोलियां लग चुकी थीं। परंतु अपने मिशन को पूरा करने का जज्बा उनके भीतर ऐसे घर कर गया था कि वो अपने दर्द को भूलते हुए आगे बढ़े और 5 से 6 पाक सैनिकों को ढेर करते तोलोलिंग की चोटी को मुक्त कराया।
फिल्मी रूपांतरण
टोलोलिंग की लड़ाई की घटनाएं हिंदी युद्ध की फिल्म, एलओसी कारगिल, में प्रमुख युद्ध दृश्यों में से एक के रूप में हुईं, जिसमें नागार्जुन ने आचार्य की भूमिका निभाई।
‘‘महावीर चक्र‘‘
मेजर पùपाणि आचार्य को उनकी उत्कृष्ट बहादुरी, अडिग नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान के लिए देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, ‘‘महावीर चक्र‘‘ से सम्मानित किया गया था। उनके परिवार में उनके पिता वायु सेना के अनुभवी विंग कमांडर जगन्नाथ आचार्य, मां श्रीमती विमला आचार्य, पत्नी श्रीमती चारुलता आचार्य और बेटी अपराजिता हैं।
कैफे सोशल इन वीर शहीदों के पावन चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। कैफे सोशल द्वारा शहीदों की याद में श्रद्धा सुमन अर्पित करने का यह सिलसिला अहर्निश चलता रहेगा।